अधिक माँगने से डरता रहा
थोड़ा-थोड़ा ही सिलता उम्र की लंबा थान थोड़ा-थोड़ा ही सुखी होता रहा दुःख के संभावित हमलों के भय से थोड़-थोड़ा ही सोया ताकि फिर आ सके नींद इसलिए भी थोड़ा ही सोया ताकि काम कर सकूँ ढेर सा थोड़ी सी प्यास, थोड़ा सा संकोच
थोड़ा-थोड़ा ही सिलता उम्र की लंबा थान थोड़ा-थोड़ा ही सुखी होता रहा दुःख के संभावित हमलों के भय से थोड़-थोड़ा ही सोया ताकि फिर आ सके नींद इसलिए भी थोड़ा ही सोया ताकि काम कर सकूँ ढेर सा थोड़ी सी प्यास, थोड़ा सा संकोच
पश्चिमी आलोचना-पद्धति के अंधानुकरण के शिकार भारतीय काव्य-शास्त्र के मूल्यांकन के प्रतिमान भी हुए। भारतीय आलोचकों ने न तो अपनी सांस्कृतिक परंपरा पर विशेष ध्यान दिया, न उसका उत्खनन किया और न ही अपनी स्वतंत्र आलोचना-दृष्टि और इतिहास-दृष्टि ही विकसित करने की चेष्टा की।
आप आए हैं फिर, शुक्रिया आपका गाँव भाए हैं फिर, शुक्रिया आपका बदबुओं से भरे ये गली-रास्ते महमहाये हैं फिर, शुक्रिया आपका ख़ुशनुमा वायदों की गठरियाँ कई ढो के लाए हैं फिर, शुक्रिया आपका
पानी बरसा धुआँधार फिर बादल आए रे धन्य धरा का हुआ प्यार, फिर बादल आए रेधूल चिड़चिड़ी धुली, नहा पत्तियाँ लगीं हँसने प्रकृति लगी करने सिंगार, फिर बादल आए रे
(पाँच) रहने को ख़ुशी आई थी मेहमान हो गई दो दिन ही सही मुझ पे मेहरबान हो गई भगवान तो हँसते हैं खुले खेत में, दिल में मंदिर में बंद मूर्ति लो भगवान हो गई
घबराइए न, आइए यह आपका घर है मेरे समीप आने में किस बात का डर है मिल करके जिससे पाल लिया भय है आपने उसका मनुष्य लेखनी भर में है, ख़बर है