चाँद की गवाही में कुकून से निकली औरत
- 1 August, 2024
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चाँद की गवाही में कुकून से निकली औरत
डॉक्टर उर्मिला शिरीष ने अपने उपन्यास ‘चाँद गवाह’ के शीर्षक को पता नहीं किन अर्थों के लिए चुना, लेकिन मैं इसे दो अर्थों में ले रही हूँ। एक तो चाँद या उसकी नशीली चाँदनी गवाह होती है श्री पुरुष के आत्मीय संबंधों की। दूसरा चाँद सृष्टि की रचना के आरंभ से गवाह है कि किस तरह कुछ अटल नियम इस तालिबानी व्यवस्था के कारण स्त्री को जकड़े हुए हैं। चाँद गवाह है कि स्त्रियाँ इनसे लड़कर किस तरह अपना रास्ता बनाती हैं। ये कुंठा है हर उस शिक्षित स्त्री की जो जब सिर्फ घर सँभालती रह जाती है, जीवन में तीन विपरीत ध्रुवों पर घूमते हुए, घायल, कुंठित होती रहती है; सोचते हुए मैं जीवन में कुछ नहीं कर पाई सिर्फ आज्ञाकारी बहू, बेवकूफ़ पत्नी, ज़िद्दी बेटी बनकर रह गई। बच्चों को पालने में उसने अपना सब कुछ उलीच दिया और ख़िताब पाया ‘गैर ज़िम्मेदार माँ’।
इस उपन्यास की गृहिणी नायिका दिशा के नई औरत के रूप में जन्म लेने व समाज व परिवार से बुरी तरह टकरा जाने की कहानी है। दिशा की खुलेआम दृढ़ता एक अपवाद है लेकिन कहीं-कहीं ये सब हो ही रहा है। डॉ. आदर्श मदान ने इस नई औरत के जन्म को बहुत सटीक रूप में व्यक्त किया है : ‘मुझे चाहिए अस्मिता, सार्थकता, सहजता, संपूर्णता, अपने होने का अहसास, हे अर्जुन! अब सुभद्रा को नहीं स्वीकार्य रिरियाती, बिलबिलाती, रेंगती हुई जिंदगी।’
सबसे पहले डॉ. उर्मिला शिरीष को हार्दिक बधाई कि उन्होंने बेहद कठिन विषय पर कलम चलाई है कि जब पति पियक्कड़ हो, बीवी को लताड़ता रहता हो तो वह किसी मित्र को सहारे की तरह चुन सकती है। कितना आसान होता है किसी पुरुष के लिए ऐसे संबंध को स्वीकारना, ‘पत्नी को मकान दे दिया है, बच्चों की शादी कर दी। मैंने अपनी निजता को किसी के सामने बंधक नहीं बनने दिया।’ लेकिन स्त्री के लिए कितना कठिन होता है माँ, भाई बहिनों व समाज की गालियों को झेलना, अपनी ही बेटियों के ताने व हिकारत। कितनी स्त्री दिशा या भक्त मीरा की तरह अपने सच को स्वीकार पाती हैं? पुस्तक से ली गईं इन पंक्तियों जैसे–
‘मैं निकल पड़ी
इन दरख्तों के पार
मेरी मंज़िल के बीच कोई नहीं
सिर्फ और सिर्फ तुम हो।’
दिशा की ये भटकन ऐसे ही नहीं हुई थी। इस विदुषी स्त्री का पति मूर्ख, गँवार पियक्कड़ था। उधर संदीप स्पष्टवादी व तार्किक। उसे बीज, कृषि व ज़मीन व खेती की जानकारी थी। उधर वह धर्म, आध्यात्म, विज्ञान और राजनीति व वैश्विक विषयों पर भी नज़र रखता था। दिशा आज की उन कवयित्रियों का प्रतिनिधित्व करती है जो कविताएँ लिख-लिखकर फेसबुक पर पोस्ट कर वाहवाही लूटती हैं। वे पत्रिकाओं के संपादकों को नहीं भेजतीं कि कहीं चापलूसी न करनी पड़े। वे ये भूल जाती हैं कि लाइक करने वालों को कितनी कविता की समझ है? लाइक करने के ढेरों शब्दों–‘वाऊ’–‘तुस्सी ग्रेट’–‘क्या कविता है’–‘आपने तो वर्ड्सवर्थ जैसी बात कह दी’–जैसे चालू नूतन मुहावरों के जाल में फँसकर रह जाती हैं। उनकी प्रतिभा किसी मुकाम तक नहीं पहुँच पाती।
ये आजकल की पीढ़ी के कुछ युवाओं के कटु यथार्थ हैं, जिनसे खालिस देशी माँ-बाप की देशी मानसिकता को टकराना पड़ रहा है। समाज ने स्त्री-पुरुष के एक साथ रहने की विवाह व्यवस्था को सर्वोत्तम माना था, जो हर समय का सच भी है। जब इसी घर के पहिये में से एक दिशा के पति राजीव की तरह लड़खड़ाया होता है, तो घर का ढर्रा बिगड़ ही जाता है, इसीलिए बेढब हैं दिशा की दूसरी बेटी निधी भी। जो समाज उसके पति की नशीली लत व जानवरों जैसे व्यवहार को कोसता था अचानक वह दिशा को अपने फार्महाउस में संदीप को रख लेने से ‘सो कॉल्ड पति’ दया का पात्र बन जाता है और दिशा स्वार्थी, कठोर व बेहया स्त्री। विरोध करने वाले दिशा के रईस भाई भी संदीप से मिलकर उसके पाँच भाषाओं के ज्ञान, उसकी बुद्धि से प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। लेकिन उनके सामने भी वही नपा-तुला ख़ाका है राजीव व संदीप में से एक को चुनो। मतलब राजीव को तलाक देकर संदीप से चाहो तो शादी कर लो।
ये उपन्यास भी बहस है विवाह के बाद जीवन में आई दूसरी स्त्री को ‘रखैल’ पद देने वाले सामाजिक दृष्टिकोण के प्रति। मुझे याद है दक्षिण के एम.जी. रामचंद्रन की मौत पर लोग कहने लगे कि जयललिता उनकी ‘रखैल’ थी तो मैं उनसे भिड़ गई थी कि जयललिता के पास इतना पैसा था कि वह अपना भरण-पोषण कर सकती है फिर वह क्यों रखैल हुई? विवाह व्यवस्था भी सार्थक है, इसके बीच में हुए विवाहेतर संबंध भी सच हैं–अब ये स्त्री पर निर्भर करता है कि वह कितनी दृढ़ता से इसे स्वीकारती है। ये उपन्यास एक द्वंद्व है–पत्नी, प्रेयसी या रखैल की स्थिति के लिए भी।
दिशा जैसा दुस्साहस अब्बल तो औरत कर ही नहीं पाती, दूसरे आज की लंपट दुनिया में धीर-गंभीर भरोसा करने लायक पुरुष ही कितने हैं? संदीप किस श्रेणी में आता है? इन परिस्थितियों में जकड़ी दिशा, उसकी बेटियों, संदीप के सामाजिक उत्तरदायित्व और दिशा उसके भविष्य, प्रेम की अतल गहराई व ऐसे संबंध से बौखलाए हुए समाज की मानसिकता को जानना हो तो इस उपन्यास को पढ़ना ही पड़ेगा।
Image: moon light 1895
In valley and distant jan brueghel the elder
Image Source: WikiArt
Artist : Edvard Munch
Image in Public Domain