गद्य धारा

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फिल्टर

राष्ट्रपिता गाँधी जी ने असहमति की अभिव्यक्ति को रोकना एक स्वस्थ समाज के लिए सबसे बड़ी चिंता का कारण बताया था। प्रखर आलोचक एवं व्यंग्यालोचन के क्षेत्र में कई दशकों से एक महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर के रूप में चर्चित डॉ. बालेन्दुशेखर तिवारी की नवीनतम कृति ‘व्यंग्यालोचन के पार-द्वार’ में भी किसी सीमा तक असहमति की अभिव्यक्ति को ही व्यंग्य की अंदरूनी शक्ति घोषित किया गया है। इसलिए पुस्तक के प्रथम अध्याय में कहा गया है–‘भ्रष्टाचार का धनुष किसी से उठ नहीं रहा है, प्रहार की जयमाला निष्फल हो रही है। नारों की नदियाँ बनी हैं, वादों के नाव चल रहे हैं, अफवाहों की बयार बह रही है, अपराध की शीतलता सारे पर्यावरण को सुधार रही है। मानवता और आदर्श के सारे आचरण शब्दकोश में सजे हुए हैं।

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि कबीर और नागार्जुन दोनों हिंदी के उन विरले कवियों में से हैं जिन्होंने अपने रचनाशीलता के विविध आयाम द्वारा सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, शोषण पर जबरदस्त प्रहार किया है। समतामूलक समाज की स्थापना तथा व्यंग्य की तीखी मार जैसी समानता के गुणों के कारण ही कबीर और नागार्जुन के अध्ययन को एक साथ प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है। डॉ. परमानन्द श्रीवास्तव के अनुसार–‘हिंदी में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी पहले आलोचक हैं, जिन्होंने कबीर के मर्म को ठीक-ठीक समझा और कबीर के भीतर से ही एक नये कबीर की खोज की। कहें कि उन्होंने कबीर का अपना एक नया पाठ निर्मित किया।’