जन सरोकार की कहानियाँ
- 1 March, 2015
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- 1 March, 2015
जन सरोकार की कहानियाँ
सामाजिक संरचना के बनते-बिगड़ते स्वरूप के लिए जिम्मेदार कारकों तथा स्थितियों-परिस्थितियों की परख और पड़ताल आज के जो भी कथाकार सहज भाव से कर रहे हैं, उनमें शंभु पी. सिंह ने भी अपनी उपस्थिति ‘जनता दरबार’ के जरिए दर्ज की है। जन साधारण के जीवन पर आधारित कथा सृजन की समृद्ध परंपरा को विस्तार देने में शंभु पी. सिंह एक स्पष्ट दृष्टिबोध के साथ नजर आते हैं। इनकी कहानियों से गुजरते हुए महसूस होता है कि सामाजिक रूप से ये अत्यंत सजग और संवेदनशील रचनाकार हैं। सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को गहरे तक प्रभावित करने वाले उन तथ्यों और घटनाओं को शंभु पी. सिंह उजागर करते हैं, जिनका आम जन जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
‘जनता दरबार’ में कुल ग्यारह कहानियाँ हैं। आमजन की भाषा में लिखी गई इन सभी कहानियों में सामाजिक विसंगतियों एवं विद्रूपताओं पर प्रहार किया गया है। पारदर्शी सोच और संवेदना के कारण संग्रह की अधिकतर कहानियाँ सहज संप्रेष्य हैं। उद्देश्यपूर्ण होने के कारण भी ‘हमारी चेतना को कहीं गहरे तक छूती है।’ सामाजिक जड़ता और विद्वेष की स्थिति में जीने की विवशता का समर्थ चित्रण भी ‘जनता दरबार’ की कहानियों की विशेषता है।
संग्रह की पहली कहानी ‘एक्सीडेंट’ इस बात को उजागर करती है कि सांप्रदायिक सोच के दीमकों ने मानवीय संबंधों को किस हद तक खोखला कर दिया है। मजहब जब इंसानियत की कीमत पर आधारित हो जाए तो समझिए कि हमारा समाज भीतर से कितना खोखला हो चुका है। दूसरी कहानी ‘मर्द’ पुरुषवादी समाज में स्त्री देह धारण करके जीने की पीड़ा का अहसास कराती हुई एक मार्मिक कहानी है।
विवाहेतर यौन संबंध कम ही आत्मीय होते हैं। अधिकतर मामलों में देह से देह तक की ही यात्रा होती है। यानी यौन तृप्ति के पश्चात् हमें वहाँ से प्रेम नहीं बल्कि तिरस्कार मिलता है। इस तरह के यौन केंद्रित संबंधों में हम भीतर और बाहर दोनों ही स्तरों पर क्षरित-स्खलित होते हैं। विवाहेतर संबंध ‘यूज एंड थ्रो’ की नीति पर आधारित होता है। ‘बायोलाॅलॉजिकल नीड्स’ की प्रज्ञा अपने शिक्षक अनुपम से इसी तरह का प्रेम करती है। तभी तो वह अनुपम से कहती है- ‘प्यार और बायोलाॅलॉजिकल नीड्स अलग-अलग है, दोनों को मिलाइए मत। शारीरिक नीड्स को जिंदगी के नीड्स से मिक्स न करें।’ जनता से आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था में सामंती सोच का परिचायक है ‘जनता दरबार’ जुड़े रहने का एक नया ढोंग। ‘जनता दरबार’ कहानी के नायक भीखू के परिवार के साथ हुई ज्यादती इसी ढोंग का सच उजागर करती है।
‘कफन’ प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी है जिसमें उन्होंने अशिक्षा और गरीबी से जुड़ते घीसू और माधो के जरिए सामाजिक जीवन की जिन विकृतियों को उजागर किया था; उसी क्रम में शंभु पी. सिंह ने अपनी कहानी ‘कफन के बाद’ में दिखाया है कि थोड़ी बहुत आर्थिक समृद्धि के बावजूद हम सोच और संवेदना के स्तर पर ‘कफन’ के सृजन काल की सामाजिक स्थितियों से उबर नहीं पाए हैं। चेतना का क्षरण निरंतर जारी है। ‘तृष्णा’ भी लगभग ‘बायोलाॅलॉजिकल नीड्स’ की तरह विवाहेतर सेक्स संबंधों पर ही आधारित भावुक और अस्वाभाविक मनःस्थितियों के तारों से बुनी गई कहानी है। कहानी की नायिका चित्रा अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति हेतु कभी रवि, कभी निखिल तो कभी अपने शिक्षक का इस्तेमाल करती है। शारीरिक तृष्णा की तृप्ति मात्रा के लिए भटकती युवती की स्थिति का चित्रण इस कहानी की विशेषता है।
‘तोहफा’ दांपत्य प्रेम की कथा है। स्नेहा और सलिल एक-दूसरे से खूब प्यार करते हैं, किंतु सलिल उसे माँ बनाने की क्षमता नहीं रखता है। हालाँकि वह पिता बनने का सुखाकांक्षी है। सलिल को स्नेहा यह सुख जरूर देती है, किंतु इस सुख का स्रोत कहीं और होता है। ‘मिस्ड कॉल के इंतजार में’ एक रोचक कहानी है। यह मिस्ड कॉल कभी-कभी हमें अनजाने लोगों से जोड़ देता है तो कभी मुसीबत का कारण भी बन जाता है। पारिवारिक जीवन में छोटी-छोटी बातें भी किस तरह भाइयों के बीच दरार बन जाता है। दरार बनाने में महिलाओं की भूमिका को कथाकार ने ‘सिलवट का दूध’ में उजागर किया है। कथाकार ने इस बात पर जोर दिया है कि गरीबी के साथ ईर्ष्या भी शामिल हो तो उस परिवार को विखंडित होने से कोई नहीं रोक सकता।
अय्याश और अपराधी प्रवृत्ति के नेताओं-नौकरशाहों के कारण आजादी के मात्र 66-67 वर्षों के दरम्यान ही भारत का लोकतंत्र लंपटों का चारागाह बन गया है। न्याय के साथ विकास की बात बेमानी हो चुकी है। भूख और गरीबी से जूझ रही जनता का शोषण वाले उदंडों का एक नया वर्ग लोकतंत्र पर हावी है। महिलाओं के लिए नित नये-नये अधिकार और सुविधाओं की घोषणा करने वाले नेताओं के दोगले चरित्र को ‘भूख’ में कथाकार ने उजागर किया है।
समग्रतः कहा जा सकता है कि शंभु पी. सिंह किसी विचारधारा के साथ प्रवाहित होने वाले प्रतिबद्ध कथाकार नहीं हैं, अपितु आमजन आज जिन आंतरिक और बाह्य संघर्षों से होकर गुजर रही हैं, उन्हें ईमानदारी से अभिव्यक्ति देने के कथाकार है। कथा सृजन की सार्थकता भी इसी बात में निहित होती है कि वह सामाजिक जीवन का दर्पण और दृष्टि साबित हो।
Image: A woman seated in front of a palace, reading a book and offered a cup
Image Source: Wikimedia Commons
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