हिंदी की प्रगति और विश्व हिंदी सम्मेलन

हिंदी की प्रगति और विश्व हिंदी सम्मेलन

वरिष्ठ साहित्यकार जियालाल आर्य ने वैसे तो हिंदी की अनेक विधाओं में प्रचुर लेखन से साहित्य को समृद्ध किया है, लेकिन उनकी नवीनतम पुस्तक ‘विश्व हिंदी यात्रा’ से गुजरते हुए दुनिया की सर्वाधिक पढ़ी-लिखी और बोली जाने वाली हिंदी भाषा के विकास के अंतर्विरोध को समझा जा सकता है। हिंदी सर्वाधिक देशों में बोली जाने वाली भाषा है। भारत के अलावा पाकिस्तान, मॉरीशस, इंग्लैंड, सऊदी अरब, मलेशिया, सिंगापुर, यूएई, आस्ट्रेलिया, म्यांमार, कनाडा, नेपाल, अफगानिस्तान, दक्षिण अफ्रीका, उगांडा, न्यूजीलैंड, सूरीनाम, फिजी आदि देशों में बोली और समझी जाती है। आज दुनिया के 125 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी की पढ़ाई की व्यवस्था है। हिंदुस्तान से बाहर विभिन्न मुल्कों में 50 से अधिक रेडियो के हिंदी चैनल प्रसारित होते हैं। इनमें आधे से अधिक पूर्णकालिक हिंदी चैनल हैं जबकि शेष अन्य भारतीय भाषाओं के साथ हिंदी के कार्यक्रम प्रस्तुत करता है।

हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए 1975 से अब तक आयोजित इस ‘विश्व हिंदी सम्मेलन’ ने भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 1975 ई. में पहली बार महाराष्ट्र के नागपुर से शुरू हुआ यह सफर गत वर्ष 2015 में भोपाल तक की यात्रा तय कर चुका है। इस दौरान 1976 ई. में पोर्टलुईस (मॉरीशस) में दूसरा, 1983 ई. में नई दिल्ली में तीसरा, 1993 में पोर्ट लुईस (मॉरीशस) में चौथा, 1996 ई. में पोर्ट आफ स्पेन (ट्रिनीडाड टोबैगो) में पांचवाँ, 1999 ई. में लंदन (यू.के.) में छठा, 2003 ई. में परामारियो (सूरीनाम) में सातवाँ, 2007 ई. में अमेरिका के न्यूयार्क में आठवाँ और 2012 ई. में दक्षिण अफ्रीका के जोहांसबर्ग में नौवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन महत्त्वपूर्ण पड़ाव रहे हैं।

जियालाल आर्य हिंदी के उन गिने-चुने लेखक-साहित्यकारों में एक हैं, जिन्हें एक नहीं दो-दो विश्व हिंदी सम्मेलनों में शिरकत करने का मौका मिला है। पहली बार 2007 ई. में न्यूयार्क में आयोजित 8वें और दूसरी बार 2012 ई. में जोहांसबर्ग में आयोजित नवें विश्व हिंदी सम्मेलन में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया।

समीक्ष्य पुस्तक ‘विश्व हिंदी यात्रा’ में श्री आर्य ने अपनी दोनों यात्राओं को केंद्र में रखते हुए हिंदी की सामासिक प्रकृति और राष्ट्रीय एकता में इसकी महत्ता को रेखांकित करने का अद्भुत प्रयास किया है। उन्होंने विश्व हिंदी यात्रा के जरिये पाठकों को वाशिंगटन, न्यूयार्क, नियाग्रा प्रपात, गोट आईलैंड, मार्टिन लूथर किंग जूनियर पुस्तकालय, संयुक्त राष्ट्र संघ, पेंसिलवेनिया, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और जोहांसबर्ग की सैर कराई है। 15 अध्यायों वाली इस पुस्तक से गुजरते हुए श्री आर्य और उनके सहयोगियों के साथ इन तमाम दर्शनीय स्थलों का भरपूर आनंद लिया जा सकता है। यह जियालाल आर्य की सहज और सरल लेखन शैली का ही कमाल है कि पाठक इन स्थलों से सीधा साक्षात्कार करता है। एयरपोर्ट से लेकर इन दर्शनीय स्थलों की देखरेख की व्यवस्था पर लेखक की टिप्पणी पाठकों को यह भी भान कराता है कि हम कहाँ और क्यों पिछड़ते जा रहे हैं। क्यों हमारे देश की लालफीता शाही या अफसरशाही हमें कहाँ और कैसे पीछे की ओर धकेल रही है।

चौदहवें और पंद्रहवें अध्याय में ‘हिंदी और राष्ट्रीय एकता एवं गाँधी जी का राष्ट्रभाषा दर्शन’ शीर्षक से जियालाल आर्य ने देश की हिंदी नीति पर सटीक और बेबाक टिप्पणी की है। देश की आजादी के 67-68 वर्षों के बाद भी हिंदी को उचित स्थान न दिला पाने का प्रत्येक हिंदी भाषी का दर्द उनके शब्दों के माध्यम से उभरता है जो सीधे दिल की गहराइयों तक उतरती है। हिंदी भाषा का क्षेत्र दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। अब यह देश की सीमा से आगे निकलकर अंतर्राष्ट्रीय हो गया है, तमाम देशों के विश्वविद्यालयों में हिंदी की पढ़ाई हो रही है, संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थान दिलाने की कोशिश फिर तेज हो गई हो, लेकिन ऐसी स्थिति में भी हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में मान्यता क्यों नही मिल पा रही है? विश्व हिंदी यात्रा के बहाने यह पुस्तक इस सवाल का जवाब चाहती है।

जियालाल आर्य की यह पुस्तक इस मायने में भी उल्लेखनीय है कि यह हमारी भाषा नीति तय करने में हो रहे विलंब के खतरे से भी हमें आगाह करती है। सिर्फ हिंदी दिवस और हिंदी सम्मेलन के सहारे हिंदी का विकास नहीं हो सकता। 4 दशकों की विश्व हिंदी यात्रा ने तो यह स्पष्ट कर दिया है अब आगे की यात्रा हिंदी सेवियों को स्वयं तय करनी होगी, यह पुस्तक इस विचारणीय बिंदु पर भी पाठकों का ध्यान आकृष्ट करती है।

कुल मिलाकर यह पुस्तक हिंदी के उन्नयन और संवर्द्धन में एक रचनात्मक सहयोग है, जिसकी सर्वत्र सराहना होगी। साथ ही यह पुस्तक हिंदी को विश्व भाषा बनने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी। जरूरत है कि सभी हिंदी भाषी एकजुट होकर नीति निर्धारकों पर यह दबाव बनाए कि वह इस दिशा में शीघ्र कोई ठोस निर्णय लें। इस संदर्भ में लेखक जियालाल आर्य की ये पंक्तियाँ गौर करने योग्य हैं–‘हिंदी का वांड़्मय, विशाल और बेजोड़ है। मान सर्वभाषा का, आपस में होड़ है। खिल गए गुलाब के पटल सभी एक हैं, हिंदी भाषा-भाषी सब अनेकता में एक हैं।’

पुस्तक में कुछ निजी और पारिवारिक संस्मरण भी हैं, जो भारतीय संस्कृति की खुशबू विश्व पटल पर बिखेरती हैं। पुस्तक के अंतिम अध्यायों के बीच 16 पृष्ठों में 32 रंगीन छायाचित्र विश्व हिंदी यात्रा को और भी जीवंत व आकर्षक बनाती है।


Image: Roses in glass
Image Source: WikiArt
Artist : Ferdinand Georg Waldmüller
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