दादाजी के सपने

दादाजी के सपने

(दादाजी कमरे में चहलकदमी कर रहे हैं। उनके चेहरे पर गुस्सा है। सामने अमन आता दिखाई पड़ता है। उनका गुस्सा फूट पड़ता है।)

दादाजी – कहाँ था इतनी देर से?

अमन – आज तो गजब हो गया, दादाजी!

दादाजी – क्या गजब हो गया?

अमन – मैं नदी किनारे बैठा था। आकाश-मार्ग में शंकर-पार्वती विचरण कर रहे थे। वे मुझे देखकर नीचे आ गए। पार्वती माँ बोली, लड़का भोला लगता है। इससे उदासी का कारण पूछिए। मैंने कहा, मेरे दादाजी जब तक रहें, स्वस्थ और निरोग रहें। शंकरजी ने एवम अस्तु कह दिया।

दादाजी – तुमने अपने लिए कुछ नहीं माँगा?

अमन – मैंने अपने लिए तीन वरदान माँगे। घर से स्कूल की दूरी कम कर दीजिए। टिफिन में रोज सोहन साव की दुकान से गाजर का हलवा मँगा दीजिए। मैं जब चाहूँ तीन वरदान और माँग लूँ।

दादाजी – तुमने शंकरजी को परेशानी में डाल दिया। वरदान वापस ले लिया तो?

अमन – दादाजी, एक रोज बहुत डरा हुआ था। सपने में भूत देखा था। डरा हुआ था।

दादाजी – तब मैंने कहा था, भूत-प्रेत कुछ नहीं होता। मन का भ्रम है, डर है।

अमन – तब से मैं नहीं डरता। सोहन साव का हलवा खूब खाया है। अब मुझे वरदान वापसी का डर नहीं है।

दादाजी – डर स्वयं का भारी शत्रु है।

(एक मिनट तक सन्नाटा)

अमन – दादाजी! तोता-मैना की कहानी सुनाइए?

दादाजी – तोता-मैना उड़ते-उड़ते बहुत थक चुके थे। उन्हें जोर से भूख-प्यास लगी थी। कहीं पेड़ नहीं। गाँव कहीं नहीं दीखता। आदमी इतना निर्दय हो चुका है कि अपना लगाया पेड़ ही काट रहा है। पेड़ के बिना आदमी जिन्दा कैसे रहेगा। पेड़, हवा, पानी के बिना धरती नहीं बचेगी। लगा कि धूप में झुलस कर दोनों गिरकर मर जाएँगे। अचानक एक घर दिखाई पड़ा। घर के अंदर आम का एक पेड़ था। दोनों एक डाल पर धम से जा बैठे। थकान के कारण उन्हें नींद आ गयी।

अमन – फिर क्या हुआ, दादाजी?

दादाजी – नींद उलटी तो देखा, आँगन में एक कुआँ है। कुआँ के जगत पर भगोने में फुलाया हुआ चना है और बगल में एक बाल्टी शीतल-जल। तोता-मैना कुआँ के जगत पर आ गए। चना खाकर भरपेट पानी पिया। इसके बाद…

अमन – इसके बाद कथा गई वन में बुझो अपने मन में।

दादाजी – नहीं, अमन बेटे। असल कथा तो अब है।

अमन – वह क्या?

दादाजी – घर से तुम्हारी उम्र की एक लड़की निकली। उसने दोनों को अपने कँधे पर बिठाया और कटते बागों की ओर चल पड़ी। उन्होंने हरे पेड़ काटते हत्यारों को ठोर से मारकर लहूलुहान कर दिया। एक ने कहा, मुनिया बेटी, हमें सजा मिल गयी।

मुनिया – अभी पूरी सजा कहाँ मिली, लखन काका?

लखन – तब?

मुनिया – जितने पेड़ काटे हो, उतने ही लगाने पड़ेंगे।

लखन – मंजूर है, मुनिया बेटी।

अमन – कथा गई वन में…

दादाजी – समझो अपने मन में।

(दोनों खुलकर हँसते हैं।)

अमन – दादाजी, आप अपने बचपन की कोई रोचक घटना बताइए?

दादाजी – मैं खराब-खराब सपने अक्सरहाँ देखता रहता था। मेरी दोस्ती भूतों से हो गई थी। सुनकर सभी मुझे भूतनाथ कहते थे। बाबूजी भी भूतानाथ कहते थे। क्या मैं सचमुच भूतनाथ था?

अमन – जैसे टीवी सीरियल में अमिताभ बच्चन सच में भूत नहीं थे। उसी तरह, आप भी नहीं थे। जो थे, आपके सपने थे।

दादाजी – मेरा पोता तो लालबुझक्कड़ लगता है।

अमन – आखिर पोता किसका हूँ।

(दादाजी ने अमन को छाती से लगा लिया।)

दादाजी – चलो, नदी किनारे घूमने चलते हैं।

अमन – चलिए, दादाजी शंकर-पर्वती मिले तो उन्हें मैं अपनी कविता सुनाऊँगा।

दादाजी – कौन-सी कविता सुनाओगे।

अमन – बिल्कुल नयी कविता है। सुनिएगा?

दादाजी – सुनाओ?

अमन (कविता पढ़ता है।)

हम अच्छे इंसान बनें

तभी बेहतर बनेगा समाज

हवा पानी और मिट्टी

देगी हमारा साथ।

आओ दोस्तो!

हम अपनी धरती बचा लें

युवा शक्ति में दुनिया बदलने की

अद्भुत ताकत है।

भगवान या खुदा

हमारा निर्माण हैं

हम हैं तो वे भी हैं

ईश्वर!  खुदा!

(दादाजी ने तालियाँ बजाकर अमन को बधाई दी।)

दादाजी – मेरा पोता कम्प्युटर इंजीनियर के साथ-साथ अच्छा कवि भी बनेगा।

अमन – आपका आशीर्वाद रहा तो जरूर बनूँगा।

(दादाजी ने अमन के हाथ चूमते हुए हृदय से लगा लिया।)


Image: Grandfather with a newspaper
Image Source: WikiArt
Artist: Albert Anker
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