गाँधी के पद-चिह्नों की खोज में

गाँधी के पद-चिह्नों की खोज में

रिपोर्ताज

‘बालू पर खोजती हूँ
बापू, तुम्हारे कदमों के निशाँ
तुम्हारे नंगे पैर या चमरौधे चप्पलों
का कोई तो दे दे पता!
सूँघती हूँ फूलों में फिजाओं में
तुम्हारी खुशबू है हवाओं में
जोहान्सबर्ग से लेकर
फीनिक्स फार्म तक
ढूँढ़ती हैं मेरी निगाहें
बापू, तुम्हें दूर-दूर तक!!’

भारत के महावाणिज्य दूतावास, जोहान्सबर्ग ने 1 से 7 अक्टूबर तक आजादी का अमृत महोत्सव (एकेएएम) विशेष सप्ताह के तहत कई कार्यक्रमों और गतिविधियों का आयोजन किया। इस कार्यक्रम की सबसे महत्त्वपूर्ण गतिविधि थी–चार दिन की गाँधीयन ट्रेल! यानी इन चार दिनों में उन जगहों पर जाना जहाँ-जहाँ महात्मा गाँधी अपने दक्षिण अफ्रीका प्रवास के दिनों में जा चुके थे।

अफ्रीका में चौबीस साल रहते हुए गाँधी जी तो बहुत जगह गए होंगे। वे यहाँ से अगर मोजाम्बिक गए तो केप टाउन भी गए। इन सारी जगहों को चार दिन में कवर करना नामुमकिन था। इसलिए हमने उस समय जोहान्सबर्ग के टॉल्स्टॉय फार्म से फीनिक्स फार्म तक की यात्रा की तथा कुछ शहरों को मैंने बाद के लिए नामांकित किया।

जोहान्सबर्ग और प्रेटोरिया में गाँधी जी लॉ की प्रैक्टिस करते थे, इसलिए उनका इन दो शहरों में आना-जाना अक्सर लगा रहता था।

जोहान्सबर्ग में वे स्थायी रूप से लगभग तीन साल रहे। इन तीन सालों में उन्होंने चार ठिकाने बदले।

जोहान्सबर्ग का जुलु नाम है ईगोली, जिसका अर्थ है ‘सोने का शहर’, क्योंकि इसकी स्थापना 1886 में सोने की खोज के बाद हुई थी। यह शहर कभी दुनिया के वार्षिक सोने के 40 प्रतिशत से अधिक उत्पादन करता था। हालाँकि, जोहान्सबर्ग की अधिकांश सोने की खदानें 1970 के दशक में बंद हो गईं।

गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका 1893 में जब आए थे तो जोहान्सबर्ग शहर का निर्माण शुरू ही हो रहा था। मगर यहाँ मिले सोने की खानों की वजह से महज पाँच साल में ही यह शहर आश्चर्यजनक रूप से बस गया। एक प्रचलित कहावत थी कि–यहाँ सड़कें सोने से मढ़ी हुई हैं। वह कहावत कई मायने में सच थीं, क्योंकि जो सोने की खुदाई हो रही थी उसमें कुछ खानों के अयस्क इतने बेकार थे कि उनसे सोना निकलना मुश्किल था। तब उस सोने के अयस्क भरे बालू को सड़क निर्माण में इस्तेमाल कर लिया गया था।

सो, उस सोने से मढ़ी सड़कों पर और फुटपाथ पर सिर्फ गोरों का आधिपत्य था।

तब तक महात्मा गाँधी सिर्फ कुछ काम से जोहान्सबर्ग और प्रेटोरिया आते थे। बाद में उन्होंने दो साल के लिए जोहान्सबर्ग में बसना स्वीकार किया।

इसी समय उन्होंने अपने मित्र कलेनबख की मदद से टॉल्स्टॉय फार्म का निर्माण किया। यहाँ से वे जोहान्सबर्ग रोज बीस किमी पैदल चलकर शहर मीटिंग या जरूरी सामान लेने आया करते थे।

जल्दी ही जोहान्सबर्ग देश की औद्योगिक राजधानी बन बैठा, क्योंकि दक्षिण अफ्रीका के 74 प्रतिशत कारखाने और उद्योग घराने यहाँ स्थापित हो गए थे। उद्योग के साथ-साथ यह शहर राजनीति में सक्रिय लोगों का घर भी बना। दूसरी बात यह थी कि देश की राजधानी प्रेटोरिया एल्स जोहान्सबर्ग महज पचास किमी की दूरी पर था और आने-जाने के लिए बस, कार, बग्घी और ट्राम भी उपलब्ध थे। यही कारण था कि 1910 आते-आते महात्मा गाँधी ने जोहान्सबर्ग में भी फीनिक्स फार्म की तरह ही एक और फार्म स्थापित करने की सोची। वे दो वर्ष पूर्व ही अस्थायी रूप से जोहान्सबर्ग में रह रहे थे।

जब कॉन्सल जेनरल के रूप में मेरी पोस्टिंग दक्षिण अफ्रीका हो गई तो मेरी पहली इच्छा थी कि मैं टॉल्स्टॉय फार्म जाऊँ–जहाँ गाँधी जी ने ट्रैन्स्वॉल के अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी और सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह जैसे सिद्धांतों की प्रतिस्थापना पर अपने प्रयोग किए थे।

रामचंद्र गुहा की ‘गाँधी बिफोर इंडिया’ और गाँधी जी की लिखी हुई–‘माई इक्स्पेरिमेंट्स विथ ट्रूथ’ मैंने पढ़ रखी थी। फातिमा मीर के द्वारा लिखी हुई ‘अप्रेंटिसशिप ऑफ महात्मा’ जिस पर बाद में श्याम बेनेगल ने मेकिंग ऑफ महात्मा फिल्म बनाई–वह भी देख लिया था।

मैं अपनी तरफ से तैयार थी–उत्साहित थी कि दक्षिण अफ्रीका में टॉल्स्टॉय फार्म, सत्याग्रह हाउस देखकर मैं बापू के युग में पहुँच जाऊँगी।

स्कूल में पढ़ते समय टॉल्स्टॉय फार्म की एक फोटो लगी हुई थी–ब्लैक एंड व्हाइट। उस फोटो में आठ-दस कॉटिज और ढेर सारे फलों के पेड़ दिखते थे। किताब में यह भी जिक्र था कि टॉल्स्टॉय फार्म में फलों और सब्जियों की इतनी खेती होती थी कि अतिरिक्त फल और सब्जियाँ बगल के लौली और लेनेसिया निवासियों को दे दिए जाते थे। वस्तुतः टॉल्स्टॉय फार्म गाँधी जी के द्वारा अपने दक्षिण अफ्रीकी आंदोलन के दौरान पहला आश्रम था। 1910 में अपने निर्माण के समय आश्रम ने ट्रांसवाल में भारतीयों के खिलाफ भेदभाव के खिलाफ सत्याग्रह अभियान के मुख्यालय के रूप में कार्य किया, जहाँ यह स्थित था। आश्रम का नाम रूसी लेखक और दार्शनिक लियो टॉल्स्टॉय के नाम पर रखा गया था, जिनकी 1894 की पुस्तक ‘द किंगडम ऑफ गॉड इज विदिन यू’ ने गाँधी के अहिंसा के दर्शन को बहुत प्रभावित किया।

डॉ. हरमन कालेनबाख एक लिथुआनियाई मूल के यहूदी दक्षिण अफ्रीकी आर्किटेक्ट थे, जो महात्मा गाँधी के सबसे प्रमुख मित्रों और सहयोगियों में से एक थे। कालेनबाख का परिचय युवा मोहनदास गाँधी से तब हुआ, जब वे दोनों दक्षिण अफ्रीका में काम कर रहे थे और कई चर्चाओं के बाद, उन्होंने एक लंबे समय तक चलने वाली दोस्ती विकसित की। गाँधी समर्थक हरमन कालेनबाख ने गाँधी और सत्तर से अस्सी अन्य लोगों को वहाँ रहने की अनुमति दी, जब तक कि उनका स्थानीय आंदोलन प्रभावी था। कालेनबाख ने उस समुदाय के लिए नाम सुझाया, जिसने जल्द ही तीन नए भवनों का निर्माण किया जो रहने वाले क्वार्टर, कार्यशालाओं और एक स्कूल के रूप में काम करेंगे। सार्जेंट प्रागजी देसाई ने भी इस कार्यक्रम में मदद की। खेत पर कोई नौकर नहीं था और खाना पकाने से लेकर सभी साफ-सफाई का काम निवासियों द्वारा किया जाता था।

टॉल्स्टॉय फार्म ग्यारह सौ हेकटेयर में फैला हुआ था। कालेनबाख साहेब ने न सिर्फ फार्म गाँधी जी को दान कर दिया बल्कि गाँधी जी को फार्म को डिजाइन करने में भी सहायता की। आज भी पर्यटक सत्याग्रह हाउस में गाँधी जी और हॉर्मन कालेनबाख की तस्वीर देख सकते हैं–जिसमें कालेनबाख गाँधी जी के तोल्सटॉय फार्म वाले अर्धनिर्मित कॉटिज में कील ठोक रहे हैं।

टॉल्स्टॉय फार्म में शिफ्ट होने से पहले गाँधी जी कालेनबाख के द्वारा भेंट किए गए घर, जो आज का सत्याग्रह हाउस में रहा करते थे। यह घर, जोहान्सबर्ग में बागों के आवासीय पड़ोस में, 1908 से 1909 तक गाँधी जी का घर था। इन दीवारों के भीतर, भविष्य के महात्मा ने सत्याग्रह के अपने दर्शन को विकसित किया। सत्याग्रह विरोध का एक शांतिवादी तरीका है जिसे उन्होंने भारत में देश को स्वतंत्रता की ओर ले जाने के लिए नियोजित किया। टॉल्स्टॉय फार्म गाँधी जी द्वारा अपने दक्षिण अफ्रीकी आंदोलन के दौरान शुरू किया गया फार्म था। 1910 में स्थापित, टॉल्स्टॉय फार्म ने ट्रांसवाल प्रांत में भारतीयों के खिलाफ, भेदभाव के खिलाफ सत्याग्रह के अभियान के मुख्यालय के रूप में कार्य किया।

इस बार आजादी का अमृत महोत्सव टॉल्स्टॉय फार्म में मनाया गया। भारतीय राजदूत महोदय और कॉन्सल जेनरल ने कार्यक्रम की शुरुआत फार्म से लॉली ट्रेन स्टेशन और वापस गाँधीवादी शांति यात्रा के साथ किया। बाद में, ब्रह्मा कुमारी द्वारा ध्यान सत्र आयोजित किया गया। सुश्री मंदिरा सूर द्वारा गाए गए ब्रह्माकुमारियों और गाँधी जी के पसंदीदा भजनों का अनुसरण किया गया। कार्यक्रम के बाद उच्चायुक्त श्री का भाषण हुआ।

इस कार्यक्रम के बाद उच्चायुक्त, श्री जयदीप सरकार ने भाषण दिया, जहाँ उन्होंने संक्षेप में एक आत्मविश्वास से भरे भारत के उदय को रेखांकित किया। महावाणिज्य दूत, अंजु रंजन ने टॉल्स्टॉय फार्म के पुनरुद्धार की तत्काल आवश्यकता के बारे में बात की और भारतीय समुदाय और कॉर्पोरेट घरानों से समर्थन माँगा। उन्होंने इस तथ्य को रेखांकित किया कि गाँधी जी, जिन्होंने इतने सारे लोगों के लिए घर उपलब्ध कराने के लिए संघर्ष किया, के पास अपना घर नहीं है। श्री मोहन हीरा, (एमजीआरओ–महात्मा गाँधी स्मरण संगठन के अध्यक्ष), डॉ. लियाकत आजम (मंडेला की तरह अग्रणी सीईओ) और इमरान इस्माइल मूसा (लेनेसिया के स्थानीय पार्षद) के आगे के भाषणों में शांति, अहिंसा के महत्त्व पर चर्चा की गई। लोगों के बीच स‌द्भाव और एकता, वृक्षारोपण गतिविधि, भाईचारे के विकास आदि पर बातें की गईं। भारतीय स्वतंत्रता के 75 गौरवशाली वर्षों को मनाने के लिए 75 वृक्षों के नमूने खेत में लगाए गए। नमूने दान करने वाले जोहान्सबर्ग सिटी पार्क के प्रतिनिधियों ने भी फार्म के अंदर की परिधि के आसपास हेज विकास गतिविधि लेने का अपना संकल्प दिखाया। सत्याग्रह हाउस 1907 में गाँधी के करीबी दोस्त, जर्मन वास्तुकार हरमन कालेनबाख द्वारा बनाया गया था।

यह एक ट्रेडिशनल दक्षिण अफ्रीकी घर था जिसमें गाँधी जी के लिए अटिक पर सोने और पढ़ने की व्यवस्था की गई थी। यह अटिक देखकर हमें अपने नानी घर के अचँगा की याद आ गई। मेरी नानी इसे परकोठा कहती थी।

ऊँचे खपरैल घर का मिडल लेवल जहाँ–धान-चावल और दूसरे उर्दूल-खुरदुल सामान रखे जाते थे, जिन्हें बच्चों की निगाहों से बचाना होता था–वे स्वादिष्ट पर वर्जित पकवान भी अचँगा पर ही धरे जाते थे।

नानी किसी बच्चे को सीढ़ियों से ऊपर चढ़ने को प्रेरित करती और इच्छित वस्तु उतार ली जाती। अटिक पर नव विवाहित जोड़े को सोने की व्यवस्था रहती। वह कोना घर में ही रहता, परंतु घर के चिल-पौ से अछूता। शायद प्राचीन काल में हनीमून पर न जा पाने का कोमपंसेसन!

एक इतिहासकार, एक क्यूरेटर, एक वास्तुकार, इंटीरियर डिजाइनर और उनकी संबंधित टीम द्वारा नवीनीकरण ने दक्षिण अफ्रीका और मोहनदास गाँधी दोनों के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण समय को वापस लाते हुए, सत्याग्रह हाउस की मूल भावना को बहाल करने की सफल कोशिश की गई है। सत्याग्रह हाउस अब दक्षिण अफ्रीका की ऐतिहासिक विरासत का एक हिस्सा है और गेस्टहाउस को संग्रहालय से जोड़ने वाली एक अभिनव आवास अवधारणा प्रस्तुत करता है।

कुल मिलाकर, मूल सत्याग्रह हाउस के बीच सात कमरे फैले हुए थे, जिसे क्राल कहा जाता है, इसकी वास्तुकला के संदर्भ में एक पारंपरिक अफ्रीकी कुटीर जैसा दिखता है। 2010 में आधुनिक विंग भी जोड़ा गया है जिसमें गाँधी जी से संबंधित वस्तुओं को संग्रहित किया गया है।

गाँधीयन ट्रेल के पुनरीक्षण कार्यक्रम को 3 और 4 अक्टूबर 2021 को शांति, अहिंसा और स‌द्भाव को बढ़ावा देने के लिए महात्मा के नक्शेकदम पर चलते हुए, 75 प्रतिष्ठित व्यक्तियों, इतिहासकारों, शिक्षाविदों, मीडिया कर्मियों, महात्मा गाँधी स्मरण संगठन आदि के प्रतिनिधियों के प्रतिनिधिमंडल को राजदूत महोदय जयदीप सरकार एवं महावाणिज्य दूत अंजु रंजन द्वारा हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया। भारत के महावाणिज्य दूतावास ने प्रतिनिधियों, को दो बसों में चढ़ाया और काफिला रवाना हुआ।

पीटरमैरिट्सबर्ग दक्षिण अफ्रीका के क्वाजुलु–नताल प्रांत की राजधानी और दूसरा सबसे बड़ा शहर है। यह 1838 में स्थापित किया गया था। पीटरमैरिट्सबर्ग को लोकप्रिय रूप से अफ्रीकी, अँग्रेजी और जुलु में मारित्जबर्ग कहा जाता है। यह एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र है, जो एल्युमिनियम, लकड़ी और डेयरी उत्पादों का उत्पादन करता है। यहाँ स्थित स्थानीय, जिला और प्रांतीय सरकारों के कारण सार्वजनिक क्षेत्र शहर में एक प्रमुख नियोक्ता है।

पीटरमैरिट्सबर्ग काफिले का बेहद महत्त्वपूर्ण पड़ाव था। बॉम्बे हाइट्स में दोपहर का भोजन करने के बाद, सुरेंद्र सिंह, जो एक प्रमुख भारतीय प्रवासी सदस्य और पेशे से एक अटॉर्नी हैं उनके साथ हम सब पीटरमैरिट्सबर्ग (पीएमबी) ट्रेन स्टेशन चले गए। गाँधी स्मारक समिति के अध्यक्ष डेविड गंगम ने प्रतिनिधिमंडल को गाँधी जी में महात्मा के निर्माण में स्थान के महत्त्व के बारे में जानकारी दी। यह वह रेलवे स्टेशन था जहाँ 7 जून 1893 को गाँधी जी को उनके प्रथम श्रेणी के डिब्बे से बाहर निकाल दिया गया था और गोरे उपनिवेशवादियों द्वारा भेदभाव की क्रूरता का उनका पहला अनुभव था। हमने मंच, प्रतीक्षालय सह संग्रहालय का दौरा किया, जहाँ गाँधी जी ने अपनी पूरी रात उस भयानक सर्दियों की रात में बिताई, वह पट्टिका जो उस जगह को चिह्नित करती है जहाँ उन्हें बाहर फेंक दिया गया था।

गाँधी जी उस समय दक्षिण अफ्रीका में एक युवा भारतीय वकील के रूप में अभ्यास कर रहे थे। इस घटना ने उनके राजनीतिक जीवन के भविष्य पर एक उल्लेखनीय छाप छोड़ी। इस घटना ने गाँधी जी को सोचने पर मजबूर कर दिया कि रंगभेद के कानून कितनी विषमताओं और कुरीतियों से भरे हैं। रात भर गाँधी जी वेटिंग रूम में ठिठुरते और अपमान से थर-थर काँपते रहे थे।

उस दृश्य को और उस जगह को देखकर हम सबकी आँखें नम हो गईं। 

गाँधी जी ने बाद में दक्षिण अफ्रीका में अलगाव की नीतियों के विरोध में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, खासकर उन लोगों के खिलाफ जो संबंधित भारतीयों के खिलाफ थे। इस अलगाव ने न केवल उन जगहों को प्रभावित किया जहाँ भारतीय रह सकते हैं या काम कर सकते हैं, बल्कि उनके लिए पोल टैक्स का भुगतान करना अनिवार्य कर दिया है। गाँधी जी ने इन नीतियों के विरोध में सत्याग्रह और निष्क्रिय प्रतिरोध की रणनीतियों को लागू किया। इस निष्क्रिय प्रतिरोध आंदोलन ने पूरी दुनिया में नागरिक अधिकार आंदोलनों को प्रभावित किया और इसे सत्याग्रह या ‘बल जो सत्य और प्रेम या अहिंसा से पैदा हुआ है’ के रूप में जाना जाता था। गाँधी ने इस तरह के विरोध में कई भारतीयों को प्रशिक्षित किया और कई को उनकी गतिविधियों के लिए जेल में डाल दिया गया, जिसमें स्वयं गाँधी भी शामिल थे। 

प्रतिनिधिमंडल फिर गुरुद्वारा साहिब, डरबन चला गया, जहाँ अध्यक्ष सन्नी सिंह ने मेहमानों का स्वागत किया और दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी के जीवन में वोक्सस्ट्रस्ट, पीटरमैरिट्सबर्ग, फीनिक्स बस्ती आदि जैसे विभिन्न स्थानों के ऐतिहासिक महत्त्व के बारे में बात की। प्रतिनिधियों ने गुरुद्वारे में रात्रि भोज किया।

प्रतिनिधिमंडल ने होटल बालमोरल में अपना रात्रि प्रवास किया।

फीनिक्स फार्म से अगले दिन, डेलगेशन स्थानीय अश्वेत समुदाय द्वारा नृत्यों पर स्वागत करने के लिए फीनिक्स बस्ती में चला गया।

वस्तुतः, फीनिक्स सेटलमेंट में 100 एकड़ जमीन शामिल थी जब गाँधी जी ने 1904 में इसे खरीदा था। इसी सेटलमेंट पर गाँधी ने मुक्ति, अहिंसा और आध्यात्मिकता के जुनून के साथ एक सफल वकील से एक साधारण किसान बनने की अपनी यात्रा शुरू की थी। यहीं पर गाँधी जी ने सांप्रदायिक रहन-सहन, गैर अधिकार, परस्पर सद्भाव, सादगी, पर्यावरण संरक्षण, संरक्षण, शारीरिक श्रम, सामाजिक और आर्थिक न्याय, अहिंसक कार्रवाई, शिक्षा और सत्य के सिद्धांतों के साथ अपने प्रयोग शुरू किए। गाँधी जी ने अपना पहला अखबार डरबन में 1903 में शुरू किया और 1904 में उन्होंने पूरे प्रेस को फीनिक्स सेटलमेंट में स्थानांतरित कर दिया। फीनिक्स सेटलमेंट का प्रारंभिक इतिहास तीन महत्त्वपूर्ण कार्यों को दर्ज करता है। सांप्रदायिक जीवन और खाद्य उद्यानों पर आधारित आत्मनिर्भरता, समाचार पत्र प्रकाशित करने के लिए प्रेस में काम करना–इंडियन ओपिनियन सत्याग्रह अभियानों में भाग लेने वालों के परिवारों को आवास, भोजन और शिक्षा प्रदान करना।

गाँधी जी और उनके परिवार ने 1914 में दक्षिण अफ्रीका छोड़ दिया। हालाँकि 1948 में गाँधी के दो बेटे मणिलाल और रामदास गाँधी के प्रकाशन को जारी रखने के इरादे से दक्षिण अफ्रीका लौट आए। उन्होंने ‘इंडियन ओपिनियन’ के साथ-साथ राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होना और फीनिक्स सेटलमेंट को बनाए रखना जारी रखा। रामदास गाँधी थोड़े समय के बाद भारत लौट आए, जबकि मणिलाल गाँधी फीनिक्स में ही रहे और अप्रैल 1956 में उनकी मृत्यु तक फीनिक्स सेटलमेंट ट्रस्ट की सहायता से दक्षिण अफ्रीका में काम करना जारी रखा। इसके बाद उनकी पत्नी सुशीला गाँधी ने गाँधी जी के काम की जिम्मेदारी ली और सेवा करना जारी रखा। नवंबर 1988 में उनकी मृत्यु हो गई।

1985 में, तथाकथित ‘इनांडा दंगों’ के दौरान, फीनिक्स फार्म बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया और लगभग 8,000 लोग अनौपचारिक रूप से उस क्षेत्र में बस गए थे जिसे ‘भंबाई’ नाम से जाना जाता है। हालाँकि, गाँधी जी के घर सहित कई इमारतों को फीनिक्स में दुबारा निर्मित कर दिया गया है और यह अब इनंदा हेरिटेज ट्रेल का हिस्सा बन गया है। इला गाँधी जो गाँधी जी की पोती है, अब फीनिक्स फार्म चलाती है। यहाँ पर स्थानीय लोगों को कंप्यूटर और स्पोकेन अँग्रेजी सिखायी जाती है। इला गाँधी, एक लेखिका, इतिहासकार और पूर्व सांसद रह चुकी हैं। अपने भाषण में उन्होंने वर्तमान समय में पहले से कहीं अधिक गाँधीवादी सिद्धांतों और विचारधारा का पालन करने की आवश्यकता पर बल दिया। दक्षिण अफ्रीका में हाल ही में राजनीतिक और नागरिक अशांति के मद्देनजर अहिंसा, शांति, सद्भाव, आत्मनिर्भरता और सामुदायिक जीवन के सिद्धांतों को अधिक समृद्ध और खुशहाल समाज का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।

इसके बाद महावाणिज्य दूत, अंजु रंजन ने टिप्पणी की, जहाँ उन्होंने इला गाँधी, फीनिक्स समझौता ट्रस्ट, महावाणिज्य दूत, डरबन, एमजीआरओ, कॉर्पोरेट घरानों आदि को धन्यवाद दिया, जिन्होंने गाँधीवादी मार्ग को वास्तविक व सरल बनाने में मदद की। आईटी सेंटर, फीनिक्स सेटलमेंट को कंप्यूटर दान–दक्षिण अफ्रीका में विभिन्न कॉरपोरेट घरानों द्वारा दान किए गए 20 कंप्यूटर, आईटी सेंटर, फीनिक्स सेटलमेंट को सौंपे गए थे, ताकि सेटलमेंट में और उसके आसपास स्थानीय समुदाय के वंचित बच्चों को प्रदान की जाने वाली तकनीकी शिक्षा का समर्थन किया जा सके। कंप्यूटर और अन्य उपकरणों को पहले इस और पिछले वर्ष नागरिक अशांति में लूट लिया गया था।

वृक्षारोपण–पर्यावरण की रक्षा के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए बस्ती में तीन महावाणिज्यदूतों (जोहान्सबर्ग, डरबन और केप टाउन) द्वारा 3 पौधों के नमूने लगाए गए, जो गाँधी जी को बहुत प्रिय थे। हमने गाँधी जी द्वारा रोपे गए आम के पेड़ों से आम तोड़े। कुछ ने तो वहीं नमक के साथ खाया तथा कुछ आम जो इला गाँधी जी ने दिए थे–उनका अचार डाल दिया। कीदार–जो इला गाँधी का बेटा है और फीनिक्स फार्म की देखभाल में उनकी मदद करता है–मेरे अचार के फोटो को देखकर एक बेहद इमोशनल बात कही कि ‘इसे आपने अचार नहीं प्रसाद बना डाला!’

इसके बाद, डेलगेशन का अगला पड़ाव था लाडस्मिथ, जहाँ भगवान विष्णु मंदिर में गाँधी जी की मूर्ति स्थित है। दूसरे एंग्लो-बोअर युद्ध के दौरान अन्य भारतीय यहाँ स्ट्रेचर-बेयरर थे।

गाँधी जी ने इन विकट परिस्थितियों में अविश्वसनीय रूप से अच्छा काम किया और असाधारण रूप से लोगों में सेवा भाव के प्रति एकजुटता जगाई। वह अन्य स्ट्रेचर-धारकों को उनके कर्तव्यों में प्रशिक्षित करने के लिए भी जिम्मेदार थे। वे लेडीस्मिथ घेराबंदी से पहले आखिरी ट्रेन से चले गए थे। उनकी याद में हिंदू समुदाय ने 1993 में उनके नेटाल आगमन की वर्षगाँठ मनाई और उनके सम्मान में विष्णु मंदिर के बाहर उनकी एक प्रतिमा स्थापित की। वह प्रतिमा आज भी मौजूद है।

लेडीस्मिथ से, डेलगेशन का अगला पड़ाव डंडी की ओर था। 1913 में, गाँधी जी ने डंडी मंदिर के मैदान में दो विरोध सभाएँ आयोजित की थीं जो नफरत वाले पोल टैक्स के खिलाफ अभियान के हिस्से के रूप में थीं। गाँधी जी के नेतृत्व में और कोयला खदान मालिकों द्वारा जवाबी कार्रवाई में हजारों लोग इन बैठकों में शामिल हुए थे। डर्नाकोल और न्यूकैसल के आसपास कोयला खदानों में काम करने वाले भारतीय मजदूर हड़ताल पर चले गए। गाँधी जी ने इन लोगों के साथ डांडी से टॉल्स्टॉय बस्ती तक चलने का फैसला किया, लेकिन रास्ते में ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और वोलक्रस्ट जेल में डाल दिया गया था।

डांडी में स्थानीय सरकार ने एक संग्रहालय बनाकर अपने हेरिटेज के साथ गाँधी जी से संबंधित वस्तुओं तथा दस्तावेजों का संग्रह सहेज कर रखा है।

डांडी के बाद, प्रतिनिधिमंडल वोक्सस्ट्रस्ट में अपने अंतिम पड़ाव पर गया। यह वह स्थान था जहाँ, अप्रवासन कानून के विरोध में, गाँधी जी ने दो हजार से अधिक शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों, जिनमें ज्यादातर भारतीय खनिक और रेलवे कर्मचारी थे, को दो महीने पहले (सितंबर 1913 में) कस्तूरबा गाँधी और अन्य महिलाओं द्वारा उसी मार्ग पर मार्च करने के लिए प्रेरित किया था। ट्रांसवाल में अवैध रूप से घुसे भारतीय प्रदर्शनकारी पैदल मार्च कर रहे थे। गाँधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया, वोक्सस्ट्रस्ट करेक्शनल सर्विसेज में भेज दिया गया और 50 रुपये की जमानत पर रिहा कर दिया गया। रास्ते में पड़ता है स्तांडेरतन शहर जो जोहान्सबर्ग से करीब ढाई सौ किमी दूर है। जब माइन मजदूरों का डांडी आंदोलन गाँधी जी ने नेतृत्व किया था तब वे इसी शहर से होकर न सिर्फ गुजरे थे बल्कि यहीं रात भी गुजारी थी।

मोहन भाई के दादा जी ने उन्हें शरण दिया था तथा सभी आंदोलनकर्मियों को खाना भी खिलाया था। मोहन भाई से मिलना ऐसा ही था जैसे कि गाँधी युग में प्रवेश कर जाना। मोहन भाई बताते हैं कि महात्मा गाँधी को सरकारी पुलिसकर्मी खोज रही थी, परंतु उनकी गिरफ्तारी होने से आंदोलन ठप्प पड़ सकता था ऐसी आशंका थी–उससे बचने के लिए भारतीय समुदाय ने महात्मा गाँधी को रात अपने दुकान में गुजारने की सलाह दी। गाँधी जी मान गए। यहाँ से अगली सुबह उन्होंने वोलक्रस्ट के लिए प्रस्थान किया जो ट्रैन्स्वाल और क्वा जुलु नटाल राज्य की सीमा पर स्थित है, वहीं पर उन्हें गिरफ्तार किया गया और वोलकरस्ट जेल में डाल दिया गया।

डांडी के मैजिस्ट्रेट ने मुकदमे की त्वरित कार्रवाई की और साठ पाउंड फाइन या फिर पाँच महीने सश्रम कारावास की सजा सुनाई। गाँधी जी ने सश्रम कारावास को चुना क्योंकि उनका मानना था कि अपनी और खान के मजदूरों के लिए लड़ना कोई गुनाह नहीं था। उन्होंने कोई अपराध नहीं किया था इसलिए वे दंड के रुपये नहीं अदा कर सकते थे और करना नहीं चाहते थे। परंतु उनके लोगों ने उन्हें समझाया कि अभी आंदोलन को उनकी जरूरत है इसलिए वे साठ पाउंड के मुचलके पर रिहा हुए। हालाँकि, अब सैंडस्टन एक ऊँघता हुआ शहर है जहाँ बमुश्किल पच्चीस गुजराती परिवार रहते हैं। यहाँ की कुल जनसंख्या करीब पचास हजार होगी जिसमें मुख्यतः अफ्रीकन गोरे रहते हैं। कालों किंबस्ती शहर से बाहर है और वे लोग अभी भी खान या फिर घरों में मजदूरी करते हैं।

भारतीय करीब दो सौ होंगे जो दुकान या छोटे-मोटे व्यवसाय चलाते हैं। पहले यहाँ भारतीय जनसंख्या अधिक थी, परंतु अवसर की अनुपलब्धता के कारण युवा वर्ग का पलायन जारी है। सारे भारतीय त्योहार यहाँ मनाए जाते हैं और लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं। दीवाली मुख्य त्योहार है, क्योंकि गुजरातियों के लिए यह नववर्ष की शुरुआत भी होती है और यहाँ की मुख्य जनसंख्या गुजरातियों की ही है।


Image: Mahatma Gandhi aboard the S.S. Rajputana, 1931
Image Source: Wikimedia Commons
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अंजु रंजन द्वारा भी