भारतीय भाषाओं में पारस्परिकता
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भारतीय भाषाओं में पारस्परिकता
वक्तव्य
‘नई धारा’ के वर्ष 2020 का ‘नई धारा रचना सम्मान’ स्वीकारते हुए मुझे अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। यह सम्मान भी मेरी रचना ‘अल्लम प्रभु और कबीर’ के लिए। भारतीय भक्ति परंपरा को 12वीं शती की बसवादि शरण परंपरा के साथ जोड़कर देखने के मेरे अध्ययन-श्रम के लिए यह सम्मान और उत्साह से काम करना प्रेरणादायी है। साथ ही ज्ञानपीठ से पुरस्कृत प्रसिद्ध कन्नड़ नाटकार चंद्रशेखर कंबार जी को ‘उदय राज सिंह स्मृति सम्मान’ भारतीय भाषाई सौहार्द बढ़ाने की दिशा में अहम भूमिका निभाता है। मैं तो हिंदी-कन्नड़ लेखक हूँ। मेरे लिए प्राप्त सम्मान भारतीय साहित्य की उस परिकल्पना को बल देता है कि ‘भारतीय साहित्य एक है, वह बहु भाषाओं में अभिव्यक्त है।’ भारतीय भाषाओं के बीच पारस्परिकता बढ़ाने में, भाषाई सद्भाव द्वारा सभी भारतीय भाषाओं के विकास में और हिंदी को क्षेत्रीय भाषाओं से जोड़ने वाली माध्यम की भाषा के रूप में विकास के दौर में आगे बढ़ने में ऐसे कार्यक्रम प्रेरक हैं, उत्तेजक हैं। ‘नई धारा’ में छपना ही हम दक्षिण भारतीय लेखकों के लिए गौरव की बात है, फिर वहाँ से पुरस्कृत होना तो महागौरव है!
Image Source : Nayi Dhara Archives