घिरे आज नव घन प्रकाशवती नारायण 1 October, 1951 घिरे आज नव घन प्रकृति के खुले ये घने केश-बंधन! और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/kavya-dhara/ghire-aaj-nav-ghan/ कॉपी करें
बरसात श्री अंचल 1 October, 1951 काले काले मेघ तुम्हारे–बिजली की ज्वाला मेरी यह मादक बरसात तुम्हारी–लपटों की माला मेरी और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/kavya-dhara/barsat/ कॉपी करें
ज्ञानी जाग बैठा है सुरेश्वर शरण सिन्हा 1 October, 1951 संसार का सबसे बड़ा ज्ञानी जगा बैठा है और, टेलिप्रिंटर पर अक्षर उगे जा रहे हैं। और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/kavya-dhara/gyani-jaag-baitha-hai/ कॉपी करें
मेघ गीत परमेश्वर प्रसाद 1 October, 1951 भ्रम न मेरे रूप की हो कल्पना में मैं किसी की आँख का काजल नहीं हूँ। और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/kavya-dhara/megh-geet-2/ कॉपी करें
आई सरस बरसात वाली अविनाशचंद्र विद्यार्थी 1 October, 1951 जलन की ग्रीष्म गई, आई सरस बरसात वाली! और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/kavya-dhara/aaee-saras-barasat-wali/ कॉपी करें
सच कहता हूँ शिवमूर्ति शिव 1 September, 1951 तुम्हारी याद के उल्लास से मैं गीत रचता हूँ और पढ़ें शेयर करे close https://nayidhara.in/kavya-dhara/sach-kahata-hoon/ कॉपी करें