ख्वाब आँखों में जो उतारे हैं

ख्वाब आँखों में जो उतारे हैं तेरी दुनिया के ही नजारे हैंतुम समझते हो वे तुम्हारे हैं ये सियासत के खेल सारे हैंख्वाब ये हमसे दूर हैं इतने दूर जितने ये चाँद तारे हैं

और जानेख्वाब आँखों में जो उतारे हैं

गरचे सौ चोट हमने खाई है

गरचे सौ चोट हमने खाई है अपनी दुनिया से आशनाई हैजिंदगी तू अजीज है हमको तेरी कीमत बहुत चुकाई हैजिनसे कुछ वास्ता नहीं मेरा किसलिए उनकी याद आई है

और जानेगरचे सौ चोट हमने खाई है

बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे

अनेक गजलकार ऐसे भी हैं जिनकी गजलों में जीवनानुभव के अनेक आयाम हैं और लगता है कि गजल लिखने के लिए गजल नहीं लिख रहे हैं उनके भीतर की आवाज उनसे गजल लिखवा रही है। अदम गोंडवी तथा उन जैसे गजलकारों की लाउड गजलें तो गजल को एकांगी बनाकर छोड़ देंगी।

और जानेबनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे

हिंदी गजल के मिज़ाज में प्रहार और गुस्सा है

गजल का जो परंपरागत रूप रहा है, वह प्रेम का है। उर्दू गजल में भी हम इस परंपरागत रूप को देखते हैं। परंतु गजल के परंपरागत रूप के स्वर को हिंदी गजल ने बदला। संरचना वही रही परंतु विषय बदल गया। दुष्यंत प्रगतिशील विचारधारा के कवि थे।

और जानेहिंदी गजल के मिज़ाज में प्रहार और गुस्सा है

बैठकर मुस्का रही हो तुम

बैठकर मुस्का रही हो तुम सच बहुत ही भा रही हो तुमबाँसुरी विस्मित समर्पित-सी गीत मेरा गा रही हो तुम

और जानेबैठकर मुस्का रही हो तुम

तनहा मंजर हैं तो क्या

तन्हा मंजर हैं तो क्या सात समंदर हैं तो क्याजरा सिकुड़ के सो लेंगे छोटी चादर है तो क्याचाँद सुकूँ तो देता है जद से बाहर हैं तो क्या

और जानेतनहा मंजर हैं तो क्या