संघर्ष की तस्वीर उकेरती कहानियाँ

संघर्ष की तस्वीर उकेरती कहानियाँ

रिचित कहानीकार विनय कुमार का पहला कहानी संग्रह ‘सुर्ख लाल रंग’ में कुल चौदह कहानियाँ हैं। सभी कहानियाँ अलग-अलग परिवेश, शिल्प कथ्य, व स्वभाव वाली हैं। इस संग्रह में मुख्य रूप से छोटे कामगार खेतिहर मजदूर किसान, गाँव देहात में रहने वाले आमजन के जनजीवन के संघर्ष का सटीक एवं मार्मिक चित्रण है। विनय कुमार के इस संग्रह से गुजरते हुए यह सहज ही स्मरण हो आता है कि आज के सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक परिस्थितियों में अनेक बदलाव देखे जा सकते हैं। लिहाजा, आज की कहानी पूर्ववर्ती कहानी से अलग है। यह भी सच है कि पिछले दौर की कहानियाँ अनेक विमर्शों के दबाव में भी बुनी गई। जाहिर है आज के समय का कहानीकार वही है जो इस समय के छोटे किंतु बुनियादी विषयों को रचे, अपनी कहानी में उसे आवाज दे, विनय अपनी कहानियों में इन सारे प्रश्नों का न केवल उदघाटन करते बल्कि उनका विश्लेषण भी करते हैं। उनकी कहानियों में स्वाभाविक खनक है, वे न तो उधार की भाषा में बात करते हैं न ही कहानी को नयापन देने के लिए उधार का विषय ही लेते हैं। वे श्रेष्ठ विषय के भ्रमजाल से भी बराबर दूरी बना कर चलते हैं।

वर्तमान समय लेखकीय चुनौतियों से भरा है। सबसे बड़ी चुनौती तो यही है कि समाज में व्याप्त बुराइयों को अभिव्यक्ति देने के लिए पर्याप्त टूल्स को कैसे जुटाया जाय, ताकि उचित तरीके से समाज में रह रहे विभिन्न घटक, जैसे–कामगारों, स्त्री, अल्पसंख्यक की आवाज़ बना जा सके। विनय कुमार के इस संग्रह की पहली कहानी ‘सुर्ख लाल रंग’ विषय व कथ्य के साथ ही, एक स्वाभाविक परिवेश भी रचती है। कहानी का मुख्य पात्र रज्जब अंसारी जो जुलाहा है तथा अपना जीवन-यापन पारंपरिक काम करके गाँव में ही बीता रहा। लेकिन गाँव की बदली हवा में उसका परिवार वहाँ रहना नहीं चाहता है। जबकि रज्जब अपनी मिट्टी, अपना गाँव नहीं छोड़ना चाहता–उसे अपनी मिट्टी, अपने लोगों से प्रेम है। और अंततः अपने इसी प्रेम के चलते लक्ष्मण की बेटी के लिए लाल जोड़ा बुनते हुए रज्जब की हत्या हो जाती है। कहानीकार यहाँ अपने से कुछ भी नहीं जोड़ता बल्कि जो हो रहा है, उसे कहानी में दर्ज करता चलता है। विनय बदले परिवेश के भयावह पक्ष को लेकर चिंतित हैं। इतिहास गवाह रहा है कि जब भी सांप्रदायिकता का जोर बढ़ा है उसकी पहली गाज कला पर ही पड़ती है। फिर तो एक एक कर भाईचारा, लगाव, मनुष्यता को तो कुचल कर जनविरोधी ताकतें आगे बढ़ती रही हैं। इस कहानी के माध्यम से विनय उस व्यवस्था पर चोट करते हैं जो रज्जब को, उसकी कला को केवल आपनी हठधर्मिता से खत्म करने पर आमादा है।

विनय कहीं-कहीं खोजी भी लगते हैं। वे बुनने से ज्यादा खोजने पर यकीन करते हैं इसलिए भी उनके पास विषय का संकट नहीं जान पड़ता है। वे अपने आसपास ही ऐसे विषय खोज लेते हैं जिस पर कम देखा लिखा जाता है। विनय की कहानी ‘सौदा’ उनकी इसी खोज का परिणाम है, वे कथा के अंदर भी कथा ढूँढ़ते नजर आते हैं। उनकी कहानी ‘सौदा’ शुरू तो होती है–सितला के बिटिया की शादी की तैयारियों से। पर मध्य तक पहुँचते-पहुँचते आर्थिक विपन्नता, सामाजिक मान मर्यादा, जाति व्यवस्था को समोते हुए आगे बढ़ती है और अंत में मानवीय हो कर खड़ी हो जाती है। यही विनय की कहानी की सफलता भी है कि वे सवालों के घेरे से बाहर अपने पाठक को मानवीयता के करीब ले आते हैं। विनय में एक अत्यंत संवेदनशील प्राणी बसता है जो उनके सत्य के अन्वेषण के साथ भावुक व्यक्ति भी बनाए रखता है। वे दुनिया के रंजो गम को अपना बनाते हुए दिखाई पड़ते हैं। उनकी बेजोड़ और मर्मस्पर्शी कहानी ‘पुतलों का दर्द’ उनकी पहचान है। इस अदभुत कहानी में खुद तो रोते ही हैं पाठक को भी रुला देते हैं। इस कहानी में करुणा प्रबल स्वर में उभर कर आती है। कहानी का मुख्य पात्र अंकुर जो एक दुकान में पुतलों की देखरेख करता है। वे अंकुर बेहद संजीदा व अनुभूतिपरक अंदाज में प्रस्तुत करते हैं। अंकुर के स्वभाव को इतना बारीक बुनते हैं कि उसका एक-एक पक्ष दृश्यमान होता जाता है। अंकुर एक बेहद खूबसूरत इनसान है जो मानवीय गुणों से भरा हुआ है। इतना संवेदनशील है कि पुतलों को भी मानव की तरह मानता है। विनय इस ईमानदार व्यक्ति की दारुण कथा को रचते हुए भीतर तक दर्द से भिगो जाते हैं। कहानी का पूर्वार्द्ध जितना सरल, जितना दिलकश है उत्तरार्द्ध उतना ही मार्मिक, उतना ही कारुणिक है। यह कहानी इस संग्रह की एक नायाब कहानी है। जिसे बार-बार पढ़ने पर भी एक बार फिर पढ़ने की इच्छा बनी रही है।

विनय सुप्रतिष्ठित कहानीकार हैं। आपका यह कहानी संग्रह ‘सुर्ख लाल रंग’ की कई कहानी अपनी भाषा, कथ्य व शिल्प में बेजोड़ है, साथ ही इन कहानियों में हमारे समाज के कई रंग मिलते हैं जिन्हें वे पूरी शिद्दत व संजीदगी से हमारे सामने रखते हैं। इस संग्रह की कहानियों में एक नये संवेदनशील समाज को गढ़ने के बहुत से सूत्र समाहित हैं। यह संग्रह पठनीय होने के साथ-साथ ही संग्रहनीय भी बन पड़ा है।


Image : Neapolitan farmhouse with farmers wife
Image Source : WikiArt
Artist : August von Pettenkofen
Image in Public Domain

मिथिलेश रॉय द्वारा भी