रेशमी साड़ी उदय राज सिंह 5 November, 1981 सब रस्में समाप्त हुईं और गाँव की स्त्रियों में शुहरत हो गई कि आज सिस्टर राजमुनी इतनी खुश थीं कि एक रात में तीन-तीन रेशमी साड़ियाँ बदलीं उन्होंने। वाह री किस्मत! और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/katha-dhara/reshamee-saree/ कॉपी करें
विडंबनाओं के बीच उदय राज सिंह 5 November, 1981 किरणमयी भी अपनी गिरहस्ती अलग ले जाने को अड़ी हुई है। वह भी उस चौके में खाना नहीं बनाती–बाजार से कुछ मँगाकर खा लेती। बीच में बेचारा अजीत पिस रहा है। एक ओर बीवी, दूसरी ओर भाई। खाऊँ किधर भी चोट, बचाऊँ किधर की चोट! और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/katha-dhara/vidambanaon-ke-beech/ कॉपी करें
पद और सम्मान उदय राज सिंह 1 October, 1977 शर्मा जी हँसते-मुस्कुराते मालकिन को उनकी व्यक्तिगत सफलता पर बधाई देने अंदर गए तो वहाँ दूसरा ही भयानक दृश्य देखकर वह सन्न हो गए। मालकिन का इतने दिनों से और इतनी बंदिशों से बनाया हुआ मूड एकदम बिगड़ गया है और चौके में से चावल-दाल निकलवाकर नाली में फेंकवा रही हैं। रणचंडी का रूप धारण कर लिया है और गालियों की बौछार से गानेवालियों को भी मात कर रही हैं और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/katha-dhara/pad-aur-samman/ कॉपी करें
भूख उदय राज सिंह 1 March, 1976 दूर-दूर से भूखों की टोलियाँ मेरे हाते में पहुँचतीं और जहाँ कहीं भी डूबे हुए अनाज मिलते उन्हें डुबकी लगाकर लूट लेतीं। और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/katha-dhara/bhookh/ कॉपी करें
पालनाघर उदय राज सिंह 1 January, 1975 मुरारी बाबू ने आपके यहाँ से जाकर पालनाघर में ताला लगा दिया और भंगियों को भड़का दिया–खबरदार, इस पालनाघर में कोई भी बच्चा न जाने पाए। और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/katha-dhara/palanaghar/ कॉपी करें
तलाश उदय राज सिंह 1 January, 1974 पचास हजार नहीं–सिर्फ पचास रुपयों में वह झंझटों को पार कर अपनी बेटी को सुखी कर लेगा। इसके लिए इतना ही सब कुछ है। मगर वह भी मयस्सर नहीं। उधर उतना सब कुछ पाने पर भी तसल्ली नहीं। और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/katha-dhara/talash/ कॉपी करें