फ्रांस का राष्ट्रीय चित्रकार ‘वोमियर’

फ्रांस का राष्ट्रीय चित्रकार ‘वोमियर’

फ्रांस के इस प्रसिद्ध और आदरणीय कलाकार का बचपन पेरिस की संकीर्ण गलियों में व्यतीत हुआ। जवानी कला की आराधना और जीविका कमाने में गुज़री। एक कार्टून बनाने के अपराध में छ: मास जेल भुगती। पच्चास वर्ष तक निरंतर कष्ट-साध्य परिश्रम ने उसकी आँखों को प्रकाशहीन बना डाला। जीवन के अंतिम दिनों में रहने को मकान तक न मिला। मृत्यु से पूर्व फ्रांस सरकार ने इसे देश का सबसे बड़ा सम्मान ‘Legon of honour’ देना चाहा। मृत्यु के पश्चात इसकी अर्थी, सरकार ने बड़ी श्रद्धा के साथ उठाई। यह है इस जनकलाकार ‘होनो रे वोमियर’ की जीवन गाथा–जिसे जीवन भर तो सदा कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। किंतु कला के संसार में वह ऐसा प्रकाश फैला गया है जो सदा कलाकारों को महान-कला की रचना के लिए प्रेरणा देता रहेगा।

कोई युग भी ऐसे कलाकारों और लेखकों से वंचित नहीं, जो कला को बारीकियों की हद तक सजाने में प्रयत्नशील न रहे हों। इस दिशा में फ्रांस के कलाकारों का भाग, यूरोप के अन्य देशों के कलाकारों से कहीं अधिक है।

फ्रांस जहाँ वाल्तेयर, ह्यूगो, ज़ोला, फ़लोबियर, बालज़ाक और बोविलयर जैसे लेखकों पर फ़क्र करता है; वहाँ सीज़ाँ, मोने, लोतरक, वानगॉग और वोमियर जैसे कला महारथियों पर भी उसे नाज़ है। परंतु वोमियर की हैसियत इन समस्त चित्रकारों से अलग है। उसने कला को, बारीकियों की हद तक सजा कर भी, उसे रईसों की विलासिताओं को रिझाने के लिए एक बाँदी नहीं बनाया–वरन् कला से वह काम लिया जो एक जागरूक साहित्यकार अपने साहित्य से लेता है। उसने अपनी कला का प्रयोग उन चंद लोगों को खुश करने के लिए नहीं किया, जिन्होंने अपने धन के प्रभाव से समाज को बाँध रखा है। फलस्वरूप उसे समाज से रोटी-कपड़ा तक मिलना दूभर हो गया। वह समस्त जीवन भर हिंसा और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करता रहा। इसी कारण वोमियर के जीवन काल में ही, वोमियर का नाम समाज तथा रईसों के अत्याचार के विरुद्ध, जनता की शक्ति का चिह्न समझा जाने लगा। फ्रांस की क्रांति के प्रसिद्ध इतिहासकार मचीले ने, वोमियर को एक अवसर पर लिखा, आपका चित्र जो हर महत्त्वपूर्ण-स्थान पर प्रदर्शन के लिए रखा गया है; हाल की समस्या पर समाचार-पत्रों के हज़ार अग्र-लेखों से भी कहीं अच्छा और प्रभावशाली बन पड़ा है।

वोमियर ने सन् 1802 में, एक रंग-साज के घर में, मारसीलज़ में जन्म लिया। वोमियर के पिता को काव्य-रचना का पर्याप्त अभ्यास था–साहित्यिक संसार में भाग्य-आजमाई के लिए वह पेरिस उठ आया जहाँ इस क्षेत्र में उसे असफलता मिली, और धन के अभाव के कारण उसे पेरिस के एक गंदे भाग में रहना पड़ा । कविता को छोड़ कर, रंग-साजी के काम में, जीविका चलाने के हेतु वह पुन: जुट गया। वोमियर का बचपन, इन गलीज़ गलियों में खेलते-खेलते गुज़रा। आर्थिक अवस्था इतनी निकृष्ट हो चुकी थी कि वोमियर पढ़ भी नहीं सका–स्कूल अथवा कॉलेज का उसने, जीवन भर दर्शन ही नहीं किया। वोमियर ने होश संभाला तो अपने आप को पूर्ण रूप से स्वतंत्र पाया। उस पर किसी का दबाव न था। अपने भविष्य को बनाने अथवा बिगड़ने की उसे पूर्ण स्वाधीनता थी। किंतु साधारण मज़दूरों के गंदे और गलीज़ बच्चों के साथ दिनभर गलियों में मारा-मारा फिरने वाले इस बालक को चित्र बनाने और चित्र देखने का बड़ा चाव था। सात वर्ष की अवस्था में ही इसने टेढ़े-मेढ़े रेखा-चित्र बनाने आरंभ कर दिए थे। जैसे-जैसे यह बढ़ता गया, इसका शौक भी बढ़ता गया और साथ-साथ चित्र बनाने में इसकी महारत भी बढ़ती गई।

सोलह वर्ष की इसकी अवस्था थी, जब यह पेरिस के एक न्यायालय में चपरासी बन गया। इस काल में, वोमियर ने न्यायालय में आने वाले अपराधियों तथा वकीलों के चित्र बनाए। इसी काल में, वोमियर ने ‘केरिकेचर’ बनाने की ओर भी ध्यान दिया।

यूँ देखने में ‘केरिकेचर’ और ‘कार्टून’ में पर्याप्त समानता होती है। किंतु कला की यह दो सर्वथा भिन्न अंग हैं। ‘केरिकेचर’ में व्यक्ति का चेहरा एक विशेषता लिए हुए होता है–और यह आवश्यक नहीं कि संबंधित व्यक्ति के चेहरे की रेखाएँ ‘केरिकेचर’ में प्रस्तुत ‘मॉडल’ से बिल्कुल मिलती हों।

वोमियर ने इस काल में कई ‘केरिकेचर’ बनाए। न्यायालय में आने वाले लोग ही इसके मॉडल थे। दो वर्ष के पश्चात इसने एक पुस्तक-विक्रेता के पास नौकरी कर ली। यह वह काल था जब उसने अपनी कला की ओर विशेष ध्यान दिया। इक्कीस वर्ष की आयु में इसने ‘लिथो’ पर कुछ चित्र बना कर प्रकाशित कर दिए। इन चित्रों में पेरिस के जन-साधारण के जीवन को बड़े कलात्मक, मार्मिक एवं प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया गया था। इस पुस्तक के प्रकाशन के पश्चात, आलोचकों ने इसे फ्रांस का सबसे बड़ा ‘लिथोग्राफ़’ पर चित्र बनाने वाला कलाकार मान लिया।

कुछ समय के पश्चात इसको पेरिस के प्रसिद्ध प्रजातंत्रवादी साप्ताहिक ‘केरिकेचर’ में ‘स्टाफ आर्टिस्ट’ के रूप में काम मिल गया। इस नौकरी की एक शर्त यह भी थी कि वोमियर किसी भी विषय पर चित्र बना सकता है। और विषय के चुनाव में साप्ताहिक के मालिक तथा संपादक को किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होगा। इस प्रकार ‘केरिकेचर’ के प्रत्येक अंक में वोमियर का एक ‘कार्टून’ प्रकाशित होने लगा। यह कार्टून उच्चवर्ग तथा ‘क्लैरजी’ की राजनैतिक बददयानती और आचारभ्रष्टता पर एक विषैला व्यंग होता। इसी से साप्ताहिक को फ्रांस में अकथनीय लोकप्रियता प्राप्त होने लगी। वोमियर के कार्टून और ‘केरिकेचर’ राजनीतज्ञों में एक बेचैनी उत्पन्न करने लगे और वह प्रयत्नशील रहने लगे इस बात के लिए कि किसी न किसी प्रकार ‘केरिकेचर’ का अंत कर दिया जाए। वोमियर का एक कार्टून लूई के विरुद्ध था, इस कार्टून को सरकार के विरुद्ध ठहराते हुए, ‘केरिकेचर’ के मालिक तथा संपादक के अतिरिक्त वोमियर को भी छ: मास कारावास में रहना पड़ा और ‘केरिकेचर’ कानूनन बंद कर दिया गया।

छ: मास का कारावास भुगतने के पश्चात, ‘केरिकेचर’ के मालिक ने एक दैनिक ‘चीरी वीरी’ का प्रकाशन आरंभ किया। वोमियर ने पुन: इसमें कार्टून देने आरंभ कर दिए। पच्चास वर्ष तक, निरंतर वह ‘लिथोग्राफ़’ पर ‘केरिकेचर’ और ‘कार्टून’ बनाता रहा।

वोमियर के जीवन काल में ही फ्रांस में कई आंदोलन हुए–और इस आंदोलनों का असर समस्त यूरोप पर पड़ा। फ्रांस की क्रांति से लुई के अत्याचारों का अंत हुआ, तत्पश्चात 1848 का आंदोलन और इसके थोड़े समय के पश्चात दूसरे प्रजातंत्र की स्थापना–और फिर बोनापार्ट का शासनकाल और दूसरे प्रजातंत्र का अंत, परशिया से युद्ध तत्पश्चात लई बोनापार्ट के शासन का अंत–इन हालातों ने बड़े-बड़े ‘नोबलज़’ से लेकर पेरिस के छाबड़ी वालों तक–सब पर एक जैसा प्रभाव डाला। सच तो यह है कि फ्रांस के इतिहास का यह युग एक साधारण नागरिक के संघर्ष का सुवर्ण युग है। इस युग में क्रांतिकारी आंदोलनों की नींव पड़ी, जिन्होंने तत्पश्चात सार्वलौकिक रूप धारण कर लिया। वोमियर ने इस युग में भी तानाशाही का साथ देने की बजाय सदा जन-साधारण के आंदोलनों का साथ दिया।
मौजूदा राजनीतिक और सामाजिक कार्टून को भी इस स्तर पर पहुँचाने वाला कलाकार वोमियर ही है। यूँ तो यूरोप में लगभग तो शताब्दियों से ‘केरिकेचर’ और ‘कार्टून’ बनाने का रिवाज था। किंतु इन्हें कला-जगत में कोई स्थान प्राप्त न था। उदाहरणार्थ लूथर का अनुसरण करने वाले, पोप और ‘रोमन कैथोलिक चर्च’ के विरुद्ध कार्टून बनाते थे।

‘कार्टून’ और ‘केरिकेचर’ के अतिरिक्त वोमियर ने ‘लिथोग्राफ़’ की कला को भी कमाल की हद तक, कलात्मक बारीकियों से सजाया। आज भी वोमियर को यूरोप का सर्वश्रेष्ठ ‘लिथोग्राफ़’ का कलाकार माना जाता है। ‘लिथो’ से वोमियर को एक विशेष प्रकार का लगाव था। एक स्थान पर इसने कहा है “लिथोग्राफ़ी ही चित्रकला में एक ऐसा माध्यम है, जिसके द्वारा, मैं जो कुछ कहना चाहता हूँ, सफलता पूर्वक कह पाता हूँ ।” और वोमियर के जीवन की पूँजी भी इसकी ‘लिथोग्राफ़’ पर बनी हुई कलाकृतियाँ ही हैं। जिनकी संख्या सैंकड़ों तक पहुँचती है।

सन् 1835 में जब सम्राट की हत्या करने का असफल प्रयत्न किया गया, तो सरकार ने समाचार पत्रों पर कड़ा ‘सेंसर’ लगा दिया। फलस्वरूप वोमियर के सियासी ‘कार्टून’ तथा ‘केरिकेचर’ भी बंद हो गए। इस अवस्था से निबटने के लिए इसने चित्रों का एक नवीन क्रम ‘पूँजीपतियों का दर्पण’ शीर्षक आरंभ किया इसमें फ्रांस के रईसों के जीवन के प्रत्येक पहलू पर भरपूर व्यंग्य कसा जाता। इसके अतिरिक्त, इसने अपने ‘केरिकेचर’ में एक नवविद्वेषी, अत्याचारी और अनाचारी प्रकार के ‘सार्जंट रित्तापोल’ के काल्पनिक पात्र की रचना की। इस पात्र को, नई चित्रावली के प्रथम चित्र में, लूई बोनापार्ट की गाड़ी के पायदान पर खड़े ‘शहंशाह फ्रांस जिंदाबाद’ का नारा लगाते हुए दिखाया गया था। आज तक भी फ्रांस में ‘रित्तापोल’ का शब्द गाली समझा जाता है। वोमियर ने एक और काल्पनिक पात्र ‘राबर्ट मेकंजे’ की रचना भी की । प्रसिद्ध अँग्रेज़ कार्टूनिस्ट गेब्रिल के विचार में–वोमियर अपने इन्हीं दो पात्रों के चरित्र-चित्रण के कारण ही वोमियर अमर ख्याति प्राप्त कर चुका है।
वोमियर ने ‘केरिकेचर’ और ‘कार्टून’ के अतिरिक्त चित्रकला में भी बड़ी निपुणता प्राप्त की थी। उसकी कुछ आयल कलर तस्वीरें, अब अमर कलाकृतियाँ बन चुकी हैं। इनमें से कई ऐसी हैं जिनका मूल्य अब कई लाख पौंड बतलाया जाता है। इन चित्रों में सर्व प्रसिद्ध चित्र ‘रेलवे का तीसरा दरजा’ है जिसके विषय में आज के आलोचकों का भी मत है कि जीवन को इतने ठोस और विस्तृत रूप से चित्रित करने वाला ऐसा चित्र गत दो सौ वर्षों से नहीं बना। वोमियर का एक और दृष्टि से भी गौरवपूर्ण अस्तित्व माना जाता है–उसने अपने चित्रों के लिए कभी भी ‘मॉडल’ से काम नहीं लिया। पेरिस में चलते-फिरते लोग ही इसके ‘मॉडल’ थे।

वोमियर के मित्र फ्रांस के प्रसिद्ध साहित्यिक बोविलयर एवं वाल्तेयर तथा प्रसिद्ध चित्रकार विलाकटोक और कोरियत थे। ये इसके पास घंटों बैठे रहते। एक बार जब वोमियर ‘लिथोग्राफ़’ के पत्थर पर झुका हुआ था तो एक मित्र ने कहा–“यह कितना अन्याय है कि वोमियर जैसे कलाकार को जीवित रहने के लिए प्रतिदिन घंटों ‘लिथोग्राफ़’ के पत्थर पर झुकना पड़ता है।” वोमियर ने जब यह सुना तो धीरे से सिर उठाया, और अति धीमे स्वर में बोला “मुझ पर यह अन्याय नहीं कि मुझे अपनी जीविका चलाने के लिए कठिन श्रम करना पड़ता है, वरन् अन्याय मेरे साथ यह है कि इस कठिन श्रम के कारण मेरे नेत्र जवाब देते जा रहे हैं।–फिर भी, मेरे दोस्तो! मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ, कि मैं संतुष्ट एवं सुखी हूँ। क्योंकि मेरे पास वह धन है जो कभी नष्ट नहीं हो सकता है–और वह धन है जनता का मेरे प्रति स्नेह एवं प्रेम! और नि:संदेह मेरी यह संपत्ति–संसार के किसी भी खजाने से श्रेष्ठ है–”

यथार्थता भी यही है कि वोमियर जैसे कलाकार को साधारण कारीगरों के समान घंटों काम करना पड़ता। ‘लिथोग्राफ़ी’ की सामग्री तो उसे समाचार पत्र की ओर से मिलती–किंतु इसके अतिरिक्त अन्य आवश्यक वस्तुएँ तथा ‘आयलकलर’ तक अपनी आय से खरीदने में वह असमर्थ था।–और जीवन के अंतिम वर्ष–इन अंतिम वर्षों ने तो इसे बिल्कुल अधीन बना कर रख दिया, बे-सहारा बना दिया।

सन् 1860 में, जब उसके नेत्रों का प्रकाश पूर्णत: जाता रहा, तो ‘चीरी वीरी’ दैनिक से, जिसमें वह वर्षों काम करता था, उसे अलग कर दिया गया। और तब उस आड़े समय में कोरियत इसके काम आया। उसने पेरिस के निकट ‘वाला मो वायु’ में, इसे एक कुटिया खरीद दी। वोमियर के अंतिम दिन इसी कुटिया में व्यतीत हुए।

फ्रांस सरकार ने 1874 में इसे ‘लीजन ऑफ ऑनर’ देना चाहा। परंतु वोमियर ने यह कह कर उसे अस्वीकृत कर दिया कि “जीवन भर मेरा कोई संबंध सरकार से नहीं रहा, और न अब है। इसलिए मैं सरकार से किसी प्रकार का आदर-सम्मान नहीं चाहता।”

सन् 1874 में फ्रांस का यह राष्ट्रीय चित्रकार इस संसार को छोड़ गया। इसकी अर्थी सरकार ने पूरे सम्मान के साथ उठाई, और देश भर के सभी प्रसिद्ध व्यक्ति इस अर्थी के साथ थे। उस समय बोविलयर ने केवल इतना कहा–“फ्रांस का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय कलाकार, वोमियर, अपनी यादगार, अपनी कला छोड़ गया है, जो सदा जीवित रहेगी–और आनेवाली पीढ़ियाँ इस पर गर्व कर सकेंगी।”


Image: Paris Society
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Artist: Max Beckmann
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घनश्याम सेठी द्वारा भी