विद्यावान गुनी अति चातुर

विद्यावान गुनी अति चातुर

श्रीराम जी के अनन्य सेवक तथा रामदूत के रूप में प्रतिष्ठित, श्री हनुमान जी के व्यक्तित्व और कर्तृत्व को विस्तार से प्रकाशित करनेवाली सद्यः प्रकाशित कृति श्री हनुमान-चरित-मानस के लेखक हिंदी भाषा एवं साहित्य के मूर्धन्य आलोचक आचार्य सियाराम तिवारी जी हैं। आचार्य जी के तुलसीदास विषयक प्रकाशित पुस्तकों में यह पाँचवीं पुस्तक है। आचार्य तिवारी जी के अनुसार यह श्री हनुमान जी के चरितरूपी मानसरोवर है जो उनतीस धाराओं में आप्लावित है।

श्री हनुमान-चरित-मानस में एक ओर जहाँ मैनाक, मायाविनी सुरसा आदि से वार्तालाप के प्रसंग में श्री हनुमान जी की वाणी की विनयशीलता, लक्ष्यैकचक्षुता, कार्यसिद्धि की तत्परता आदि विशेषताओं की चर्चा की गई है वहीं दूसरी ओर जगत जननी माता जानकी से वार्तालाप के क्रम में उनके प्रत्येक अक्षर में दूतजनोचित निपुणता का भी दिग्दर्शन कराया गया है। श्री हनुमान जी द्वारा समुद्र संतरण से संबंधित विविध ग्रंथों में वर्णित प्रसंगों के आधार पर पाठकों के मन में उत्पन्न होने वाली जिज्ञासाओं–यदि उन्होंने छलाँग लगाकर समुद्र को पार किया तो फिर उन्होंने मैनाक पर्वत को कैसे स्पर्श किया, सुरसा का मान-मर्दन तथा सिंहिका का वध, तीनों कर्म कैसे किया?–का समाधान बताते हुए आचार्य जी ने लिखा है कि संपूर्ण विद्याओं के ज्ञान और तपस्या के अनुष्ठान में वृहस्पति की बराबरी करनेवाले श्री हनुमान जी को महाविद्या सिद्ध थी।…योग, तंत्र और मंत्र के ज्ञाता श्री हनुमान जी के लिए छलाँग के बीच ही मैनाक पर्वत से वार्तालाप करना, सुरसा को छकाना और सिंहिका राक्षसी से निपटना आश्चर्य का विषय नहीं है। आगे इन्होंने श्री सीता-हनुमान मिलन को एक वृतांत मात्र न मानकर एक आध्यात्मिक तत्त्व की विशद व्याख्या स्वीकारा है।

दिव्यास्त्र से बंधे श्री हनुमान जी रावण के समक्ष उपस्थित किए जाने पर अकुतोभय होकर दूतकर्म-कुशलता का वास्तविक तथा पूर्ण परिचय देते हैं। इस प्रसंग में अतिनिंदनीय कर्म करनेवाले रावण के लिए हनुमान जी के द्वारा ‘प्रभो’, ‘महामते’ तथा ‘राजन’ जैसे संबोधन की बुद्धिसंगत व्याख्या की गई है। ‘रावण का कर्म चाहे जैसा हो, है तो वह राजा ही और श्री हनुमान जी उनके समक्ष श्री रामचंद्र जी के दूत रूप में उपस्थित हैं।…वे नीतिज्ञ भी थे, अतः वे खूब जानते थे कि एक दूत को किसी राजा के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए। वे राजकीय शिष्टाचार जानते थे और उसी का पालन करते हुए रावण का प्रभो, महामते और राजन जैसे गरिमामय शब्दों से संबोधित किया है।…सचमुच वे श्रीराम के नीति निपुण और दुर्घर्ष दूत थे।’ हनुमान जी की वीरता और वाग्मिता की वंदना करते हुए डॉक्टर तिवारी जी कहते हैं कि हनुमान जी ने अशोकवाटिका का विध्वंश और रावण के बड़े-बड़े वीरों का संहार कर अपनी वीरता से जिस प्रकार राक्षसराज का मान-मर्दन किया था, उसी प्रकार अपनी वाग्मिता से भी उसको उसी के दरबार में बेआबरू कर दिया था। इसी प्रसंग में आचार्य जी के द्वारा लंका विजेता के रूप में हनुमान जी को प्रतिष्ठित करते हुए लंका-दहन का वास्तविक आध्यात्मिक रहस्य भी प्रकाशित किया गया है। हनुमान जी के ब्रह्मचर्य पर प्रश्नचिह्न खड़ा करने वाले अल्पज्ञानगर्वित दुष्ट बुद्धि प्रेरित लोगों की अच्छी खबर ली है।

बारहवें अध्याय में विविध प्रमाणों द्वारा आचार्य जी ने यह पुष्ट किया है कि श्री हनुमान जी अखंड ब्रह्मचर्य के प्रतिमान तथा नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे। वे नृत्यविद्या विशारद होते हुए भी सिद्धाश्रय थे। आगे महावीर भक्त तिवारी जी ने अपने अकाट्य तर्कों के आधार पर यह सिद्ध किया है कि हनुमान जी के रूप में स्वयं रामभक्ति शरीर धारण कर धरती पर अवतरित हुई थी। श्री हनुमान जी ने रामभक्ति का उपदेश नहीं, वरन् उसे करके दिखाया कि राम भक्ति क्या है, और कैसे की जाती है तथा उससे क्या फल प्राप्त होता है।

ग्रंथ के अंतिम अध्याय में स्वामी रामानंद विरचित अति प्रचलित आरती की अति विस्तृत व्यावहारिक व्याख्या की गई है। जिससे मानव को अनेकानेक जीवनोपयोगी शिक्षाएँ मिलती हैं। यह हनुमान जी के संपूर्ण व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व पर प्रचुर और उज्ज्वल प्रकाश डालती है। इस लघु आकार की आरती में संपूर्ण हनुमच्चरित्र समाहित है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि ‘संकट तें हनुमान छुड़ावै’ को चरितार्थ करते हुए अठासी वर्षीय आचार्य जी को यमराज के मुख अर्थात एकाधिक हृदयाघात से बाहर निकालकर नवीन जीवन प्रदान देनेवाले श्री हनुमान जी ने इसे स्वयं लिखवाया है। श्री हनुमान जी के व्यक्तित्व और कर्तृत्व पर लिखित अनेकानेक विशिष्ट ग्रंथों में यह अनुपम तथा अद्वितीय है क्योंकि इसमें श्रद्धा और विश्वास से संपुट भावना, भक्ति, विद्वत्ता तथा वैराग्य का दुर्लभ संगम है।

समासतः कहा जा सकता है कि आचार्य तिवारी जी ने अपने इस वरेण्य ग्रंथ में भक्तवत्सल महावीर श्री हनुमान जी के चरित की ऐसी अनेक विशेषताओं–ब्रह्मचर्यत्व, निरभिमानता, शिष्टाचारिता, दौत्यचातुरी, लोकोपकारिता, आत्मप्रशंसा से विमुखता, मानवता संरक्षक, विश्वशांति संदेशक आदि-आदि की झलक दिखाई है जो संपूर्ण मानव जाति के लिए सदा और सर्वथा प्रेरणाप्रद बनी रहेगी।


Image:Fight between Rama and Ravana 2
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