जीवनमूल्य और विश्वसंस्कृति की कहानियाँ

जीवनमूल्य और विश्वसंस्कृति की कहानियाँ

ब्रिटेन के भारतवंशी हिंदी कथाकार तेजेंद्र शर्मा अपनी कहानियों में जीवन के हर पहलू को परत दर परत किस्सागोई के माध्यम से चित्रित ही नहीं करते बल्कि मानो पाठक से बतियाते हैं। वह बतियाते हुए पाठकों के जेहन में कब कुछ सवाल छोड़ जाते हैं, इसका आभास शायद पाठक को भी नहीं होता होगा। उनकी यही विशिष्ट किस्सागोई शैली उन्हें अन्य कथाकारों से विलग करती है। कथा-कौशल के पारखी तेजेंद्र शर्मा की कहानियाँ अपने समाज से सीधा संवाद करती हैं। इनकी लेखन शैली कहानियों में चित्रित परिस्थितियों से रूबरू करवाते हुए अपने पाठक को सोचने पर मजबूर करती है। इनकी कहानियाँ अपने समय से परे जाकर समाज का अक्स उजागर करती है। ‘कब्र का मुनाफा’ कहानी में मृत्यु पर आधारित पाश्चात्य संस्कृति के रीति-रिवाजों को पैसे कमाने का धंधा बनाते हुए दिखाना इसके शीर्षक की सार्थकता को सिद्ध करता है। बाजारवादी संस्कृति के वर्चस्व में दबती-घुटती मानवीय संवेदनाओं की मृत्यु दिखाने के इस व्यापक उद्देश्य को साफ तौर पर कहानी में देखा जा सकता है। इस कहानी को कोई भारतवंशी लेखनी ही अंजाम दे सकती थी, क्योंकि वह जानती है कि भारत में इन रीति-रिवाजों को लेकर कितनी आत्मीयता और किंवदंतियाँ जुड़ी हुई हैं। कहानी की शुरुआत ही नया धंधा करने की चाह से होती है और अंत नया धंधा मिलने की चमक से। यह कहानी ऐसे दो युवकों की है जो जीना भी उच्चस्तरीय चाहते हैं तो मरना और दफन होना भी। उन्हें इस बात से बहुत फर्क पड़ता है कि उनकी बाजू वाली कब्र में कौन मरा पड़ा है, कोई मोची या कोई सेठ?

‘देखो मैं नहीं चाहता कि मरने के बाद हम किसी खानसामा, मोची, या प्लंबर के साथ पड़े रहें।…मैं चाहता हूँ कि तुम्हारी जिंदगी में तो तुमको बेस्ट चीजें मुहैया करवाऊँ ही, मरने के बाद भी बेहतरीन जिंदगी दूँ। भई, अपने जैसे लोगों के बीच दफन होने का सुख ही और है।’ उन्हें चिंता सताती है कि दुर्घटनाग्रस्त मरने पर उनकी देह का बिगड़ा स्वरूप कोई ना देख पाए। उनका लिपा-पुता चेहरा ही सभी को उनके मरने के बाद भी याद रहे। यही चिंता उनसे अपने सहित पत्नी और लड़के की कब्र एडवांस में बुक करने की खुराफात सुझाती है। इस मानसिकता के लोगों का शायद बस चले तो यह पैदा होने की प्रक्रिया की भी नये-नये ढंगों से सजावट कर दुनिया के सामने नुमाइश करने से कभी न हिचकिचाएँ। इनकी रगों में खून भी बाजारवादी संस्कृति की धमक से ही नियमित रूप से संचालित होता है। साथ ही इनकी संस्कृति में आत्मीयता और गोपनीय जैसे शब्द ही नहीं है, अगर अस्तित्व रखते हैं तो केवल दिखावा और खुलापन जैसे लफ्ज। लेखक ने बड़ी कुशलता से इसी विद्रूपता का चित्रण इस कहानी में किया है। ‘कैंसर’ कहानी में लेखक ने ब्रेस्ट कैंसर से जूझती स्त्री के मनोविज्ञान को चित्रित किया है। एक पुरुष होते हुए भी कहानीकार ने बड़ी कुशलता से स्त्री मनोविज्ञान को गहराई तक जाना और उसे लेखनीबद्ध किया है। पूनम के अधूरेपन का अहसास उसे सालता रहता है जिसे लेखक ने नरेन के प्रेम से पाटने की भरपूर कोशिश की है। लेखक ने समाज के आगे यह उदाहरण प्रस्तुत किया है कि स्त्री किसी भी रूप या विकलांगता में हो कभी अधूरी नहीं हो सकती। ‘पूनम को समझा देना था कि एक छाती के साथ भी पूनम मेरे लिए उतनी ही आकर्षक, प्यारी और जरूरी होगी, जितनी कि आज! मुझे एकाएक बहुत बड़ा हो जाना था।’

क्या सिर्फ देह की सुंदरता और पूर्णता ही मायने रखती है स्त्री-जीवन की खुशहाली के लिए? यही प्रश्न लेखक ने इस कहानी में उठाया है। जो मेरी दृष्टि में तद्युगीन एसिड हमलों की शिकार बनती स्त्री के लिए बहुत जरूरी है। साथ ही, लेखक ने समाज की मानसिकता पर भी प्रहार किया है जिसके तहत लोग अपने-अपने अनुभवों के राग आलापते हैं, बिना इस बात की परवाह किए कि उनके इन बेसुरे, कानफाड़ू रागों से सामने वाले पर क्या गुजरेगी? मेहरा दंपत्ति से दिन-रात मिलने आने वाले लोग अपने धर्मों, मतों, टोटकों को मानने की जिद करने से बाज नहीं आते। डॉ. पिंटो की छाती पर बार-बार बनने वाला क्रॉस और ईसाई धर्म अपनाने की नसीहत मि. मेहरा को झकझोर जाती है। इनसान को उसके जीवन की कमजोर घड़ी में देखकर अपने-अपने धर्म की नुमाइश करने वाले धार्मिक ठेकेदारों पर व्यंग्यात्मक प्रहार कहानी की सार्थकता सिद्ध करती है। लेखक ने शारीरिक कैंसर के जरिये सामाजिक कैंसर को चित्रित किया है। ‘एक बार फिर होली’ कहानी में नजमा के जरिये अस्तित्व की लड़ाई लड़ती स्त्री की पीड़ा को चित्रित किया गया है। इमरान नजमा के लिए तथाकथित पति शब्द से कहीं बिलकुल हटकर एक बददिमाग, जिद्दी, संवेदनहीन, कट्टर पाकिस्तानी मुसलमान फौजी था। इमरान की जिंदगी का एक ही मकसद था हिंदुस्तान से बदला और उससे कश्मीर आजाद कराना। नजमा के द्वारा उन हिंदुस्तानी मुसलमानों को चित्रित किया गया है जो पाकिस्तान की धरती से दूर रहकर भी मुसलमान कहलाते हैं। उनके लिए देश की सीमाएँ उनका धर्म तय नहीं करती बल्कि उनकी इबादत और सोच उनका वजूद बनती है। ऐसे मुसलमानों में द्वेष नहीं अपितु परस्पर सौहार्द की भावना विद्यमान होती है। उनका मजहब किसी वीजा की कार्रवाई में कैद नहीं बल्कि वह निराकार होता है। पाकिस्तान का वीजा बनवाने की इमरान की जिद नजमा को तोड़ देती है। वह आद्यंत यही सोचती रहती है कि देश की सीमा से ही क्या धर्म बनते हैं? उसकी हिंदुओं के धार्मिक पर्व होली और चंदर में लगातार दिलचस्पी परस्पर भाईचारे की ओर संकेत करती है जिसमें अंत में कहानी को सफलता भी मिली है। लेखक ने अपनी कहानियों में जीवन के निजी अनुभवों को बड़ी कुशलता से पिरोया है।

लेखक ने अपनी कहानियों में देशी-विदेशी दोनों पृष्ठभूमियों को समान रूप से चित्रित किया है। उन्होंने ‘कब्र का मुनाफा’ कहानी में जहाँ विदेश में होते मृत्यु के व्यापार को चित्रित किया है, तो वहीं ‘हथेलियों में कंपन’ कहानी में हरिद्वार की पावन समझी जाने वाली भूमि में अंतिम संस्कार का बाजारीकरण भी दिखाया है। इस कहानी में लेखक ने बड़ी सजगता और तथ्यात्मकता से बाह्याडंबरों की इस विद्रूपता को चित्रित किया है। ऐसा लगता है कि जैसे कहानीकार ने स्वयं हरिद्वार जाकर इस विषय पर शोध किया हो। किसी अपने को खोने के बाद कैसे उसकी छोटी-सी चीज भी अपनेपन का अहसास दे जाती है यह पिता के हस्ताक्षर से समझा जा सकता है। लेखक का उद्देश्य है कि वह उन धर्मभीरु लोगों को आगाह करें जो धर्म के नाम इन ढकोसलों में सदियों से पड़े हुए हैं। इन्होंने कहानी के अंतर्गत इस धर्मांधता पर कई सवाल भी उठाए हैं। धार्मिक ठेकेदारों को मृतक की गति से कोई मतलब नहीं होता, होता है तो केवल इतना कि उनकी जेब ज्यादा से ज्यादा कैसे भरे। ‘देखिए, अगर आपका बजट पाँच सौ रुपये का है तो बस आप खाट, बिस्तर और कपड़ों को हाथ लगा दीजिए। ये मृतक के नाम से दान हो जाएँगे। जैसे-जैसे आप नग बढ़ाते जाएँगे, वैसे-वैसे दाम बढ़ते जाएँगे। पाँच हजार में गौदान का लाभ भी मिल जाएगा।’ लोग इन रीति-रिवाजों को निभाते रहें, इसीलिए आत्मा की अवधारणा विकसित की गई, ताकि इसके द्वारा सताए जाने के डर से वह अच्छे से अच्छा करेंगे।

कथाकार तेजेंद्र शर्मा ने अपनी कहानियों से समकालीन विमर्शों की चर्चा की है, लेकिन उनके केवल नारे नहीं लगाए हैं। बीच-बीच में लेखकीय टिप्पणी और पात्रों की स्थिति द्वारा ही वह अपनी बात कह जाते हैं। यह उनकी सरसता और किस्सागोई शैली की ही सार्थकता है। लेखक एक ऐसे समाज की नींव रखने की कोशिश करते हैं जो अब कहीं कटता जा रहा है। साथ ही जिस वर्चस्ववादी आदर्श की बोझिलता को उतारकर हम खुले आकाश में साँस लेना चाहते हैं, उस समाज की झलक इन कहानियों में स्पष्टतः देखी जा सकती है। तेजेंद्र शर्मा की कहानियाँ जीवनमूल्यों और वैश्विक संस्कृति की आपसी टकराहट की गूँज पर आधारित हैं। इसी टकराहट को समझने के लिए भारतीय पृष्ठभूमि पर रचे गए साहित्य के मानदंड नहीं, बल्कि साहित्य के वैश्विक धरातल को आँकने वाले मानदंडों की आवश्यकता होगी।


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Artist :Camille Corot
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