स्त्री मनोभाव की कविताएँ

स्त्री मनोभाव की कविताएँ

सत्या शर्मा ‘कीर्ति’ युवा कवयित्रियों में अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं। पत्र-पत्रिकाओं एवं सोशल मीडिया पर इनकी कविताएँ और लघुकथाएँ लगातार देखने को मिलती रही हैं, जिससे पता चलता है कि ये निरंतर रचनाशील हैं। इनका अभी-अभी प्रकाशित काव्य-संग्रह ‘तीस पार की नदियाँ’ साहित्यिक वर्ग में काफी चर्चित हो रहा है। यह संग्रह उनकी रचनाशीलता का बेजोड़ नमूना है। इस संग्रह में सात छोटे-छोटे खंड़ों में कुल 57 कविताएँ संकलित हैं। इसमें विषय वैविध्य के साथ-साथ भाव वैविध्य भी है। सत्या शर्मा की अधिकांश कविताएँ अनुभव की उपज है जिसमें उनके आस-पास का यथार्थ है। इनकी कविताओं के केंद्र में स्त्रियों की आंतरिक भावनाएँ, उनके जीवन संघर्ष, तड़प, बेचैनी और स्वतंत्रता की उत्कट अभिलाषा है।

संग्रह का पहला खंड ‘मायके की चौखट’ बताता है कि सत्या शर्मा को अपने मायके से कितना गहरा जुड़ाव है। वैसे ही प्रत्येक स्त्री का जन्म दो बार होता है, यह ठीक वैसा ही है जैसे कोई वृक्ष जो धरती में अपनी जड़ें जमा चुका है उसे फिर से उखाड़कर दूसरी जगह प्रत्यारोपित कर दिया जाए। इस प्रत्यारोपण की पीड़ा को कोई स्त्री ही समझ सकती है। तभी तो सत्या को कभी भाई, कभी पिता, कभी माँ, तो कभी अपना घर आँगन बार-बार याद आता है। इस खंड में वह अपने मायके को जीती है। ‘काश मैं हो जाती पिता’ और ‘जाने कब बूढ़ी हो गई माँ’ इस खंड के दो महत्वपूर्ण कविताएँ हैं। इसके साथ-साथ एक और कविता ‘हल्दी-कुमकुम’ भी अपने कथ्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण कविता है। जिसमें सत्या शर्मा परंपरागत रूढ़ियों को तोड़कर स्त्रियों को आत्म सम्मान से जीने की बात कहती हैं। कवयित्री कहती हैं–

‘पता है माँ!
मेरी विदाई के वक्त, जो दी थी तुमने
अपनी उम्र भर की सीख
लपेटकर मेरे आँचल में।
चौखट
लाँघते वक्त
मैं टाँग आई उसे
वहीं तेरी देहरी पर।’

इस कविता में आगे चलकर वे कहती हैं कि अपनी बेटी को विदा करते समय मैं उसे आत्म सम्मान से जीने की सीख दूँगी न कि सदियों से समझौतावादी बनकर रहने की दलील–

‘ताकि जब
मेरी बेटी विदा हो
मैं बाँध सकूँ
उसके आँचल में
आत्म सम्मान का
हल्दी-कुमकुम।’

दूसरा खंड ‘स्त्रियाँ गढ़ती हैं खाली पलों में भविष्य के सुनहरे सपने’ स्त्री होने का अर्थ बताती है। इस खंड की 10 कविताओं में स्त्रियों की सोच, उनकी तड़प, उनकी समस्याएँ, उनका संघर्ष और मुक्ति की छटपटाहट स्पष्ट देखी जा सकती है। ‘स्त्री’ शीर्षक कविता में कवयित्री कहती हैं–

‘कहा स्त्री ने–अहा! कितना सुखद!
आओ तोड़ दे बंदिशें
हो जाएँ मुक्त
गाएँ आजादी के मधुर गीत।’

‘तीस पार की नदियाँ’ शीर्षक कविता में तीस वर्ष के बाद स्त्रियों के भीतर हो रहे मानसिक बदलाव का सुंदर चित्रण कवयित्री ने किया है। इस उम्र में न तो वे अल्हड़ होती हैं और न ही बिल्कुल थिर। उनकी उमंग और चाहतें अब धीरे-धीरे जिम्मेदारियों के बोझ तले दबने लगती हैं। वे लिखती हैं–

‘अब वो नहीं करती
अठखेलियाँ
लेती नहीं हिचकोले
नहीं रखती मनमोहक
तरंगों की चाह।

उसकी आतुर धाराएँ
ताकती हैं किनारों को
एक उम्मीद से।’

तीसरा खंड ‘बुद्ध हो जाना कहाँ सरल है?’ में आठ कविताएँ तो ‘तुम्हारे मन के किवाड़ पर दस्तक होती होगी ना’ शीर्षक से चौथे खंड में भी आठ कविताएँ संकलित हैं। इस खंड की सभी कविताएँ प्रेम के गहरे रंग में डूबी हैं। गहन आत्मिक प्रेम से सराबोर ये कविताएँ सहज ही आकर्षित करती हुई मन को छू लेती हैं। मेरे विचार से यह खंड इस संग्रह की आत्मा है। इसकी कुछ बानगी देखिए–

‘कि हाँ, अब सोचती हूँ
लौट भी आऊँ
कि इस बार की सर्दी में बर्फ न बन जाए
हमारे रिश्तों की
गुनगुनी-सी गर्माहट।’

‘हाँ, तुम्हारी किचन के ही किसी
डिब्बे में बंद पड़े होंगे
मेरी हसरतों के गर्म-मसाले
हाँ
फिर आऊँगी
तुम्हारी यादों में
अपने दिल
के कमरे को
रखना तुम
खाली।’

‘जब संबंधों की डोर’
चटकने सी लगे
हाँ, पुकार लेना मुझको
मैं आ जाऊँगी लौटकर
हाँ, बस एक बार पुकार लेना मुझको।’

‘तुम्हारी अँगुली पकड़
भीगना चाहती थी
पहली बारिश में
अब कविता लिखना नहीं
तुम्हारी कविता बनना चाहती थी।’

‘एक बार फिर आई थी गौरेया’ खंड में सम्मिलित सात कविताओं में गौरैया के बहाने प्रकृति की पीड़ा को सहज ढंग से दर्शाया गया है। जंगल कट रहे हैं, नदियाँ उदास हैं, बड़ी-बड़ी इमारतें रोज बन रही हैं और गौराया एक अदने-से आँगन के लिए तरस रही है। प्रकृति के साथ मनुष्य का यह व्यवहार हमें किस गर्त में ले जाएगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा। कवयित्री गौरैया को बुलाती है पर वह फिर नहीं आती।

इस प्रकार हम देखते हैं कि सत्या शर्मा कीर्ति की कविताओं में व्यापक प्रसार है। इनकी कविताएँ सहज, सरल शब्दों में अपनी बात कहती हैं। बिंबों का नवीन प्रयोग इनकी कविताओं के सौंदर्य में श्री वृद्धि करता है। उम्मीद है कि भविष्य में इनकी कविताएँ और अधिक समृद्ध होंगी।


Image: Painting
Image Courtesy: LOKATMA Folk Art Boutique
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