शोध की जमीन पर लिखा गया उपन्यास

शोध की जमीन पर लिखा गया उपन्यास

‘रुई लपेटी आग’ चर्चित कथाकार अवधेश प्रीत का सद्य: प्रकाशित उपन्यास है। यह उपन्यास अपनी विषयगत भावभूमि के आधार पर कथा में लगभग अनूठा और नया है। उपन्यास का केंद्र परमाणु बम की प्रयोगशाला राजस्थान का पोखरण क्षेत्र है। उससे जुड़े इतिहास की ओर उपन्यास पाठक को ले जाता है परंतु यह उपन्यास शोधपरकता को लिए हुए एक यथार्थवादी कथाकार की कल्पना को भी सामने लाता है। मूलतः यह उपन्यास कला और विध्वंस के द्वंद्व में कला की सार्थकता के साथ हिंसा और युद्ध की वैश्विक निरर्थकता को सामने लाता है। पोखरण में हुए परमाणु परीक्षण से जुड़े दो पक्षों को यह उपन्यास बहुत गहराई से दर्ज करता है। एक पक्ष राष्ट्रवाद की उस कड़ी से जुड़ता है जो रोमानी भावुकतावश देश के स्वाभिमान और वैश्विक स्तर पर एक बड़ी सामरिक शक्ति के रूप में अपनी देशभक्ति को परिभाषित करता है। ऐसा करते हुए वह उस रोमानी भावुकता के साथ एक प्रतिद्वंद्विता की भावना से भी संचालित होता है। यह भावना वैश्विक पटल पर युद्ध में तथाकथित दुश्मन के मुकाबले अपने सामरिक हथियारों पर गर्व के साथ पड़ोसी देशों पर अपनी विजय पताका फहराने के भाव से ओत-प्रोत रहती है। दरअसल यह एक दुर्भावना की तरह मनुष्य को संचालित करती है। बहुत बड़ी विकृति के तौर पर यह दुर्भावना वैज्ञानिक शोध के राष्ट्रीय महत्त्व को एक योद्धा देश के थोथे अभिमान तले रौंद देती है। यही नहीं परमाणु बम के खतरों और एक बड़ी ऐतिहासिक क्षति को भी यह दुर्भावना सिरे से विस्मृत कर देती है। हर्षाेल्लास के गौरवपूर्ण क्षणों में वृहत्तर मनुष्यता के सवाल अनुत्तरित रह जाते हैं। दूसरी ओर यह भावना मात्र एक स्तर पर ही परमाणु शक्ति बन गए देश का आकलन कर पाती है, उसके अन्य पक्ष से यह पूरी तरह उदासीन रहती है। दूसरा पक्ष उस जर्जर देश की छवि उकेरता है जहाँ परमाणु परीक्षण की पूरी प्रक्रिया राष्ट्रीय गौरव को नहीं बल्कि उस राष्ट्रीय शर्म का सामना कराती है जहाँ लोग सीधे तौर पर इन वैज्ञानिक परीक्षणों के दौरान तबाही का शिकार होते हैं। जहाँ एक नहीं कई पीढ़ियाँ इस परमाणु परीक्षण की चपेट में आकर अपनी सहज खुशहाल और स्वस्थ जिंदगी को अचानक खो बैठती हैं। बचपन से लेकर वृद्धावस्था के अनेक सपने असमय दम तोड़ देते हैं। मनुष्य जाति की इस भयावह तबाही के साथ पूरा पर्यावरण दूषित और जानलेवा हो उठता है और तथाकथित देशभक्ति से ओत-प्रोत जनमानस इससे उदासीन रहता है। सत्य से परे यह लोग उस अराजक भीड़तंत्र में रूपांतरित हो जाते हैं जिनके देशभक्ति के नारों से आम भारतीय के भीतर भय व्याप्त होता है। राष्ट्रीय गर्व के समानांतर यह राष्ट्रीय शर्म का विषय है–‘रुई लपेटी आग’ इसी दूसरे पक्ष पर केंद्रित उपन्यास है।

उपन्यास का कथानक औपनिवेशिक भारत से लेकर परमाणु परीक्षण तक का एक लंबा कालखंड समेटे अनेक किरदारों के साथ भारतीय और भारतेतर भूगोल को स्पर्श करता है। पोखरण से लेकर नासा की जमीन उपन्यास में दर्ज है। वहीं उपन्यास के अतीत में हिरोशिमा एक बैकड्राॅप की तरह व्यापक मानवीय त्रासदी के रूप में उभरता है और उपन्यास का वर्तमान बनारस, इलाहाबाद, पोखरण, राजस्थान के अनेक इलाकों के साथ पाकिस्तान आदि तक फैला है। उपन्यास अपने पूरे विस्तार में कहीं न कहीं राष्ट्रवाद को पुनः परिभाषित करने का गंभीर दायित्व भी उठाता है। जाहिर है इस राष्ट्रवाद की संकल्पना अंधराष्ट्रवाद के परे जाकर भारतीय स्वाधीनता संग्राम के उस राष्ट्रवाद से जुड़ती है जिसने गंगा-जमुनी तहजीब रचकर सांप्रदायिक सद्भाव की संगठनात्मक शक्ति के आधार पर पराधीनता से मुक्ति पाई थी। एक स्वाधीन भारत का स्वप्न साकार हुआ था। उपन्यास अंसारी और बाबा की दोस्ती की जमीन रचकर इस सद्भाव का संदेश देता है। दोनों की दोस्ती का आधार अपनत्व और प्रगाढ़ मैत्री के साथ संगीत के प्रति दोनों का समान अनुराग है। कलाएँ किस प्रकार सरहदों से मुक्त एक अपनापे की सहज भावना से जुड़कर संकीर्ण मानसिकता से परे एक व्यापक नजरिये से दुनिया को देखने-दिखाने की सलाहियत देती हैं, यह उपन्यास की केंद्रीय भूमि भी है।

उपन्यास का भाषिक विन्यास आकर्षित करता है। हिंदुस्तानी जबान के साथ गुनी, बाबा-अंसारी, रज्जो की स्थानीय बोली का जादू यहाँ है। अवधेश प्रीत जहाँ वैचारिकता के स्तर पर बहुत सशक्त कथाकार हैं वहाँ भाषा के प्रति भी सचेत हैं। उनके यहाँ भाषा कलात्मक जरूर है पर कला का अतिरिक्त मुल्लमा वहाँ नहीं है। इस उपन्यास में शोध के हिस्से को सामने लाने में भाषा कहीं-कहीं निबंध का गद्य लिए भी आती है। उपन्यास को पढ़ते हुए एक दोहराव अवश्य महसूस किया जा सकता है कि आरंभ में कल्लू, उसके पिता और अरुंधती के पिता की कहानी से पाठक का परिचय हो चुकने के बाद जब वैज्ञानिक कलीमुद्दीन अपनी आत्मकथा लिखता है तो वह हिस्सा फिर से पाठक के सामने आता है।

एक नए विषय और उसकी शोधपरक प्रक्रिया से गुजरकर उसे कथा में बाँधना ‘रुई लपेटी आग’ उपन्यास की सार्थकता है। अपनी कहानियों में जिस गंभीर दृष्टि के साथ सांप्रदायिक सद्भाव के लिए अवधेश प्रीत जाने जाते रहे हैं वह दृष्टि इस उपन्यास में एक नई जमीन के साथ प्रस्तुत हुई है।


Image : Claude Monet (The Reader)
Image Source : WikiArt
Artist : Pierre-Auguste Renoir
Image in Public Domain

प्रज्ञा द्वारा भी