मनुष्यता को बचाने की आवाज

मनुष्यता को बचाने की आवाज

कवि-समीक्षक नीलोत्पल रमेश के हाल ही प्रकाशित प्रथम काव्य-संग्रह ‘मेरे गाँव का पोखरा’ ने हिंदी साहित्याकाश में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज की है। नीलोत्पल रमेश की कविताएँ कल्पना के आकाश में विचरण नहीं करतीं, अपितु गाँव-गली, खेत-खलिहान, अहरा-पोखरा और जंगलों के इर्द-गिर्द घूम मानवीय मूल्यों के रक्षार्थ मनुष्यता की मशाल थामे दिग्भ्रमित समाज को उजाले की तरफ ले जाने को कटिबद्ध दिखाई देती हैं। उनकी कविताएँ हमारी अनुभूतियों को संस्पर्शित कर हमें सचेत करने का प्रयास करती हैं।

नीलोत्पल रमेश एक सहज, सरल और संवेदनशील व्यक्तित्व के धनी हैं। उनकी कविताएँ मानवीय संवेदनाओं को संस्पर्शित करती हुईं संवेदनसिक्त हृदय की एक साकार तस्वीर प्रस्तुत करती हैं। काव्य संग्रह ‘मेरे गाँव का पोखरा’ में कई कविताओं में देश के भविष्य कहे जाने वाले बच्चों की दुर्दशा और खस्ताहाल स्वास्थ्य व्यवस्था से असमय अस्पताल के बिस्तर पर दम तोड़ती उनकी साँसों की करुण कथा का वर्णन दिखाई पड़ता है। उनकी कविता ‘बच्चे मर रहे हैं’ भगवान कहे जाने वाले डॉक्टरों के उन क्रूर चेहरों को बेनकाब करती है जो अपने चिकित्सीय धर्म से विरत पार्टियों में मशगूल रहते हैं, उन नेताओं के चरित्र को उजागर करती है जो अय्याशी के सागर में डुबकी लगाते रहते हैं तथा प्रशासन की उस संवेदनहीनता का पर्दाफाश करती है जो आँखें बंद कर उस भयावह मंजर को देखते रहते हैं और जिनके कानों पर जूँ तक नहीं रेंगती–

‘बच्चे मर रहे हैं
डॉक्टर पार्टी मना रहे हैं
प्रशासन मौन है
नेता ऐश कर रहे हैं
और बच्चों के माता-पिता
बदहवास दौड़ रहे हैं
पागलों की तरह
ताकि किसी तरह
बचा सकें अपने लाल को।’

आज जब संयुक्त परिवार तेजी से विखंडित हो रहे हैं तथा आपसी सौहार्द दिनों-दिन क्षरण होता जा रहा है। माता-पिता को टूटे-फूटे सामान की तरह निकाल कर घर से बाहर फेंका जा रहा है। रिश्तों के दरकते पुल और उत्तरोत्तर ह्रास की ओर अग्रसर मानवीय मूल्यों तथा छीज होती मर्यादाओं पर भी कवि दृष्टि पूर्णतः निबद्ध दिखाई देती है। स्वार्थ की नींव पर खड़े रिश्तों की हकीकत उनकी कविता ‘कैसा समय है आज’ में साफ दिखाई देती है–

‘समय पड़ने पर
माँ को माँ
पिता को पिता
और भाई को भाई कहने से
साफ कतरा जाते हैं वे।’

स्त्री जीवन के विविध पक्षों पर कवि की पैनी नजर दिखाई देती है। स्त्री जीवन की विभिन्न त्रासदियों और विडंबना पूर्ण स्थितियों को कवि ने अपनी कविताओं का कथ्य बनाया है जिनमें दहेज के कारण प्रताड़ना, अनमेल विवाह, भ्रूणहत्या जैसे विषयों पर लिखीं कविताएँ स्त्री जीवन के दारुण दुःख की कहानी बयाँ करती हैं, जिन्हें स्त्रियाँ ताउम्र उफ न करते हुए सहन करती हैं। उनकी एक कविता ‘बेटी का पत्र माँ के नाम’ में वह पीड़ा दृष्टव्य है–

‘मैं भी
अपने ससुराल में सुखी हूँ माँ!
क्या हुआ
अगर मेरे पति की उम्र
मुझसे दुगुनी से भी अधिक है
क्या हुआ
अगर दहेज में साइकिल और रेडियो
न लाने के कारण
सास-ससुर के ताने सुनना
मेरा रोजनामचा हो गया है!’

नीलोत्पल रमेश की कविताएँ मानवता की प्रबल पक्षधर हैं। उनकी कविताएँ शांति का संदेश देती हैं। वह हर प्रकार के खून-खराबे के बरक्स शांति की मशाल थामे युद्ध के तुमुल कोलाहल में ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना से सराबोर ‘जियो और जीने दो’ की हिमायत करती हैं–

‘हम नहीं चाहते जंग
हम शांति के पुजारी हैं।’

उनकी कविताओं में धर्म के नाम पर जो उन्माद फैलाया जा रहा है, धर्म के नाम पर जो बसुधा को रक्तरंजित किया जा रहा है, धर्म के नाम पर जो लोगों को डराया जा रहा है, धर्म के नाम पर जो आपसी सौहार्द को खंडित कर देश को सांप्रदायिकता की आग में झोंकने का प्रयास किया जा रहा है उसका यथार्थ चित्रण दिखाई देता है। आज जो भय, जो अनैतिक आचरण तथा जो मॉब लिंचिंग, वह भी ‘जो अनीति कछु भाखौं भाई, तो मोहि बरजहु भय बिसराई’ कहने वाले उन राम के नाम पर आए दिन ढोंगी रामियों द्वारा की जा रही है, उसका प्रबल प्रतिरोध उनकी ‘हे राम’ कविता में दिखाई देता है–

‘हे राम!
तुम्हारे नाम मात्र से
तुम्हारी प्रजा सताई जा रही है
और अब तो
भारत के लोगों को
तुम्हारे नाम से भी
डर लगने लगा है।’

‘अब आ भी जाओ
कुछ बिगड़ा नहीं है
ताकि भारत की जनता को
त्राण मिल सके
इन ढोंगी रामियों से।’

6 दिसंबर, 1992 ई. को मंदिर-मस्जिद के नाम पर अयोध्या में जो नंगा-नाच उन्मादी शक्तियों के द्वारा किया गया, धर्म के नाम पर जो खून की होली खेली गई तथा जिसके बाद वैमनस्यता की आग में देश को जलने के लिए छोड़ दिया गया के बीच दोस्त सलमान के जीवन की सलामती के लिए एक हिंदू दोस्त के द्वारा की गई प्रार्थना, माँ के द्वारा किया गया व्रत, पिता द्वारा किया गया अखंड पाठ, उन उन्मादी शक्तियों के मुँह पर तमाचा है जो देश की एकता व अखंडता को खंडित करने का स्वप्न सँजोए बैठे हैं उनकी कविता।


Image : The Way They Live
Image Source : WikiArt
Artist : Thomas Pollock Anshutz
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अरविन्द यादव द्वारा भी