संवेदना के विस्तार की कहानियाँ
- 1 August, 2015
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- 1 August, 2015
संवेदना के विस्तार की कहानियाँ
‘दस प्रतिनिधि कहानियाँ’ सीरीज किताबघर प्रकाशन की एक महत्वाकांक्षी योजना है जिसमें हिंदी कथा-जगत के सभी शीर्षस्थ कथाकारों की उनके संपूर्ण कथा दौर की दस प्रतिनिधि कहानियों को प्रस्तुत किया जा रहा है। इसी शृंखला में हिंदी के महत्त्वपूर्ण कथाकार तेजेंद्र शर्मा की प्रतिनिधि कहानियों का प्रकाशन इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है कि तेजेंद्र शर्मा हिंदी के एक ऐसे प्रवासी कहानीकार हैं जो दो देशों के बीच वैश्विक स्तर पर आ रहे बदलावों के बीच जीवन की ऊष्मा, संवेदना और मानवीय रिश्तों की अंतरतहों तक दृष्टि डालते हुए उनका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण कथा के रूप में सामने लाते हैं। तेजेंद्र शर्मा की कहानियों में सामाजिक विषयों की विविधता है। उनकी कहानियों के केंद्र में परिवार है खासकर मध्यमवर्गीय परिवार। पारिवारिक संबंधों का, मानवीय इच्छाओं का आख्यान करती इन कहानियों में भाषा सहज और प्रवाहमयी है।
ये कहानियाँ मनुष्य जीवन, परिवार, समाज के साथ-साथ वैश्विक जीवन से जुड़ी विडंबनाओं, विषमताओं, सामाजिक सरोकारों को विस्तार देती हैं। संग्रह में शामिल दस कहानियों में सर्वाधिक चर्चित कहानी है ‘कब्र का मुनाफा।’ कहानी मनुष्य की इच्छाओं के लिए और कैसे-कैसे रूप हो सकते हैं, इस कथानक पर केंद्रित हैं। भौतिक सुख-सुविधाओं का आदि व्यक्ति अपने मरणोपरांत भी सुविधाओं का मोह नहीं त्याग पाता। मृत्यु यानी निष्प्राण देह का मिट्टी में या पंचतत्त्व में समाहित हो जाना होता है। पर व्यक्ति जीते जी यह चाहता है कि मृत्यु के बाद भी चंदन की लकड़ी पर जले; इसी भाव से कहानी के दोनों पात्र नजम और खलील अपने लिए पहले ही कब्र खरीद लेना चाहते हैं। कहानी उस आने वाले समय को इंगित करती है कि ऐसा समय आ सकता है। बहरहाल वे अपनी कब्र सुरक्षित करवा लेते हैं, एक दिन कहानी की पात्र नादिरा उनकी कब्र की बुकिंग कैंसिल करवाने के लिए फोन करती हैं तो पता चलता है कि उनकी कीमत बढ़ गई है। वे प्रसन्न होते हैं कि उन्हें इस सौदे में कुल चार सौ पाउंड का फायदा हुआ है। खलील उल्लास से भरा कहता है ‘क्या चार सौ पाउंड का मुनाफा बस साल भर में?’ वह नजम को देखता है उसकी आँखों में भी मुनाफे की खुशी स्पष्ट दिखाई देती है। कहानी एक व्यंग्य है मनुष्य की लालसा पर। भौतिकवादी मानसिकता मनुष्य की संवेदनाओं को मारकर उसे कितना मेटीरियलिस्टिड बना सकती है कि वह कब्र से भी मुनाफा कमा लेना चाहता है। यह मुनाफा एक नए व्यवसाय को जन्म देता है। मृत्यु के बाद आपकी देह को क्या-क्या सुविधाएँ दी जाएँगी, उसका पैकेज लाँच किया जा सकता है। भौतिकवादी होती मानसिकता में उपभोक्तावादी जीवन के लिए मानवीय मूल्यों के क्षरण और संवेदनाओं के सूखने की पीड़ा इसमें सामने आती है। एक बिलकुल अलग पृष्ठभूमि पर रची गई कहानी में लेखक की दृष्टि मनःस्थितियों पर मनोवैज्ञानिक पकड़ और रचनात्मक प्रतिबद्धता स्पष्ट दिखाई देती है।
‘ढिबरी टाईट’ कहानी उस समय को व्यक्त करती है जब पैसा कमाने के लिए युवा वर्ग विदेश चला जाता है। कहानी में लेखक का वैयक्तिक जीवन और प्रवास के बीच फैला समय रखा हुआ है जिसमें उनके अनुभवों की ध्वनि सुनाई देती है। कहानी प्रवासी जीवन के संघर्षों को बड़ी मार्मिकता से बुनती है ‘तेजेंद्र शर्मा का लेखक यहाँ अर्थहीनता का अर्थ खोजने लगते हैं। कहानी की पृष्ठभूमि पंजाब है, उनकी अपनी जमीन। उनके पास अनुभवों का व्यापक विस्तृत फलक है जिसमें भावों का रंग संयोजन इस कहानी में स्पष्ट दिखाई देता है। भारत जैसे देश के युवा पैसा कमाने, कैरियर का सपना लेकर काम की तलाश में विदेश चले जाते हैं। कठिन परिस्थितियों में विदेश में तमाम अपमानों और आत्महीनताओं के बावजूद कहानी ‘कैंसर’ एक अत्यंत मार्मिक कहानी है। पति-पत्नी के बीच विस्तार पाती कहानी अर्थबहुल कहानी है, यहाँ कैंसर के निहितार्थ अनेक हैं। कहानी की नायिका पूनम को लेफ्ट ब्रेस्ट कैंसर है–चार दिन बाद नायिका का जन्मदिन है। कैंसर की खबर ही दुःखदायी है, ऑपरेशन होना है। ऑपरेशन होने तक की पति-पत्नी की मानसिकता और मनोविज्ञान का अद्भुत विश्लेषण। कहानी में सामाजिक सरोकार के रूप में परिचितों मित्रों के भावनात्मक-सुझावात्मक भावों की कोमल डोर थामे–कहानी आगे बढ़ती है… ‘जानते हैं सब यह जुकाम नहीं है, कैंसर है, जिसमें चमत्कार अकल्पनीय है फिर भी कोई शहद देने की सलाह देता है, कोई सरसों के तेल की मालिश की राय, चने खिलाने का मशवरा है कोई पीर-फकीर का ताबीज लाता है तो कोई भभूत को, कैथोलिक प्रभु यीशु की कृपा से पुनर्जन्म की बात दोहराता है’–कहानी रूला देने की हद तक पाठक को पकड़ लेती है। वह कैंसर की भयावहता से भयभीत होता है–कहानी अपनी तीव्र वेदना के बावजूद शांत गति से आगे बढ़ती है। कथाकार तकनीकी भाषा भी सुनाता है–कार्सीनोमा! बार-बार की टेस्ट खाइयों और शल्यक्रिया की वैज्ञानिक शब्दावलियों के बीच पूनम का धीरज गजब का। कहानी पूरी शिद्दत के साथ ना केवल उस परिस्थिति को पाठक तक पहुँचाती है, बल्कि उस मनःस्थिति से गुजारती है जो पूनम और नरेन के बीच चलती है। पूनम के प्रश्न से कहानी में कैंसर का एक और रूप उभरता है जब पूछती है मेरा पति मेरे कैंसर का इलाज तो दवा से करवाने की कोशिश कर सकता है–मगर जिस कैंसर ने उसे जकड़ रखा है–क्या उस कैंसर का भी कोई इलाज है? बेहद मार्मिक कथा, जीवनधर्मा कहानी जो पाठक को जीवन के गहरे अँधेरे में ले जा कर जीवन के लिए मूल्यवान सच को बचा लाती है। एक कहानी जो जीवन की नश्वरता के बावजूद समय को समय के पार देखने की दृष्टि देती है। कहानी का कहानीपन पूरी तरह सुरक्षित रखते हुए तेजेंद्र अपनी कहानी को वृत्तांत या संस्मरण होने से बचा लेते हैं लेकिन यथार्थ का सम्मान करते हुए वे कहानी में कोई छद्म भी नहीं रचते।
तेजेंद्र शर्मा की कहानियों में मृत्यु के अलग-अलग रंग दिखाई देते हैं। ‘कैंसर’ में यदि वह एक तरह की बायलॉजिकल फ्रीजिंग है तो ‘देह की कीमत’ में वह क्रूर और निर्मम दिखाई देती है। जहाँ आधुनिकता संवेदनहीनता बन कर सामने आती है। कैंसर की पृष्ठभूमि पर लिखी यह बेहतरीन कहानी लेखन का आनुभविक कारण हो सकती है। जिस लाचारी और बेबस होती भावनाओं को कहानी ने रेखांकित किया है वह कैंसर के सामने मनुष्य की निरुपायता को दर्शाती है। कहानी सामाजिक परिस्थितियों, टोने-टोटकों पर भी दृष्टि डालती है।
ये कहानियाँ विदेश में रहते हुए भी भारतीय जन जीवन से रूबरू करवाती है। ‘एक ही रंग’ कहानी एक साधारण कथाबीज से बनी अच्छी कहानी है जिसमें मुफलिसी जीवन जी रहे दो हज्जाम कहानी के केंद्र में है। कहानी का अंत त्रासद है। एक स्कूल के अहाते की दीवार ऊँची कराई जा रही थी। कार्पोरेशन रिश्वत के लिए सेवा के बहाने ऐसे काम करते जाता है। जब कहा जा रहा था कि दीवार ऊँची होगी तो बच्चे सुरक्षित रहेंगे। सुदर्शन नाई अपना भविष्य एक खोखे में देख रहा था जिसमें हजामत बनाई जा सके। सामान जमा लिया। अब पटरी पर नहीं बैठना है। सैलून तो सैलून। समय चक्र ऐसा कि सुदर्शन लाल के पास ही बाबूराम की दुकान खुल गई। ज्यादा चमकदार। बाबूराम की खोखे वाली दुकान चल निकली। वही लोकप्रिय हुआ। सुदर्शन लाल को पुलिस प्रताड़ित कर रही थी। निष्क्रिय बेकार बाबूलाल अदब भी भूल गया। अध्यापकों की शिकायत पर पुलिस आई। सामान तक उठा ले गई। आखिर अँधेरी गुफा में वह लहूलुहान हो गया। गुफा में से वह जगह निकाल रहा था। उसका सारा सामान ट्रक में लादा जा रहा था। पुलिस डंडे बरसा रही थी। इस बीच मजदूर रंग-रोगन करने आ गए। सुदर्शन लाल के भविष्य पर भी रंग पुत रहे थे।
‘मुझे मार डाल बेटा’ एक सफल जीवन जीने के बाद अवकाश प्राप्त लकवा ग्रस्त जीवन का मार्मिक वृत्तांत है। दरअसल यह बुढ़ापे की पीड़ा भरी कहानी है। कहानी पिता से भी ज्यादा पुत्र की पीड़ा की कहानी है। पुत्र एक कठिन द्वंद से गुजरता है जब उसे अपने ही पिता की उनकी तकलीफों से मुक्ति देने के लिए मृत्यु देने का निर्णय लेना पड़ता है। उसकी एक और समस्या है उसके बच्चे भी होंगे तो वे भी इंजेक्शन के बल पर कुछ ही दिन जी पाएँगे, क्योंकि वे भी जीवनभर अपंग रहेंगे। कहानी का लकवा ग्रस्त पिता अपनी निरुपाय अपंगता से इतना दुःखी है कि वह जीने से ऊब चुका है। उसकी जिजीविषा समाप्त हो चुकी है। पक्षाघात हुआ तो व्हील चेयर का सहारा था। ‘मर्सी किलिंग’ में उन्हें मुक्ति दिखाई देती। कहानी का एक अंश उनका यथार्थ है। इन हालातों में वह देखता है कि बाऊजी उस रात मरे नहीं, किंतु उन्होंने जीना बंद कर दिया। अब वे केवल साँस लेता हुआ एक निष्प्राण शरीर भर बचे हैं, वह देखता है कि पिता अब व्हील चेयर से चिपका आधा-अधूरा सा शरीर मात्र रह गए थे। उनके भीतर कुछ मर गया है। जैसे उनके भीतर की अग्नि बुझ गई थी। माँ की प्रार्थनाएँ काम नहीं आई। आखिर उन्होंने खाना छोड़ दिया। शरीर कंकाल भर रह गया था। बेटा उन्हीं की मृत्यु के लिए प्रार्थना कर रहा था। हैरी-एंडी (हरीश-आनंद) के साथ उनकी भी मृत्यु तय थी।
कहानी ‘जमीन भुरभुरी क्यों’ एक अलग कलेवर की कहानी है। कहानी के नायक को किसी जुर्म में दो साल की सजा होती है, बाहर उसकी पत्नी उसके बच्चों के लालन पालन की सारी जिम्मेदारी उठा रही है। पति जेल में एक नया जीवन पाता है। वह वहाँ कंप्यूटर सीखता है, नियमित व्यायाम करता है, एक अनुशासित जीवन जीने लगता है। समय पर खाना खाता है। शांत रहता है। टोकरी बनाना सिखता है, जेल से छूटने पर उसकी पत्नी यह देखर हैरान हो जाती है कि वह तनाव रहित और पाँच वर्ष उम्र में छोटा लगने लगा है। इधर बाहर पत्नी बच्चों के पालन पोषण, घर के काम, घर के खर्चे जुटाते जुटाते अपना ख्याल रखना भूल जाती है और समय से पहले ही दस वर्ष और अधिक की बूढ़ी-सी औरत दिखने लगती है। कहानी ब्रिटेन की और भारत की जेलों की स्थिति की तुलना भी करती है। कहानी एक नई विवेचना भी हमारे सामने रखती है।
संग्रह की सभी कहानियाँ महत्त्वपूर्ण हैं। इन कहानियों में तेजेंद्र आसपास के परिवेश, घटनाओं और विषय की नवीनता को लेखक लंबे समय से सृजनरत हैं। वे हिंदी जगत के महत्त्वपूर्ण एवं चहेते प्रवासी कथाकार हैं। ये कहानियाँ जीवनधर्मी, रोचक, सहज व सार्थक कहानियों की श्रेणी में आती हैं। ये कहानियाँ विश्वव्यापी हिंदी साहित्य की सेतु कहानियों की श्रेणी मे रखी जा सकती हैं। कहा जा सकता है कि ये भारतीय संस्कृति के संवाहक कथा साहित्य को सहेजती हैं।
Image : Woman Reading
Image Source : WikiArt
Artist : Pierre Auguste Renoir
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