काल और कला उदय राज सिंह 1 October, 1954 सत्ता तो सत्ता में समा गई, पर कला को काल की कैंची भी कतर न सकी। जो सत्य है; शिव है, सुंदर है, वह चिरंतन भी है, चिर-नवीन भी। और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/katha-dhara/kal-aur-kala/ कॉपी करें
अपनी-अपनी गाँठ राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह 1 January, 1954 मंजु के चेहरे पर एक रंग आ रहा है, एक रंग जा रहा है। आसमान पर बादल छाए हैं। हवा तेज-तुंद है आज। लगता है, तूफान का जोर है। मगर पानी पड़े या पत्थर, अपनी ड्यूटी की पाबंदी जो बड़ी चीज ठहरी! और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/katha-dhara/apani-apani-ganth/ कॉपी करें
तट के बंधन विष्णु प्रभाकर 1 July, 1953 अनीला को जब से उर्मि का पत्र मिला तब से उसके अंदर का अंतर्दाह निरंतर सुलगता रहा है। जब वह समझ रही थी कि एक जीवन का अंत हो चुका तभी उसमें सोई पड़ी प्राणों की चिनगारी सुलगने लगी। और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/katha-dhara/tat-ke-bandhan/ कॉपी करें
उद्भ्रांत अज्ञात 1 July, 1953 अपनी पत्नी की मृत्यु के तीसरे दिन महँगू फिर मुझसे मिला। मेरे कुछ पूछने के पहले ही वह बोला– “सरकार, रात वह आई थी।” और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/katha-dhara/udbhrant/ कॉपी करें
संगिनी कुमारी इंदिरा ‘नूपुर’ 1 June, 1953 गाड़ी से उतर कर भोला पैदल ही घर की ओर चल पड़ा। स्टेशन से थोड़ी ही दूर पर तो उसका गाँव है, जहाँ चारों ओर लहलहाते अरहर के खेत हैं, पीली-पीली सरसों फैली है और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/katha-dhara/sangini/ कॉपी करें
मुस्कान डॉ. एस. एम. मोहसिन 1 June, 1953 “क्या कर रही हो बेटा ?” बुड्ढे ने खाँसते हुए कहा । उसकी आवाज़ में थरथराहट थी। और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/katha-dhara/muskan/ कॉपी करें