कम्ब रामायण और वाल्मीकि रामायण
- 1 June, 2024
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कम्ब रामायण और वाल्मीकि रामायण
‘माता रामो मत्पिता रामचन्द्र:। स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्र:।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु:। नान्यं जाने नैव जाने न जाने॥’
भगवान श्रीराम सनातन धर्म के प्रत्येक सदस्य के लिए सर्वस्व हैं और उसके रग-रग में बसे हैं। यद्यपि युग-युगांतरों को पहले अर्थात त्रेतायुग में श्रीराम का जन्म हुआ, तथापि वे आज भी हर हिंदू के मन के नायक बने हुए हैं। वे रामायण के नायक नहीं, बल्कि इस धरती पर जन्म लिए एक आदर्श पुरुष हैं जो अपने उत्कृष्ट चरित्र से पुरुषोत्तम कहलाते हैं। उनका चरित्र मानव जीवन के लिए एक आदर्श है और अनुकरणार्थ एक उत्तम उदाहरण है।
ऐसे पवित्र चरित्रवान को अपनी कहानी का नायक बनाना हर कथाकार के लिए स्वाभाविक है और इसी कारण प्रथम शताब्दी में वाल्मीकि रामायण और बारहवीं शताब्दी में कम्ब रामायण महाकाव्य रचा गया। संस्कृत और तमिल के इन महाकाव्यों को इन महाकवियों ने इसलिए रचा ताकि वे श्रीराम के पावन चरित्र को उजागर कर भविष्य के समाज के लिए एक उत्कृष्ट उदाहरण स्थापित कर सकें।
वाल्मीकि रामायण के राम ने मानुष जन्म लिया और सामान्य व्यक्ति की तरह अपना जीवन व्यतीत किया। उनकी यह गाथा जन-जन में इतनी प्रचलित हुई और लोग इतने प्रभावित हुए कि वे श्रीराम को अपना इष्टदेवता मानने लगे। कई शताब्दियों के पश्चात् कम्ब रामायण महाकाव्य रचा गया जो दक्षिण भारत में अत्यंत प्रसिद्ध हुआ। कवि कम्बन के जन्म की कई शताब्दियों पहले ही राम भक्त्त बने आल्वार संतों का उद्भव हुआ जिन्होंने श्रीराम को भगवान का दर्जा दिया और अनेक राम मंदिर स्थापित किए और उनकी स्तुति अपने दिव्य प्रबंधम नामक रचना से की। अतः कम्बन के सम्मुख श्रीराम को दैवी गुणों से भरपूर भगवान के रूप में चित्रण करने का कर्तव्य था और उन्होंने श्रीराम को अपने ‘रामावतारम’ महाकाव्य में एक मानव के रूप में जन्में भगवान का चित्रण किया है जो उदात् गुणों से भरपूर हैं।
भगवान राम ने मानव का अवतार लिया ताकि वे यह सिद्ध कर सकें कि एक मानव अपने आदर्श चरित्र एवं उत्तम गुणों से ईश्वर की श्रेणी में स्थान पा सकता है। कम्बन के राम कहीं भी अपने दैवी रूप को प्रकट नहीं करते। स्वयं ब्रह्मा, इंद्र, गंधर्व, शरभंग मुनि, शबरी और गरुड़ जब उन्हें ईश्वर कह संबोधित करते हैं और उनका गुणगान करते हैं पर राम की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती और वे मूकदर्शक और साक्षिभूत बने रह जाते हैं। भगवान मानव का अवतार लेकर इन दृश्यों में एक आदर्श पुरुष के रूप में पेश आते हैं। कवि कम्ब इस तरह एक कवि सम्राट सिद्ध होते हैं। कवि कम्ब के समय में हर व्यक्ति श्रीराम के चरित्र से अवगत था, अत: कम्बन ने इसका पूरा लाभ उठाया और उन्होंने पूरी निष्ठा से राम नाम के महत्त्व को स्थापित किया।
यद्यपि मुख्य रूप से हनुमान जी के माध्यम से भगवान राम का गुणगान किया जाता है, तथापि कम्बन ने अपने महाकाव्य में एक ऐसा दृश्य का चित्रण किया है जो वाल्मीकि रामायण में उपलब्ध नहीं है। इसमें संपादि ही हैं जो वानरों को श्रीराम के नाम की महत्ता से अवगत कराते हैं।
संपादि और जटायु सूर्य के सारथी अरुण के पुत्र हैं। रथ के समीप जाने से संपादि के पंख जल जाते हैं। सूर्य इस पर खूब पछताते हैं और संपादि को रामनाम जप करने का उपदेश देते हैं और यह भी कि वह वानर सेना की सहायता करें जिस पर उसे अपने पंख पुनः प्राप्त होंगे। जब वानर सेना हनुमान के नेतृत्व में सीता की खोज में दक्षिण की ओर प्रस्थान करते हुए उस ओर आते हैं तो संपादि उन्हें रामनाम जपने का उपदेश देता है। इस पर तुरंत उसके पंख उग आते हैं और वह उड़ने लगता है यह बताते हुए कि सीता माता श्रीलंका में कैद है। वह कहता है, ‘एल्लीरुम अव्विराम नाममे सोल्लीर। सोल्ल एनक्कु ओर सोर्वु इला नल्लीरप्पयन नन्नुम। नल्ल सोल वल्लीर! वाय्मै वलर्कुम माण्बिनीर!’ (किष्किंधा कांडम-48)
राम नाम के उच्चारण से लाभ प्राप्ति का पहला चित्रण यहीं हुआ है। तत्पश्चात् हनुमान भी इसी माध्यम का अनुकरण कर राम नाम जपते हैं और खूब लाभान्वित होते हैं। संपादि का यह चित्रण और यह दृश्य किष्किंधा कांड में जो उपलब्ध है वह आदि काव्य बने वाल्मीकि रामायण में नहीं पाया जाता है। राम नाम की शक्त्ति को स्थापित कर कवि कम्ब ने अपने तमिल महाकाव्य में एक नया अध्याय खोला है। बाली के वध के पश्चात् भी राम नाम की महिमा का उल्लेख है जहाँ इसे मूल मंत्र माना गया है (सेम्मै सेर नेरम)। वाल्मीकि ने राम के रूप में पुरुष पुरातन का नहीं अपितु महामानव का चित्र उपस्थित किया था, जबकि कम्बन ने अपने युगादर्श के अनुरूप राम को परमात्मा के अवतार के साथ आदर्श महामानव के रूप में भी प्रतिष्ठित किया है।
कवि कम्बन तत्कालीन वैष्णव भक्ति की मान्यताओं और जनता की भक्ति भावनाओं से खूब प्रभावित हुए और उन्होंने राम के चरित्र को परिपूर्णत्व समन्वित ऐसे आयामों में प्रस्तुत किया जो सहज ग्राह्य और मनोरम थे। वाल्मीकि रामायण में राम के सोलह उत्तम गुण बताए गए हैं, यथाः गुणवान, अनिंदक, धर्मज्ञ, कृतन्न, ईमानदार, सत्यप्रेमी, दृढ़ प्रतिज्ञावाले, सदाचारी, रक्षक, बुद्धिमान, सामर्थ्यशाली, रूपवान, संयमी, जितक्रोध, कांतिमान और पराक्रमी।
आदिकवि वाल्मीकि स्वयं रामनाम की महिमा का वर्णन असंभव बताते हुए कहते हैं–‘राम त्वन्नाम महिमा वर्ण्यते केन वा कथम्?’ कवि कम्बन के रामायण में बारह हजार पद हैं। उन्होंने उत्तर कांड के विषय में कोई उल्लेख नहीं किया और उनका रामायण राम के राज्याभिषेक के साथ समाप्त हो जाता है। यद्यपि कम्बन ने वाल्मीकि रामायण का अनुसरण किया, तथापि यह कहना अनुचित होगा कि यह संस्कृत का अनुवाद मात्र है। राम के चरित्र के साथ-साथ अन्य चरित्रों के चित्रण में कम्बन ने तमिल संस्कृति, परंपरा तथा रीति-रिवाज का ग्रहण किया। इसी कारण चरित्र चित्रण में कम्बन वाल्मीकि से विलग हो गए हैं।
कम्बन राम तथा सीता के प्रथम प्रेम के उत्पन्न होने का वर्णन करते हैं जो उनके प्रथम साक्षात्कार के समय हुआ था, जब राम विश्वामित्र और लक्ष्मण के साथ सड़क पर जा रहे थे। इसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण में नहीं पाया जाता।
वाल्मीकि के राम को दशरथ पुत्र और एक क्षत्रिय के रूप में चित्रित किया है, जिन्हें बाली को छिप कर पीठ पीछे मारने पर भी उन्हें अपने धर्म निभाने के कारण कोई स्पष्टीकरण नहीं देना पड़ता, जबकि कम्बन के राम भगवान विष्णु के अवतार के रूप में चित्रित होने के कारण अनेक पदों में अपने कृत्य के औचित्य को स्पष्ट करते हुए चित्रित हैं।
वाल्मीकि और कम्ब रामायण में प्रमुख भिन्नता यह है कि कम्बन ने तमिल संस्कृति को अपने वर्णन का आधार बनाया। कम्ब रामायाण युद्ध कांड के साथ समाप्त हो जाता है जहाँ राम रावण को युद्ध में हराकर अयोध्या लौट आते हैं। वाल्मीकि रामायण के समान इसमें उत्तरकांड उपलब्ध नहीं है और न लव और कुश की कहानी। वाल्मीकि रामायण और कम्ब रामायण दोनों ही धार्मिक महत्त्व की कृतियाँ हैं। वाल्मीकि रामायण के सात अध्याय हैं जो कांड कहलाते हैं। यथा: बालकांड, अयोध्या कांड, अरण्यकांड, युद्धकांड और उत्तरकांड। पर कम्ब रामायण में छह अध्याय ही हैं–बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधाकांड, सुंदरकांड और युद्धकांड।
वाल्मीकि रामायण में बाली की पत्नी विधवा बनने पर अपने देवर सुग्रीव से विवाह कर लेती है पर कम्ब रामायण में वह विधवा ही रह जाती है।
रावण का चित्रण एक कुशल शासक के रूप में ही कम्ब रामायण में हुआ है जिसका अधःपतन उसकी कामुकता की प्रवृत्ति के कारण होता है। सीता अपहरण के समय कम्ब रामायण में सीता को रावण धरती सहित उठा ले जाने का चित्रण हुआ है, जबकि वाल्मीकि रामायण में रावण का सीता को बलपूर्वक खींच ले जाने का चित्रण हुआ है।
कम्ब रामायण में हनुमान सीता को ढूँढ़ लेने की बात इस प्रकार करते हैं–‘कंडनेन कर्पिनुक्कु अणियैक्कण्गलाल।’ अर्थात मैंने पतिव्रता रूपी आभूषण को देखा। किंतु वाल्मीकि रामायण में हनुमान का सीता को देखने की बात केवल ‘दृष्टः सीतां’–इन दो शब्दों में व्यक्त करते हुए चित्रण है।
कम्ब रामायण में राम रावण युद्ध के दौरान रावण के निहत्थे होने पर राम उससे बड़े उदारचित्त होकर कहते हैं, ‘हे रावण! तुम थक गए हो, आज जाओ और कल लौट आओ।’ (इंड्रु पोय नालै वा) जिसे सुन रावण अत्यंत दु:खी हो जाता है जैसे कोई ऋणी व्यथित होता हो। जिस तरह वाल्मीकि का नाम वल्मीक यानी बांबी से पड़ा कम्ब का नाम खंभे से पड़ा जिससे भगवान नृसिंह का अवतार हुआ। कम्ब को उनके महाकाव्य के कारण कवि चक्रवर्ती या सम्राट की उपाधि मिली।
वाल्मीकि रामायण में राम के वनवास गमन के दौरान एक दृश्य है जहाँ सीता उनके सहित जाना चाहती है पर राम मानते नहीं। इस पर सीता उन्हें क्रोध में टोकती है कि वे एक महिला पुरुष वेश में हैं, झूठे और कायर हैं। पर कम्ब की सीता बस यह कह टोकती है कि राम अकेले ही वन का आनंद उठाना चाहते हैं और इसीलिए अकेले वनवास के प्रत्याशी हैं। वाल्मीकि रामायण में शूर्पनखा राम के पास अपने असुर स्वरूप में ही विवाह का प्रस्ताव रखती है पर कम्ब रामायण में शूर्पनखा एक सुंदर स्त्री के रूप में वेश बदलकर राम के समीप आने का चित्रण है। पर दोनों काव्यों में राम का उत्तर एक ही है कि वे विवाहित और एक पत्नीव्रत वाले पुरुष हैं और इसलिए यह विवाह असंभव है। कवि कम्बन ने अयोध्या के न्याययुक्त शासन और श्रीलंका के शक्त्ति युक्त शासन की तुलना की है। अयोध्या के राजा राम एक आदर्श शासक हैं जो अपने मंत्रियों की मंत्रणा मानता है और सर्वहित या राज्यहित उसका लक्ष्य है। पर रामराज्य का उल्लेख और वर्णन जो वाल्मीकि रामायण में प्राप्त होता है, वह अद्भुत है। वाल्मीकि ने जिस रामराज्य का वर्णन किया है, वह वैदिक राज्य है। आज भी भारत के लिए यही रामराज्य एक आदर्श शासन व्यवस्था है। रामराज्य में सुशासन, स्वदेशी और लोक कल्याण के सिद्धांतों को वाल्मीकि ने स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया है।
अखंड भारत के समय में रामायण कथा सार्वभौमिकता प्राप्त कर चुकी थी, जिसके कारण तीन सौ से लेकर एक हजार की संख्या में विविध रूप में रामायाण उपलब्ध हैं। तथापि आर्ष रामायण या वाल्मीकि रामायण ही सबसे प्राचीन मानी जाती है। यही नहीं, जैन और बौद्ध धर्मों में भी रामकथा उपलब्ध है। राम कथा हिंदी, मराठी, बांग्ला, तमिल, तेलुगू और ओड़िया जैसे अनेक भारतीय भाषाओं में भी लिखी गई है। विदेशों में भी तिब्बत, तुर्किस्तान, इंडोनेशिया, जावा, बर्मा, थाईलैंड आदि देशों की रामकथाएँ रामचरित्र का बखूबी बखान करती है। विश्व साहित्य में इतने विशाल एवं विस्तृत रूप से विभिन्न देशों में विभिन्न कवियों द्वारा राम के अलावा किसी और चरित्र का इतनी श्रद्धा से वर्णन नहीं किया गया है।
भारत की पुण्य भूमि में भगवान श्रीराम का जन्म हुआ और हम सबका सौभाग्य है कि हमने भी उसी पुण्य भूमि में जन्म लिया। अतः हमारी भी वही मान्यता है और हम भी श्रीराम के वही शब्द दोहराते हैं जिसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण में उपलब्ध है–‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।’