सच की कीमत रोज चुकानी पड़ती है

सच की कीमत रोज चुकानी पड़ती है खुद से भी यह हार छुपानी पड़ती हैपानी पीकर झूठ डकारें ले-लेकर भूखे घर की लाज बचानी पड़ती हैबाज-दफा दुश्मन भी काम आ जाते हैं अपनो से भी जान गँवानी पड़ती है

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बाज के पीठ पर बैठ परिंदा

बाज के पीठ पर बैठ परिंदा कब तक रह पाएगा जिंदाशेर-मेमने एक घाट पर हैरत में है हर बाशिंदावक्त की नब्ज टटोल रहा है बगुला भगत शरीफ दरिंदाझूठ की महिमा यूँ गाता है सच भी हो जाए शर्मिंदा

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खेत खाए गधे कुलाहों के

खेत खाए गधे कुलाहों के कान पकड़े गए जुलाहों केजब चले तीनर उन निगाहों के मर गए सब वजीर शाहें केउनकी बाहें की गिरवी हैं हम सहारे हैं जिनकी बाहों के

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झूठ बोले तो बोले सफाई न द

झूठ बोले तो बोले सफाई न दे इस तरह कोई सच की दुहाई न देमारत भी नहीं और रिहाई न दे ऐसे सय्याद की आशनाई न देरूठता है तो बहरा-सा बन जाए है लाख चिल्लाएँ उसका सुनाई न दे

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रुख से जब परदे हटाये जिंदगी

रुख से जब परदे हटाये जिंदगी खुद को भी खुद से मिलाये जिंदगीजानती है हार जाएगी मगर मौत से आँखें लड़ाये जिंदगीकैसे पीले हाथ हों बेटी के अब बेबसी के दिन दिखाये जिंदगी

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मेरे कलाम के अक्षर संभालकर रखना

मेरे कलाम के अक्षर सँभालकर रखना जो मैं मरूँ तो मेरा घर सँभालकर रखनान मेरे दर्द को शीशा कभी बयाँ कर दे तुम अपने हाथ का पत्थर सँभालकर रखना

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