हास्य-व्यंग्य जगत में कोश की भूमिका

हास्य-व्यंग्य जगत में कोश की भूमिका

बालेन्दुशेखर तिवारी जी ने ‘हिंदी हास्य व्यंग्य कोश’ की संरचना कर हिंदी हास्य-व्यंग्य विधा को सुव्यवस्थित व संगठित करने के महत प्रयास का परिचय दिया है। यह कोश उनके अथक परिश्रम व व्यंग्य विधा के प्रति अतुलनीय निष्ठा को प्रमाणित करता है। यह पुस्तक अपने दीर्घाकार में हिंदी के हास्य-व्यंग्यकारों का ब्यौरेवार लेखा-जोखा हमारे हाथों में सौंप देती है। ग्रंथ के प्रथम अध्याय में 209 पृष्ठों में सिलसिलेवार तरीके से हिंदी के हास्य-व्यंग्य लेखकों की जन्मतिथि व मृत्यु की तारीख (दिवंगत लेखकों की), उनका पता, प्राप्त सम्मान व पुरस्कार, उनकी कृतियों व उनकी बानगी का उल्लेख किया गया है। लेखकों का यह परिचय पाठकों को उनके करीब लाने के मकसद को सफल बनाता है। उनकी कृतियों का उल्लेख हिंदी में हास्य-व्यंग्य विधा की संपन्नता व समृद्धि को दर्शाता है। केवल लेखकों का नामोल्लेख ही नहीं है बल्कि उनकी विधा व प्रकाशन वर्ष को भी दर्ज किया गया है। बानगी के अंतर्गत लेखक की कृति के किसी अंश को उद्धृत किया गया है जिसका संदर्भ भी दिया गया है। पाठक जब इन लेखकों की बानगी के गंभीर अध्ययन से गुजरता है तो हिंदी व्यंग्य के वैविध्य व वैचित्र्य का आभास पाकर निश्चित रूप से आह्लादित व रोमांचित हो उठता है। यह बानगी प्रत्येक व्यंग्यकार की लेखन-शैली की तीक्ष्णता, भाषा की विलक्षणता, दृष्टि की गंभीरता व विडंबना पर आक्रमण करने के साहित्यिक अंदाज से रू-ब-रू होने का झरोखा प्रस्तुत करने में पूर्ण रूप से सक्षम है।

दूसरे अध्याय में हिंदी हास्य-व्यंग्य कृतियों की लंबी दुरुस्त सूची प्रस्तुत की गई है। यह एक श्रमसाध्य प्रयास है क्योंकि प्रत्येक कृति का नाम, लेखक का नाम, विधा, प्रकाशक, स्थान, वर्ष का ब्यौरा दिया गया है। इस सूची को हिंदी की महती उपलब्धि बताने में कोई संकोच नहीं है। यह दीर्घ सूची 2812 कृतियों का ब्यौरा सौंपती हैं। पुस्तक की भूमिका में ‘कोश कर्म के अनन्तर’ तिवारी जी ने लिखा है कि इस कृति को प्रकाशित रूप में देख पाने की तीव्र इच्छा मन में लेकर ही उनकी धर्मपत्नी श्रद्धेय विद्या जी इस संसार से चली गईं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि स्त्री शक्ति की प्रेरणा के बिना इतना श्रमसाध्य कर्म सफल नहीं हो सकता। अगले अध्याय में तिवारी जी ने हास्य-व्यंग्य विषयक समीक्षा/शोध ग्रंथों की सूची प्रस्तुत की है जिसमें 183 ग्रंथों का उल्लेख किया गया है। इसके पश्चात चौथे अध्याय में हास्य-व्यंग्य विषयक शोधकार्य की सूची संकलित है जिसमें विभिन्न अध्येताओं द्वारा विश्वविद्यालयों के अंतर्गत व्यंग्य विधा पर किए गए शोध कार्य का ब्यौरा दिया गया है। ये दोनों अध्याय हिंदी हास्य-व्यंग्य के क्षेत्र में गंभीर अध्ययन, शोध-कार्य, भविष्य की परिकल्पनाओं व योजनाओं को तय करने की दिशा में महती भूमिका निभाते हैं। विश्वविद्यालयों में व्यंग्य विधा पर शोध कार्य की महत्ता को प्रतिष्ठित करने के उद्देश्य को ये अध्याय निश्चित रूप से फलीभूत करते हैं।

यह सर्वमान्य तथ्य है कि किसी भी विधा को प्रचारित करने में पत्र-पत्रिकाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है। विशेषकर व्यंग्य विधा में समकालीनता व प्रासंगिकता के तत्व कूट-कूटकर भरे हैं। ऐसी स्थिति में व्यंग्य विधा को पाठकों तक पहुँचाने के लिए पत्र-पत्रिकाओं ने हमेशा से अपना दायित्व निभाया है। हम जानते हैं कि हिंदी के स्वनामधन्य व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, रवींद्रनाथ त्यागी, शंकर पुणतांबेकर आदि व्यंग्य रचनाकार किसी न किसी पत्रिका के माध्यम से ही पाठकों के प्रिय बने व उनकी सोच को प्रभावित कर पाए। इस तथ्य को स्वीकारते हुए तिवारी जी ने इस ग्रंथ के पाँचवें अध्याय में 93 पत्र-पत्रिकाओं का उल्लेख किया है जो व्यंग्य कर्म के प्रति समर्पित हैं। पत्रिकाओं के संपादक, प्रकाशन केंद्र, पता व प्रकाशन काल का भी उल्लेख किया गया है। यह सूची हमें वर्तमान समय में व्यंग्य विधा को प्रकाशित करने वाली पत्रिकाओं से अवगत कराती है। ग्रंथ का अंतिम अध्याय बिच्छु के डंक के समान तेजस्वी है क्योंकि इसमें लेखक ने हास्य-व्यंग्य की पारिभाषिक शब्दावली को समेटा है। हास्य-व्यंग्य जगत में इन शब्दों का नींव के पत्थर के रूप में प्रयोग होता है। ये पारिभाषिक शब्दावली भारतीय व्यंग्य विधा को सशक्त बनाने के लिए मशाल की भूमिका निभाती हैं। उन्होंने इन शब्दों की परिभाषा, उनके तात्पर्य व व्यंग्य क्षेत्र को संपन्न बनाने में इनकी भूमिका पर आलोकपात किया है। यह अध्याय पाठक को व्यंग्य जगत की सूक्ष्मताओं से अवगत कराता है।

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि 451 पृष्ठों की यह पुस्तक हिंदी हास्य-व्यंग्य क्षेत्र को सुगठित करने का विचारपरक प्रयास है। एक विस्तृत विषयफलक को समेटते हुए भी कोश निर्माण के मूलभूत सिद्धांतों का पूर्ण रूप से तिवारी जी ने अनुसरण किया है। प्रत्येक अध्याय में लेखक या कृति के आद्याक्षर के रूप में सूची का निर्माण किया गया है। क्रम संख्या, पृष्ठ संख्या, प्रकाशन काल, प्रकाशन केंद्र, विधा आदि पर पूरी सावधानी के साथ कार्य संपन्न किया गया है। निश्चय ही लेखक  ने ‘हिंदी हास्य व्यंग्य कोश’ के रूप में एक प्रामाणिक एवं समावेशी कोश का निर्माण किया है।


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Artist : Hans von Aachen
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राष्ट्रपिता गाँधी जी ने असहमति की अभिव्यक्ति को रोकना एक स्वस्थ समाज के लिए सबसे बड़ी चिंता का कारण बताया था। प्रखर आलोचक एवं व्यंग्यालोचन के क्षेत्र में कई दशकों से एक महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर के रूप में चर्चित डॉ. बालेन्दुशेखर तिवारी की नवीनतम कृति ‘व्यंग्यालोचन के पार-द्वार’ में भी किसी सीमा तक असहमति की अभिव्यक्ति को ही व्यंग्य की अंदरूनी शक्ति घोषित किया गया है। इसलिए पुस्तक के प्रथम अध्याय में कहा गया है–‘भ्रष्टाचार का धनुष किसी से उठ नहीं रहा है, प्रहार की जयमाला निष्फल हो रही है। नारों की नदियाँ बनी हैं, वादों के नाव चल रहे हैं, अफवाहों की बयार बह रही है, अपराध की शीतलता सारे पर्यावरण को सुधार रही है। मानवता और आदर्श के सारे आचरण शब्दकोश में सजे हुए हैं।