हिंदी की कथा भूमि का विस्तार
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- 1 August, 2015
हिंदी की कथा भूमि का विस्तार
अतीत-मोह और धार्मिकता हिंदी के प्रवासी लेखन, विशेष रूप से कथा साहित्य की दो ऐसी कमजोरियाँ हैं, जिनको लेकर ना केवल वैचारिक सवाल उठते हैं बल्कि साधारण पाठकों के मन में भी इनके प्रति अरुचि पैदा होती है। एक तो नॉस्टेलजिया के अधीन होकर प्रवासी कथाकार अपनी कहानियों में जिस भारत को याद कर रहे होते हैं उसका आज के भारत से कोई मेल नहीं होता, दूसरे उनके धार्मिक आग्रहों का रिश्ता नये मुल्क में भले ही अस्मिता के संघर्ष से हो, भारतीय पाठकों के बीच तो ये आग्रह सांप्रदायिक प्रभाव ही छोड़ते हैं। सुषम बेदी जैसे दो एक कथाकारों को छोड़ दें तो प्रवासी हिंदी कहानियाँ असल में हिंदू कहानियाँ ही हैं। ऐसे में तेजेंद्र शर्मा की कहानियों से गुजरना मेरे लिये एक सुखद आश्चर्य की तरह था। क्योंकि ये कहानियाँ न केवल इन दोनों ही धारणाओं का खंडन करती हैं, बल्कि इनमें से अधिकांश कहानियाँ नये यथार्थ के उद्घाटन के माध्यम से हिंदी की कथाभूमि का विस्तार करने में सफल होती दिखाई देती हैं। मैं उनके दो संग्रहों–‘बेघर आँखें’ और ‘दीवार में रास्ता’ की कुछ कहानियों के आधार पर अपनी बात की पुष्टि करने का प्रयत्न करूँगा।
तेजेंद्र शर्मा ने सजग रूप से यूरोप, खास कर लंदन, में रहने वाले भारतीय उपमहाद्वीप के प्रवासियों के जीवन और अस्मिता के संघर्ष को अपनी कहानियों के माध्यम से व्यक्त करने की कोशिश की है और नॉस्टेलजिया से अपने को भरसक बचाया है। शुरुआती दौर की ही उनकी एक चर्चित कहानी ‘कब्र का मुनाफा’ को लें तो यह एक साथ बदलते यथार्थ की कई नई परतें खोलने में सफल होती है। इस कहानी के दो नायक हैं एक भारतीय और दूसरा पाकिस्तानी मूल का। धार्मिक आग्रह दोनों में हैं जो शुरुआत में कट्टरता जैसी दिखती है, फिर भी इनके अंदर राष्ट्रीय भावनाएँ भी किसी हद तक बची हैं। भारतीय के अंदर कुछ उदारता है और अपने देश के प्रति सद्भाव भी जबकि पाकिस्तानी की राष्ट्रीयता का आधार ही भारत-घृणा है। दोनों धार्मिक आग्रहों के चलते ही लंदन में अत्यंत महँगे इलाके के कब्रिस्तान में अग्रिम भुगतान कर अपने दफन के लिए कब्रों की जगह आरक्षित करवाते हैं। लेकिन, कुछ दिनों बाद जब पता चला कि कब्रों की कीमत बढ़ गई है तो उन्हें एक नये मुनाफे वाले व्यापार का रास्ता मिल जाता है। इस तरह कथाकार बाजार के नये मुनाफा धर्म के आकर्षण को उद्घाटित करने में सफल होता है जिसके सामने पुराना धार्मिक आग्रह या कट्टरता नतमस्तक है। गौर करें तो आज की दुनिया में जो धार्मिक कट्टरता दिखाई दे रही है, वह किसी न किसी स्तर पर मुनाफे से जुड़ी है।
एक अन्य कहानी ‘मुझे मार डाल बेटा’ इच्छा-मृत्यु के प्रश्न को लेकर लिखी गई एक अत्यंत मानवीय कहानी है जो अपने अंत में इस मसले का सतही समाधान देने की बजाए प्रश्न को और गहरा बना देती है। यह कहानी की बड़ी सफलता है। ‘बेघर आँखें’ की अन्य कहानियों में भी यथार्थ का कोई न कोई नया पहलू सामने आता है और ‘कोख का किराया’ की मैनी या ‘पापा की सजा’ की बेटी जैसे कुछ अविस्मरणीय पात्र हैं जो पाठक की संवेदना का विस्तार करने में सफल होते हैं। ‘दीवार में रास्ता’ उनका नया संग्रह है। यहाँ तक आते आते उनका शिल्प सध गया है और कथाभाषा ने अपनी अलग पहचान बना ली है। कहानी को लेकर उनका अपना एक नजरिया है जो अब दिखने लगा है और यथार्थ के चयन के प्रति सजगता भी बढ़ी है। ‘दीवार में रास्ता’ उन्हें हिंदी के श्रेष्ठ कथाकारों में शुमार किये जाने का औचित्य प्रदान करती है।
मॉरीशस या सूरीनाम से अपनी जड़ों की तलाश में आने वाले भारतवंशियों की बात और है। उनको लेकर लिखा भी गया है। लेकिन लंदन के किसी प्रवासी भारतीय परिवार के देश में रह रहे (या छूट गए) परिजनों की दयनीय स्थिति को लेकर शायद ही कोई और ऐसी कहानी लिखी गई हो। आजादी के बाद के भारतीय लोकतंत्र में पैदा हुए अवसरवाद और उसमें पिसते हुए विभाजन के दंश को अब तक झेल रहे अल्पसंख्यक समुदाय के एक परिवार की मार्मिक गाथा है यह कहानी। सबसे उल्लेखनीय है कहानी का अंत जहाँ से पाठक के मन में एक नयी कहानी की शुरुआत होती है। यह कुशलता तेजेंद्र शर्मा ने अर्जित की है जिसे हम इस संग्रह की उन कहानियों में लक्षित कर सकते हैं जिनका अंत न तो पूर्वनिर्धारित जैसा है, न ही कोई बना बनाया समाधान प्रस्तुत करता है।
संग्रह की कुछ कहानियों में वे यूरोप, खास कर लंदन में रहने वाले भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों के जीवन की विसंगतियों, विडंबनाओं और संघर्षों को उकेरने में सफल होते हैं। और सबसे अच्छी बात यह है कि वे कहीं भी फॉर्मूलाबद्ध लेखन के शिकार नहीं होते, बल्कि तमाम तरह के फॉर्म्यूलेशनों को तोड़ कर प्रवास के जटिल जीवन को उप-स्थापित करने में सफल होते हैं। उदाहरण के तौर पर संग्रह की उल्लेखनीय कहानी ‘बेतरतीब जिंदगी…’ को देखा जा सकता है।
लेकिन इस संग्रह की कुछ कहानियाँ इस ‘फ्रेम से बाहर’ भी हैं। ऐसी कहानियाँ जिनमें शहरी भारतीय समाज के आंतरिक बदलावों को दर्शाया गया है। वैसे भी हमारे समाज में लड़कियाँ प्रायः फ्रेम से बाहर ही रही हैं, लेकिन इस कहानी की विशेषता यह है कि लड़की (नेहा) इसे नियति के रूप में स्वीकार नहीं करती, बल्कि उसका मौन लेकिन दृढ़ प्रतिकार करती है। स्त्री का प्रतिकार और स्वावलंबन तेजेंद्र शर्मा की कहानियों की बड़ी ताकत है। पुरुषसत्ता की धूर्तता और क्रूरता के कई रूप भी इसी क्रम में उजागर होते हैं। जैसा कि पहले भी संकेत दिया गया, यहाँ तक आते आते उनके कथा शिल्प में निखार आया है और भाषा पर पकड़ मजबूत हुई है। ‘कल फिर आना’ जैसी एक दो विवादास्पद कहानियों को छोड़ दें तो इस संग्रह की अधिकांश कहानियाँ विदेशों में प्रवासी और देश में अनिवासी कहलाने वाले भारतीयों की बड़ी जमात (समाज) के जीवन की उस जद्दोजहद को सामने लाती हैं जो अब तक हिंदी कहानी की जद से बाहर थीं।
Image : The Novel Reader
Image Source : WikiArt
Artist : Vincent van Gogh
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