बेजान जानकर नहीं गाड़ा हुआ
बेजान जानकर नहीं गाड़ा हुआ हूँ मैं बाकायदा उमीद से बोया हुआ हूँ मैंकोई नहीं निगाह में जिस ओर देखिए सहरा में हूँ कि शहर में अंधा हुआ हूँ मैंमाना कि आप जैसा धधकता नहीं मगर छू कर मुझे भी देखिए तपता हुआ हूँ मैं
बेजान जानकर नहीं गाड़ा हुआ हूँ मैं बाकायदा उमीद से बोया हुआ हूँ मैंकोई नहीं निगाह में जिस ओर देखिए सहरा में हूँ कि शहर में अंधा हुआ हूँ मैंमाना कि आप जैसा धधकता नहीं मगर छू कर मुझे भी देखिए तपता हुआ हूँ मैं
रूह के अंदर बैठने वाले जिस्म के बाहर बैठे हैं मुझमें जाने कितने प्यासे पी के समंदर बैठे हैंदेख लिया न मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों गिरिजाओं में अब देखो मयखानों में भी कितने कलंदर बैठे हैंकितना अजब तसव्वुफ है ये कितनी बड़ी खुमारी है रूह की बातें सोचने वाले जिस्म के अंदर बैठे हैं
समझ में आई सीरत उसकी जब खुल गई हकीकत उसकीकासा हाथ में ले आई है फिर इस बार जरूरत उसकीसूरज को जी जान से चाहा महँगी पड़ी मुहब्बत उसकीजुबाँ जरा सी फिसल गई क्या
उजाले बाँटने फिर चल पड़े हैं हमारे दर पे नाबीना खड़े हैंये परदे रेशमी तो हैं यकीनन मेरे सपनों के इन में चीथड़े हैंहवाए-ताजगी ले आएँगे हम