अपने समय की साक्षी गजलें
नई सदी की गजल अपना रूप रंग बदल रही है इसमें कोई संशय नहीं है। लेकिन गजल एक नाजुक विधा है। इस पर कोई भी बोध बोझ की तरह नहीं लादा जा सकता है। शे’र के पास दो पंक्तियों की सीमित जगह है लेकिन इन दो पंक्तियों तथा उसके शब्दों के बीच एक बड़ा स्पेस होता है,