कसबाई समाज की जीवंत कहानियाँ

कसबाई समाज की जीवंत कहानियाँ

‘जसोदा एक्सप्रेस’ सुषमा मुनीन्द्र की कहानियों का संग्रह है, जिसमें जीवन के विविध इंद्रधनुषी रंग हैं, तो भावनाओं की भीनी खुशबू, रिश्तों के खट्टे-मीठे स्वाद और समाज में व्याप्त असामाजिकता की कड़वाहट भी है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ‘जसोदा एक्सप्रेस’ जीवन में व्याप्त बहरंगे भावों की सवारी को लेकर चलती कहानियों का अलबम मानवीय एवं पारिवारिक रिश्तों के बिखरते मोती को एक सूत्र में पिरोने का सुंदर प्रयत्न सुषमा मुनीन्द्र की कहानियों में दीख पड़ता है। वास्तव में सुषमा मुनीन्द्र की कहानियाँ शहरों में नए बसते कसबाई समाज की संवेदना से गहरे जोड़ती हैं।

‘हवा ने रूख बदल लिया है’ शीर्षक कहानी में एकबारगी तो ऐसा लगता है कि पारिवारिक रिश्तों में नारी के अपनत्व, ममत्व के ऊपर हावी होते व्यक्तिगत स्वार्थ की कहानी है। एक पुत्र और भाई का कर्तव्य अपनी पत्नी के आगे हारकर असमर्थता, लाचारी और विवशता में परिणत हो जाता है। घर में तूफान सा मच जाता है, जब ख्याति आंशिक रूप से मानसिक विक्षिप्त देवर को हर हालत में पागलखाने भेजने की जिद कर बैठती है, लेकिन अपने ही पुत्र द्वारा पूछे गए प्रश्न ‘माँ, मैं भी कभी पागल हो जाऊ तो तुम मुझे भी घर से निकाल दोगी’ उसकी अंतरात्मा को झकझोर देता है; नारी हृदय की कोमलता मुखर हो उठती है और तब हवा अपना रूख बदल लेती है और जिस चक्रवात की आशंका थी, वह समाप्त हो जाती है। एक ओर ‘हवा ने रूख बदल लिया है’ कहानी में नारी के स्वार्थ को दर्शाया है, वहीं ‘क्या हो गया है तुम्हारी गैरत को’ कहानी में पुरुष की धन लोलुपता और स्वार्थ चाहना को दर्शाया गया है। दोनों ही कहानी पारिवारिक पृष्ठभूमि को लेकर लिखी गई है। सुषमा मुनीन्द्र ने रिश्तों में भावनाओं के बेमानीपन को बड़ी सहजता से पिरोकर पाठक के समक्ष प्रस्तुत किया है। आज के भौतिकवादी युग में पारिवारिक रिश्तों से आत्मीयता गायब होती जा रही है और व्यक्तिगत कर्तव्य और जिम्मेदारी के स्थान पर अपना नफा-नुकसान देखने लगा है। शिवानंद ऐसा ही पात्र है। जो अपने अनाथ साला दिव्य देव के साथ अमानवीय व्यवहार करता है परंतु मजिस्ट्रेट हो गए उसी दिव्य देव के विवाह की बात सुनकर अपने रिश्ते को भुनाकर माल बटोरने का मौका समझ विवाह में शरीक होने जाता है। अच्छी बात यह है इस कहानी में एक ओर जहाँ जातीय वैषम्य को एक करने की कवायद दिखती है, वहीं दूसरी ओर बलात्कार की शिकार लड़की एक मजिस्ट्रेट द्वारा विवाह कर जीवन संगिनी बनाना हृदयस्पर्शी बन पड़ा है।

परिवेश किस तरह मनुष्य को परिभाषित करता है इसका उदाहरण है ‘अललटप्पू’। अललटप्पू अपनी ही आदी बी द्वारा छली गई एक निम्नवर्गीय लड़की की कहानी है। नन्हीं उम्र से गुम्मन को उसकी आदी बी गल्लाबाई काम सिखने के बहाने धीरे-धीरे अपनी जगह पर पदस्थापित कर देती है परंतु गँवार गुम्मन अच्छे परिवेश और निरंजना के संपर्क में आने पर धीरे-धीरे सुधड़ और चालाक होती जाती है तथा अपने अधिकारों को भी समझने लगती है। यह बात गल्लाबाई के गले नहीं उतरती क्योंकि उसके मन में अपनी ही पोती के लिए कालिख भरी हुई थी। अनुचित शक के कारण गल्लाबाई अंततः मौका पाकर गुम्मन को बेच देती है। कहानी में आश्चर्य की बात तो यह है कि गुम्मन की तुतली आवाज जो उसकी कमी थी; उसका अवगुण था, जिस्म के बाजार में इसे गुण मानकर इसी कमी के कारण गुम्मन की अधिक कीमत मिलती है। इसे हम विडंबना नहीं तो और क्या कहेंगे कि गुम्मन की तुतली आवाज उसके बचपन का बोध कराती है और जिस्म के सौदागर उसका शारीरिक शोषण के साथ-साथ मानसिक और भावनात्मक शोषण भी करते हैं।  राष्ट्रीय समस्या बनती जा रही मानव तस्करी को उद्घाटित करती कहानी ‘अललटप्पू’ हमें अचंभित कर देती है।

समय के साथ खुद को बदलने का संदेश देती है कहानी ‘पिया वसंती’। समय के साथ दांपत्य रिश्तों की बदलती परिभाषा एवं अवधारणाओं की इस कहानी में चार पीढ़ियों के पति-पत्नी और सास बहू के रिश्तों को समय के अनुसार बदलते हुए दिखाया गया है। बाल मनोविज्ञान के सुंदर चित्र खींचती कहानी ‘बाटा बड़ी’ आज की ज्वलंत एवं प्रमुख समस्या की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट कराती है। इस कहानी में भौतिकता की आँधी में बच्चों की कोमलता, निर्मलता और ताजगी को खत्म होते हुए दिखाया गया है।

रिश्तों के ताने बाने से बुनी ‘जसोदा एक्सप्रेस’ की कहानियों में सुषमा मुनीन्द्र ने जीवन के विभिन्न ज्वलंत समस्या को उजागर किया है। एक ओर जहाँ मानवीय रिश्तों में पीढ़ियों के अंतर्गत वैचारिक वैषम्य की कहानी है, वहीं दूसरी ओर ‘जसोदा एक्सप्रेस’ कहानी में परिवहन और प्रशासन की लापरवाही और स्वार्थ लोलुपता जैसे ज्वलंत मुद्दे को भी उठाया गया है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत निगाही को सड़क की सौगात मिलती है और ‘जसोदा एक्सप्रेस’ नामक ट्रैकर किस तरह यात्रियों को सुविधा देने के नाम पर असुविधा में डाल अपने पैसे भुनाने में लगी रहती है, इस मानसिकता को जीवंतता से विचित्र किया गया है। आश्चर्य तो यह है कि लोग भी उसके इस तरह आदी हो गए हैं कि सुविधा के नाम पर मिल रही असुविधा के विरुद्ध आवाज उठाने की बजाए उसे हँस कर ग्रहण कर रहे हैं। ‘ओभर लोडिंग’ की यह समस्या आज सिर्फ निगाही में ही नहीं, हर नगर महानगर में दिखाई देती है, जहाँ प्रशासन को धता बताते हुए परिवहन माफिया यात्रियों को सिर्फ असुविधा ही नहीं देता, दुर्घटना को भी आमंत्रण देता है। ‘जनसाधारण’ कहानी गुंडागर्दी आदि दादागिरी जैसी समस्या को लेकर लिखी गई है, जो वर्तमान नवपूँजीवादी समाज की देन है।

नारी सशक्तिकरण, स्त्री स्वातंत्रय और स्त्री हक की आवाज उठाती कहानी है, ‘हमरी न मानो बधाई से पूछो’। अष्टमी जब अपनी पसंद से विवाह करती है तो अपने ही माता पिता द्वारा त्याग दी जाती है। घर के सामने रहते हुए भी उसके माता-पिता उसकी कोई सुध नहीं लेते। अष्टमी को रुपये की सख्त जरूरत पड़ती है, ऐसी परिस्थिति में भी उसके माता-पिता उसकी मदद नहीं करते बल्कि जब अष्टमी मदद माँगती है बदले में उसे डाँट-फटकार मिलती है। तब अष्टमी अपने हक की बात करती है–‘नहीं देती हो तो सुन लो प्रोपर्टी में लड़कियों का हिस्सा होता है। हमको अपना हिस्सा चाहिए।’ और अपने अधिकार की बात करती हुई कहती है ‘तब सुनो पापा। हम कानूनी शादी किए हैं। अब कानून से हिस्सा लेंगे। अदालत जाएँगे।’ यह हमारे समाज की विडंबना ही तो है कि आज भी स्त्री को दोयम दर्जे का ही माना जाता है। आधी आबादी को अपने हक और अधिकार के लिए भी आवाज उठाने और संघर्ष करने की जरूरत पड़ती है। हरबो ने भी ऐसा ही संघर्ष किया। अपराधी कोई जन्म से नहीं होता, उसे तो परिस्थितियाँ विवश करती है अपराध करने के लिए। हरबो ऐसी ही अपराधिनी है जो लोगों द्वारा छली ही नहीं जाती बल्कि परिस्थिति की शिकार भी है। आदिवासियों की अज्ञानता का फायदा किस तरह लोग उठाते हैं, उनका शोषण किस हद तक किया जाता है; इस पर से पर्दे उठाती कहानी है ‘दर्द ही जिसकी दास्ताँ रही।’

सुषमा मुनीन्द्र की कहानियाँ समाज के विभिन्न परतों को खोलती हुई समाज की कही-अनकही सच्चाइयों से साक्षात्कार कराती हैं। ‘जसोदा एक्सप्रेस’ में पूरा का पूरा एक कस्बा, एक समाज सफर करता नजर आता है जहाँ पारिवारिक भावनाएँ एवं अनुभूतियाँ हैं, तो समस्याएँ भी हैं और समाधान भी। सुषमा मुनीन्द्र का कथा–कौशल कहानी की बनावट और बुनावट में पाठकों को बाँध-सा लेता है और कसवाई समाज के नए बदलते यथार्थ से उसे रू-बरू कर देता है।


Image :Life (triptych) Family
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Artist :Fedir Krychevsky
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कुमारी मनीषा द्वारा भी