बंधु! जरूरी है मुझको घर लौटना

बंधु! जरूरी है मुझको घर लौटना, एक मुझे भी ले लो अपनी नाव पर। देर तनिक हो गई वहीं, बाजार में, मोल-तोल के भाव और व्यवहार

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प्यार

ऊँचाई पर बने आधी दीवार वाले फुटपाथों के आसमान को गले लगाते हम पहुँचते सिनेमाघर के भीतर अगर मैटिनी शो के अँधेरे में मैंने प्यार किया

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नई धारा संवाद : कथाकार चित्रा मुदगल

ये कैसा बड़प्पन कि हमारे खेतों के अनाज जब इनके आँचल में जाता है तो वह छूने योग्य नहीं होता है!

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नदी होती औरत

औरत नदी होती है, जो दो किनारों के बीच अपने को नियंत्रित-संतुलित कर उबड़-खाबड़ रास्तों से निरंतर बहती चली जाती है।

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बेनीपुरी और उनकी ‘माटी की मूरतें’

बेनीपुरी ने ‘माटी की मूरतें’ जैसी जीवंत-कृति की रचना कर साहित्यिक-सांस्कृतिक चिंतन को साकार रूप देने का सफल प्रयास किया है।

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