हर ओर खट रहे हैं
हर ओर खट रहे हैं, यूपी-बिहार हैं हम हर रोज पिट रहे हैं, सबके शिकार हैं हमघर में जो मिलती रोजी, क्योंकर भटकते दर-दर ललकार की है क्षमता, फिर भी गुहार हैं हमहम सबके खूँ-पसीने से जगमगाती दुनिया
हर ओर खट रहे हैं, यूपी-बिहार हैं हम हर रोज पिट रहे हैं, सबके शिकार हैं हमघर में जो मिलती रोजी, क्योंकर भटकते दर-दर ललकार की है क्षमता, फिर भी गुहार हैं हमहम सबके खूँ-पसीने से जगमगाती दुनिया
बेड़ी औ जंजीर की भाषा सन-सन् चलते तीर की भाषामुझे नहीं अच्छी लगती है सत्ता की, शमशीर की भाषासीख रहा हूँ धीरे-धीरे तुलसी और कबीर की भाषा
चलती साँसें, वैभव कुदरत का दे रक्खा है सोचो हमको ईश्वर ने कितना दे रक्खा हैवह शै जिससे लोग खरीदे-बेचे जाते हैं नाम उसी को ही हमने पैसा दे रक्खा हैउससे सत्य-अहिंसा के दो सूत निकलते हैं
पराया कौन है और कौन है अपना सिखाया है हमें तो ठोकरों ने सोचकर बढ़ना सिखाया हैनहीं हम हार मानेंगे भले हों मुश्किलें कितनी चिरागों ने हवाओं से हमें लड़ना सिखाया हैवही है चाहता हम झूठ उसके वास्ते बोलें हमेशा हमको जिसने सच को सच कहना सिखाया है
हम भी शहर गए थे कमाने, नहीं जुड़े मेहनत से, भागदौड़ से, दाने नहीं जुड़ेकोशिश तो की थी मैंने भी बचने की साफ-साफ पर सच कहूँ तो मुझसे बहाने नहीं जुड़ेधागे में गाँठ वाली थी रहिमन की बात सच एक-दूसरे से रूठे दीवाने नहीं जुड़े
फैसला दस-पचास में बदला और इक पेड़ घास में बदलाहर निराशा को आस में बदला जब अँधेरा उजास में बदलावो बदलना भला लगा था जब कोई अच्छे की आस में बदला