अंबेडकर काव्य में जनकल्याण-भावना

अंबेडकर काव्य में जनकल्याण-भावना

भारत रत्न डॉ. भीमराव अम्बेडकर के विचार, संघर्ष और लेखन ने दुनिया के मानव समाज को प्रभावित किया है। उन्होंने ज्ञान को मानव के तमाम प्रकार के शोषण से मुक्ति का साधन मानकर तदनुरूप सार्थक उपक्रम किए। आज उन्हें ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। दुनिया के सबसे बड़े तोकतंत्र भारत के संविधान की रचना करके उन्होंने भारत राष्ट्र को आधुनिक स्वरूप प्रदान किया। मानव सभ्यता के विकास में डॉ. भीमराव अम्बेडकर के अद्वितीय योगदान को ध्यान में रखते हुए उनको केंद्र में रखकर हिंदी के साहित्यकारों ने विभिन्न विधाओं में साहित्य की रचना की है। मैं इस साहित्य को हिंदी अम्बेडकर साहित्य के रूप में संज्ञायित करता हूँ। हिंदी अम्बेडकर साहित्य के अंतर्गत अम्बेडकर काव्य प्रचुर मात्रा में लिखा जा चुका है। यहाँ हिंदी अम्बेडकर काव्य में अभिव्यक्त बहुआयामी जन कल्याण की भावना को रेखांकित करने का लघु प्रयास किया जा रहा है।

दूसरे गोलमेज सम्मेलन में डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने भारत के शोषित-पीड़ित जनों के हितों की सुरक्षा के लिए जोरदार बहस की। जीवन-व्यवहार में ऊँच-नीच बरतते हुए जो लोग केवल सत्ता-सुख चाहते थे, उनकी सच्चाई बयान करते हुए उन्होंने बहु सुखाय शासन-व्यवस्था लागू करने की बात बलपूर्वक कही। डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा दूसरे गोलमेज सम्मेलन में व्यक्त की गई जन कल्याण की भावना को बिहारी लाल हरित ने ‘भीमायण’ महाकाव्य के ‘लंदन’ शीर्षक कांड में शब्द दिए हैं। बहस करते हुए डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने कहा कि–‘मम जनतंत्र शासन चाहता, प्राणी मात्र से है नाता।/बहु सुखाय हो बहु हितकारी, ऐसा शासन सत्ता हो बिहारी।’

डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने बहुआयामी विपरीतताओं का सामना करते हुए दलित के रूप में पहचान प्राप्त भारत के साधारण जनों को जीवन जीने की मानवीय स्थितियाँ प्रदान कीं। मनुवादी व्यवस्था के आधार ‘मनुस्मृति’ को डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने जला दिया। ‘मनुस्मृति’ वर्ण व्यवस्था के तहत भारत के जिन साधारण जनों को अधिकार रहित अपमानजनक जीवन जीने के लिए बाध्य करती थी, भारत के उन साधारण जनों को सबके बराबर लाकर खड़ा कर दिया। डॉ. भीमराव अम्बेडकर की यह जन कल्याण भावना ए.आर. अकेला कृत ‘भीम ज्ञान गीतांजलि’ शीर्षक गीत संग्रह में सर्वत्र विन्यस्त है। ए.आर. अकेला कृत ‘भीम ज्ञान गीतांजलि’ शीर्षक गीत संग्रह के एक गीत की कुछ पंक्तियाँ अग्रांकित है–

‘तूफानों में दीये बाबा ने जलाए हैं
मुरझाए हुए चेहरे दलितों के खिलाए हैं।
लाचार गुलामों की दुनिया ही बदल डाली
मनु ने जो रोपे थे दरख्त वो हिलाए हैं
मुरझाए हुए चेहरे दलितों के खिलाए हैं॥’

गोपालदास नीरज ने अपने गीत में डॉ. भीमराव अम्बेडकर को पीड़ित जनों के पालक बताते हुए कल्याण राग के गायक के रूप में चित्रित किया है–

‘तुम दलितों के लिए अयोध्या दुखियों के वृन्दावन थे।
इतिहासों तक ने जिनका दुख कभी नहीं स्वीकारा था
मिलजुल कर तुमने उनका जीवन यहाँ सँवारा था।
शूल चुने चुमने शोषित के, मूक जनों को वाणी दी।
वाणी के संग-संग जीवों को संज्ञा की कल्यानी दी।
तुम कल्याण राग के गायक सचमुच पुरुष पुरातन थे।
पीड़ित के पालक तुम नर के चोले में नारायण थे।’

डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा रचित भारत का संविधान प्रत्येक शोषित-पीड़ित के कल्याण की गारंटी का दस्तावेज है। संविधान के माध्यम से भारत राष्ट्र के नागरिकों समानता का अधिकार देने वाले डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जन कल्याण भावना को हेमलता शर्मा ने ‘अमरत्व भीम के विचारों ने पाया है’ शीर्षक कविता में व्यक्त किया है–

‘भारत-विधान बाबा भीम ने बनाया है
अधिकार हमें समता का दिलाया है
दुत्कारा गया सर्वाधिक जो भारत में
अम्बेडकर ने वही समाज तो उठाया है।’

24 सितंबर, 1932 ई. को डॉ. भीमराव अम्बेडकर और महात्मा गाँधी के मध्य पूना (महाराष्ट्र) में हुआ पूना पैक्ट भारत के इतिहास की अत्यंत उल्लेखनीय घटना है। इस पैक्ट ने भारत की राजनीति की दशा और दिशा दोनों बदल दी। ‘भीमकथा’ में पूना पैक्ट से पूर्व अपनी बेजोड़ जनप्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए डॉ. भीमराव अम्बेडकर कहते हैं कि–

‘मुझको यह अच्छी तरह ज्ञात, गाँधी एक श्रेष्ठ पुरुषों में हैं
लेकिन मेरे करोड़ों अछूत, जीवन के अंधकार में हैं।
उनके अधिकार न छोड़ूँगा, चाहे मुझे खंबे से लटका दो
जीवन पशुओं की भाँति जिया, उसका प्रतिफल भी बतला दो॥’

भारत में बहुजन साधारण जनों के प्रति तथाकथित उच्चवर्णी जनों के अपमानयुक्त असमान जीवन व्यवहार को डॉ. भीमराव अम्बेडकर समाप्त कर देना चाहते थे। इसलिए उन्होंने पूना पैक्ट से पूर्व गाँधी के समर्थकों के सामने अछूतों के हित में समान अधिकार की माँग रखी। ‘भीम-शतक’ शीर्षक खंड काव्य में माता प्रसाद ‘मित्र’ ने इस संबंध में लिखा है कि

‘कहें अम्बेडकर, भारत हमारा देश
करते इसे हम हृदय से प्यार हैं।
देश हो स्वतंत्र नहिं मतभेद रंचमात्र
लेकिन अछूत यहाँ बहुतै लाचार हैं।
इसलिए पहले समान अधिकार माँग
फिर हो स्वतंत्र देश रहा यह विचार है।’

जो धर्म कुछ लोगों के लिए लाभ का विषय हो और कुछ लोगों के लिए हानि अथवा वंचना का विषय बना दिया जाय, उस धर्म से समाज का समान विकास अवरुद्ध होना ही होना है। डॉ. भीमराव अम्बेडकर संपूर्ण मानव समाज का कल्याण होता हुआ देखना चाहते थे। अपनी लोक कल्याणकारी भावना को व्यावहारिक रूप देने के लिए ही उन्होंने भेदमूलक हिंदू धर्म को त्याग कर लोक कल्याण की भावना से परिपूर्ण बौद्ध धर्म को अपनाया। बौद्ध धर्म के माध्यम से लोक कल्याण करने वाले डॉ. भीमराव अम्बेडकर के सर्वोत्तम क्रांतिकारी उपक्रम को कविवर माता प्रसाद ने अग्रांकित पंक्तियों में चित्रित किया है–

‘तेइस सितंबर छप्पन घोषणा किए हैं भीम
चौदह अक्टूबर बौद्ध धर्म अपनाएँगे।
बुद्धिवाद, प्रेम, समता से युक्त बुद्ध धर्म
अंधविश्वास, जाति, वर्ण हम हटाएँगे।
आत्मसम्मान, बंधुत्व, पंचशील हेतु
हिंदू वर्ण धर्म से दूरि हटि जाएँगे।
धर्म है मनुष्य हेतु न मनुष्य धर्म हेतु
लोक कल्याण हेतु धर्म हम बनाएँगे।’

डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जनकल्याण विषयक भावना इतनी अधिक प्रबल थी कि उन्होंने संविधान-रचयिता के लिए इसे एक शर्त के रूप में मान्यता दी। ‘भीमकथा’ में कवि ने इस तथ्य को शब्द दिए हैं–

‘अम्बेडकर सोचें दिन-राती, रात को उन्हें नीद नहीं आती
स्वार्थ के सब ढोल बजावें, समरसता नहिं पास में लावें
ओछी नीति कभी नहीं भाती, राजनीति की बदबू आती
राष्ट्र-प्रेम सर्वोपरि आता, उसके बाद जनहित दर्शाता
जो इन बातों को समझेगा, वही राष्ट्र-संविधान रचेगा॥’

डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने अपनी जन कल्याण भावना के तहत प्रत्येक शोषित-पीड़ित जन की वेदना को समझा और मानवोचित जीवन हेतु उसे उसके मानवीय अधिकार दिलाए। ओ.पी. गौतम ने ‘भीम चरणों में’ शीर्षक कविता में डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जन कल्याण भावना को अग्रांकित शब्दों में सराहा है–

‘हर खुशी बाबा ने दी है, हमको आकर के
राह हमारी में बिछाये फूल लाकर के
भीम की जय बोल, नारा तुम लगाओ
दासता की बेड़ियों को काट डाला था
मानकर औलाद हमको उन्होंने पाला था।’

जो लोग अंधविश्वासमय जीवन जीते हुए अपने विकास के मार्ग स्वयं ही बंद कर लेते थे–डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने उन लोगों को अंधविश्वासजन्य परेशानियों से मुक्ति देने हेतु निर्भ्रान्त जीवन दृष्टि दी। शशि प्रभा गौतम ने अपनी ‘भीम ने बहार दी है’ शीर्षक कविता में डॉ. भीमराव अम्बेडकर को जिंदगी सुधारने वाले असली भगवान मानते हुए लिखा है–

‘उजड़े हुए चमन को, भीम ने बहार दी है
अँधेरी जिंदगी में, रोशनी बेशुमार की है।

ईश्वर का डर दिखा के, गुमराह किया था हमको
भगवान असली तुम हो, जिंदगी सुधार दी है।

उलझे हुए थे अब तक आडंबरों में हम तो
बुद्ध धर्म का दान दे के पहचान तुमने दी है॥’

साधारण जन के रूप में बदहाल मानवता की रक्षा के लिए संघर्ष के पर्याय का नाम डॉ. भीमराव अम्बेडकर है। इस सच्चाई के आलोक में जन कल्याण के लिए स्वयं जन को भी प्रयास करने होंगे। हिंदी अम्बेडकर साहित्य में जन कल्याण हेतु जन के संघर्षात्मक प्रयासों का स्वरूप स्पष्ट करते हुए उनकी दिशा भी बतायी जा हरी है। ‘भीम चरित मानस’ के ‘संघर्ष कांड’ में डॉ. भीमराव अम्बेडकर अछूत बना दिए गए जनों का हीनता की भावना त्याग कर दासता की जंजीरें तोड़ने के साथ पुनर्जन्म संबंधी अंधविश्वास त्यागने हेतु आह्वान करते हैं–

‘पूर्व जन्म का ही फल मिलता, ये विश्वास आप सब त्यागो
नहीं गरीबी लिखी जन्म से, हे अछूत वीरो तुम जागो।

हीन भावना तज कर वीरो, दासता की जंजीरें तोड़ो
जीना है तो जियो शान से, वरना इस शरीर को छोड़ो॥

भारत का संविधान जन कल्याण भावना का वैधानिक दस्तावेज है। भारत के संविधान के रचनाकार बनकर डॉ. भीमराव अम्बेडकर जन कल्याण के पक्ष में अकाट्य बहस किया करते थे। वे जन कल्याण के महान लक्ष्य को साधने के लिए राजनीतिक लोकतंत्र के साथ-साथ लोकतंत्र को सामाजिक स्तर पर बरते जाने के लिए सार्थक तर्क देते थे। ‘युगस्रष्टा’ शीर्षक महाकाव्य में कवि ने इस संदर्भ में लिखा है कि–

‘संविधान के हर वाचन में भीमराव उत्तर देते थे
जिसको सुनकर वहाँ उपस्थितदाँ तले उँगली लेते थे
राजनीति का लोकतंत्र तब तक ही कायम रह पाएगा
जब तक सामाजिक लोकतंत्र सकी तह को गह पाएगा।’

भारत राष्ट्र में किसानों एवं मजदूरों का जीवन भाँति-भाँति की समस्याओं से ग्रसित रहा है। भारत में किसानों एवं मजदूरों की समस्याओं का निदान जन कल्याण का अति विशिष्ट आयाम है। डॉ. भीमराव अम्बेडकर महान अर्थशास्त्री थे। उन्होंने किसानों एवं मजदूरों के उत्थान का मार्ग प्रशस्त करने के लिए उनकी समस्याओं के निदान हेतु बहुविधि उपक्रम किए। हिंदी अम्बेडकर काव्य में मजदूरों एवं मजदूरों के कल्याण के लिए डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा किए गए प्रयासों का व्यापक स्तर पर चित्रण हुआ है। डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने जनसम्मेलन में भाग लिया और अपने व्याख्यान में किसानों एवं मजदूरों की आर्थिक स्थिति सुधारने के उपायों की बात कही। जवाहर लाल कौल व्यग्र ने ‘युगस्रष्टा’ में लिखा है–

‘भूमि-दासता बेगारी का प्रश्न भीम ने ऐसा लिया
उठाय जगह-जगह पर जोरों से था उस क्षण
खेती-प्रथा बंद होवे, खेतों के मालिक वह हों
रहे जोतते उसको जो निज खून-पसीना देकर
पंढरपुर की सभा बीच बोले थे बाबा साहब
तीन समस्याएँ हैं हमको आज देखनी सत्वर
समता का दर्जा समाज में, राष्ट्रीय धन में हिस्सा
सब समान हैं और मदद सबकी होनी आवश्यक।’

मजदूरों के लिए श्रम अनुसार पारिश्रमिक और एक दिन में श्रम करने का समय निश्चित होना जन कल्याण का उल्लेखनीय आयाम है। इससे मजदूरों को पूँजीपतियों के द्वारा किए जाते रहे उनके शोषण से काफ़ी हद तक राहत मिली। यह सब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की श्रमिक-हित विषयक चेतना और तद्विषयक संघर्ष का परिणाम है। ‘भीमकथा अमृतम्’ में आर.डी. निमेष ने इस सच्चाई का सटीक वर्णन किया है–

‘श्रम सम्मेलन गिरा सुनाए, शिशु शिक्षा अब सुलभ कराए
पारिश्रमिक उचित दिलवाए, भोजन वस्त्र मकान दिलाए
कामकाज का समय न कोई, श्रमिक वर्ग हित निश्चित होई।’

मनुष्य के कल्याण का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण साधन शिक्षा है। गौतम बुद्ध, संत शिरोमणि रैदास, कबीर और ज्योतिबा फुले ने शिक्षा द्वारा ही मानव कल्याण के द्वार खोले। डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने भी अपने जीवन में शिक्षा को सर्वाधिक महत्त्व दिया। शिक्षा प्राप्त करने के लिए वंचित जनों का आह्वान करते हुए उन्होंने शिक्षा को शेरनी का दूध कहा। डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने शिक्षा को जिस प्रकार जन कल्याण के प्रमुख साधन के रूप में स्वीकार किया, हिंदी अम्बेडकर काव्य में शिक्षा को उसी रूप में स्थान दिया गया है। डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने जन कल्याण के हिमायतियों से चंदा का संग्रह करके सिद्धार्थ कॉलेज की स्थापना की। ‘भीमकथा अमृतम्’ की अग्रांकित पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं–

‘संस्थान आदर्श बनाना, मध्यवर्ग अनुसूचित हित जाना
बुनियादी पत्थर रखवाया, प्यूपल शिक्षा संस्थान बनाया
बीस जून छियालीस सुहानी, कॉलिज की रचना करि आनी॥’

अपनी जन कल्याण भावना के तहत डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने लोगों की शिक्षा के लिए जो प्रयास किए, उन प्रयत्नों का वंचित जनों ने लाभ उठाया है। शिक्षा प्राप्त वंचित जन अब अपनी बहुआयामी प्रगति करने के साथ अपने और अपने समाज के लिए अधिकारों की बात करता है, शिक्षा के बल पर ही वंचित जन अपने वास्तविक इतिहास और भारत के निर्माण में अपने योगदान से अवगत हो रहे हैं। यही कारण है कि दलित साहित्य के उल्लेखनीय हस्ताक्षर सूरजपाल चौहान ने डॉ. भीमराव अम्बेडकर को मानवता के प्रतीक मानते हुए शोषितों के हृदय में ज्ञान का दीपक जलाने वाले बताया है–

‘मानवता के प्रतीक
तुमने
इस भारत भूमि पर आकर
भूखे, नंगे और शोषितों को जगाया।

तुमने ही-
उनके बंद हृदय में
जलाया ज्ञान का दीप
बनकर साहेब
दलित जनों के
उन्हें नई राह दिखाई।’

आज का भारत राष्ट्र डॉ. भीमराव अम्बेडकर के द्वारा गढ़ा गया। आज भारत का वह प्रत्येक नागरिक जिसके पूर्वजों को वर्ण, जाति और धर्म के आधार पर विकास से पूर्णत: वंचित कर दिया जाता था, किसी भी पद पर आसीन हो सकता है तथा जितना चाहे उतना विकास कर सकता है। सूरजपाल चौहान ने डॉ. भीमराव अम्बेडकर को इसीलिए अपनी कविता में आगे देश के नव निर्माता लिखा है और उन्हें शत्-शत् नमन किया है।

उपर्युक्त अध्ययन के आलोक में यह स्पष्ट हो जाता है कि हिंदी अम्बेडकर काव्य के रचयिताओं ने डॉ. भीमराव अम्बेडकर की लोक कल्याणकारी भावना को व्यापक रचनात्मक धरातल पर वाणी दी है। अब आवश्यकता इस बात की है कि भारत का प्रत्येक नागरिक हिंदी अम्बेडकर काव्य में चित्रित लोक कल्याण की भावना को समझे और उसके अनुरूप व्यवहार करे।


Image: Dr.Babasaheb Ambedkar and his signature
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सुरेश चन्द्र द्वारा भी