किरदार इस जहान में

मेहनतकशों का दर्द वो समझेंगे क्या भला ढूँढ़े से जिनके हाथ में छाला नहीं मिलाइनसान भी मिले मुझे हैवान भी मगर गोरा नहीं मिला कहीं काला नहीं मिला

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हमें पता है हम अपनी कमी समझते हैं

हमारी प्यास को दरिया कहाँ समझता है हमारी प्यास को बस प्यासे ही समझते हैं हमारे हक़ में ज़बाँ अपनी खोलता कैसे हम उसका दर्द

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हर तरफ़ इस जंग का अंजाम

इक हसीं दुनिया बसा कर उसने हमको सौंप दी इस मुहब्बत का सिला उसको मिला ऐसा कि बसहर मुहब्बत का बुरा अंजाम होता है मगर हर मुहब्बत करने वालों को नशा ऐसा कि बसयह मुहब्बत हर मरज़ की इक दवा है दोस्तो! ये ख़ुदा ने दी है सबको, वो असर होगा कि बस

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इस फ़िज़ा में ज़ह्र आख़िर

सारी दुनिया जल रही है नफ़रतों की आग में रात-दिन इसको हवा यूँ देने वाला कौन हैसारे मायावी शिकारी हैं हमारे आस-पास क्या पता किसके निशाने पर परिंदा कौन हैकोई हिंदू कोई मुस्लिम कोई सिख ईसाई है

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यहीं पास कोई नदी गा रही है

ग़ज़ब की कशिश है सदाओं में उसकी मुझे दूर मुझ से लिए जा रही हैमैं देखूँ कि उसको सुनूँ शब ढले तक सरापा ग़ज़ल ख़ुद ग़ज़ल गा रही है

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बचे-खुचे खूँन की रंगत थी

सबकी सब अपने शहर और गाँव के नाम या फलाँ की माँ, फलाँ की दादी फलाँ की पत्नी इन्द्राज थी इस तरह सब भूलती रही अपना नाम

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