पाल भसीन का रचना-संसार

पाल भसीन का रचना-संसार

चर्चित कथाकार पाल भसीन (पूरा नाम डॉ. धर्मेंद्र पाल भसीन) के पचहत्तर वर्ष पूरे होने पर यानी जीवन के अमृत महोत्सव पर अभिनंदन ग्रंथ ‘रमता योगी : बहता पानी’ का प्रकाशन हुआ है, जिसमें उनका पूरा रचना-संसार समा गया है।

किसी भी रचनाकार को जानने-समझने के लिए उसकी रचनाओं में डुबकी लगाकर ही जाना जा सकेगा। इस अभिनंदन ग्रंथ का शीर्षक ‘रमता जोगी : बहता पानी’ से ही स्पष्ट हो जाता है कि रचनाकार ने पंडित राहुल सांकृत्यायन के यायावर जीवन को अपने जीवन में आत्मसात कर लिया है, क्योंकि डॉ. पाल भसीन की रचनाएँ बताती हैं कि वे कभी किसी विचारधारा की सीमा में अपने को बाँधकर नहीं रख सके। कहानीकार, अभिनेता, संपादक, दोहाकार, गीतकार, समीक्षानुसंधान जैसी विविध विधाओं और कलाओं को जीने वाले डॉ. पाल भसीन का बच्चों एवं पर्यावरण से न सिर्फ लेखन से बल्कि हकीकत में भी जुड़ाव रहा है। पर्यावरण पर कुछ लिखना और पर्यावरण को साथ-साथ जीना दोनों ही गुण उनमें विद्यमान हैं। आलोच्य पुस्तक में डॉ. भारतेंदु मिश्र ने ‘मेरे लोकल गार्जियन’ में लिखा है कि ‘बच्चों और पौधों के साथ खेलना भसीन जी को बहुत पसंद है। बागवानी करना और बच्चों के साथ काम करना उन्हें अच्छा लगता है। सभी घरों में आसपास की जगहों में उनके लगाए पौधे और बेलें उनकी सहज सर्जनशीलता और प्रकृति-प्रेम की दास्तान बयाँ करती हैं। स्वयं सुबह और शाम बागवानी करते हैं।’

डॉ. अमरनाथ ‘अमर’ ने ‘पचहत्तर साल के वो जवान’ में लिखते हैं कि ‘लाहौर’ में जन्में, दिल्ली में पले-बढ़े! बचपन में देश की गुलामी को देखा, आजादी के जश्न को आत्मसात किया और विभाजन के दर्द को परिवार के साथ महसूस किया। इन सभी हालातों ने उन्हें एक मजबूत, निष्ठावान, जुझारू और गतिशील इनसान के रूप में तब्दील कर दिया।’ इस लेख से स्पष्ट है कि भसीन जी ने जीवन के झंझावातों, संघर्षों और कुठाराघातों को झेलते हुए अँधेरी रातों में जीवन की उम्मीद और नई संभावनाओं की रोशनी जलाते हुए 75 वर्ष के वरिष्ठ नागरिक हैं, परंतु अपनी सोच, अपनी कर्मठता और व्यक्तित्व-कृतित्व से वे युवा हैं। डॉ. पाल के व्यक्तित्व की चर्चा करते हुए सुदीप ने ‘पाल भसीन : एक अंतरंग परिचय’ में लिखा है कि ‘पाल के व्यक्तित्व की एक बड़ी विशेषता यह है कि आज के कई अन्य लोगों की भाँति बहुरूपिया नहीं हैं। वह गद्य लिखे अथवा पद्य; करता वह कविता ही है। उसकी एक ही अदा है–चाहे वह ऑफिस में काम कर रहा हो अथवा बागवानी। उसका एक ही चेहरा है–चाहे वह बाजार में चल रहा हो अथवा यमुना के किनारे बैठा हो। उसमें चाँद की ठंडक है, सूर्य की गर्मी है। पाल का एक ही व्यक्तित्व है जो उसका अपना है। उसके व्यक्तित्व में सौम्यता है, माधुर्य है, संवेदनशीलता है और साथ ही है किसी भी अजनबी के लिए अपनापन।’

अवधबिहारी श्रीवास्तव उनके काव्य-परिवार में भ्रमण करते हुए ‘पाल भसीन और उनका काव्य-परिसर’ में कहते हैं कि ‘अपने गीतों में पाल भसीन जिन विषयों को उठाते हैं उनका रेशा-रेशा आपके सम्मुख खुलता जाता है। भाषा, भाव और बिंब का ऐसा रचाव सहजता से करते हैं कि किसी का भी उनके गीतों पर मुग्ध हो जाना स्वाभाविक है। ‘पाल की कविता की आधी सदी’ में प्रो. राजेंद्र गौतम कहते हैं कि पाल भसीन का कविता-संग्रह ‘धुँधली तस्वीरें’, ‘अमलतास की दाँव’, ‘जोग लिखी’ और ‘खुशबू की सौगात’ के आगमन ने उन्हें सिद्ध कवि के रूप में स्थापित कर दिया। ‘धुँधली तस्वीरें’ देश की धरती और जनता से प्यार करने वाले एक नौजवान का पहला काव्य-संग्रह है। ‘अमलतास की छाँव’ आधुनिक दोहे का प्रथम संकलन कहा जा सकता है। जैसे–

‘शरद जुन्हाई बिछ गई, अन्हियारे के देश,
तेरे चरणों का हुआ, जब-जब यहाँ प्रवेश,
कर हस्ताक्षर धूप के, खिला गुलाबी रूप
चले किरण दल पाटने, अंधकार के कूप।’

‘जोग लिखी’ की अधिकतर रचनाएँ किसी साँचे में बँधी हुई नहीं हैं। ये गीत-रचनाएँ, जिन्हें नवगीत कहना अधिक सार्थक होगा, विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इनमें बदले हुए गीत की स्पष्ट पदचाप सुनी जा सकती है–

‘सड़कों पर रेंग रही दृष्टियों की मछलियाँ
पगलायी धुँधआती मोटरें-बसें
चिल्लाहट-कोलाहल-चीत्कार
सीमित परिवेश में मुट्ठियाँ कसें
अपने ही बोझ से चूर-चूर पसलियाँ।’

‘खुशबू की सौगात’ पाल भसीन का अभी तक प्रकाशित कृतियों में अंतिम कविता-संग्रह है। पाल भसीन की काव्य-यात्रा उनके फक्कड़ व्यक्तित्व का ही बिंब साकार करती है, जीवन के प्रति जितना उनका समर्पण भाव है, उतनी जनपक्षधरता भी उनमें हैं। उनके दोहों में जितना उत्कट सौंदर्य-प्रेम है, विसंगत परिवेश पर उतना ही उनका करारा व्यंग्य-प्रहार है। टूटकर भी अखंडित रहने वाला उनका व्यक्तित्व उनके ही शब्दों में इस प्रकार अंकित किया जा सकता है–

‘तुम बहुत नाराज हो/मुझ पर/हवाओं ने कहा/–मैंने सुना है/यह नियति है/उन सभी की/धार में बहते नहीं जो/हम किनारे…/उस किनारे पर/कभी रहते नहीं जो/तोड़ते वे दर्प लहरों का सदा सब कुछ सहा/मैंने सुना है।’

इंदुबाला ग्रोवर ‘पाल भसीन के कथा-साहित्य का शिल्पगत वैशिष्ट्य’ शीर्षक लेख में कहती हैं कि ‘पाल भसीन के कथा-साहित्य की शिल्प-संरचना’ नई कहानी की ही विविधता और प्रयोगधर्मिता का परिणाम है। इसमें भाषिक संरचना के विविध स्तर हैं, शैली की विविधता है, सामान्य जनजीवन के मुहावरे हैं, गहरी प्रतीकात्मकता है और सफल अप्रस्तुत विधान है। पाल भसीन के कथा-साहित्य का यह शिल्प-विधान उनके कथ्य को अधिक संप्रेषणीय बनाता है। कथाकार पाल भसीन ने अपने कथा-साहित्य की संरचना में सांकेतिकता, अर्थ-गर्भित भाषा, बिंब विधान, प्रतीक योजना आदि विशेषताओं का उपयोग कहानी में विविध अनुभव-खंडों को संयोजित करने के लिए किया है। इनके दो कहानी-संग्रह प्रकाशित हैं–‘गुजरते वक्त का दर्द’ और ‘चार अंकों का शून्य।’

पाल भसीन के रचना-संसार में तीन उपन्यास–‘जीवन कितना : कितनी पीड़ा’, ‘सीपी भर प्यास’ और ‘आप अच्छे हैं सर’ प्रकाशित हैं, जो काफी लोकप्रिय हैं। उन्होंने संपादन, समीक्षा, अनुवाद, संवाद लेखन तथा अभिनय भी किया है। इनकी समीक्षा-पुस्तक ‘गद्यकार आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री’ की चर्चा मुख्य रूप से होती है, जिसमें उन्होंने करीने से आचार्य शास्त्री के गद्य-पक्ष को उजागर किया है, जबकि शोध कार्य में अक्सरहाँ किसी रचनाकार के उसी पक्ष को लेकर लोग आगे बढ़ते हैं, जिस रूप में आमलोग जानते हैं। परंतु भसीन जी ने धारा के विपरीत एक राह बनायी। इस संबंध में मधुकर अष्ठाना कहते हैं कि ‘शोध कार्य के संबंध में मेरा मत है कि आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री के गद्य-साहित्य पर इससे उत्कृष्ट शोध की कल्पना नहीं की जा सकती है। डॉ. पाल भसीन शोधकार के रूप में ही सफल नहीं हुए हैं, बल्कि शोध के माध्यम से उन्होंने शास्त्री जी के गद्य-साहित्य को पुनर्जीवन प्रदान किया है।’

प्रसंगवश इस तथ्य की चर्चा प्रासंगिक होगी कि पाल भसीन व्यक्तिगत जीवन में भी आचार्य शास्त्री से गहरे जुड़े रहे। वे आचार्य शास्त्री के अत्यंत प्रिय भी रहे। वे अक्सर मुजफ्फरपुर आचार्य शास्त्री से मिलने आते भी रहे। इस पुस्तक में आचार्य शास्त्री से उनकी आत्मीयता छुपती भी नहीं।

‘रमता योगी : बहता पानी’ अभिनंदन ग्रंथ का सारगर्भित संपादन डॉ. योगेंद्र दत्त शर्मा, डॉ. राजेंद्र गौतम तथा डॉ. दत्तात्रेय गुरूमकर ने मिलकर किया है, जो डॉ. पाल भसीन के रचना-संसार को पूर्णतः उभारकर पाठक के समक्ष लाता है, जिसमें पाठक की पढ़ने की रुचि लगातार बनी रहती है। इसमें कुल अड़तीस साहित्यकार-शुभचिंतकों के विचार विभिन्न पक्ष को लेकर उद्धृत हैं तथा इसमें भसीन जी की विभिन्न रचनाओं से भी पाठक को रू-ब-रू कराया गया है।

आलोच्य पुस्तक में डॉ. भसीन से नमीता सोनाले की बातचीत को साक्षात्कार के रूप में दिया गया है, जो उनको जानने-समझने के लिए एक दस्तावेज हैं। बातें तो बहुत हुई हैं, लेकिन एक-दो बातें उद्धृत करना आवश्यक है, जैसे नमीता जी पूछती हैं–‘आपकी विचारधारा क्या है?’ इस पर भसीन जी कहते हैं–‘मानवता के हित में जहाँ जो उचित हो, वह ग्राह्य है। किसी विशिष्ट राजनीतिक सिद्धांत में बँधकर रह जाने का मतलब होगा अपने स्वतंत्र-चिंतन पर विराम लगा देना। प्रतिबद्धता देश और समाज सहित समूची मानवता के प्रति होनी चाहिए, दल-विशेष के प्रति नहीं।’

नमीता का एक दूसरा प्रश्न है–‘आपकी कविता में व्यक्तिगत जीवन अधिक है।’ इस पर डॉ. पाल कहते हैं–‘व्यक्ति क्या समाज का अंग नहीं होता? व्यष्टि और समष्टि विभाजित कैसे करेंगी आप? व्यक्तिगत दुःख, सुख, वेदना आदि प्रकारांतर से समाज के भी तो हैं, रचनाकार की स्वानुभूति ‘पर’ की अनुभूति भी तो हो सकती है। और पदानुभूति को भी जब तक संवेदना के स्तर पर आत्मसात न कर लिया जाए, तब तक रचनाकार उसे प्रभावी ढंग से संप्रेषित नहीं कर पाता। अतः वैयक्तिकता और निर्वैयक्तिकता का भेद अधिक विचारणीय नहीं।’

अस्तु, यह कहा जा सकता है कि आलोच्य पुस्तक डॉ. पाल भसीन के रचना-संसार का एक सफल दस्तावेज बनकर सामने आया है।


Image : Reading
Image Source : WikiArt
Artist : Nicolae Vermont
Image in Public Domain

हृषीकेश पाठक द्वारा भी