सिंगापुर की डायरी
- 1 June, 2016
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सिंगापुर की डायरी
नेशनल लाइब्रेरी, सिंगापुर : 4 जनवरी, 2008 दोपहर : 11:45 बजे
18 दिसंबर, 2007 की सुबह सिंगापुर पहुँचा। जीवन की पहली विदेश यात्रा और उसके बाद प्रवास। 11 जनवरी, 2008 का वापसी है दिल्ली की। यहाँ पहुँचने से अब तक ऐसा भारी विश्राम किया कि ‘चें!’ बोल गई। धीरे-धीरे यहाँ के मौसम में रमा। वातावरण में रमाया बच्चों ने, जिनका मैं मेहमान पिता हूँ। प्रवर (बेटे) के घर सोफिया रोड से पंद्रह मिनट पैदल चलकर इस शानदार नेशनल लाइब्रेरी तक आया जा सकता है, इसलिए यहाँ आने का मोह बढ़ना ही था। आज का मिलाकर चौथा चक्कर है यहाँ का। काफी-काफी समय यहाँ गुजारता हूँ। किताबों की दुनिया और उन्हें जब ऐसा ‘घर’ मिला हो–तो फिर बात ही क्या।
बहुत-सी किताबें हैं। फिलहाल मैं गया था पत्रिकाओं वाले पाले में और वहाँ से कुछ ऐसी पत्रिकाएँ उठाई हैं जिनमें से कई के नाम तो सुने थे–मगर उन्हें आज तक देखा न था। सोचा, इन्हें डायरी में नोट करके बरस-दो-बरस और क्यों न साथ रख लूँ। पहली है–The IOWA Review (Volume 37 No. 2, $ 8.95). इसके बारे में जरा परिचय प्राप्त करें–IOWA विश्वविद्यालय द्वारा यह साहित्यिक पत्रिका वर्ष में तीन बार प्रकाशित की जाती है। अधिक जानकारी के लिए 308 EP B, The University of IOWA, IOWA City, Lowa–2242-1408 से संपर्क किया जा सकता है। एक वर्ष का शुल्क है $ 24, दो वर्ष का $ 44 और तीन वर्ष का $ 64 है। दिशा-निर्देशों के लिए वेबसाइट है–lowareview.org–डेविड हैमिल्टन (David Hamilton) इसके संपादक हैं और Hugh Ferrer, Fiction Editor तथा Lynne Nugent प्रबंध संपादक। तीन अन्य सहायक संपादक तथा एक डिजाइनर का नाम भी छपा है। डिमाई साइज में कुल 186 पृष्ठ हैं।
इस अंक में कुछ कविताएँ हैं, कुछ कहानियाँ, निबंध तथा अंत में पुस्तक समीक्षाएँ। एक नजर डालने पर बहुत कुछ प्रभावित करने वाला नहीं लगा। कुछ शीर्षक चौंकाऊ जरूर हैं। जैसे–A Bedroom Community, Song of Secretary, Hot Lab; Essay on four boys; Kite flying at midnight; Notes toward a Bedtime Story; How to Date a Dead Guy; The Doctrine of Signatures; If a Poet Could Talk we could not understand him आदि। अंत में दिए गए लेखक-परिचय से पता चलता है कि यह सभी पीढ़ियों का रचना-संकलन है। स्थापित और नवोदित लेखक इसमें हैं। एक और बात जो ध्यान देने वाली है–इस संकलन के अंतिम पृष्ठ पर दिया गया विज्ञापन जो The IOWA Review awards के शीर्षक तले छपा है। इसके विवरण में बताया गया है कि प्रवेश शुल्क $ 15 है जिसमें $10 जोड़ने हैं वार्षिक शुल्क के। प्राप्ति सूचना के लिए पता लिखा पोस्टकार्ड भी साथ भेजने को कहा गया है।
इससे अगली पत्रिका मेरे सामने है–The Paris Review. हिंदी के ‘पढ़े-लिखे लेखकों’ का स्थायी ‘खौफ’। शायद मुझे देखने को पहली बार मिली। यहाँ इसके कई अंक उपलब्ध हैं। मगर अंधे को रंग की भला क्या पहचान? मेरे हाथ में है इसका 180वाँ अंक। संपर्क सूत्र है : 62, White Street, Newyork, Ny–10013 तथा www.theparisreview.org। संपादक हैं–Philip Gourevitch तथा सीनियर संपादक हैं–Nathaniel Rich. द पेरिस रिव्यू फाउंडेशन की ओर से त्रैमासिक रूप से प्रकाशित होने वाली इस पत्रिका का यह वसंत (Spring) 2007 अंक। यह कनाडा से छपती है। कवर के अतिरिक्त इसमें कुल 200 पृष्ठ हैं। संस्मरण, छायाचित्र, कविताएँ, साक्षात्कार, दस्तावेज तथा रचनाकारों का परिचय है। कुछ किताबों के विज्ञापन हैं। अंक के 72वें पृष्ठ पर Harry Mathews की नोटबुक के एक पृष्ठ की छायाप्रति है जिसकी एक पंक्ति में एक शब्द जैसा कुछ लिखा प्रतीत हो रहा है। नीचे नोट दिया गया है–Details of a Harry Mathews page showing a sketch for a sextina with endwords that expand one letter in each stanza. इसी लेखक का इंटरव्यू पत्रिका के अगले पृष्ठों में है। पहले लगभग दो पृष्ठों में साक्षात्कार की पृष्ठभूमि है और फिर प्रश्नोत्तर। पहले ही प्रश्नोत्तर का नमूना–
Interviewe
Do you have an audience in mind when you’re writing
Harry Mathews
(I’ve always said that my ideal n reader would be someone who after finishing one of my novels would threw it out the windows, presumable from an upper of an apartment building in New York, and by the time it had landed would be taking the elivator down to retrieve it.
I suppose, I must have dreams of greater recognition, but I’ve always had the audience I wanted, and that was the audience that reads poetry. What I want is enthusiasm among friends and their friends, people who I know are serious readers.
अंक के अंत में द पेरिस रिव्यू फाउंडेशन का एक धन्यवाद ज्ञापन छपा है जिसमें 1,000 अमेरिकी डॉलर या उससे अधिक की धनराशि से सहयोग करने वालों के नाम छापे गए हैं। अकारादि क्रम गोत्र नाम से तय किया गया है।
इससे पहले कि मैं इस पत्रिका की बात बंद करूँ–एक विज्ञापन की नकल उतारना चाहता हूँ जो 8.5’’ × 5.5’’ कुल 309 पृष्ठों के प्रकाशन का है और जिसकी सजिल्द कीमत है $ 35.00 तथा पेपरबैक कीमत $ 17.50 है। किताब का नाम है–‘Fourteen Female voices from Brazil’ तथा विज्ञापित सामग्री है–The fascinating introduction to Brazilizn culture includes interviews with 14 of Brazil’s most prominent writers alongwith excerpts of their work. Containing 11 Stories, 3 Plays and 19 Poems, ‘Fourteen Female voices form Brazil’ opens the door to 14 unique perspective of life, art and love. After answering the same ten questions, each author presents the reader with a poem, play or story that she embodies the essence her work. Whether trapped in a dead end marriage or the terrible beauty of a favela, reflecting on transvestities at the Hilton or learning to finally say the absolute ‘no’ this volume contains 14 life studies by 14 brilliant women. From Brazil’s early ground breaking for minists to the newly emerging voice of young Afro-Brazilians, ‘Fourteen Female voices from Brazil’ brings English speakers a trantalizing slice of Brazilon Culture life.
(for ordering information call 512.236.1290 or visit www. hostpublications.com).
करीब तीन घंटे हो चले हैं पत्रिकाएँ पलटते हुए। जन्म-जन्मांतर की दरकार। बहरहाल, जो और पत्रिकाएँ उलट-पुलट कीं, वे हैं–PN Review का अंक–164। रिपोर्ट, कविताएँ, आलेख और पुस्तक समीक्षाएँ। Alliance House, 30 Cross Street, Manchester M27AQ, UK पता है। द्वैमासिक। ‘Romantic Times Book Reviews’ नामक भी एक पत्रिका है जिसमें 145 पृष्ठों में 250 पुस्तकों की ‘खबर’ ली गई है। ‘Poets & Writers’ का नवंबर/दिसंबर 2007 अंक भी देखा। ‘The Good Book Guide’ का 215वाँ अंक–अक्टूबर 2007। Christmas gift ideas से किताबें और CDs, DVDs भी। किताबों के कवर और संक्षिप्त विवरण। प्रकाशक का नाम, पृष्ठ संख्या और मूल्य। साथ में अपना क्रमांक-आदेश करने के लिए। ‘द न्यूयॉर्क रिव्यू ऑफ बुक्स’ का 22 नवंबर, 2007 का अंक। जॉन अपडाइक का वान गॉग पर लेख। Tolstoy’s Real Hero शीर्षक दिया है उनकी पुस्तक ‘War and Peace’ की समीक्षा को। रूस संबंधी किताबों की बहुलता है अंक में। ‘The Times Literary Suppliment’ का 2 नवंबर, 2007 का अंक। Social Studies, literature & Art History, Politics, History, Music, Journals, Religion, Biography आदि विधाओं की समीक्षाएँ तथा पुस्तकों के स्वतंत्र विज्ञापन भी। ‘Grants’ के अंतर्गत प्रकाशित एक विज्ञापन :
(सील)
The Royal Literary Fund
Financial Assistance for Writers
Grants and Pensions are available to published authors of several works who are in financial difficulties due to personal or professionel setbacks.
Applications are considered in confidence by the General Committee every month.
For further derails and application form please write to Eileen Gunn, General Secretary, The Royal Library Fund 3 John Sons’s Court, London EC4A 3eA, Telephone 02073537159 or email : egunnrif@globalnet.co.uk. Website : www.rl.forg.uk. Registered Charity No. 219952.
अभी दो और समाचार पत्र हैं–London Review of Books का 29 नवंबर, 2007 का अंक और The New York Time का Books Review, 25 नवंबर, 2007। पुस्तक समीक्षाओं और वर्गीकृत विज्ञापनों की भरमार है–London Review of Books में। 44 पृष्ठ टेब्यूलर। दूसरे अंक–TBR में 36 पेज और साफ-सुथरी पुस्तक समीक्षाएँ। संपादक के नाम पत्रों की खूब मारा-मारी।
कुछ अंक तो पिछले चार घंटे में मैंने पलट ही लिए। सामने की मेज पर एक चाइनीज प्रतीत होती युवती है जो तब से लगातार एक किताब में खोई है–हर दस-पाँच मिनट के अंतराल पर हँसती है खुद ही। कोई रोचक हास्य का पाठ होगा। भला हो लेखक का। वह भी कहाँ-कहाँ लोगों को हँसाता-रुलाता रहता है।
मगर मुझे किसी भी भारतीय लेखक का नाम या किताब का नाम इस तमाम सामग्री में क्यों नहीं दिखा? तीसरी दुनिया के कद्दावर लेखकों को क्या यह पश्चिमी दुनिया जान-बूझकर छोड़ती है? हाँ, इतिहास वगैरह के आलेखों में नवाबों आदि के चित्रादि भले ही एकाध जगह मिले हैं।
दिल्ली में न्यूनतम तापमान एक डिग्री तक पहुँचा है शायद और मैं आधी बाजू वाली शर्ट में यहाँ वातानुकूलित तापमान में बैठा हूँ। विकसित देश की इस पुस्तकशाला में। जय हो।
9 जनवरी, 2008 : सुबह 10 बजकर 20 मिनट : 68 सोफिया रोड, वारटन वैले, #02-02, सिंगापुर-228187
बाहर हल्की-हल्की बूँदाबाँदी है। कल दिन में दो-तीन बार बारिश हुई। रात को दुकानदारी कर वापस लौटे तो खूब झमाझम। मगर कैब (टैक्सी) की मेहरबानी कि भीगने से बचे। यों भी यहाँ लोग हो रही बारिश की बहुत चिंता नहीं करते दीखते। साफ-सुथरे बरामदे हैं और छतें इतनी उपलब्ध हैं कि छातों की जरूरत ही नहीं पड़ती। (हे भाई साहब, यह छत और छाता-भाषा का ही कोई चमत्कार है क्या!)।
कल भी नेशनल लाइब्रेरी गया। दो-तीन घंटे लगाए। यहाँ की स्थानीय जानकारी वाली कुछ किताबें तथा कुछ लेखकों की किताबें पलटीं। वहाँ से निकलकर रास्ता भटक गया। बूगीस मेट्रो स्टेशन काफी हार-थककर तलाशा। मेट्रो के लिए एक स्मार्ट कार्ड बेटे ने दिलवा दिया था। उसमें दस-दस सिंगापुर डॉलर करके दो बार उसकी ‘वेल्यू’ बढ़वाई गई थी। बसों में भी वह कार्ड चलता है। मैंने सोचा कि उस मशीन को आजमाया जाए जिसमें कैश डालर डालकर वेल्यू बढ़ाई जाती है। कार्ड लगाया और संकेतित बटनों को टच करता रहा। पाँच डालर वाला नोट डाला तो पता नहीं कैसी सूचनाएँ नमूदार हुईं। तत्क्षण मशीन ने वह नोट बाहर उगल दिया। मुझे लगा कि शायद ठीक से चला न पाया हूँगा मशीन को। बहरहाल, वहाँ से नक्शे के सहारे भूतल से एमआरटी (ट्रेन) पकड़ी। रैफल्स प्लेस की। वहाँ मशीनें खाली थीं। इस बार दस डॉलर का नोट मशीन के हवाले किया और काम आगे बढ़ाता गया। चमत्कार कि कार्ड की कीमत बढ़कर आ गई। रसीद भी छपकर मशीन से बाहर आई। किला फतह।
यहाँ की साफ-सुथरी, व्यवस्थित और अनुशासित सड़कों और शॉपिंग मॉल्स को देखना हो तो कई जन्मों तक घूमते रहो। मगर यदि इनसे मन भर जाए तो फिर यहाँ ‘देखने’ को जो बचता है वह काफी कम है। क्षेत्रफल की सीमाएँ यहाँ एकदम सामने हैं। हाँ, अनुपात से कुछ ज्यादा लगता है तो वह है यहाँ के फूड कोर्ट, रेस्तराँ और कॉफी शॉप। कॉफी क्लब, टीसीसी सेसनॉर और स्टार बक्स के आउटलेट्स पर आप घंटों बैठिए। पूरे सिंगापुर में ये शृंखलाएँ फैली पड़ी हैं। एक स्टार बक्स आउटलेट पर तो बाकायदा लाइब्रेरी है। अखबार और किताबें। इंटरनेट की सुविधा। आप जितनी देर चाहें, बैठें और इन सबका इस्तेमाल करें। ऐसे में दिल्ली के रेस्तराँ याद आएँ नहीं तो कैसे कि जहाँ ऑर्डर का माल चट करते ही सेवक आपसे प्रत्यक्ष में तो पूछेगा कि और क्या लेंगे, मगर अप्रत्यक्षतः कह रहा होगा कि भाई जान, अब बिल चुकता कीजिए और फूटिए। कुदरत का ऐसा वरदान इन सिंगापुरवासियों (जो कि चीनी रंगरूप वाले हैं) को प्राप्त है कि एकदम साफ-शफ्फाक दिखाई पड़ते हैं। स्त्री-पुरुषों में स्वस्थ तो सभी दिखते हैं मगर कोई थुलथुल शरीर वाला है–वैसा शायद ढूँढ़े से भी नहीं मिलेगा। जिसे देखो वह चल रहा है, कुछ खा रहा है या फिर मोबाइल पर व्यस्त है।
यातायात में मुझे तो मेट्रो रेल का हिसाब-किताब अच्छा लगा है। अधिकांश प्लेटफॉर्मों पर दीवारें हैं। ट्रेन आती है तो पहले उसका दरवाजा खुलता है फिर प्लेटफॉर्म का। दरवाजे के बायें-दायें कोने चढ़ने वाली सवारियों के लिए हैं और बीच का स्थान उतरने वाले यात्रियों के लिए सुरक्षित है। कहीं कोई बदहवासी नहीं। सब कुछ जैसे स्वचालित ढंग से हो जाता है।
10 जनवरी, 2008 : दोपहर 13.00 बजे : सिंगापुर
सुबह थोड़ा वक्त पैकिंग में लगाया। कल रवानगी है। इस वक्त हवाई अड्डा (चांगी एयरपोर्ट) पुकार रहा होगा। कोई समय निश्चित कर लिया जाए तो वह आ ही जाता है। देर-सबेर। जिंदगी के लिए सोचे गए शेष कार्यों के लिए भी क्या समय निर्धारण आवश्यक होगा? कर लिया जाए तो कैसा रहे?
कल एक शॉपिंग मॉल में प्रेमपूर्वक घूमा। यों एक-दो बार पहले भी वहाँ हो आया हूँ। मगर इत्मीनान से कल ही देख पाया। मेकअप, ज्वैलरी और खाने-पीने के सामान में इतनी वेरायटी है कि सिर चकरा जाए। इसी तरह इलेक्ट्रॉनिक्स में भी। न मुझे म्यूजिक सिस्टम समझ में आता है, न टेलीविजन के आधुनिकतम मॉडल। दैनिक उपयोग में काम आने वाले आइटम्ज का भी पता नहीं पड़ता। एक मध्यवर्ग के व्यक्ति को यहाँ छोड़ दो तो बेचारा ‘अज्ञानी’ होने का प्रमाण पत्र स्वयं ही गले में लटकाने को उद्यत मिले।
शाम को बेटे प्रवर के साथ एक रेस्तराँ में गए। बहुमंजिला इमारत का भूतल। रोशनी की व्यवस्था ऐसी नयनप्रिय कि न तो कम जान पड़े और न ज्यादा ही। नींबू पानी मँगाया। उस हॉल में मानो दीवारें तो थी ही नहीं। सभी कुछ पेंटिंग या मूर्तिकार्य का लग रहा था। छत की ऊँचाई, उत्तर भारत के किसी कामचलाऊ सिनेमा हॉल से दस-बारह फुट और ऊँची। बैठने की खुली-खुली जगह और फूलदानों की सोहबत। एक तरफ बार (शराब का कोना) और दूसरी ओर स्टेज जैसा बनाकर पियानो तथा अन्य संगीतवाद्य। बॉलकनी जितनी ऊँचाई पर गायन-संगीत का आयोजन। एक युवती ने गाना शुरू किया और संगीतज्ञ अपने यंत्रों से साथ देने लगे। गीत समाप्त होता तो लोग तालियाँ बजाते। गीत के बोल पल्ले नहीं पड़े मगर हाव-भाव और स्वर का लोच तो पकड़ में आते ही थे।
बार वाले हिस्से से कुछ चेन के चलने जैसी आवाज आई। बेटे ने बताया कि बार के ऊपर छत तक जो शराब की बोतलों का शोकेस दिखाई पड़ रहा है–वह दरअसल फ्रिज है। रस्सी के सहारे एक बारबाला ऊपर जाती है और ऑर्डर किए हुए ड्रिंक की बोतल लेकर नीचे उतरती है। सचमुच वह लड़की चेन के सहारे ऊपर की ओर सरकने लगी–और उसके इस ऊपर, नीचे जाने और आने का सिलसिला लगभग आधा घंटा चला। नंगी टाँगों वाली उस लड़की की ओर सरकने लगी–और उसके इस ऊपर, नीचे जाने और आने का सिलसिला लगभग आधा घंटा चला। नंगी टाँगों वाली उस लड़की ने एक चमकीला-सा फ्रॉक जैसा कोई वस्त्र पहना हुआ था। पीठ पर परियों के पंखाकर उसकी बनावट थी। गोरी टाँगों का चाल-चलन नीचे से दिखता था। ट्रॉली का रस्सा चलता तो आवाज खनखनाती। पहले उस युवती ने एक-दो करके बोतलें ऊपर रखीं–फ्रिज में। शायद स्टॉक पूरा किया और फिर कुछ बोतलें लेकर नीचे आई। हमारी बगल वाली जगह में विदेशी युगल बैठे थे। उनमें से एक पुरुष की साथिन ने अपने साथी की आँखों के सामने सोफे पर रखी गद्दी अड़ा दी। संभवतः इसलिए कि वह पुरुष युवती की निरावृत टाँगों को न निहार सके। और वह सब खिलखिलाकर हँस पड़े।
सोचता रहा कि इमारत के भूतल का यह उपयोग कितना सोचा-समझा कदम रहा है (इमारत के ऊपरी हिस्से में कार्यालय है) मगर पैसा बनाने के लिए नाटकीय तत्वों की अनिवार्यता आज भी क्यों बनी हुई है?
Image : The Book Worm
mage Source : WikiArt
Artist : Carl Spitzweg
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