स्नेहांचल विस्तीर्ण करो! जितेंद्र कुमार 1 December, 1951 मस्तक पर निदाघ का आतप पग के नीचे ज्वलित मरुस्थल, पथिक मध्य में तप्त-दग्ध और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/kavya-dhara/snehaanchal-visteern-karo/ कॉपी करें
महाकवि की कृपा अंजनी कुमार सिन्हा ‘आजाद’ 1 December, 1951 कल शाम को– अशोक राजपथ पर। मिले कविवर मित्र मेरे हाथ में लिए रजिस्टर। और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/kavya-dhara/mahakavi-ki-kripa/ कॉपी करें
निर्झर रामावतार यादव ‘शक्र’ 1 November, 1951 हम पहुँचे झरने के समीप, था एक मौन सुनसान वहाँ! बस गूँज रहा केवल निर्झर का मोहन मादक गान वहाँ! और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/kavya-dhara/nirjhar/ कॉपी करें
वे वादे कितने झूठे थे! विनोदानंद ठाकुर 1 November, 1951 उस आत्मसमर्पण के क्षण में, उन प्रथम मिलन की रातों में मैंने थे वादे किए बहुत तुझसे बातों ही बातों में और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/kavya-dhara/ve-vade-kitane-jhoothe-the/ कॉपी करें
विदा के क्षणों में श्री अंचल 1 November, 1951 रक्त भरे आँसू छलका कर प्रणयिनि! क्यों दे रही विदाई कड़वे सागर की मीठी मसोस में कितनी पीर समाई और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/kavya-dhara/vida-ke-kshano-mein/ कॉपी करें
तारों को जागते देखा है गोपाल सिंह नेपाली 1 November, 1951 हमने अपने मृदु सपनों को, अंबर में उगते देखा है भर-रात जगत के सिर्हाने, तारों को जगते देखा है और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/kavya-dhara/taron-ko-jagate-dekha-hai/ कॉपी करें