कैसी बंदिश है
कैसी बंदिश है कोई भी पसे-मंजर न लिखे बात जो सच हो उसे कोई सुखनवर न लिखेकौम कोई हो किसी को कोई बरतर न लिखे हाँ मगर जो भी है आला उसे कमतर न लिखेअब कोई वहशतो-दहशत के ये मंजर न लिखे किसी स्कूल में बम, गोली कि खंजर न लिखे
कैसी बंदिश है कोई भी पसे-मंजर न लिखे बात जो सच हो उसे कोई सुखनवर न लिखेकौम कोई हो किसी को कोई बरतर न लिखे हाँ मगर जो भी है आला उसे कमतर न लिखेअब कोई वहशतो-दहशत के ये मंजर न लिखे किसी स्कूल में बम, गोली कि खंजर न लिखे
इक अँधेरा शहर में है दूर तक छाया हुआ इसलिए हर आदमी मिलता है घबराया हुआहो गया जो देवता बनकर बहुत मगरूर, वो– एक पत्थर था जमाने भर का ठुकराया हुआ
जैसा भी हो अच्छा या बुरा काट रहे हैं हम लोग मुकद्दर का लिखा काट रहे हैंकुछ मायने रखते नहीं इस दौर में रिश्ते बेटे ही यहाँ माँ का गला काट रहे हैंखुशबू का परस्तार उन्हें कैसे कहें हम
जिंदगी का इस तरह हम पर सितम टूटा कि बस बुतकदों से आखिरश ऐसा भरम टूटा कि बसक्या बताएँ किस कदर हम पर ये गम टूटा कि बस एक पल में ख्वाहिशों का ऐसा दम टूटा कि बसखुद से खुद का सामना करना भी मुश्किल हो गया
जिंदगी की कशमकश में, कुछ सुकूँ की चाह में छोड़ आया हूँ मैं खुद को, दूर पीछे राह मेंमैं तलब के सब मराहिल से, गुजर कर आ गया टीस यूँ तो कम नहीं थी, हसरतों की आह मेंख्वाब को मैंने हकीकत ही नहीं बनने दिया
गुँचे-सा जब भी रह गया खुद में बिखर के मैं इक अश्क बन के आँख से आया उतर के मैंहैरत से कैसे घूरने लगता है ये मुझे देखूँ कभी जो आइना थोड़ा सँवर के मैंजर्फ ओ शऊर आज भी हमराह हैं मेरे