हेकड़ी
गोतिया-दियाद और टोलेवाले लाख कुढ़ते-चिढ़ते और विरोध करते रहे। खाना-पीना, सोना-बैठना आदि सभी हक बराबरी में उसे मिलना जारी रहा।
गोतिया-दियाद और टोलेवाले लाख कुढ़ते-चिढ़ते और विरोध करते रहे। खाना-पीना, सोना-बैठना आदि सभी हक बराबरी में उसे मिलना जारी रहा।
कहीं वे एक वात्सल्य से भरे पिता की तरह दिखाई देते हैं तो कहीं एक जिम्मेवार पुत्र की तरह, कहीं एक सहज और सरल पति की तरह,
राष्ट्रीय गर्व के समानांतर यह राष्ट्रीय शर्म का विषय है–‘रुई लपेटी आग’ इसी दूसरे पक्ष पर केंद्रित उपन्यास है।
मैं आज़ाद हूँ, जिसका होना खतरनाक है ‘उम्मीद’ महज़ शब्द से अधिक कुछ नहीं है चीज़ों के हो जाने से फ़र्क पड़ना ही बंद हो गया अब मेरे लिए जिया जाना भी बोझ है
और मुझसे हर बार यही गलती हुई मैंने नई भाषा को हमेशा पुरानी भाषा से सीखने की कोशिश की इस्तेमाल किया पुरानी भाषा के व्याकरण को नई भाषा में और वक्त के साथ या तो भाषा ने मुझे या मैंने भाषा को अधूरा छोड़ दिया।
मैंने रवि से कहा, ‘रवि ये बताओ, ये भारत सरकार नहाने आई है, तुम इस जुमले के ऊपर कहानी लिखोगे।’