माटी की सोंधी ख़ुशबू
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- 1 April, 2025
माटी की सोंधी ख़ुशबू
‘जिसके आगे राह नहीं’ भगवती प्रसाद द्विवेदी का कहानी संग्रह मेरे हाथों में आया और जब मैंने उसे पढ़ना आरंभ किया तो लगा कि आज की ग्रामीण परिवेश की कहानियाँ हों, आधुनिक समाज की कहानियाँ हों, कहानियाँ अपना एक विशेष महत्त्व रखती हैं, अपना एक अलग स्थान रखती हैं। अत्यधिक प्रगतिशील और तथाकथित सभ्य समाज से लेकर अत्यंत-पिछड़े और मुख्य धारा से बहिष्कृत परिवेश की जो समस्या है उस पर विचार-विमर्श की भारत में आवश्यकता है। इनकी कहानियों में द्वंद्व को प्रदर्शित करने में, उनकी जिज्ञासा को बनाए रखने की असीम क्षमता है।
‘साँप’ इस संग्रह की पहली और सशक्त कहानी है। एक स्त्री जिसके सामने उसकी छोटी बहन के साथ कुछ लोग दुष्कर्म करते हैं। वह उस वीभत्स हादसे को भूल नहीं पाती और उसमें उलझती चली जाती है। उसे अपने पति का साथ भी बर्दाश्त नहीं होता। उसे लगता है कि उसके शरीर पर साँप रेंग रहा हो। एक स्त्री की मनोदशा का बड़ा ही मार्मिक चित्रण इस कहानी में लेखक ने किया है जो लेखक की पैनी एवं उत्कृष्ट सोच का नमूना है। ‘निठल्ले’ ग्रामीण जीवन में नशाखोरी के जाल में फँसी युवा पीढ़ी के पतन पर प्रकाश डालती है। इस कहानी में नैतिक मूल्यों के विघटन के साथ पारिवारिक विघटन का भी ब-ख़ूबी चित्रण किया गया है। लेखक इस कहानी में समस्याओं को प्रमाण के तौर पर प्रस्तुत करते हैं कि क्या इसे जल्दी समाप्त करना अनिवार्य नहीं है! अगर इसे समाप्त न किया गया तो इसके क्या दुष्परिणाम होंगे, इस पर पाठक सोचने पर मजबूर हो जाता है। ‘आग का दरिया’ में डूबते हुए–दो वर्गों के बीच फ़ासलों को दर्शाती प्रेम कहानी है, तो ‘कवि सम्मेलन’ कई मंचों पर हो रहे भौंडी कविता और अश्लीलता से किया गया काव्यपाठ, लेखक का हृदय द्रवित होता है। साहित्यिक पवित्र मंचों पर हो रही दुर्दशा का, कवियों को मिलने वाली प्रोत्साहन राशि का किस प्रकार बंटाधार किया जाता है, इसका चित्रण लेखक ने संवेदनशीलता और जीवंत तरीक़े से प्रस्तुत किया है।
‘तमाशबीन’ कहानी समाज के उनलोगों पर करारा तमाचा है जो मदद के लिए हाथ ही नहीं बढ़ाते और बातें लंबी-चौड़ी करते हैं कि मैं तुम्हारे साथ हमेशा खड़ा हूँ। नायक की पुत्री बीमार पड़ जाती है, तो उसे अस्पताल या डाॅक्टर के पास ले जाने में उसकी मदद कोई नहीं करता है और जब बच्ची की मृत्यु हो जाती है तब सारे-के-सारे तमाशबीन खड़े हो जाते हैं। एक महानुभाव कहते हैं कि बेटी थी मर गई, अच्छा हुआ। अब आप उसके विवाह के लिए लड़कों के घर चक्कर लगाने और दहेज़ से बच गए। कहानी दोहरे व्यक्तित्व वाले लोगों पर और ओछी सोच रखने वालों पर व्यंग्य कसती है। ‘मेहनताना’ कहानी में एक आदर्शवादी शिक्षक सुधीर के जीवन में आने वाली कठिनाइयों का यर्थाथ चित्रण किया गया है जो अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाता है। वह विद्यालय में यूनियन तैयार करता है जिससे कि शिक्षकों को उचित मेहनताना मिल सके। लेकिन जब अवरोधों के कारण उसकी हिम्मत लड़खड़ाने लगती है तब एक रिक्शेवाले की एक सेठ से पैसों के लिए हो रही चिक-चिक को देखता है। सेठ बिना पैसा दिए जाने लगता है तब रिक्शेवाला उसे कहता है कि बाबूसाहब हम भीख नहीं अपना मेहनताना माँग रहे हैं। इस वाक्य से सुधीर की हिम्मत पुनः बंध जाती है और वह प्रण करता है कि वह अपने हक़ के लिए लड़ेगा।
‘चिट्ठी आयी है’ पढ़े-लिखे उच्च जाति एवं पुरुषत्व के मद से मदमस्त पुरुष के दोहरे व्यक्तित्व के छद्म की कहानी है, तो ‘कैसे-कैसे चक्रव्यूह’ अपनी महत्वाकांक्षा में माता-पिता अपने अबोध बच्चे से उसका बचपन छीन कर उसे फ़िल्मी विज्ञापनों, फ़िल्मी दुनिया में झोक देते हैं। उसके हिस्से का खेल, उसके हिस्से की पढ़ाई सब उससे छीन ली जाती है। यहाँ तक की जब एक दिन बच्चे को शूटिंग के दौरान लाख प्रयास करने के बाद भी रुलाई नहीं आती है तो पिता उसे बुरी तरह से थप्पड़ मारता है ताकि वह रोये। एक दुर्घटना में बंटी के माता-पिता की मृत्यु हो जाती है और फिर वह दूसरे चक्रव्यूह में फँस जाता है, उसके हितैषी बनकर आए राॅबिन पढ़ाई का लालच दे उसे हेरोइन के पैकेट डिलीवरी के काम में लगा देते हैं। जहाँ उसे जेल हो जाती है। कहानी के अंत में उसे राह दिनकर दिखाता है और वह बंटी से कहता है कि सोच बदलो, हिम्मत धरो एक दिन सारी दुविधाएँ और परेशानियाँ दूर हो जाएँगी।
भगवती प्रसाद द्विवेदी की भाषा प्रत्येक कहानी और उसके पात्रों की पृष्ठभूमि के अनुरूप बड़े ही सशक्त ढंग से लिखी गई है। चाहे वह हिंदी हो या भोजपुरी। पात्रों के बीच के संवाद कसे हुए हैं। लेखक ने अपने आसपास समाज में हो रही छोटी-से-छोटी घटना जिससे वह प्रभावित होता है, उन घटनाओं को अपने हृदय में समाहित कर उस घटना को शब्दों के नगीने के साथ कथ्य और कहानी का अद्भुत सामंजस्य बैठाकर एक आभूषण तैयार किया है। कहानी का कथोपकथन जिस पृष्ठभूमि पर कहानी लिखी गई है उसका बेजोड़ नमूना पेश किया है। संग्रह की प्रत्येक कहानी समाज की कमियों पर प्रकाश डालती है और उन समस्याओं का निदान भी करती नज़र आती है। एक कौतूहल से भरी है और आरंभ से अंत तक सभी कहानी पाठकों को बाँधे रखने में, मानवीय संवेदना को जागृत करने में सफल होती हैं।