बादशाह शहरयार और उसके छोटे भाई की कहानी

बादशाह शहरयार और उसके छोटे भाई की कहानी

शब्द साक्षी है

फारस (पर्शिया) का बहुत पुराना इतिहास हमें बताता है कि वहाँ कभी सस्सानिद नाम के शाही घराने की हुकूमत (ई. 224-641) हुआ करती थी। इस घराने की स्थापना अर्दाशीर नाम के एक आदमी ने की थी। ई. 641 में अरबों के फतह के बाद इस घराने का अंत हो गया।

इसी सस्सानिद घराने में एक बादशाह हुए थे, जिनकी हुकूमत हिंद और चीन तक फैली हुई थी। वे अपनी जनता में काफी मशहूर थे और जनता उन्हें दिलोजान से चाहती थी। सालों कामयाबी के साथ हुकूमत करने के बाद वे खुद को प्यारे हो गए। उनके दो बेटे थे, शहरयार और शाहजमन। शहरयार पूरी तरह जवान हो चुके थे और शाहजमन ने अभी-अभी जवानी की दहलीज पर पाँव रखे थे। लेकिन दोनों ही बहादुर और जंग के मामलों में माहिर थे। दोनों भाइयों में काफी लगाव था। बड़े होने के नाते शहरयार सल्तनत की गद्दी पर बैठे और समरकंद का राज्य अपने छोटे भाई शाहजमन को दे दिया। दोनों भाई अपने-अपने राज्यों की हुकूमत, सूझबूझ और जनता की भलाई को ध्यान में रखते हुए चलाने लगे। वक्त के साथ वे भी अपने पिता की ही तरह एक इंसाफ पसंद और रहमदिल बादशाह के रूप में मशहूर हुए।

बीस साल बीत जाने के बाद बड़े भाई शहरयार के मन में छोटे भाई को देखने की इच्छा हुई और उन्होंने यह बात अपने वजीर से कही। वजीर ने छोटे भाई को आने का बुलावा भेजने की सलाह दी और यह भी कहा कि बुलावे की चिट्ठी और भेंट आदि लेकर वे खुद शाहजमन के पास जाएँगे। बादशाह शहरयार के हामी भरने के बाद वजीर के जाने की तैयारियाँ जोर-शोर से चलने लगी। तरह-तरह के पोशाक, हीरे-जवाहरात, मर्द, औरत, नौकर-चाकर तोहफे के तौर पर देने के लिए तैयार किए जाने लगे। इन सब तैयारियों में करीब चार दिन लग गए। पाँचवें दिन बादशाह ने बुलावे की चिट्ठी वजीर के हाथ में सौंप कर एक बड़े से काफिले को विदाई दी और बेसब्री से भाई से मिलने का इंतजार करने लगे।

वजीर जब काफी दिनों का सफर तय करने के बाद शाहजमन के राज्य की सीमा के करीब पहुँचे तब उन्होंने अपने काफिले के एक आला अफसर को अपने पहुँचने की खबर देने शाहजमन के दरबार में भेजा। वजीर के आने की खबर सुनकर शाहजमन ने अपने दरबार के अनेक अफसरों को वजीर की अगवानी के लिए रवाना किया। शहर की सीमा में दाखिल होने के बाद वजीर सीधे शाही महल गए और शाहजमन के हुजूर में अपने को पेश किया। वजीर ने बादशाह शाहजमन को सलाम किया और उनकी सेहत और खुशी के लिए खुदा से दुआ माँगी। पहली मुलाकात की इन सब रस्मों के बाद वजीर ने शाहजमन को उनके बड़े भाई द्वारा लिखी चिट्ठी पेश की और बताया कि उनके बड़े भाई उनसे मिलने के लिए कितने अधीर हो रहे हैं। शाहजमन ने चिट्ठी पढ़ने के बाद वजीर से कहा, ‘मैं अपने प्यारे बड़े भाई की ख्वाहिश जरूर पूरी करूँगा, लेकिन तीन दिन की आपकी मेहमान-नवाजी के बाद ही हमलोग भाईजान के मुल्क के लिए रवाना हो पाएँगे।’ उसके बाद उसने अपने मुलाजिमों को हुक्म दिया कि महल में उनके लायक जगहों पर वजीर और अफसरों के रहने का इंतजाम किया जाए। उन्होंने सैनिकों के रहने के लिए तंबू लगाने और उनकी जरूरतों का खास ख्याल रखने का भी हुक्म दिया।

तीन दिन बीत जाने के बाद शाहजमन के लंबे सफर की तैयारियाँ की जाने लगीं। उन्होंने अपने बड़े भाई के लिए बहुत से कीमती तोहफे खरीदे। उनकी गैरहाजरी में राज्य की देखभाल कैसे की जाए, इसकी हिदायत उन्होंने अपने वजीर को दी। अपने काफिले के लिए तंबू, ऊँट और खच्चरों को, सामानों और नौकर-चाकरों के साथ शहर के बाहर तैयार रहने का हुक्म दिया गया। शाहजमन खुद भी रात बिताने काफिले के साथ ही आ गए, जिससे वे अगली सुबह तड़के अपने भाई की राजधानी की ओर कूच कर सकें। जब आधी रात बीत गई तब अचानक शाहजमन को याद आया कि उसने जो खास बेशकीमती तोहफा अपने बड़े भाई के लिए चुना था, उसे तो वह महल में ही भूल आया है। शाहजमन उस तोहफे को लेने तुरंत महल की ओर चल पड़े। जब वे अपने कमरे में पहुँचे तब यह देख हैरान रह गए कि उनकी बीवी एक गुलाम रसोइये के साथ उनके बिस्तर पर लेटी है। उन्होंने सोचा कि जब उनके राजधानी में रहते उनकी बीवी की यह हरकत है तब उनकी लंबी गैरहाजिरी में क्या होगा? यह सब सोचते-सोचते उनका गुस्सा बेकाबू हो गया और उन्होंने अपनी तलवार से अपनी बीवी और उस गुलाम के चार टुकड़े कर दिए। इस वाकये के बाद वे बिना किसी को कुछ बताए महल के बाहर आ गए।

सवेरा होते ही उन्होंने अपने काफिले को रवानगी का आदेश दिया और इस तरह उसका सफर शुरू हुआ। लेकिन बार-बार वे बिना यह सोचे नहीं रह पाते थे कि आखिर उनकी बीवी ने उनके साथ ऐसा धोखा क्यों किया? वह बार-बार अपने से पूछते थे–‘उसने ऐसी बदचलनी कैसे की? उसने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? कैसे उसने खुद अपनी मौत को दावत दी?’ जैसे-जैसे अत्यधिक दुःख उन पर हावी होता गया, उनके चेहरे का रंग पीला पड़ गया और उनका शरीर कमजोर पड़ने लगा। यह सब देखकर वजीर ने काफिले को हर पड़ाव और पानी वाले जगहों पर ज्यादा देर रुकने का आदेश दिया। उसने हर वह कोशिश की जिससे शाहजमन का मन शांत हो।

जब शाहजमन का काफिला उनके बड़े भाई की राजधानी के नजदीक पहुँचने को आया तब उन्होंने संदेशवाहक के द्वारा इसकी खबर अपने भाई शहरयार को भेजी। शहरयार अपने वजीरों, अमीरों और अपने देश के खास-खास लोगों के साथ अपने भाई से मिलने आ पहुँचे। शहरयार ने अपनी राजधानी को अपने भाई के सम्मान में सजाने का आदेश दिया। लेकिन भाई से मिलने के बाद उनकी हालत देखकर उन्हें बहुत चिंता होने लगी। शहरयार के पूछने पर शाहजमन ने जवाब दिया, ‘भाई साहब! यह सब सफर की थकान की वजह से है, जो बार-बार पानी और हवा के बदलने से हुई है। लेकिन मैं अल्लाह का शुक्रगुजार हूँ कि उसने मुझे अपने प्रिय और दुर्लभ भाई से दुबारा मिला दिया।’ इस तरह बात को टाल कर शाहजमन ने अपने राज को छुपा लिया। इसके बाद दोनों पूरे शाही सम्मान के साथ राज्य में दाखिल हुए। बड़े भाई ने छोटे भाई के रहने का इंतजाम राजमहल के उस भाग में किया जो आनंद-विहार के लिए बने बागीचे के पास था। कुछ समय बाद भी जब राजा शहरयार को अपने छोटे भाई की हालत में कोई परिवर्तन नहीं दिखा तब उन्होंने सोचा कि शायद अपने देश और अपने लोगों से बिछुड़ने के कारण उनका भाई इतना गमगीन रहता है। फिर भी एक दिन शहरयार ने अपने भाई से पूछा ‘मेरे भाई! मैं देख रहा हूँ कि दिनों-दिन तुम्हारा चेहरा पीला पड़ता जा रहा है और तुम शरीर से कमजोर होते जा रहे हो।’ ‘ओ मेरे भाई!’ बस इतना कहकर शाहजमन ने फिर अपने मन की बात छिपा ली। इसके बाद शहरयार ने अपने राज्य के बड़े-बड़े वैद्यों को बुलवाया और उन्हें आदेश दिया कि उसके भाई का अच्छा से अच्छा इलाज करें। वैद्यों ने एक महीने तक तरह-तरह की शरबतों और दवाओं से शाहजमन का इलाज किया, लेकिन चूँकि शाहजमन का मन बार-बार अपनी बीवी की बदकारी के बारे में ही सोचता रहा, इसलिए उसकी हालत नहीं सुधरी। एक दिन उनके बड़े भाई ने कहा, ‘मैं शिकार पर जा रहा हूँ और चाहता हूँ कि तुम भी मेरे साथ चलो, शायद इससे तुम्हारा दिल बहल जाए।’ शाहजमन ने इनकार करते हुए कहा, ‘भाई जान! दिल इस तरह के आनंद की खोज नहीं कर रहा है और आपसे मेरी दरख्वास्त है कि आप मुझे यहीं अकेला रहने दें।’ दूसरी सुबह जब शाहजमन के भाई शिकार पर जा चुके थे तब शाहजमन अपने कमरे से बाहर आए और आनंद-विहार बागीचे से सटी खिड़की के पास आकर बैठ गए। जब वे इस तरह बैठे-बैठे अपनी पत्नी की बदकारी और बेवफाई के बारे में सोच रहे थे तभी नीचे आनंद विहार के बगीचे का दरवाजा खुला। यह दरवाजा जातीय था और आमलोग का इस दरवाजे से आना-जाना सख्त मना था। दरवाजे से उसके भाई की बीवी, जिसे चारों ओर से बीस गुलाम लड़कियाँ घेरे हुई थीं, आनंद-विहार के अंदर आईं। शाहजमन खिड़की से थोड़ा पीछे हट गया, जिससे बिना दिखे वह नीचे बागीचे को देख सके। धीरे-धीरे शाहजमन की भाभी और बीस गुलाम लड़कियाँ ठीक उसकी खिड़की के नीचे से गुजरीं और बागीचे के बीचों-बीच बने तालाब और फव्वारे के नजदीक पहुँच गईं। तभी शाहजमन ने देखा कि बीस गुलाम लड़कियों ने अपने-अपने बुरके हटा दिए और ताज्जुब कि उनमें से दस गुलाम लड़के थे और दस उसके बड़े भाई की रखी हुई बीवियाँ (रखैल) थीं। दस गुलाम लड़के और लड़कियों ने अपने-अपने जोड़े बना लिए। लेकिन बेगम (शाहजमन की भाभी) जो अकेली रह गई थीं, ने जोर से पुकारा, ‘मेरे पास आओ, मेरे मालिक सईद!’ शाहजमन ने देखा कि बेगम की पुकार सुनकर एक काला-कलूटा हब्शी पेड़ से कूदकर नीचे आया और निडरता से रानी की ओर बढ़ा। बेगम ने आगे बढ़कर उसे गले लगा लिया और हब्शी ने भी रानी को अपनी बाँहों में भर लिया। हब्शी ने अपने पैरों को रानी के पैरों में फँसाकर रानी को जमीन पर लिटा दिया और खुद उसके ऊपर लेट गया। बाकी गुलामों ने भी अन्य लड़कियों के साथ वैसा ही किया। वे इसी तरह दिन ढलने तक एक-दूसरे के आलिंगन में बँधे आनंद उठाते रहे। एक-दूसरे से अलग होने के बाद उनलोग ने फिर से अपने-अपने बुरके पहन लिए और जिस रास्ते आए थे उसी से वापस चले गए। काला हब्शी पेड़ पर चढ़कर पिछले दरवाजे से वापस महल में चला गया और दरवाजे को पहले जैसा बंद कर दिया।

शाहजमन ने जब अपनी भाभी के इस चलन को देखा तब उसने अपने आपसे कहा, ‘या अल्लाह! मेरी तकलीफ तो इससे कहीं कम है! मेरा भाई तो बादशाहों का बादशाह है और ओहदे में मुझसे कई गुना बड़ा है, फिर भी इस तरह का दुष्कर्म उसके ही महल में हो रहा है। इससे तो यही साबित होता है कि सभी औरतें ऐसा करती हैं।’

यह सोचकर उसका उदासीपन जाता रहा और वह बार-बार यह बड़बड़ाने लगा, ‘यह मेरा विश्वास है कि इस दुनिया में कोई भी मर्द, औरतों की बेवफाई से बच नहीं सकता।’ रात का खाना उसने पूरी भूख के साथ खाया। इसके पहले खाना कितना भी लजीज क्यों न हो, वह खाने को हाथ तक नहीं लगाता था। उसके बाद उसने सर्वशक्तिमान अल्लाह का शुक्रिया अदा किया, मन ही मन उसकी प्रशंसा की और बहुत दिनों के बाद उसने एक चैन भरी नींद का आनंद लिया। दूसरे दिन उसने खुशी-खुशी अच्छी तरह नाश्ता किया और धीरे-धीरे उसकी सेहत सुधरने लगी। कुछ ही दिनों में वह शारीरिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ हो गया। जब दस दिन बाद शाहजमन के बड़े भाई वापस लौटे तो अपने भाई को देखकर उन्हें बेहद हैरानी हुई। रात को खाना दोनों ने साथ-साथ खाया और हाथ-मुँह धोने के बाद शहरयार ने अपने भाई से पूछा, ‘मैं तुम्हारी हालत देखकर अचंभित हूँ। मैं तुम्हें अपने साथ शिकार पर ले जाना चाहता था लेकिन तुम्हारी मानसिक और शारीरिक हालत देखकर ऐसा नहीं कर पाया। खुदा की मेहरबानी है कि तुम्हारा वास्तविक रंग तुम्हारे चेहरे पर लौट आया है और तुम पूरी तरह स्वस्थ हो। मुझे यकीन था कि तुम्हारी यह हालत अपने परिवार, अपने दोस्तों, अपनी राजधानी एवं अपने मुल्क से अलग होने के कारण हुई है, इसलिए मैंने तुमसे इस विषय पर सवाल नहीं किया। लेकिन अब जब तुम्हारी दशा सुधर गई है और तुम्हारा स्वाभाविक स्वास्थ्य लौट आया है, तो मैं जानना चाहता हूँ कि तुम्हारे अस्वस्थ होने का क्या कारण था? यह भी बताओ कि तुम पुनः स्वस्थ कैसे हो गए? मुझसे बिना कुछ छिपाये सच-सच बताओ।’ शाहजमन ने अपने भाई के सामने सर झुकाकर जवाब दिया, ‘मैं आपको यह जरूर बताऊँगा कि मेरे अस्वस्थ होने का कारण क्या था? लेकिन मुझसे यह मत पूछिएगा कि मेरे पुनः स्वस्थ होने का कारण क्या है? मैं आपसे गुजारिश करता हूँ कि इस जवाब के लिए मुझ पर दबाव मत डालिएगा।’ शहरयार अपने भाई के इन शब्दों को सुनकर बहुत चकित हुआ और बोला, ‘ठीक है! पहले मुझे यह तो सुनने दो कि तुम्हारे अस्वस्थ होने का कारण क्या था?’ शाहजमन ने जवाब दिया, ‘हे मेरे भाई! जब मैं आपसे मिलने आ रहा था और अपने महल से थोड़ी दूर निकल आया था, तब मुझे याद आया कि आपको तोहफे में देने के लिए जो रत्न मैंने रखे थे, वे तो महल में ही छूट गए हैं।’ इसके बाद शाहजमन ने अपनी बीवी की बेवफाई और किस तरह उसने उसे सजा दी इसकी पूरी कहानी अपने बड़े भाई को सुना डाली। उसने अपने भाई से यह भी बताया कि इसी दुःखद वाकये के कारण उसको गहरा सदमा लगा और यहाँ आते-आते उसकी सेहत बिगड़ गई। शाहजमन की पूरी कहानी सुनकर शहरयार का चेहरा लाल हो गया और उसने कहा, ‘सचमुच औरतें बहुत दगाबाज होती हैं। सचमुच तुम्हारे साथ बहुत बड़ा हादसा हुआ है। तुमने अपनी पत्नी को मार कर आगे आने वाली मुसीबतों से छुटकारा पा लिया है। खुदा की कसम! यदि मेरे साथ ऐसा हुआ होता तो कम से कम हजार औरतों को मारे बिना मुझे सुकून नहीं मिलता। तुम्हारी सेहत ठीक करने के लिए मैं उस परवरदिगार का शुक्रगुजार हूँ, लेकिन मुझे बताओ कि तुम्हारी सेहत के वापस ठीक होने का कारण क्या है?’

शाहजमन ने जवाब दिया, ‘भाई जान! मैं आपसे गुजारिश करता हूँ कि यह न बताने के लिए मुझे माफ कर दें। मुझे डर है कि यदि मैं वापस अपने स्वस्थ होने का कारण आपको बताऊँगा तो उससे आपको कहीं ज्यादा गुस्सा और दुःख होगा जितना कि मुझे हुआ था।’ जब शहरयार किसी भी तरह राजी नहीं हुआ और उसने बिना कुछ छिपाए सब कुछ बताने को कहा, तब शाहजमन ने वह सारी घटना अपने भाई को बताई जो उसने अटारी से अपनी भाभी को करते देखा था और कहा, ‘मैंने जब आपकी बीवी की बेवफाई को देखा, तो मुझे लगा, आप तो मुझसे उम्र में बड़े हैं, मुझसे बड़े बादशाह हैं, जब आपके साथ ऐसा हो सकता है तब मेरी क्या बिसात! इस तुलना से मेरे मन का दुःख जाता रहा और मैं स्वस्थ हो गया।’ सारी बातें सुनने के बाद शहरयार गुस्से से आग बबूला हो उठा और ऐसा लग रहा था कि जैसे वह अपने भाई का ही गला दबा देगा। लेकिन उसने अपने आपको सँभाला और अपने भाई से कहा, ‘मुझे ऐसा नहीं लगता है कि तुम झूठ बोल रहे हो, लेकिन जब तक यह सब मैं अपनी आँखों से न देख लूँ, मैं इसे सच भी तो नहीं मान सकता!’ शाहजमन ने जवाब दिया, ‘ठीक है, भैया! यदि ऐसी बात है तब आप एक बार फिर से अपने शिकार पर जाने का ऐलान करवाएँ। शिकार पर न जाकर हम दोनों भाई महल में छुप जाएँगे और तब आप सारा नजारा खुद अपनी आँखों से देख लीजिएगा।’ शहरयार ने इस बात पर हामी भर दी और तुरंत यह ऐलान करवा दिया कि वह तीन दिन के अंदर शिकार पर जाने वाला है। शहर के बाहर बादशाह के जाने के लिए टेंट आदि लगने लगा। दोनों भाई शहर से बाहर जाकर उन तैयारियों के बीच पहुँच गए जिससे लोग जान जाएँ कि दोनों भाई शहर के बाहर जा चुके हैं। जब रात हुई तब शहरयार ने अपने वजीर को बुलाकर कहा, ‘तुम तीन दिनों तक मेरे स्थान पर बने रहोगे जिससे किसी को यह पता न चले कि मैं यहाँ नहीं हूँ।’ यह कहकर वे दोनों महल में दाखिल हो गए। रात बीतने के बाद दोनों भाई ठीक उसी जगह पहुँच गए जहाँ से शाहजमन ने सब कुछ देखा था। सुबह वहाँ बैठकर शहरयार ने अपनी आँखों से सब कुछ ठीक वैसा ही देखा जैसा शाहजमन ने बताया था। जब शहरयार ने अपनी बीवी की बेवफाई को देखा तब वे जोर-जोर से रोते हुए बोले, ‘सिर्फ बिल्कुल एकांत में ही आदमी दुनिया की बुराइयों से बचा रह सकता है। या खुदा! यह जिंदगी ही बेकार है!’

उसने इसके बाद अपने भाई से कहा कि वह जो करने जा रहा उसके लिए वह उसे मना न करे। शाहजमन के हामी भरने के बाद शहरयार बोले, ‘इसी वक्त चलो! हमलोग अपने राज्य को छोड़कर अल्लाह की बनाई इस धरती पर उनका नाम लेते हुए भटकते हैं, जब तक हमें कोई ऐसा न मिल जाए, जिसके साथ इससे भी बुरा हुआ हो। यदि ऐसा कोई भी न मिला तब जीवन से अधिक हम दोनों मृत्यु का स्वागत करेंगे।’ वे दोनों रात दिन चलते-चलते खारे समुद्र के किनारे से कुछ दूर पर एक मीठे पानी की झील के पास पहुँचे। उन्होंने जी भरकर पानी पिया और आराम करने लगे। जब एक घंटा बीत गया तब उन्हें एक भयानक गर्जना सुनाई दी और ऐसा लगा कि जैसे आसमान धरती से टूट पड़ेगा। उन्होंने देखा कि समुद्र की बड़ी-बड़ी लहरें ऊँची उठ रही हैं। लहरों के बीच से एक काले स्तंभ की तरह का कुछ निकल रहा है। यह स्तंभ आसमान की ओर बढ़ता ही चला गया और धीरे-धीरे चारागाह की ओर जाने लगा। यह सब देखकर वे इतना डर गए कि एक विशाल लंबे पेड़ पर चढ़कर उसकी सबसे ऊँची डाल पर जाकर बैठ गए। उन्होंने वहाँ से बैठे-बैठे यह जानने के लिए कि बात क्या है, इधर-उधर नजर दौड़ाई। उन्होंने देखा कि एक विशालकाय काला जिन्न अपने माथे पर एक बड़ा सा संदूक लिए मैदान की ओर बढ़ा जा रहा था। चलते-चलते वह ठीक उसी पेड़ के नीचे आया जिस पर वे दोनों भाई बैठे थे। उसने उस संदूक को जमीन पर रखा और उसके अंदर से एक कासकेट निकाला। कासकेट लोहे के सात तालों में बंद था। उसने अपनी जंघा के बगल से सात चाभियाँ निकाली और सातों तालों को खोला। उस कासकेट के अंदर से एक सुंदर युवती बाहर निकली, जो देखने में चौदहवीं के चाँद की तरह थी। जिन्न ने उसे उस पेड़ के नीचे बिठाया और उसकी तरफ देखते हुए बोला, ‘ओ मेरे दिल की रानी! कुली–वंशीय मेरी प्रेयसी, जिसे मैंने उसके विवाह की रात ही इसलिए अगवा कर लिया था जिससे मेरे अलावा और कोई इसका उपभोग न कर सके, अब मैं थोड़ी देर तुम्हारी जंघा पर सर रखकर सोना चाहता हूँ।’ इतना कहकर वह जिन्न उस सुंदरी की जंघा पर सर रखकर सो गया और थोड़ी ही देर में खर्राटे भरने लगा। इतने में उस सुंदरी की नजर लंबे पेड़ की सबसे ऊपरी डाल पर बैठे दोनों भाइयों पर पड़ी। उस सुंदरी ने धीरे से जिन्न के सर को अपनी जंघा पर से हटाकर जमीन पर रख दिया और दोनों भाइयों को नीचे आने का इशारा किया। दोनों भाइयों ने इशारों में ही बताया कि वे जिन्न से इतने भयभीत हैं कि नीचे नहीं आ सकते। उनलोग के ऐसा करने पर उस सुंदरी ने उन्हें इशारों में ही बताया कि यदि वे दोनों नीचे नहीं आए तो वह जिन्न से कहकर उन्हें मरवा देगी। मजबूरन दोनों भाइयों को नीचे उतरना ही पड़ा। उसके बाद उस सुंदरी ने उनके साथ संभोग करने की इच्छा जाहिर की। दोनों भाई बगल में सोये जिन्न को देख-देखकर भय से काँप रहे थे, लेकिन प्राणों के भय से उन्हें सुंदरी की इच्छा पूरी करनी ही पड़ी। उसके बाद उस युवती ने अपने बटुए से एक गठीला धागा निकाला जिसमें पाँच सौ सत्तर अँगूठियाँ बँधी थीं। वह उसे उन दोनों भाइयों को दिखलाकर बोली, ‘यह अँगूठियाँ उनलोग की है जो अब तक इस मूर्ख और घिनौने जिन्न की नाक तले मेरे साथ संबंध स्थापित कर चुके हैं और यह मूर्ख सोचता है कि मैं अछूती हूँ। इसने जरूर मुझे मेरे विवाह की रात ही उठा कर अपने उपभोग के लिए सात तालों में बंद कर दिया है, लेकिन मैंने अपनी इच्छानुसार जब जिससे चाहा संबंध बना लिया और वह जान भी न पाया। यह इस बात का सबूत है कि कोई औरत जब कुछ करने की ठान लेती है तो उसे हर हालत में करके ही छोड़ती है। अब तुम दोनों भी अपनी अँगूठियाँ मुझे दो।’

उसके बाद उसने जिन्न के सर को फिर अपनी गोद में रख लिया और उन दोनों भाइयों से कहा, ‘अब तुम दोनों यहाँ से जितनी दूर भाग सको भाग जाओ।’ दोनों भाई अल्लाह-अल्लाह कहते हुए वहाँ से भाग खड़े हुए। जब वे वहाँ से काफी दूर आ गए तब शहरयार अपने भाई से बोले, ‘यह जिन्न तो हमसे भी कई गुना शक्तिशाली और समर्थ है, फिर भी इसकी नाक के नीचे वह युवती उसके साथ बेवफाई करती है। तब तो जो हमारी पत्नियों ने हमारे साथ किया है वह कौन सी बड़ी बात है। अतः चलो अब घर लौट चलते हैं। दोनों शहरयार के राज्य में वापस लौट आए। बादशाह ने वजीर को काफी ईनाम बख्शीस दिया और वापस महल में लौट आए। बादशाह शहरयार ने अपने ससुर को बुलवाया और उनसे सारी बातें कहीं। उसके बाद शहरयार ने उन्हें हुक्म दिया कि वह अपने बेटी के दो टुकड़े कर दें। शहरयार ने खुद अपनी अन्य सोलह रानियों और सोलह गुलामों को मौत के घाट उतार दिया। इन सब घटनाओं के बाद शाहजमन ने अपने भाई से वापस जाने की इजाजत माँगी और कुछ दिनों बाद वह अपने वतन वापस लौट गया।

अपनी बेगम की बेवफाई का बादशाह शहरयार के दिल पर गहरा असर पड़ा और उनका औरत जात पर से ही भरोसा उठ गया। इसी मनःस्थिति में बादशाह शहरयार ने ऐलान करवाया कि वह हर दिन एक कुँवारी युवती से विवाह करेगा और रात उसके साथ बिताने के बाद सबेरा होने पर उसे मौत के घाट उतार देगा। शहरयार के राज्य में इसके बाद यही सिलसिला चलता रहा। धीरे-धीरे जिन लोगों की लड़कियाँ थीं वे लोग बादशाह के हाथों मारे जाने के भय से राज्य छोड़कर जाने लगे। सभी शहरयार को बद्दुआ दे रहे थे। ऐसी हालत में एक दिन जब शहरयार ने अपने वजीर से कहा कि मेरे लिए कोई लड़की खोज लाओ, तब वजीर बहुत चिंतित हो गया। वजीर की दो लड़कियाँ थीं, बड़ी का नाम शहरजाद और छोटी का नाम दुनियाजाद था। शहरजाद बड़ी विदुषी थी और उसने तरह-तरह की किताबें पढ़ी थीं। उसके अपने जातीय पुस्ताकालय में हजार से भी ज्यादा किताबें थीं। उस दिन जब उसके पिता घर आए तब उसने अपने पिता के माथे पर आई चिंता की रेखाओं को पढ़ लिया और बोली, ‘अब्बा जान! क्या बात है? आप इतने चिंतित क्यों लग रहे हैं?’ वजीर ने पूरी बात शुरू से अंत तक अपनी बेटी को बतलाकर कहा, ‘मुझे इस बात का भय है कि यदि मैं आज किसी युवती की व्यवस्था बादशाह से शादी करने के लिए नहीं कर सका, तो पता नहीं वे मेरे साथ क्या सुलूक करेंगे?’ इस पर शहरजाद ने हैरान होते हुए कहा, ‘या अल्लाह, अब्बा जान, बादशाह का यह खूनी खेल कब तक चलता रहेगा? यदि आप इजाजत दें, तो मैं कोई उपाय बताऊँ?’ वजीर ने कहा, ‘ठीक है, बोलो!’ तब शहरजाद बोली, ‘आप शादी के लिए मेरा हाथ बादशाह शहरयार के हाथों में दे दीजिए, या तो मैं बच जाऊँगी या नहीं तो अपनी मुस्लिम जनता की एक-एक बेटी की जान बचाने के लिए शहीद हो जाऊँगी।’ इस पर वजीर ने कहा, ‘ऐ मूर्ख लड़की! क्या तेरी मत मारी गई है, जो अपने को ऐसे खतरे में डालने के लिए तैयार हो गई है? जान लो कि जिन लोगों को दुनियादारी नहीं आती वे अपने लिए बदकिस्मती को बुलावा देते हैं। तुम्हें इन बातों का कोई तजुर्बा नहीं है, इसलिए तुम ऐसा कह रही हो।’

अपने पिता के ऐसा कहने पर शहरजाद बोली, ‘आप मुझे एक अच्छा काम करने दीजिए एवं बादशाह को मुझे मारने दीजिए, कम से कम मैं अपने दूसरे लोगों के लिए काम तो आऊँगी!’ तब वजीर ने कहा, ‘इससे तुम्हें क्या फायदा होगा? जब तुम्हारी जान ही चली जाएगी। मुझे तो तुम्हारी बातों से ऐसा लगता है कि तुम्हारे साथ भी कुछ वैसा ही होगा जैसा कि एक बैल और गदहे के साथ हुआ था।’

जब शहरजाद बोली, ‘पिता जी! बैल और गदहे के साथ क्या हुआ था?’ तब वजीर ने बैल और गदहे की कहानी कहना शुरू किया।

बैल और गदहे की कहानी

‘बहुत पहले किसी शहर में एक व्यापारी रहता था। यह व्यापारी काफी धनी था। उसके पास अनेक नौकर-चाकर, गाय, बैल और ऊँट थे। वह अपनी पत्नी और परिवार के साथ गाँव में रहता था। उसे खेती-बाड़ी और पशुपालन का अच्छा अनुभव था। खुदा की असीम कृपा से उसे ऐसी शक्ति मिली थी कि वह जानवरों की बोली समझ सकता था। लेकिन इसके साथ शर्त यह थी कि यदि वह यह बात किसी को बताएगा तो तुरंत उसकी मौत हो जाएगी। इसलिए वह इस बात को सबसे गुप्त रखता था।

उसके अस्तबल में एक बैल और एक गदहा था। एक दिन शाम को जब वह बाहर अपने बच्चों के साथ खेल रहा था तब उसने बैल को गदहे से यह कहते सुना, ‘हे भोर में सबको जगाने वाले! आपकी सेहत अच्छी बनी रहे! आप हमेशा अच्छा खाना खाते हैं। आपके चारों ओर की जगह साफ-सुथरी बनी रहती है। जब कभी मालिक शहर की ओर जाते हैं, तब आपकी सवारी करते हैं, नहीं तो आप आराम से अपना दिन बिताते हैं। एक मैं हूँ कि तड़के सबेरे मुझे मालिक के आदमी खेत पर ले जाते हैं और मेरे कंधों पर हल का जुआ रख देते हैं। दिनभर में खेत जोतता हूँ और बीच-बीच में मेरी पीठ पर कोड़े भी बरसाये जाते हैं। शाम ढलने के बाद मुझे अस्तबल में लाया जाता है और मेरे सामने भूसा और बीन खाने के लिए रख दिया जाता है। मेरी चारों ओर गंदगी फैली रहती है और गोबर की महक आती है। रात में मेरे पूरे बदन में दर्द होता रहता है और मैं ठीक से सो भी नहीं पाता। जबकि आप आराम से सोते हैं और दिनभर आराम से रहते हैं, सिवाय उन दिनों को छोड़कर जब कभी-कभार मालिक आप पर सवारी करते हैं। बैल की बात सुनने के बाद गदहे ने कहा, ‘लोग ठीक ही कहते हैं बैल-बुद्धि। सचमुच तुम्हें दुनियादारी का कोई ज्ञान नहीं है और न तुम्हारे पास कोई अच्छा सलाहकार ही है। तुम सुबह से शाम तक पूरे जोश में सब काम करते हो और शाम को जब भूसे और बीन का खाना तुम्हें दिया जाता है, तब तुम खाने के लिए बड़े उत्साह से दौड़ पड़ते हो। यह सब देखकर, भला कौन तुम्हारी ओर ध्यान देगा? सब तुम्हारी स्थिति मुझसे भी अच्छी हो जाएगी। कल सबेरे जब मालिक के आदमी तुम्हें खेत पर ले जाएँ, तब थोड़ी देर काम करने के बाद तुम जमीन पर बैठ जाना। किसान कितना भी तुम्हें उठाने की कोशिश करे, तुम उठना मत। उनकी काफी कोशिशों के बाद तुम उठकर हल चलाने लगना। दिन में दो तीन बार ऐसा करना। शाम को मालिक के आदमी जब तुम्हें अस्तबल में लावें तब तुम खाने को छूना भी मत, उसे वैसे ही छोड़ देना। सुबह जब वे तुम्हें खेत पर ले जाने के लिए आवें, तुम अपना पेट फुलाकर पैर फैला देना। वे समझेंगे कि तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है। ऐसा तुम एक-दो या तीन रोज करना, तब देखना तुम्हें मेहनत मशक्कत से छुट्टी मिल जाएगी और तुम्हारी हालत सुधर जाएगी।’

गदहे की बात सुनकर बैल बहुत खुश हो गया और उसने मन ही मन सोचा कि यह गदहा तो सचमुच उसका बहुत अच्छा दोस्त है। दूसरे दिन बैल ने खेत पर जाकर वही सब किया जो उसे गदहे ने करने को कहा था। शाम को जब बैल के सामने खाना दिया गया तो उसने खाने को छुआ तक नहीं और आँखें बंद कर लेटा रहा। सुबह जब लोग उसे लेने आए तब बैल का पेट फूला हुआ देखकर वे चिंता में पड़ गए। किसान ने आकर बैल की जब यह दशा देखी तो उसे भी विश्वास हो गया कि बैल जरूर बीमार पड़ गया है। किसान अपने मालिक, व्यापारी के पास गया और उसे सारी बातें बता दीं। व्यापारी ने तो बैल और गदहे की सारी बातें पहले ही सुन रखी थी, इसलिए उसे सारी बात समझ में आ गई। उसने किसान से कहा, ‘ठीक है! आज बैल की जगह गदहे को ले जाओ और उसी से खेत जुतवाओ।’ किसान ने वैसा ही किया। दिनभर की मेहनत के बाद जब गदहा शाम को अस्तबल में लौटा तब उसकी हालत पस्त थी। काम करते समय बीच-बीच में छड़ी से उसकी पिटाई भी होती रही थी। इधर बैल की हालत काफी अच्छी थी। उसने दो दिन आराम से अपना चारा खाकर अस्तबल में बिताये थे। जब शाम को गदहा अस्तबल में आया तब बैल ने बड़े जोश से उसका स्वागत किया और कहा, ‘खुदा आपका भला करे! आपकी सलाह के कारण मेरी हालत में पहले से सुधार आ गया है। मैंने दिनभर आराम किया है और अब चैन से बैठकर अपना चारा खा रहा हूँ।’ गदहे ने बैल की बात का कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि वह थकान और छड़ी से लगी मार के कारण काफी तकलीफ में था। वह सोचने लगा कि यदि उसने जल्दी कोई उपाय न किया तो उसकी मुसीबत तो बढ़ती ही जाएगी। यहाँ तक कि मैं मर भी सकता हूँ। इतनी कहानी सुनाकर वजीर ने अपनी बेटी से कहा, ‘इसलिए मैं कहता हूँ तुम चुपचाप घर में बैठी रहो वरना तुम अपने इस तरह के मूर्खतापूर्ण कार्य से अपनी जान गँवा बैठोगी। खुदा की कसम! मैं तुम्हें प्यार से सही सलाह दे रहा हूँ, जिसे तुम्हें मानना चाहिए।’ अपनी पिता की बातें सुनने के बाद शहरजाद बोली, ‘पिता जी, मैं समझती हूँ कि मुझे बादशाह के पास जाना चाहिए और मुझे उससे शादी कर लेनी चाहिए।’ वजीर अपनी बेटी की बात सुनकर बोले, ‘मैं तुम्हें ऐसा नहीं करने दूँगा और यदि तुम अपनी हरकतों से बाज नहीं आई तो मैं तुम्हारे साथ वही सुलूक करूँगा जो व्यापारी ने अपनी पत्नी के साथ किया था।’ शहरजाद ने पूछा, ‘व्यापारी ने अपनी पत्नी के साथ क्या किया था?’ वजीर बोला, ‘ठीक है, तब सुनो! गदहा जब अस्तबल में लौट आया, उस समय व्यापारी अपने घर के छज्जे पर अपनी पत्नी और परिवार के साथ बैठा था, क्योंकि उस दिन पूनम की चाँदनी रात थी। छज्जे से अस्तबल दिखाई पड़ रहा था। जब व्यापारी अपने बच्चे के साथ छज्जे पर खेल रहा था तब उसने गदहे को बैल से कहते सुना, ‘यह बताओ, कल तुम्हारा क्या करने का इरादा है?’ बैल ने जवाब दिया, ‘करना क्या है? मैं तुम्हारी सलाह पर अमल करूँगा और क्या? तुम्हारी सलाह के कारण ही तो मुझे सुख और आराम मिला है। इसलिए जब वो मेरे सामने खाना लाएँगे, तब मैं पिछली बार की तरह ही खाने से इनकार कर दूँगा और पेट फुलाकर पड़ा रहूँगा।’

गदहे ने सर हिलाते हुए कहा, ‘सावधान दोस्त, सावधान! ऐसा कभी मत करना!’ तब बैल ने कहा, ‘क्यों?’ गदहे ने जवाब दिया, ‘क्योंकि मैंने मालिक को अपने आदमियों से कहते सुना है कि यदि कल भी बैल अपना खाना न खाए और काम पर जाने के लिए न उठे तो उसे कसाई के यहाँ दे आना। मालिक ने आगे यह भी कहा कि कसाई से कहना कि बैल को जबह कर उसका माँस गरीबों में बाँट दें और उसकी खाल से एक अच्छा चमड़ा बनावे। अब मुझे तुम्हारे लिए बहुत चिंता हो रही है। मेरी सलाह मानो, जिससे तुम्हारे साथ कोई हादसा न हो जाए। कल जब मालिक के लोग खाना तुम्हारे सामने लाएँ तब तुम जल्दी से खाना खाकर काम के लिए खेत पर चले जाना। यदि तुमने ऐसा न किया, तो मुझे पूरा विश्वास है कि हमारे मालिक तुम्हें जरूर मरवा देंगे।’ गदहे की बात सुनकर बैल उठ खड़ा हुआ और गदहे को धन्यवाद देते हुए बोला, ‘कल मैं खुशी-खुशी काम पर चला जाऊँगा।’ व्यापारी यह सब बातें अपने छज्जे पर बैठा सुन रहा था। अगली सुबह व्यापारी और उसकी पत्नी बाहर जाने के लिए अपनी बैलगाड़ी के पास गए। गाड़ीवान जब बैल को गाड़ी में जोतने के लिए लाया, तब बैल ने अपने मालिक को देखकर पूँछ हिलानी शुरू कर दी और उसके चारों ओर घूम-घूम कर अपना प्यार जताने लगा। यह सब देखकर व्यापारी को बड़े जोर की हँसी आ गई और वह उस समय तक हँसता रहा जब तक वह अपनी पीठ के बल न गिर पड़ा। व्यापारी की पत्नी ने पूछा, ‘आप क्यों इतनी जोर-जोर से हँस रहे हैं?’ व्यापारी ने जवाब दिया, ‘मैं किसी गुप्त बात पर हँस रहा था, जो मैंने सुना था और देखा था, लेकिन मैं वह बात किसी से कह नहीं सकता। यदि मैंने किसी से कहा तो मैं अपनी मौत को खुद बुलावा दूँगा। व्यापारी की पत्नी बोली, ‘चाहे कुछ भी हो जाए, तुम्हें वह बात मुझे बतानी ही होगी, भले ही तुम मर ही क्यों न जाओ।’ व्यापारी बोला, ‘मैं तुम्हें यह नहीं बता सकता कि जानवर और पक्षी अपनी भाषा में क्या बातें करते हैं। क्योंकि इसमें मेरे मरने का भय है।’ व्यापारी की पत्नी बोली, ‘हे भगवान! तुम झूठ बोल रहे हो। यह सिर्फ एक बहाना है। तुम मेरे अलावा और किसी पर नहीं हँस रहे थे और अब बहाना बना रहे हो। लेकिन भगवान की कसम, यदि तुम मुझे इसका कारण नहीं बताओगे तो मैं तुम्हारे साथ कोई संबंध नहीं रखूँगी।’ यह कहकर व्यापारी की पत्नी बैठ गई और रोने लगी। व्यापारी ने पत्नी से कहा, ‘ऐसा क्या हो गया है जो तुम रो रही हो? खुदा से डरो और इस बात को भूल जाओ। मुझसे दुबारा यह सवाल मत करना।’ व्यापारी की पत्नी बोली, ‘यह बहुत जरूरी है कि तुम मुझे अपने हँसने का कारण बताओ।’ व्यापारी ने जवाब दिया, ‘मैंने जब खुदा से प्रार्थना की थी कि वे मुझे जानवरों और पक्षियों की बोली समझने की शक्ति दें, तब मैंने यह कसम भी खाई थी कि यदि मैं यह राज किसी को बताऊँगा तो वहीं के वहीं मेरी मौत हो जाएगी।’

व्यापारी की पत्नी बोली, ‘जो भी हो! तुम मुझे बताओ कि बैल और गदहे के बीच में क्या गुप्त बात हुई? चाहे इसके लिए तुम्हें अभी के अभी मरना ही क्यों न पड़े।’

जब व्यापारी की पत्नी किसी भी तरह न मानी तब व्यापारी ने कहा, ‘ठीक है! तुम अपने माता-पिता, हमारे सारे सगे-संबंधियों और पड़ोसियों को बुला भेजो।’ व्यापारी की पत्नी ने वैसा ही किया। व्यापारी ने काजी और अपने मुंशी को अपनी वसीयत बनाने के लिए बुलवा भेजा। व्यापारी अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था। वह उसके बच्चों की माँ थी और उसने उसके साथ काफी वर्षों तक जीवन बिताया था। जब सभी जमा हो गए तब व्यापारी ने उन्हें संबोधित करते हुए, ‘यह एक अजीब कहानी है। यदि मैं इसका राज बता दूँगा, तो मैं मर जाऊँगा।’ व्यापारी की बातें सुन वहाँ जमा सभी लोग उसकी पत्नी को समझाने लगे। वे कहने लगे, ‘खुदा के लिए अपनी इस जिद्द को छोड़ो और बात को समझो, नहीं तो तुम्हारा पति और तुम्हारे बच्चों का पिता मर जाएगा।’ लेकिन उस औरत ने पलटकर जवाब दिया, ‘मैं अपनी बात से पीछे नहीं हटूँगी, जब तक मेरे पति मुझे यह राज नहीं बता देते, इसके लिए चाहे उन्हें मरना ही क्यों न पड़े।’ व्यापारी की पत्नी की बातें सुनकर सब लोगों ने उससे आग्रह करना छोड़ दिया। इसके बाद व्यापारी लोगों के बीच से उठा और अपने को मरने के पहले शुद्ध करने के लिए घर के बाहर बने छोटे घर की तरफ चला गया। व्यापारी ने अपने छोटे घर के अहाते में पचास मुर्गियाँ एवं एक मुर्गा पाल रखा था। जब व्यापारी स्नान आदि करने छोटे घर की तरफ जा रहा था, तब उसने अपने एक कुत्ते को मुर्गे से कहते सुना, जो एक मुर्गी से दूसरी मुर्गी के बीच उछल-कूद कर रहा था। कुत्ता मुर्गे से कह रहा था, ‘लगता है तुम्हारी अक्ल मारी गई है, इसलिए तुम्हारा व्यवहार इतना शर्मनाक है। क्या तुम्हें आज के दिन भी यह सब करने में शर्म नहीं आ रही है?’

मुर्गे ने पूछा, ‘आज के दिन में ऐसी क्या खास बात है?’ कुत्ते ने जवाब दिया, ‘क्या तुम्हें नहीं मालूम कि आज हमारे मालिक अपने को मरने के लिए तैयार कर रहे हैं? उनकी पत्नी इस बात पर अड़ी हुई है कि वह उन्हें वह राज बता दे जो हमारे मालिक को खुदा से वरदान स्वरूप मिला है। यदि मालिक ऐसा करेंगे तो निश्चित ही उनकी मौत हो जाएगी। हम सभी कुत्ता आज इसी बात का शोक मना रहे हैं और एक तुम हो कि मुर्गियों के पीछे दौड़ रहे हो। यह क्या कोई मौज-मस्ती करने का समय है?’ तब मुर्गे ने जवाब दिया, ‘अगर ऐसी बात है तो मैं समझता हूँ कि हमारे मालिक के पास अक्ल नाम की कोई चीज है ही नहीं। यदि वे अपनी एक बीवी को नहीं सँभाल सकते तो उनके लिए आगे जीना बेकार है। मेरे पास पचास मुर्गियाँ हैं और मैं सभी को अच्छी तरह अपने अधीन रखता हूँ। हमारे मालिक की तो एक बीवी है। तो क्या उनके पास इतना बुद्धि-विवेक नहीं कि वे उसे सँभाल सकें?’ कुत्ते ने पूछा, ‘तब तुम ही बताओ कि हमारे मालिक को इस मुसीबत से बाहर निकलने के लिए क्या करना चाहिए?’ कुत्ते की इस बात पर मुर्गे ने जवाब दिया, ‘हमारे मालिक को मलबरी के डाल की एक छड़ी बनानी चाहिए और उससे तब तक अपनी बीवी को पीटना चाहिए जब तक वह चिल्ला कर यह न कह उठे कि मैं पश्चात्ताप करती हूँ और यह भी कि, या खुदा! अब मैं आपसे जब तक मैं जीवित हूँ, ऐसा प्रश्न नहीं करूँगी। लेकिन हमारे मालिक को न तो बुद्धि है और न ज्ञान है।’ यह कहानी सुनाकर वजीर ने शहरजाद से कहा, ‘यदि तुमने भी मेरी बात नहीं मानी तो मैं भी तुम्हारे साथ वही करूँगा जो व्यापारी ने अपनी पत्नी के साथ किया था।’ शहरजाद बोली, ‘उसने क्या किया था?’ वजीर ने जवाब दिया, ‘व्यापारी ने जब मुर्गे की ज्ञान भरी बातें सुनीं, जो उसने कुत्ते से कही थी, तब वह जल्दी से उठा और पत्नी के कमरे की ओर गया (इसके पहले उसने मलबरी की टहनी काटकर एक छड़ी बना ली और उसे कमरे में छिपा दिया था) और अपनी पत्नी से बोला, ‘जरा यहाँ इस कमरे में आना, जिससे मैं तुम्हें वह राज एकांत में बता सकूँ।’ जब व्यापारी की पत्नी अंदर आ गई तब उसने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। उसके बाद वह छड़ी से अपनी बीवी की पीठ पर, कंधे पर और पैरों पर जोर-जोर से पिटाई करने लगा और साथ-साथ बोलता भी जा रहा था–क्या तुम मुझसे ऐसा सवाल करोगी, जिससे तुम्हारा कोई ताल्लुक नहीं है? व्यापारी की बीवी बोली, ‘जो मैंने किया उसके लिए मुझे बहुत अफसोस है। आगे से, खुदा कसम! कभी कोई सवाल नहीं पूछूँगी। मैंने जो किया, सच में उसके लिए बहुत पछता रही हूँ।’ उसके बाद उसने अपने पति के पैरों और हाथों को चूमकर अपना आदर जताया और एक आज्ञाकारी पत्नी की तरह पति के कहने पर कमरे से बाहर आई।

व्यापारी के सास-ससुर और जितने भी लोग वहाँ आए थे, उन्होंने इस पूरी घटना का मजा लिया और जो उदासी और गम का माहौल छा गया था वह आनंद और खुशी में बदल गया।

उस व्यापारी ने पारिवारिक अनुशासन अपने मुर्गे से सीखा और दोनों पति-पत्नी साथ-साथ खुशी-खुशी मृत्युपर्यंत रहे। यह कहानी सुनाकर वजीर ने अपनी बेटी से कहा, ‘यदि तुम इस मामले में अपने कदम पीछे नहीं हटाओगी, तो मैं भी तुम्हारे साथ वहीं सुलूक करूँगा जो व्यापारी ने अपनी पत्नी के साथ किया था।’ लेकिन उसने अपने पिता की बातों को सुनने के बाद भी दृढ़ निश्चय होकर कहा, ‘पिता जी! मैं अपनी बात से पीछे नहीं हटूँगी और आपकी कहानी मुझे मेरे लक्ष्य से नहीं डिगा सकती। यदि आपने मुझे वैसा करने से रोका जैसा मैं चाहती हूँ तब मैं खुद बादशाह के पास वली जाऊँगी और अपने को उनके सामने शादी के लिए पेश करूँगी।’ शहरजाद के ऐसा कहने पर उसके पिता ने पूछा, ‘क्या तुम्हारे लिए ऐसा करना जरूरी है?’ तब उसने जवाब दिया, ‘बिल्कुल!’ इसके बाद वजीर बादशाह शहरयार के पास गया और उसने अपनी बेटी के साथ हुई सारी बातें उन्हें बतला दीं। बादशाह शहरयार वजीर की सारी बातें सुनकर आश्चर्यचकित रह गए, क्योंकि उन्होंने अपवाद के तौर पर वजीर की बेटी को अपने इस विवाह वाले मामले से अलग रखा था। बादशाह ने वजीर से कहा, ‘ऐसा कैसे हो सकता है? तुम तो जानते ही हो कि मैंने अल्लाह के नाम पर कसम खाई है कि मैं जब किसी औरत के साथ रात बिता लूँगा, तब सुबह तुमसे कहूँगा कि इसे ले जाओ और इसका सर कलम कर दो, नहीं तो मैं तुम्हारा सर कलम कर दूँगा।’ तब वजीर ने कहा, ‘अल्लाह! आपकी उम्र दराज करे और आपका ऐश्वर्य बना रहे। मैं क्या करूँ? यह मेरी बेटी की जिद्द है और वह किसी भी तरह मानने को तैयार ही नहीं है। वजीर की बात सुनने के बाद शहरयार बोला, ‘ठीक है, जाओ और उसे तैयार करके आज रात मेरे पास ले आना।’

वजीर अपनी बेटी के पास लौट आया और बादशाह का हुक्म उसे सुनाकर बोला, ‘खुदा के लिए अपने पिता को अकेला मत कर देना।’ लेकिन शहरजाद बादशाह का हुक्म सुनकर बहुत खुश हुई और जाने की तैयारी करने लगी। उसने अपनी बहन दुनियाजाद से कहा, ‘ध्यान से मेरी बात सुनो और जैसा मैं कह रही हूँ वैसा ही करना। बादशाह के पास जाने के बाद मैं वहाँ से किसी को तुम्हें बुलाने भेजूँगी। मेरे पास आने के बाद जब तुम देखना कि बादशाह मेरे साथ अपनी इच्छा पूरी कर चुका है, तब तुम मुझसे कहना, ‘ओ मेरी बहना! यदि तुम्हें नींद नहीं आ रही हो तो मुझे कोई नई कहानी सुनाओ जिससे बाकी रात कटे।’ और तब मैं तुम्हें कहानी सुनाऊँगी। यदि अल्लाह ने चाहा तो शायद इस तरह की कहानियों के कारण बादशाह अपने इस खूनी खेल को बंद कर दें।’

दुनियाजाद हँसी-खुशी यह सब करने के लिए तैयार हो गई। जब रात हुई तब वजीर शहरजाद को लेकर बादशाह के पास पहुँचा। बादशाह शहरजाद को देखकर काफी खुश हुए। उसके बाद बादशाह शहरजाद को अपने सोने के कमरे में ले गए और उसके साथ सोने की तैयारी करने ही वाले थे कि शहरजाद रोने लगी। बादशाह के पूछने पर कि उसे किस बात का दुःख है, उसने जवाब दिया, ‘मेरी एक छोटी बहन है, जिसे मैं सबेरा होने के पहले अंतिम बार देखना चाहती हूँ, क्योंकि सुबह होने के बाद मैं उसे देख नहीं पाऊँगी।’ राजा ने तुरंत दुनियाजाद को बुलवा भेजा। दुनियाजाद ने आने के बाद बादशाह को सलाम किया। तब राजा ने उसे पलंग पर बैठने को कहा। उसके बाद तीनों सोने चले गए। जब आधी रात हुई तब शहरजाद उठी और उसने अपनी बहन को इशारा किया। दुनियाजाद ने तब उठकर कहा, ‘आप मुझे कोई दिलचस्प और हैरान कर देने वाली नई कहानी सुनाइए जिससे बाकी रात कटे।’ शहरजाद ने जवाब दिया ‘यदि बादशाह हुजूर इसकी इजाजत दें!’ शहरयार भी संयोगवश बेचैन था और उसे भी नींद नहीं आ रही थी, इसलिए कहानी सुनने की बात से वह भी बहुत खुश हुआ और बोला, ‘जरूर सुनाओ!’

शहरजाद यह सुनकर बहुत खुश हुई और इस तरह उसने एक हजार एक रातों की पहली रात की कहानी शुरू की, जिसका नाम था–‘व्यापारी और जिन्न की कहानी।’


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