अम्मा

अम्मा जिसके स्वप्न गाँव में बार-बार अँखुआते थे कल शहर हवा के साथ तैरकर आने को थे कितने बेकलउन्हीं स्वप्न-खँडहर पर अम्मा दीपक आज जला आती है।

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ताख पर सिद्धांत

ताख पर सिद्धांत धन की चाह भारी हो गया है आज आँगन भी जुआरीरोज़ ही गँदला रहा है आँख का जल स्वार्थ-ईर्ष्या के हुए ठहराव सेढल रहा जो वक्त उसकी चाल का स्वर

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धरती से अंबर तक

मुर्दा बनकर ज़िंदा तो रह लेते हम ज़िंदा दिखना सबके वश की बात नहीं हूनर, हिम्मत, मेहनत, खून-पसीने की मजदूरी लेते हैं हम, खैरात

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रोज आते रहें, रोज जाते रहें

जब मिलें आमने-सामने मोड़ पर देखकर आप-हम मुस्कुराते रहेंगम बसाए न घर में कभी देर तक गीत हो या ग़ज़ल गुनगुनाते रहेंप्यार की राह में ख़ूब फिसलन लगे

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लुभाने लगा है सगा धीरे धीरे

नयन वाण मासूमियत से चला तो असर दिल पे होने लगा धीरे धीरेयकीनन सबेरा जवाँ हो रहा जब मुहब्बत का सूरज उगा धीरे धीरेपिलाया जिसे दूध छाती का वो ही

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मौत को ज़िंदा जलाने के

चल चलें बिखरे पड़े विज्ञान की योजना पटरी पे लाने के लिएदूर हो आपस की ये नाराज़गी आँख तरसे दिल मिलाने के लिएकाट ली जीवन चटाई पर मिले चार गज कुटिया बनाने के लिए

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