असम के प्रकृति-बंधु ‘मागध’
- 1 June, 2020
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असम के प्रकृति-बंधु ‘मागध’
बिहार प्रदेश के नालन्दा जिलांतर्गत पैमार नदी के पूर्वी किनारे पर बसे ग्राम-छकौड़ी बिगहा नामक गाँव के किसान परिवार में दिनांक 1 मई 1933 ई. को कृष्णनारायण प्रसाद ‘मागध’ का जन्म हुआ। मागध जी के पिता स्मृतिशेष लक्ष्मीनारायण प्रसाद हिंदी, उर्दू एवं ज्योतिष के यशस्वी जानकार थे। ‘मागध’ जी की माता श्रीमती शीला देवी और पिता श्री लक्ष्मीनारायण की ये एकमात्र संतान थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा ग्रामीण पाठशाला में हुई। ‘मागध’ जी स्वतंत्र परीक्षार्थी के रूप में सन् 1962 ई. में काशी विश्वविद्यालय, वाराणसी से प्रथम श्रेणी में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त कर परीक्षा उत्तीर्ण की। साथ ही उन्होंने विश्वविद्यालय पुरस्कार प्राप्त किया।
‘मागध’ जी बहुभाषी विद्वान थे। हिंदी, अँग्रेजी, संस्कृत, असमिया, बंगला और गुजराती जैसी भाषाओं पर इनका समान अधिकार था। गोपालगंज कॉलेज (बिहार) छोड़ने के बाद उन्होंने भारतवर्ष के उत्तर-पूर्वांचल को ही अपना कार्यक्षेत्र बनाया। ‘मागध’ जी सन् 1970 ई. में गुवाहाटी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्राध्यापक से लेकर मणिपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रथम आचार्य एवं अध्यक्ष तथा कला संकाय के डीन के रूप में थे। अपने सफल कार्य निर्वाह करने के उपरांत पाँच वर्षों तक अतिरिक्त रूप से अध्यापक रहे। उन्होंने दिसंबर 1999 ई. से दिसंबर 2001 ई. तक अरुणाचल विश्वविद्यालय (अब केंद्रीय राजीव गाँधी विश्वविद्यालय) के हिंदी विभाग को अतिथि अध्यापक के रूप में गौरवान्वित किया।
हिंदी साहित्य के अतिरिक्त उन्होंने मध्यकालीन वैष्णव साहित्य एवं भारतीय वाङ्मय के अध्ययन तथा लेखन में अपने को समर्पित किया। महापुरुष शंकरदेव-माधवदेव, असम प्रांतीय राम-साहित्य से लेकर भारतीय विविध देव-देवियों पर शोधपरक गंभीर ग्रंथों के प्रणयन द्वारा ‘मागध’ जी यशस्वी एवं पुरस्कृत हुए।
‘मागध’ जी को जन्म दिया नालन्दा (मागध) की पुरातन पवित्र मिट्टी ने, ज्ञान के शिखर की आधुनिक नगरी वाराणसी ने उन्हें विश्वविद्यालय सर्वोच्च शिक्षा दी। पहला कार्यक्षेत्र बना मगध ही, पर कालांतर में उसका विस्तार असम और मणिपुर तक हुआ। उन्होंने जीवन जीया हिंदी भाषी का ही, पर जीवन का श्रेष्ठ अंश पूरा यौवन दिया उन्होंने पूर्वोत्तर भारत को। वहाँ रहते हुए जो भी लिखा उससे असमी भाषा साहित्य संस्कृति के उन्नायक भी बने। ‘मागध’ जी मध्यकालीन असमी साहित्य के प्रथम विशेषज्ञ के रूप में सुविख्यात हैं।
प्रो. कृष्णनारायण प्रसाद ‘मागध’ जी से मेरी प्रथम मुलाकात 18 अप्रैल, 2006 ई. को उनके गाँव छकौड़ी बिगहा में हुई। उन दिनों मैं ‘बुजुर्गों की दुनिया’ पुस्तक का संपादन कार्य के सिलसिले में आलेख हेतु उनके गाँव गया था। आलेख का नाम–‘वृद्ध विषयक किंचित विचार है।’ पुनश्च मेरे द्वारा संपादित पुस्तक–‘महिला सशक्तिकरण : कल, आज और कल’ में मागध जी ने मुझे दो आलेख दिए। पहला आलेख–‘नारी का सबलीकरण और शिक्षा’ तथा दूसरा आलेख–‘महिला के पर्यायवाची’ शब्द शामिल है। शनैः शनैः संबंध प्रगाढ़ होता गया और वे मेरे गुरुतुल्य आत्मीय अभिभावक बन गए। उल्लेखनीय है कि बिहार पेंशनर समाज शाखा-परबलपुर (नालन्दा) की ओर से हनुमत् जयंती-सह-दीपावली मिलन समारोह के पावन अवसर पर 2009 ई. को ‘मागध’ जी को अंगवस्त्रम् देकर सम्मानित किया गया था। इसके पूर्व मेरे प्रयास से दिनांक 5 सितंबर, 2008 ई. को बिहार पेंशनर समाज, जिला शाखा-बिहार शरीफ (नालन्दा) की ओर से जिला पदाधिकारी, नालन्दा (श्री आनन्द किशोर, भा.प्र.से.) के द्वारा सम्मानित किया गया। ‘मागध’ जी अनेक मौके पर मेरे निवास परबलपुर (नालन्दा) में रात्रि विश्राम करते थे। उनके साथ मेरे पिता जी का भी मधुर संबंध हो गया था। जब कभी भी ‘मागध’ जी को भारतीय स्टेट बैंक, शाखा-परबलपुर (नालन्दा) में कार्य रहता तो वे मुझे स्मरण करते थे। बढ़ती उम्र के कारण उन्हें घुटने में दर्द सदैव रहा करता था, फलस्वरूप मेंरे कंधे पर हाथ रखकर ही पैदल चल पाते थे।
प्रो. ‘मागध’ जी की प्रमुख कृतियों में युग और धारा, अलंकार-विमर्श काव्य के विभिन्न अंग, हिंदी बावनी काव्य, सूरदास और शंकरदेव के कृष्ण भक्तिकाव्यों का तुलनात्मक अध्ययन (डी.लिट्, शोध प्रबंधन), हिंदी साहित्य और साहित्यकार, शंकरदेव : साहित्यकार और विचारक (पुरस्कृत, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, 1978), असम प्रांतीय हिंदी साहित्य माधवदेव : व्यक्तित्व और कृतित्व, असम प्रांतीय राम साहित्य, वाग्देवी सरस्वती (पुरस्कृत, शंकर पुरस्कार, के.के. बिड़ला फाउंडेशन, नई दिल्ली, 1997), श्री लक्ष्मी, प्रजापति ब्रह्मा, श्री विष्णु और उनके अवतार, काव्यशास्त्र विमर्श, शक्ति देवता : देवी आशुतोष देवता : शिव, असम में वैष्णव मत का उद्भव और ‘विकास, लोकदेवता श्री हनुमान एवं मुग्ध बोध व्याकरण। इसके अतिरिकत विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में विविध विषयों पर लगभग 50 आलेख प्रकाशित हैं। इसके अतिरिक्त संपादित एवं अनुदित 27 पुस्तकें हैं।
इसके अतिरिक्त मागध जी द्वारा महत्त्वपूर्ण संपादित पुस्तकों में पद्माभरण, छीहल बावनी, शील बावन, डूँगर बावनी, भाषा बावनी, निबंध निकुंज, हिंदी नव मंजरी, हिंदी नव मंजूषा, आठ एकांकी, मागधदेव के नाटक (पुरस्कृत, उत्तर प्रदेश शासन, 1975), जरासंध-वट नाट, बरगीत (शंकरदेव), शंकरदेव के नाटक, प्रताप बावनी, अष्टापदतीर्थ बावनी, सूरज दास द्वारा रचित ‘रामजन्म’, ब्रजावली पद्य साहित्य, कवि कंकण छीहल और उनकी कृतियाँ, जैन बावनी काव्य, संदेश रासक (असमिया), माधवदेव : ब्रजावली समग्र, शंकरदेव : ब्रजावली समग्र, मगही कहावतें उल्लेखनीय एवं पठनीय हैं।
सरस्वती के पुत्र होने के नाते मागध जी ने पुस्तक समीक्षा का कार्य भी किया, यथा–डॉ. यशदेन शल्य कृत ‘शल्य चिकित्सा के वरदान’, डॉ. दशरथ ओझा कृत ‘प्राचीन भाषा नाटक संग्रह’, डॉ. देवराज कृत ‘नई कविता’, डॉ. जगमल सिंह कृत ‘राजस्थानी’ एवं ‘गुजराती लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन’, रघुवर दयाल कृत ‘अतीत की झाँकी’, स्वामी रामदास कृत ‘योग और स्वास्थ्य’, डॉ. शशि भूषण प्रसाद सिंह कृत ‘बुजुर्गों की दुनिया’ एवं ‘महिला सशक्तिकरण : कल, आज और कल’ तथा ईश्वर प्रसाद मय कृत ‘शब्दशिल्पियों के सान्निध्य में’ उल्लेखनीय है।
वार्तालाप के क्रम में मैंने प्रो. मागध जी को आकाशवाणी पर गुस्सा होते पाया। उन्होंने कहा कि आकाशवाणी, गुवाहाटी में प्रस्तुत किए गए उनके एक आलेख से कुछ पंक्तियों को हटाकर प्रसारित किया गया था। उन्होंने संबद्ध अधिकारी से ऐसा करने का कारण पूछा, क्योंकि उस अधिकारी की उक्त विषय पर पारदर्शिता नहीं थी। वर्णित संदर्भ में मागध जी की मान्यता थी कि जिनका विषय पर गहरा अध्ययन नहीं रहता है, उसे अपने को विषय-पारदर्शी के रूप में प्रस्तुत नहीं करना चाहिए।
मागध जी के प्रमुख आलेखों में है–गौतम धारा जल प्रपात की यात्रा, चाणक्तय नीति में जीव विज्ञान, भारत में नारी का स्थान, स्वातंत्र्योत्तर मगही साहित्य, हिंदी साहित्य में होली-वर्णन, मुक्तक : सिद्धांत और शिल्पन, आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री की कविता में रंग तत्व, लंबी कविता : एक अध्यापकीय दृष्टि, पाती शूर्पनखा की तुलसी के नाम, शंकरदेव के मूल्यांकन की समस्या, ब्रजी की महत्त्वपूर्ण कड़ी, ‘डूँगर बाबनी’, इन्दिरा : व्यक्ति नहीं विचारे, छावालर वाणी हेन अनुमानि, मने हुइबा परितोष, तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर की निर्वाण भूमि पावा, वीर धर्म, उमापति और शंकरदेव कृत ‘परिजात’, ‘हरण’, संज्ञक नाटक, आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री की संगीतिकाएँ, मध्यकालीन भक्ति-आंदोलन, असमिया साहित्य में शिवजी, महापुरुष शंकरदेव, शंकरदेव की भक्ति, हिंदी साहित्य को असम की देन, असमिया साहित्य का विकास, अनन्त कन्दलि रामायण, सूरजदास कृत ‘रामजन्म’, निराला की कविता में बसंत ‘संध्याकाकली’ और निराला असमी वाङ्मय के श्रेष्ठ रत्न, मणिपुरी वाङ्मय के श्रेष्ठ रत्न, गारो वाङ्मय के श्रेष्ठ रत्न, रामचरितमानस का प्रथम असमिया अनुवाद, साबिन-आलुन, हिंदी और असमिया के ‘मृगावती’, संज्ञक काव्य, हिंदी और असमिया के ‘मधुमालती’ संज्ञक काव्य, हिंदी में मौलिक आलोचना सिद्धांत, गुप्त जी : राम और राष्ट्र के चारण, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण ‘गुप्त’ रामचरितमानस का क्वचिदन्यतोऽपि, मणिपुर : किंचित् प्राचीन संदर्भ, राधा और मणिपुरी वैष्णव भकित, मणिपुर में वैष्णव मत का विकास, हिंदी की प्रथम रामायण, भक्तकवि विष्णुदास, असमिया उपन्यास की प्रगति, माधवदेव के कृष्ण, हिंदी कविता में बिंब विधान, हिंदी तथा असमिया में भारतेन्दुकालीन नई चेतना के परिदृश्य, महापुरुष माधवदेव : जीवनवृत्त, महापुरुषिया भक्ति धर्म और माधवदेव, असम और पूर्वांचल में पुस्तक चित्रांकन कला, असमिया साहित्य पर रामायण का प्रभाव, असमिया भाषा और साहित्य, अरुणाद्रि से अरुणाचल, शक्तिपीठ कामाख्या, बिहु : असम का जातीय त्योहार, कवि ईश्वर प्रसाद मय, पूर्वांचल का भक्ति साहित्य, असम में वैष्णव मत, तुलनात्मक आलोचना और हिंदी, ब्रजावली साहित्य, गारो : भाषा और साहित्य, प्रो. मणिशंकर प्रसाद की बारह कविताएँ, हिंदी : दलित साहित्य।
प्रो. कृष्णनारायण प्रसाद ‘मागध’ सचमुच में असम के प्रकृत बंधु थे। एक ऐसे सच्चे असम हितैषी, ज्ञान-तपस्वी महान विद्वान के द्वारा असमिया भाषा में उनके द्वारा लिखित महत्त्वपूर्ण आलेखों की सूची देना प्रासंगिक दिखता है, जो निम्नवत् है–शंकरदेव मूल्यायनेर समस्या, शंकरदेवर गीत-संगीत, उमापति आरू शंकरदेवर ‘परिजात हरण’ तुलनात्मक अध्ययन, हाजारिकार दृष्टिभंगीत शिवाजी, शंकरदेवर काव्यरूप, शंकरदेव लालित्य उदीभावन, शंकरदेव काव्य सौष्ठव, शंकरदेवर साहित्य कर्म, क्रिया आरू कृपा, नवकांत बरूवार काव्य सिद्धांत, अंकियानाटर प्रेरणा स्रोत, समग्रक्रांति, नाट्यकार ताधवदेव, ब्रजावली : ‘अंकियानाट’ आरू बरगीतर भाषा, प्रेमचन्दर चिंताधारा, शंकरदेवर काव्यादर्श, महापुरुष माधवदेव ब्रह्म स्वरूप, असमिया साहित्य कृष्ण।
स्मृतिशेष ‘मागध’ जी ने अँग्रेजी भाषा में भी अनेक आलेख लिखे। उदाहरणस्वरूप–दि लिटेररी वर्क्स ऑफ शंकरदेव, महेश्वर नेओग : ए क्रिटिक एंड लिटेररी हिस्टोरियन, शंकरदेव : ए ट्रेंड सेंटर इन असमीज, ओरिजियन एंड डेवलपमेंट ऑफ नेशनलिज्म इन इंडिया, दि भागवत कल्चर : मीन्स ऑफ पीस एंड हारमोनी, ओरिजीन एंड डेवलपमेंट ऑफ वैष्णविज्म इन असम, दि भक्ति मूवमेंट एंड एकल्चरेशन ऑफ दि सवालटर्नस।
प्रो. ‘मागध’ जी ने उपलब्धियों में काशी हिंदू विश्वविद्यालय पुरस्कार (1962 ई.), उत्तर प्रदेश शासन पुरस्कार (1975 ई.), उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान पुरस्कार (1978 ई.), असम साहित्य सभा सम्मान (1974 ई.), धर्मालोचनी सभा सम्मान, शुवालकुची, असम (1977 ई.) मानस-संगम पुरस्कार, कानपुर, उत्तर प्रदेश (1985 ई.), सौहार्द सम्मान–उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान (1990 ई.), शंकर पुरस्कार–के.के. बिड़ला फाउंडेशन, नई दिल्ली (1997 ई.), नालन्दा जिला पेंशनर सम्मान (2008 ई.) एवं लेखक रचना पुरस्कार–बिहार राष्ट्रभाषा परिषद (2009 ई.) शामिल हैं।
महात्मा चाणक्य ने सही लिखा था–
‘विद्वान प्रशस्यते लोके विद्वान गच्छति गौरवं
विद्या लभते सर्व विद्या सर्वत्र पूज्यते।’
अर्थात इस संसार में विद्वान की प्रशंसा होती है। विद्वान को ही आदर-सम्मान और धन-धान्य की प्राप्ति होती है। प्रत्येक वस्तु की प्राप्ति विद्या द्वारा ही होती है, विद्या की सब जगह पूजा होती है।
उपर्युक्त समस्त विवेचन से स्पष्ट है कि ई. ‘मागध’ जी का व्यक्तित्व व्यावहारिक, रचनात्मक, स्वाभिमानी एवं सांसारिक था। वे सहनशील, उदार हृदय, स्थिर चित्त, कुशल वक्ता और योग्य प्रशासक के साथ ही आत्मविश्वास के धनी थे। मागध जी को अध्यापक, आलोचक, गवेषक, अनुवादक, संपादक, वक्ता, भारत-विद्या के विद्वान, प्रशासक आदि रूपों में पर्याप्त ख्याति मिली।
‘मागध’ जी की पहचान मुख्यतः आलोचक के रूप में है। वे विगत 32 वर्षों तक लगातार पूर्वांचल के हिंदीतर राज्यों के विश्वविद्यालयों में हिंदी प्राध्यापक के रूप में कार्यशील रहे। मैंने ‘मागध’ जी को अत्यंत नजदीक से देखा है। गहन अध्ययन, वैज्ञानिक विचार-विश्लेषण, सुंदर लिखावट उनके व्यक्तित्व के अंग रहे हैं।
दुर्भाग्य की बात है कि प्रो. ‘मागध’ जी सेवानिवृत्ति के उपरांत पेंशन की सुविधा से वंचित रहे। सरकारी नियमानुसार सरकारी सेवा में पूर्ण पेंशन के लिए 33 वर्षों की सेवा अनिवार्य मानी गई है, परंतु ‘मागध’ जी ने मात्र 9 साल 6 माह की सेवा ही प्रदान किया। वे सदैव स्थिरतापूर्वक नौकरी नहीं कर पाए। फलतः उन्हें पेंशन की सुविधा से वंचित रहना पड़ा।
सेवानिवृत्ति के पश्चात ‘मागध’ जी गाँव पर ही रहते थे। जीवन के अंतिम दिनों में वे पटना में अपनी पत्नी के साथ रहते थे। आवाज लड़खड़ा गई थी। साफ-साफ उच्चारण नहीं हो पाता था। एक दिन मेरा मोबाइल पर मिस कॉल आया। मैं तुरंत समझ गया और फौरन उनके आवास बहादुरपुर मोहल्ला (पटना) पहुँचकर दवा-वगैरह की व्यवस्था कर उनसे विदा लिया। प्रो. ‘मागध’ जी हमेशा बोला करते थे कि ‘आदमी को 70 वर्ष की आयु ईश्वर के द्वारा बोनस समझना चाहिए’ तथा ‘प्रसिद्धि पाने के लिए सिद्धि आवश्यक है।’
‘मागध’ जी की अंतिम इच्छा थी कि उनका दाह-संस्कार पैतृक ग्राम-छकौड़ी बिगहा (नालन्दा) में ही कर दिया जाय। सचमुच दुनिया का प्यारा ईश्वर को भी प्यारा होता है। दुर्भाग्यवश प्रो. मागध जी का देहावसान दिनांक 14 फरवरी 2017 दिन मंगलवार को पटना में ही हो गया, तत्पश्चात् उनके पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार हेतु छकौड़ी बिगहा गाँव ले जाया गया।