सच्चाइयों का साथ निभाने से डर गए

सच्चाइयों का साथ निभाने से डर गए मरने से पहले लोग कई बार मर गएथे जिंदगी के साथ मेरी हर कदम पे जो नजरें तलाशती हैं उन्हें, वो किधर गएहम भी हवस के दश्त में फिरते तमाम उम्र अहसान है ये दर्द का कुछ कुछ सँवर गए

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पीड़ा की हर ओर पुकारें

पीड़ा की हर ओर पुकारें कैसे गाते रहें मल्हारेंसभी प्रशंसा चाहें झूठी किस किस की आरती उतारेंजब अपनो से ही लड़ना है कैसी ‘जीतें’ कैसी ‘हारें’दीवारें बनती हैं इक दिन

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कोई उम्मीद जगा दो कि मैं जिंदा हूँ अभी

कोई उम्मीद जगा दो कि मैं जिंदा हूँ अभी... मुझको अहसास दिला दो कि मैं जिंदा हूँ अभीबाद मरने के जताओगे बहुत अपनापन... तुम अभी क्यूँ न जता दो कि मैं जिंदा हूँ अभीकैद कर के मुझे कमरे में बुढ़ापे में तुम मुझको मुर्दा न बना दो कि मैं जिंदा हूँ अभी

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उम्र की राह में कुछ ऐसे भी लमहे आए

उम्र की राह में कुछ ऐसे भी लमहे आए जैसे अनमोल विरासत कोई हिस्से आएऐसी बस्ती कि अँधेरा ही अँधेरा था वहाँ रोशनी देने में सूरज को पसीने आएमिट गए लोग अँधेरों को मिटाने के लिए तब कहीं जा के ये थोड़े से उजाले आए

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किस बात की अकड़ है

किस बात की अकड़ है, किस बात पर तना है माटी है मोल तेरा, माटी से तू बना हैउसका मिजाज सारी दुनिया से है अजूबा रूठा तो ऐसे रूठा, मुश्किल से वो मना हैबच्चों को पाल लेना, उनके लिए तो मक्खन

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कब अनुकूल रहा मौसम

कब अनुकूल रहा मौसम दिल टूटा न टूटे हमइस दुनिया की रीत यही धूप जियादा साया कममरहम बाँटने वाले लोग माँग रहे हैं अब मरहमकौन चमन को छोड़ चला फूलों की हैं आँखें नम

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