बंधु! जरूरी है मुझको घर लौटना
बंधु! जरूरी है मुझको घर लौटना, एक मुझे भी ले लो अपनी नाव पर। देर तनिक हो गई वहीं, बाजार में, मोल-तोल के भाव और व्यवहार
बंधु! जरूरी है मुझको घर लौटना, एक मुझे भी ले लो अपनी नाव पर। देर तनिक हो गई वहीं, बाजार में, मोल-तोल के भाव और व्यवहार
ऊँचाई पर बने आधी दीवार वाले फुटपाथों के आसमान को गले लगाते हम पहुँचते सिनेमाघर के भीतर अगर मैटिनी शो के अँधेरे में मैंने प्यार किया
ये कैसा बड़प्पन कि हमारे खेतों के अनाज जब इनके आँचल में जाता है तो वह छूने योग्य नहीं होता है!
औरत नदी होती है, जो दो किनारों के बीच अपने को नियंत्रित-संतुलित कर उबड़-खाबड़ रास्तों से निरंतर बहती चली जाती है।
बेनीपुरी ने ‘माटी की मूरतें’ जैसी जीवंत-कृति की रचना कर साहित्यिक-सांस्कृतिक चिंतन को साकार रूप देने का सफल प्रयास किया है।
झर झर झर रहे हैं फूल हरसिंगर के!रहते झरते रातभर वे। झर रहे हैं प्रात भर वे।झर रहे हैं फूल झर झर