नई धारा डॉ. सुधींद्र 1 December, 1951 हे युवक सँभालो तुम इसको आती जो आज नई धारा। सुन लो कानो से जो इसका गाती जय गान सर्वहारा॥ और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/kavya-dhara/nayi-dhara/ कॉपी करें
शरदागम विनयमोहन शर्मा 1 December, 1951 बदला बदला सा लगता है धरती-नभ का कोना-कोना। हरि से घन, राधा-सी बिजली का अदृश्य है रास सलोना। और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/kavya-dhara/shardagam/ कॉपी करें
चार चाँद आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री 1 December, 1951 चाँद, तुम सब के, किसी का मैं नहीं हूँ! भाग्य ऐसा, तुम कहीं हो, मैं कहीं हूँ!! और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/kavya-dhara/char-chand/ कॉपी करें
ज़िंदगी के स्वप्न मेरे रामकुमार सिंह ‘कुमार’ 1 December, 1951 ज़िंदगी के स्वप्न मेरे गान के आधार होंगे। आज के विश्वास मेरे कल सभी साकार होंगे। और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/kavya-dhara/zindagi-ke-swapan-mere/ कॉपी करें
जागती रात सुरेंद्र मिश्र 1 December, 1951 कुआर के फैले हुए आकाश में कुछ सुधर उजले मेघ– जिन पर देर से चलता हुआ थकने लगा है और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/kavya-dhara/jagati-rat/ कॉपी करें
स्नेहांचल विस्तीर्ण करो! जितेंद्र कुमार 1 December, 1951 मस्तक पर निदाघ का आतप पग के नीचे ज्वलित मरुस्थल, पथिक मध्य में तप्त-दग्ध और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/kavya-dhara/snehaanchal-visteern-karo/ कॉपी करें