हरिऔध जी का एक पत्र

हरिऔध जी का एक पत्र

बनारस, 13.1.34

श्रीमान् पंडित जी, प्रणाम

आशा है आप सपरिवार सकुशल होंगे। आज ‘रसकलस’ सेवा में जाता है। नहीं कह सकता, आपका विचार इस ग्रंथ के विषय में क्या होगा। केवल मैं इस विचार से इसे आपकी सेवा में भेजता हूँ कि आप ब्रजभाषा प्रेमी हैं। मेरा विचार है कि जब तक ब्रजभाषा किसी प्रांत की भाषा है, तब तक वह किसी के मारने से मर नहीं सकती। उसमें अब भी कविता होती है, और आगे भी होती रहेगी। उसका माधुर्य भी सर्वमान्य है। यह सब होते हुए भी अब तक ब्रजभाषा के कवि पुरानी प्रणाली की ही कविता करते हैं। मैं चाहता हूँ ब्रजभाषा में सामयिकता का रंग भी आवै, अन्यथा वह उपेक्षित रहेगी। ‘रस कलस’ की रचना इसी उद्देश्य को सामने रखकर हुई है। आप उसको सामयिकता से परिपूर्ण पावेंगे। मेरा वक्तव्य जो भूमिका के अंत में है, उसे पढ़कर आपको इन बातों के सिवा और भी बहुत सी बातें ज्ञात होगी। आज कल शृंगार रस का नाम सुन कर ही लोगों का कान खड़ा होता है। भूमिका में मैंने बताया है कि रस क्या है और उसमें शृंगार रस का क्या स्थान है। विश्वास है कि भूमिका के साथ पढ़ कर आप संतुष्ट होंगे, और शृंगार रस में संयत पद्य रचना का मार्ग मैंने जो दिखाया है, वह आपका अनुमोदित होगा। संभव है कि शृंगार रस के कुछ पद्य आपको घासलेटी जान पड़ें, परंतु यह दृष्टिकोण का भेद होगा। मेरा उद्देश्य घासलेटी साहित्य प्रचार का नहीं है। कला को कला की दृष्टि से ही देखना चाहिए।

ब्रजभाषा कविता के सुधार की चेष्टा ही मैंने ‘रसकलस’ में की है। इसलिए विश्वास है कि आप जैसा ब्रजभाषा प्रेमी इस ग्रंथ को देखकर आनंदित होगा। ऐसी अवस्था में आपके हाथों में जाकर यह ग्रंथ सार्थकता लाभ करेगा। यह मेरा विश्वास है। किसी कारण से यह ग्रंथ यदि आपको पसंद न आवे, तो भी मुझको कुछ इदकुत: का अधिकार नहीं, क्योंकि अपने विचार के लिए प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्र है। मैं कभी नहीं चाहूँगा कि शील में पड़ कर आप अपने भावों का हनन करें। हाँ, यह अवश्य निवेदन करूँगा कि समस्त ग्रंथ को देखकर ही किसी सिद्धांत पर उपनीत होना उत्तम होगा।

दो मास से मुझे ‘विशाल-भारत’ नहीं मिल रहा है, ऐसी अकृपा क्यों, क्या कोई विशेष कारण है? कृपया बतलाइएगा।

भवदीय–हरिऔध


Image: Bullfinch and weeping cherry blossoms
Image Source: WikiArt
Artist: Katsushika Hokusai
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