मुख्यधारा के झाँसे से बाहर की कहानियाँ

मुख्यधारा के झाँसे से बाहर की कहानियाँ

भारतीय साहित्य पुस्तक माला शृंखला की एक कड़ी के रूप में सुरेश उनियाल का यह कहानी संकलन सामने आया है। हिंदी कहानी का संसार बहुत व्यापक और बड़ा है और उसमें दिग्गजों की उपस्थिति, अपनी निजी आलोचकीय व्यवस्था के साथ सघन छाई हुई है। ऐसे में मेरा यह कहना जोखिम भरा काम है कि सुरेश उनियाल मुख्यधारा के तथाकथित मानकों को धता बताने वाले ऐसे विरल कथाकार हैं, जिनके पास अपने विषद मानवीय सरोकार और सार्थक चिंताएँ उजागर करने के अनेक रास्ते हैं। उनका शिल्प अलग है और उनकी अवधारणाएँ किसी भी सीमित दायरे का अतिक्रमण भले ही करें, अभिव्यक्त होने के लिए कभी न तो पठनीयता का अतिक्रमण करती हैं और न ही बौद्धिक लबादे में छिप कर सामने आती हैं। पुस्तक में कथाकार बलराम की एक विस्तृत भूमिका है, जिसमें सुरेश उनियाल के शुरुआती जीवन का हवाला देते हुए उनके आर्थिक संघर्ष की तस्वीर खींची गई है। सुरेश उनियाल की पृष्ठभूमि एक विज्ञान और गणित के छात्र की रही है और संभवतः उन्होंने इन विषयों के लिए अपने रचनात्मक परिसर में भी स्पेस बनाई है। कल्पनाशीलता और आभासी स्वीकृतियाँ जैसी सुरेश उनियाल के पास हैं, वह इसका प्रमाण है। उच्च स्तर पर गणित में इकाई का घनमूल, ऋणात्मक संख्या का वर्गमूल तथा आभासी कार्य जैसी अवधारणा खूब देखने सुनने को मिलती है और इन्हीं के समावेश ने सुरेश के कथाकार में फेंटेसी शिल्प और परालौकिक संसार की वैज्ञानिक खोजबीन की ललक पैदा की है। अपनी इस संग्रह की कहानियों में सुरेश उनियाल अपनी इस रुझान का साक्ष्य देते हैं। यहाँ कुछ कहानियों की बानगी परखी जा सकती है।

पहले ‘लड़की सपने देखती है’ कहानी में झाँकते हैं। सपना एक काल्पनिक-सा बिंब है जिसका प्रयोग कविताधर्मी रचनाकारों ने अपने ढंग से किया है लेकिन सुरेश का कथाकार सपने को उसकी सार्थकता से जोड़ कर ग्रहण करता है अन्यथा सपना महज़ एक भटकाव भी हो सकता है। लड़की की नजर आसमान में टँगे एक सितारे पर है और वह लड़की अपने एक मित्र की सहायता से एक लंबी सीढ़ी बना कर उस सितारे तक पहुँचना चाहती है। वह लड़का उस सितारे और उस सपने का मिथ्या और भ्रम होना समझता है। यहाँ कथाकार की रचनात्मक दृष्टि देखी जा सकती है। वह लड़का उस लड़की को उस सपने का यथार्थ खुद समझने के लिए छोड़ देता है, इस विश्वास के साथ कि लड़की एक दिन यथार्थ का सामना करके लौटेगी जरूर और यही इस कहानी का निहितार्थ है।

‘मानव स्पर्श’ इस संकलन की एक अनूठी कहानी है। इस कहानी के माध्यम से तकनीकी चेतना से संपन्न यंत्र मानव यानी रोबोट दल के सामने एक साक्षात् मानव की स्थापना है जो एक विस्यमयकारी अनुभूति देते हुए मानव स्पर्श की जीवंतता का बोध कराती है। फैंतेसी शिल्प में बुनी हुई यह कहानी यांत्रिकता के सापेक्ष पाठक को मानवीयता के साथ ले जा कर खड़ा कर देती है। कहानी में एक मानव खिलाड़ी का रोबोट के मुकाबले फुटबॉल खेलना रोमांचक प्रसंग है।

इस क्रम में कहानी ‘परखनली शिशुओं के युग में’ सुरेश की कल्पनाशीलता का अलग ही उत्कर्ष देखा जा सकता है। कहानी में भविष्य के एक ऐसे युग का परिदृश्य है जिसमें स्त्री और पुरुष के बीच देह संबंध की परिपाटी समाप्त हो चुकी है। न विवाह की प्रथा बची है, न प्रजनन और माँ के गर्भ से शिशु के जन्म की। मनुष्यों की यौन तृप्ति की राजकीय व्यवस्था है, जो यांत्रिक विधि से सप्ताह में एक बार संपन्न होती है। ऐसे में एक जिज्ञासु को पुरातनकालीन दस्तावेजों से आदिम परिपाटी का पता चला और उसने उस संस्थान की एक लड़की के साथ यह प्रयोग आजमा लिया। उस लड़की के मन में न तो इस संबंध के प्रति उत्सुकता है, न ही उसकी देह ने कभी यांत्रिक तृप्ति से इतना उद्वेग संचार की कल्पना की थी। इसलिए वह लड़के के बहुत कहने पर इसके लिए तैयार हुई और प्रक्रिया के दौरान भी उसने कुछ अतिरिक्त, ‘चरम’ जैसा महसूस नहीं किया, लेकिन जब वह गर्भवती हो गई तो उसमें आनंद का वह अतिरेक संचालित हुआ कि गैर कानूनी होते हुए भी उस लड़की ने शिशु को जन्म देने का निर्णय लिया। इस तरह, एक वैज्ञानिक सोच वाले रचनाकार की कृति में मानवीयता और सृजन का संदेश पाठकों का प्राप्य बना।

संग्रह में सुरेश उनियाल की सभी कहानियाँ जीवन से जुड़े सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक भी, पक्ष से सीधे तादात्म्य स्थापित करती हैं। कहानियों की भाषा जमीनी है और अभिव्यक्ति सूझ-बूझ के साथ पाठक में विलय होने में समर्थ है। इस तरह सुरेश उनियाल साहित्यिक कथाकार होते हुए भी एक कुशल विज्ञान किस्सागो सिद्ध होते हैं।


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Artist : Nicolae Vermont
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अशोक गुप्ता द्वारा भी