नये गजलकारों की प्रेरणा के स्रोत

नये गजलकारों की प्रेरणा के स्रोत

किसी भी लेखक के सृजन संसार का समग्र प्रकाशन या फिर एका-संग्रहण समग्र के रूप में बहुत जरूरी है। अगर आर्थिक पक्ष को भी देखें तो बड़ा लाभ यह है कि पाठकों, प्रशंसकों, शोधकर्ताओं, समीक्षकों इत्यादि के लिए ‘समय सृजन’ को खरीदना कई-कई पुस्तकों को खरीदने की तुलना में हमेशा ही सस्ता पड़ता है। इस पृष्ठभूमि में गजलगो डॉ. कृष्ण कुमार प्रजापति जो गजल की दुनिया में ‘डॉ. कुमार प्रजापति’ के नाम से मशहूर हैं, के रचना संसार पर नजर डालता हूँ तब, साल-छह महीने के भीतर हर बार इनके एक-दो नये प्रकाशित गजल संग्रहों से रू-ब-रू होता हूँ, साहित्य की महत्त्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में इन्हें अपनी जनचेतना से युक्त संवेदनशील गजलों के साथ उपस्थित देखता ही रहता हूँ। हिंदी गजल की दुनिया के शीर्ष शायर जहीर कुरैशी भी जब इनसे मिलते थे तब गजल के प्रति इनकी दीवानगी को देखकर इनकी तारीफ करते हुए अक्सर कहते थे, ‘अब तो गजल ही डॉक्टर कृष्ण कुमार प्रजापति का उठना-बैठना, सोना-जागना बन गया है। मानो ये गजल की अनंत यात्रा पर निकले हुए शायर हैं। इनकी भावनाएँ, इनकी संवेदनाएँ, इनकी सोच इनके सपने सब-कुछ गजल ही बन गए हैं।’ इस संबंध में इनका एक शेर देखिए–

‘कहने लगा हूँ अब तो हर बात गजल में
होती है मेरी उनसे मुलाकात गजल में।’

हिंदी गजल के प्रति इनके जुनून से प्रभावित प्रसिद्ध साहित्यकार मधुसूदन साहा कहते हैं, ‘इनका मन-मस्तिष्क भले ही परिवार के सारे दायित्वों को पूरी ईमानदारी से निबाहता है, व्यवसाय की सारी अपेक्षाओं पर खरा उतरता है, अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक रहता है, घर परिवार, संगी साथी, नाते रिश्तेदार के प्रति दायित्वबोध से भरा रहता है, प्रत्येक की आवाज को सुनता-समझता रहता है, सबकी अपेक्षाओं पर खरा भी उतरता है मगर इनके मन-मस्तिष्क का दूसरा हिस्सा हर पल अपनी पूरी रचनाधर्मिता और प्रतिबद्धता के साथ अनवरत गजलें बुनता रहता है। यों ही नहीं, पूरी बारीकी, खूबसूरती और कलात्मकता के साथ बुनता रहता है।’ यही कारण है कि आज ये देश में गजल केंद्रित महत्त्वपूर्ण गतिविधियों की माँग हो गए हैं। प्रकाशनों की आवश्यकता हो गए हैं। सोच की तीलियाँ, सन्नाटे का शोर, बादबान, आईना गूँगा नहीं, ख्यालों का सफर, भावनाओं की बस्तियाँ, धूप ही धूप जैसी अनेक महत्त्वपूर्ण गजल संग्रहों की श्रृंखला के रूप में इनकी गजल यात्रा अनवरत अग्रसर है। शिखर के सात स्वर, बीस गजलगो : दो सौ गजलें इत्यादि साझा संग्रहों में इनके गजल व्यक्तित्व का विस्तार है। ‘एक नई सुबह’ जैसी कई महत्त्वपूर्ण पत्रिकाओं के इन पर केंद्रित विशेषांकों के रूप में इनके व्यक्तित्व और कृतित्व का फैलाव है। बड़ी-बड़ी महफिलों, सेमिनारों और आयोजनों में इनकी गजलों की माँग इनका आकाश है तो साहित्य की दुनिया से प्राप्त दर्जनों पुरस्कार एवं सम्मान इनके गजलों की चमक एवं रौशनी हैं।

वरिष्ठ शायर मकबूल ‘वाजिद’ इनकी शायरी से रूबरू होते ही इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने तत्काल इन पर केंद्रित एक विशेषांक और इनकी गजलों का एक संकलन ही प्रकाशित कर दिया, जो अच्छा खासा चर्चित भी हुआ। उनका मानना है कि ‘ये गजलों की दुनिया में डूबे हुए एक ऐसे गजलकार हैं जो अपनी गजलों को ही अपना सुख चैन और अपना खुदा मानते हैं।’ तभी तो यह लिखते हैं–

‘मुझे चाहिए उसके दर की फकीरी
किसी और की कुछ हकीकत नहीं है।’

अपनी विनम्रता के कारण कई बार अपनी गजलों को केंद्र में रखकर ये निम्नलिखित शेर भी पढ़ते रहते हैं–

‘क्या शायरी होती है मुझे कुछ नहीं मालूम
करता हूँ बयाँ मैं अपने जज्बात गजल में।’

मगर सजग समीक्षक, सुधी पाक और हम जैसे प्रशंसक गजलों में इनकी ‘नावरी’ को बेहतर जन समझ रहे हैं तभी तो इन्हें सावधान करते हुए गजल के इनके उस्ताद शायर जफर सिद्दकी ने एक मौके पर कहा–

कैसे-कैसे नामवर गुमनाम हैं
अपनी शेहरत पे न इतराना ‘कुमार’

हिंदी गजल के सिद्ध शायर ज्ञानप्रकाश विवेक एवं अनिरुद्ध सिन्हा इनकी गजलों की बुनावट, शिल्प एवं शैली के प्रति जितना संतोष व्यक्त करते हैं उतने ही आश्वस्त प्रसिद्ध शायर जहीर कुरैशी भी नजर आते हैं। देश के लगभग सभी विद्वानों एवं समीक्षकों जैसे कि डॉ. दशरथ प्रजापति, डॉ. विभा माधवी, जय चक्रवती, नासिर अली नदीम, रामेश्वर वैष्णव, डॉ. अंजुम बाराबंकवी इत्यादि का मानना है कि इनकी गजल-बयानी में मानवतावादी दृष्टिकोण है, जनपक्षधरता है, जीवन का संघर्ष है, शोषण का विरोध है। समाज और देश की विसंगतियों एवं विद्वपताओं पर प्रहार है। दुहरे एवं कृत्रिम चरित्रवालों का पर्दाफाश है। समकालीन चेतना है, वैचारिक प्रगतिशीलता है, बेहतरीन दुनिया की आकांक्षा है। साहित्य और समाज के लिए अच्छा करते रहने की तमन्ना है, प्रेरणा है। ज्ञान प्रकाश विवेक एवं अनिरुद्ध सिन्हा जैसे विद्वान जब इनकी गजलों पर सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं तब मुझे लगता है मानो वे कह रहे हों, डॉ. कृष्ण कुमार प्रजापति की गजलें हिंदी गजल की दुनिया में नवजागरण एवं विस्तार का प्रतीक है। सचमुच ही धूप ही धूप बिखेरती रवि की किरणो-सी है इनकी खुशनुमा गजलें। इनके नाम के अनुरूप कृष्ण का सुदर्शन चक्र बन मनुष्य-जीवन की हर पीड़ा को खत्म करती हैं इनकी गजलें। ये एक ऐसे गजलकार हैं जो बहुत ही तीव्रता से जन-संस्कृति एवं जन-स्वीकृति का हिस्सा बनते जा रहे हैं। आजकल डॉ. कृष्ण कुमार प्रजापति उनमें से एक हैं। भोजपुरी फिल्मों के गीतकार राजेन्द्र कुमार सिंह कहते हैं कि वे अपने कंप्यूटर के सामने हमेशा इनकी गजल संग्रहों को रखे रहते हैं और आवश्यकतानुसार गजल लिखने की बारीकियों को सीखते-समझते हैं। आजकल तो इनके कई शेर आम बोलचाल में कहे-सुने जाने भी लगे हैं, जैसे कि–

‘बच्चे को अपने, कोई कलम लाकर दीजिए
ऐसा न हो कि हाथ में चाकू दिखाई दे।’

आम-जन के जीवन संघर्ष को जुबान देता इनका एक दूसरा शेर देखिए–

‘सबको सँवारने में गुजरती है जिंदगी
फुर्सत कहाँ कि खुद को मैं देखूँ सँवार के।’

इनका एक और प्रसिद्ध शेर मुलाहिजा फरमाइए–

‘मैं गिर पड़ा तो कितना सँभलने लगे हैं लोग
आँखों को अपनी खोल के चलने लगे हैं लोग।’

माँ की महत्ता को रेखांकित करता इनका एक और शेर लोगों की जुबान पर हमेशा रहता है–

‘माँ की खिदमत से तू क्यूँ भाग रहा है पगले
वो दुआ देगी, तेरा भाग्य सँवर जाएगा।’

मुझे जैसे इनके प्रशंसकों को हमेशा लगता रहता कि उड़ीसा के राउरकेला जैसे अहिंदी भाषी क्षेत्र के रहने वाले गजलगो कृष्ण कुमार प्रजापति की दिन-प्रतिदिन महत्त्वपूर्ण होती जा रही सामाजिक एवं साहित्यिक उपादेयता के कारण इनकी गजलों का उचित, संतुलित एवं समग्र समायोजन होना ही चाहिए। यह वर्तमान की माँग भी है और भविष्य की आवश्यकता भी। इसी को ध्यान में रखकर इनकी गजलों के समय को दो भागों में, क्रमशः ‘फिक्र की सीढ़ियाँ’ तथा ‘फिक्र-ए-तमाम’ शीर्षक से प्रकाशित करने का विचार बना है। बहुत जल्द ही इसका तीसरा भाग भी आपके हाथों में होगा। इस दिशा में भी काम प्रारंभ हो चुका है। मैं उम्मीद करता हूँ इन प्रकाशनों को भी आप सभी का प्यार, समर्थन और स्वागत हमेशा की तरह प्राप्त होगा।


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Image Source : WikiArt
Artist : Émile Friant
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अजय प्रजापति द्वारा भी