गद्य धारा

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फिल्टर

भौतिक सुख की दौड़ में आज की आधुनिक पीढ़ी ने विवाह को एक आड़ा मान लिया है। भूमंडलीकरण के प्रभाव में आई भारतीय सामाजिक व्यवस्था के भविष्य के प्रति संदेह पैदा हो रहा है। इस संदर्भ में अमित कुमार सिंह का यह कथन स्वीकार योग्य है कि–‘वैश्वीकरण ने प्राचीन एवं परंपरागत भारतीय समाज की बुनियादी आस्था को हिलाकर रख दिया है। भारत में व्यक्ति, परिवार, समाज और संस्कृति के समक्ष पुनर्परिभाषा का संकट उत्पन्न हो गया है। भूमंडलीकरण ने भारत में समाज व संस्कृति के प्रत्येक पहलू को प्रभावित किया है। इन परिवर्तनों में कभी भविष्य के खतरे की आहट सुनाई देती है तो कभी इसमें एक नए भविष्य गढ़ने का सुखद अहसास परिलक्षित होता है।’

मानव जीवन की विविध घटनाओं का मार्मिक चित्रण अशोक चक्रधर के साहित्य का आधार है। उनकी अधिकांश कविताओं में मर्मांतक पीड़ा पहुँचाने वाले जीवन-प्रसंगों का वर्णन हुआ है। कहीं वह दहेज से जुड़ी हुई समस्याओं को दृश्यों में रूपायित करते हैं तो कहीं बेरोजगारी के भयानक दृश्यों को दिखाते हैं। सांप्रत समाज में फैली हुई कूटनीतियों, बढ़ती हुई अमानवीयता, पारस्परिक द्वेष आदि की भयावहता से हँसाते-हँसाते परिचित कराते हैं। राजनीति पर लिखी गई उनकी रचनाएँ, उन कविताओं के समानांतर नहीं रखी जा सकती, जो नेताओं को हास्य का विषय बना कर सतही ढंग से लिखी गई हों। नेताओं पर यदि वह व्यंग्य भी कर रहे होते हैं तो उसमें उनकी संविधान की समझ होती है।