तलाश उदय राज सिंह 1 January, 1974 पचास हजार नहीं–सिर्फ पचास रुपयों में वह झंझटों को पार कर अपनी बेटी को सुखी कर लेगा। इसके लिए इतना ही सब कुछ है। मगर वह भी मयस्सर नहीं। उधर उतना सब कुछ पाने पर भी तसल्ली नहीं। और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/katha-dhara/talash/ कॉपी करें
नेत्रदान उदय राज सिंह 1 January, 1974 पूर्वजन्म के शाप तथा पाप-पुण्य के गोरखधंधे से निकलकर विज्ञान ने उसे दो आँखें दे दीं। ‘वाह! कितनी बेजोड़ हैं ये आँखें, कितनी अनमोल हैं ये आँखें!’ और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/katha-dhara/netradan/ कॉपी करें
हरे राम… उदय राज सिंह 1 November, 1971 क्या भारत में मीनी शर्ट, ड्रेन पाइप पतलून, कोकाकोला की तरह अब रामनाम की महिमा भी अमरीका से इंपोर्ट होकर ही आएगी? और, शायद तभी हम उसकी गरिमा को समझ भी पाएँगे! राम जाने! और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/katha-dhara/hare-ram/ कॉपी करें
नजर ही नजर उदय राज सिंह 1 January, 1970 मुझे एकाएक सूझा कि अब यहाँ से भाग चलो नहीं तो राजरानी के रस्मों का सिलसिला कभी टूटेगा ही नहीं। अब तो पंख फड़फड़ाकर पड़े रहना है। जैसे छप्पन वैसे घप्पन! और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/katha-dhara/najar-hee-najar/ कॉपी करें
प्रायश्चित्त सुहैल अज़ीमाबादी 1 May, 1964 कृष्ण कुमार बाबू कचहरी से आए, तो ऐसे थके हुए थे, जैसे उनमें जान ही नहीं थी। न दिल का पता चलता था और न दिमाग ठीक से काम करता था। घर में आते ही कमरे में घुस गए। शेरवानी उतार कर बड़ी बेदिली से एक ओर डाल दी, और पलंग पर लेट गए। और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/katha-dhara/prayshchit/ कॉपी करें
दो नीली चमकीली आँखें उर्मिला सहाय 1 May, 1964 भादो की काली अंधेरी रात–बादल झूम-झूम कर बरस रहे हैं। सर्वत्र गंभीर नीरवता छाई है। सभी फ्लैटों की खिड़कियाँ बंद हैं और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/katha-dhara/do-neelee-chamakeelee-aankhen/ कॉपी करें