कितने रूप हैं तुम्हारे
जल जंगल जमीन हमारा रक्षक हैं हम जंगल पहाड़ों का हमारे अंदर जंगल उजड़ने का दर्द चीख-चीख कर बयाँ कर रही है तुम्हारी दरिंदगी के किस्से
जल जंगल जमीन हमारा रक्षक हैं हम जंगल पहाड़ों का हमारे अंदर जंगल उजड़ने का दर्द चीख-चीख कर बयाँ कर रही है तुम्हारी दरिंदगी के किस्से
रात के आवारा मेरी आत्मा के पास भी रुको मुझे दो ऐसी नींद जिस पर एक तिनके का भी दबाव ना होऐसी नींद
प्रेमचंद ने पहली बार लक्ष्य किया कि सांप्रदायिकता किस तरह से संस्कृति का मुखौटा लगाकर सामने आती है। उसे अपने असली स्वरूप में सामने आने में शर्म लगती है इसलिए वह हमेशा संस्कृति की दुहाई देती है।
सुना था वापसी तो एक ही बार होती है जीव की एक जीवन में इस पृथ्वी से उस घर को जो है वैभव लोक में मृत्यु के बाद।
कुछ दिन रहना इस घर में जो उतना ही तुम्हारा भी है तुम्हें देखने की प्यास है गहरी तुम्हें सुनने की
शान से छिपी बैठी थी वह भूख को पछाड़ते एक रोटी के टुकड़े में, उसे निहारती आँखों में उमड़ते उम्मीद के सागर में!मैंने बढ़ाए कदम बहुत हौले, करने को धप्पा, वह दौड़ पड़ी चंचल बच्ची-सी मुग्ध हँसती, देती चुनौती।