अरेबियन नाइट्स की कहानियाँ
- 1 October, 2015
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- 1 October, 2015
अरेबियन नाइट्स की कहानियाँ
बात पुरानी है, जब मैं अपनी उच्चतर शिक्षा के सिलसिले में संयुक्त राज्य अमरीका में प्रवास कर रहा था। सेमेस्टर की आखिरी परीक्षा के उपरांत गर्मियों की छुट्टियाँ प्रारंभ हो गई थी। एक शाम जब मैं पठनीय पुस्तक की खोज में अमरीका के प्रख्यात बुक-स्टोर ‘बान्र्स एण्ड नॉबल’ में घूम रहा था, तब मेरी नजर एक मोटी सी पुस्तक पर पड़ी जिसका नाम था, ‘अरेबियन नाइट्स’ और अनुवादक का नाम था सर रिचार्ड बर्टन। विषय-सूची में अनेक कहानियों के नाम जाने पहचाने लगे, जैसे, सिंदबाद की यात्राएं, अलादीन और जादुई-चिराग, अलीबाबा और चालीस चोर आदि। इन कहानियों को तो पहले भी बचपन में पढ़ चुका था। इनमें से कुछ तो हमारे इंटर्मीडिएट कोर्स की अंग्रेजी पाठ्य पुस्तक में भी थीं। लेकिन इन कहानियों के इस सिलसिले की शुरूआत की जो अपनी एक कहानी थी, वह मैं पहली बार बर्टन के इस अनुवाद में पढ़ रहा था। बर्टन की अंग्रेजी अठारहवीं सदी की थी, लेकिन कुछ कोशिशों के बाद भाव और वाक्यों को समझने की दिक्कत आती रही। दूसरा महत्वपूर्ण तथ्य जो इस अनुवाद को पढ़ने से उभर कर सामने आया, वह था इस रचना के कथानक का संबंध मूलतः वयस्कों से होना। बर्टन ने मूल रचना के कामुक वर्णनों को अपने इस अनुवाद में ज्यों का त्यों रखा था। बाद में पता चला कि इन्हीं वर्णनों के कारण बर्टन का अनुवाद अन्य की तुलना में अधिक लोकप्रिय हुआ। कुल मिलाकर मुझे पुस्तक मनोरंजक लगी; मैंने उसे खरीद ली और ढाई महीने की गर्मी की छुट्टियों में उसे पढ़ भी डाला। इन कहानियों की रोचकता तो जग प्रसिद्ध है ही लेकिन मैंने पाया कि विभिन्न तरह की कहानियों को एक साथ पिरोने का ढंग और पाठकों को बाँधे रखने का तरीका भी अनूठा था। अपनी पढ़ाई पूरी करके मैं भारत वापस आ गया और बात आई गई हो गई, हालांकि उसके बाद भी मैंने कई बार इस पुस्तक को पढ़ा और इन कहानियों का आनंद उठाया। अनेक वर्षों बाद जब 2003 में मेरी पहली पुस्तक ‘भूकंप क्यों और कैसे’ प्रकाशित हुई तब प्रकाशक से ‘अरेबियन नाइट्स’ के हिंदी अनुवाद पर चर्चा हुई। उनकी जानकारी के अनुसार इस तरह का संपूर्ण अनुवाद पहले कभी हिंदी में नहीं किया गया था। मुझे ज्ञात हुआ कि ‘अरेबियन नाइट्स’ का पहला अनुवाद फ्रेंच भाषा में 1704 में किया गया और उसके बाद अंग्रेजी के अनुवादों की तो जैसे झड़ी सी लग गई। अंग्रेजी के अनुवादों में एडवर्ड विलियम लेन (1841), जॉन पेन (1884) और सर रिचार्ड बर्टन (1885-1888) का अनुवाद उल्लेखनीय है। अब तक की मेरी खोज के अनुसार हिंदी भाषा में ‘अरेबियन नाइट्स’ की कहानियाँ स्वतंत्र रूप से अलग-अलग प्रकाशित होती रही थी, लेकिन इन कहानियों को जोड़ते हुए एक संपूर्ण अनुवाद कभी नहीं किया गया।
गहराई से अध्ययन करने पर पता चला कि इन कहानियों का जन्म विभिन्न संस्कृतियों की कहानी कहने की मौखिक लोक परंपराओं में हुआ, जिसमें, भारत, इरान (पर्शिया), इराक, मिस्र और टर्की भी शामिल हैं। संभवतः मौलिक संग्रह, पुरानी पर्शियन पांडुलिपि, ‘हजार अफसाने’, का इस्लामिक रूपांतरण रहा होगा, जिसका अरबी अनुवाद नौवीं शताब्दी में हुआ था। हालांकि यह पांडुलिपि अब उपलब्ध नहीं है, लेकिन दसवीं शताब्दी के इस्लामिक विद्वानों ने ऐसी रचना का उल्लेख किया है जो ‘अरेबियन नाइट्स’ की कहानियों से समरूपता रखती है। तेरहवीं शताब्दी के अंत तक मुख्य कहानियों का संग्रह कर उन्हें लिपिबद्ध कर लिया गया था। संग्रह का अरबी शीर्षक था, ‘अलिफ लायला वा लायला’, जिसका अर्थ है, ‘एक हजार एक रातें’। समय के साथ शीर्षक की सार्थकता बनाए रखने के लिए, संग्रह के गुमनाम संपादक नई कहानियाँ जोड़ते चले गए। विशेषज्ञों का मानना है कि ‘अलिबाबा’ और ‘सिंदबाद की यात्राएँ’ जैसे उपाख्यान बाद में जोड़े गए हैं। अपने अध्ययन के दौरान मैंने पाया कि ‘अरेबियन नाइट्स’ का गठन सतही तौर पर आपस में जुड़ी अनेक उपाख्यानात्मक कहानियों से हुआ है। ये कहानियाँ एक घुमावदार मार्ग द्वारा एक दूसरे से इस तरह जुड़ी हैं कि वे पाठक/श्रोता को बाँधे रखती हैं, ठीक उसी तरह जैसे इन कहानियों ने इन कथाओं के नायक बादशाह शहरयार को बाँधे रखा था।
अंततः मैंने तय कर लिया कि मुझे इन कहानियों का अनुवाद करना है। बर्टन के अंग्रेजी अनुवाद को ही मैंने अपने हिंदी अनुवाद के लिए आधार पुस्तक बनाने की सोची, लेकिन अन्य अनूदित पुस्तकों की खोज करने लगा। इसी खोज के दौरान इंटरनेट पर मुझे ‘अरेबियन नाइट्स’ के अनुवादों की एक डी.वी.डी. दिखलाई पड़ी जो बिक्री के लिए आई थी। इन डी.वी.डी. में करीब 20000 पृष्ठों का अंग्रेजी अनुवाद था और अब तक के करीब-करीब सारे अंग्रेजी अनुवाद शामिल थे। इसमें एंटोनी गैलेंड के पहले फ्रेंच अनुवाद का अंग्रेजी अनुवाद भी शामिल था। मैंने वह डी.वी.डी. खरीद ली और उसके बाद मेरा अनुवाद करने का अभियान प्रारंभ हुआ। मैंने एक योजना बनाई जिसके अनुसार मुझे बर्टन के अनुवाद को आधार मान कर ‘अरेबियन नाइट्स’ की चुनिंदा कहाँनियों का अनुवाद करना था, लेकिन अन्य अनुवादों से भी मदद लेनी थी, जिससे एक रोचक हिंदी अनुवाद पाठकों को प्राप्त हो सके। उदाहरण के तौर पर, बर्टन के अनुवाद में ‘बगदाद की तीन महिलाएं और एक मजदूर की कहानी’ में महिलाओं का नाम नहीं लिया गया है, वे घर के लिए जो काम करती है, अनुवादक ने उसी के अनुसार उन्हें अपने अनुवाद में संबोधित किया है, लेकिन किसी अन्य अनुवाद में क्रमशः इन्हें, जुबैदा, अमीना और सोफिया कह कर संबोधित किया गया है, इसलिए मैंने भी उनका नाम देना सही समझा। बर्टन ने करीब 130 रातों की कहानियों का वर्णन अपने अनुवाद में किया है, मैंने भी उतनी ही रातों की कहानियों का अनुवाद करना अपनी योजना में शामिल किया है। मेरा अनुमान है कि 300 पृष्ठों के 5 खंडों में मेरा अनुवाद पूरा हो जाएगा। संक्षेप में इन कहानियों की शुरूआत कुछ इस तरह होती है-
इन कहानियों का नायक हिंद का बादशाह शहरयार है। उसके राज्य की सीमाएँ उत्तर-पूरब में चीन तक और पश्चिम में इरान-इराक तक फैली हैं। शहरयार अपने पिता की मृत्यु के पश्चात समरकंद का राज्य अपने छोटे भाई साहजमन को दे देता है और खुद अपने पिता के स्थान पर हिंद का राजा बनता है। बीस वर्ष बीत जाने के बाद शहरयार को अपने छोटे भाई से मिलने की तीव्र इच्छा होती है और वह अपने वजीर के हाथों उसे आने का बुलावा भेजता है। साहजमन बड़े उत्साह से जाने की तैयारी करने लगता है और अपने भाई के लिए तरह-तरह के उपहार खरीद कर एक बड़े काफिले को तैयार करने का हुक्म देता है। काफिला अभी साहजमन की राजधानी से थोड़ी ही दूर गया होता है कि उसे याद आती है कि उसने जो बहुमूल्य उपहार अपने भाई के लिए खरीदा था, वह तो महल में ही छूट गया हैं। साहजमन जब उपहार लेने अपने महल में वापस आता है तो अपने कमरे में अपनी बेगम को एक गुलाम के साथ सोता हुआ पाता हैं। गुस्से में वह उन दोनों के चार टुकड़े कर डालता है और वापस आकर अपना सफर जारी रखता है। वह घटना साहजमन को मानसिक रूप से काफी उद्वेलित करती है, जिसका असर उसके खान-पान पर पड़ता है और उसका स्वास्थ्य गिरने लगता है।
शहरयार अपने शहर से बाहर आकर साहजमन का स्वागत करता है और दोनों भाई बड़े गर्मजोशी से एक दूसरे से मिलते हैं। साहजमन के पीले पड़ गए चेहरे को देख शहरयार उसके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हो जाता है और अपने राज्य के हकीमों को उसके उपचार में लगा देता है। उपचार के बावजूद साहजमन के स्वास्थ्य में कोई परिवर्तन नहीं आता। एक दिन जब शहरयार शिकार पर गया होता है तब साहजमन अपने कमरे के झरोखे से एक अजीब नजारा देखता है। वह देखता है कि नीचे के राजकीय उद्यान में उसकी भाभी अपनी अनेक दासियों के साथ स्नान करने आती है, जिनके साथ कई गुलाम भी होते हैं। उसकी भाभी किसी सईद नाम के गुलाम को पुकारती है जो महल से एक पेड़ के सहारे उतरकर उसकी भाभी को अपने आलिंगनपाश में बाँध लेता है। अन्य गुलाम भी दासियों के साथ ऐसा ही करते हैं और उनकी यह क्रीड़ा संध्याकाल तक चलती रहती है। यह सब देख कर साहजमन को एक अजीब सा सुकून मिलता है। वह सोचने लगता है, ‘उसका बड़ा भाई तो उससे बड़ा राजा है और उससे अधिक समर्थ है, जब उसकी पत्नी उसके साथ बेवफाई कर सकती है तो फिर मेरी क्या बिसात?’ इस तुलनात्मक विश्लेषण से उसका दुःख दूर हो जाता है और वह पुनः ठीक से खाने-पीने लगता है। शहरयार जब शिकार से वापस आता है तब अपने भाई की हालत देख उसे काफी खुशी होती है और वह साहजमन से इसका कारण जानना चाहता है। पहले तो साहजमन कुछ बताना नहीं चाहता है लेकिन अपने बड़े भाई द्वारा मजबूर किए जाने पर वह उसे सारी बातें बता देता है। शहरयार गुस्से से आग-बबूला हो साहजमन से पूछता है, ‘मैं यह नहीं कहता कि तुम झूठ बोल रहे हो! लेकिन जब तक मैं सब कुछ अपनी आँखों से न देख लूँ, तब तक इस पर विश्वास भी तो नहीं कर सकता।’ साहजमन की सलाह पर शहरयार पुनः अपने शिकार पर जाने का एलान करवाता है। दोनों भाइयों ने आपस में यह तय किया था कि शिकार के बहाने वे राजधानी से बाहर निकल कर रात में चुपके से महल में वापस आ जाएँगे और दूसरे दिन उद्यान वाले झरोखे से शहरयार सब कुछ अपनी आँखों से देखेंगे। हुआ भी कुछ ऐसा ही लेकिन सब कुछ अपनी आँखों से देखने के बाद शहरयार इतने दुखी हुए कि थोड़े दिनों के लिए दोनों भाई यात्रा पर निकल जाते हैं। धीरे-धीरे शहरयार का दुःख क्रोध में परिवर्तित हो जाता है और वह अपनी बीबी के पिता को बुलवा कर उसे अपनी बेटी की चरित्रहीनता से अवगत कराता है। उसके ससुर स्वयं अपने हाथों अपनी बेटी को मौत के घाट उतार देते हैं। कुछ दिनों बाद साहजमन अपनी राजधानी लौट जाता हैं।
लेकिन राजा शहरयार इस सदमें से उबर नहीं पाते हैं और उनके मन में स्त्री जाति के प्रति एक गहरा अविश्वास घर कर जाता है और इसी अविश्वास से जन्म लेता है राजा शहरयार का खूनी खेल जिससे ‘अरेबियन नाइट्स’ की कहानियों का जन्म होता है। शहरयार प्रतिदिन एक युवती से विवाह करता और उसके साथ रात बिताने के बाद सबेरा होने पर उसे मौत के घाट उतरवा देता। धीरे-धीरे राज्य के जिन घरों में लड़कियाँ थी उनके माँ-बाप राज्य छोड़ कर चले गए और एक दिन ऐसा आया जब राज्य के वजीर के पास शहरयार के पास भेजने के लिए कोई युवती शेष नहीं रह गई थी। इस बात से परेशान वजीर की पेशानी पर पड़ी चिंता की लकीरों को उसकी विदुषी बेटी शहरजाद पढ़ लेती है और अपने आप को शहरयार के पास भेजने के लिए प्रस्तुत करती है। पहले तो वजीर अपनी बेटी पर बहुत नाराज होता है लेकिन अपनी बेटी के तर्क और पक्के इरादे के सामने उसकी एक नहीं चलती और वह शहरयार से अपनी बेटी को पेश करने की इजाजत माँगता है। शहरयार, जिससे पहले वजीर की बेटियों को इस मामले से अलग रखने की सोची थी, शहरयार की मर्जी जानने के बाद इस बात के लिए तैयार हो जाता है। शहरजाद जब शहरयार के सामने आती है तब वह अपनी बहन दुनियाजाद को बुलवाने की इजाजत माँगती है। वहाँ आने के बाद उसे क्या करना है यह शहरजाद ने अपनी छोटी बहन को पहले ही बता दिया होता है। जब आधी रात होने को आती है तब दुनियाजाद अपनी बड़ी बहन शहरजाद से कहती है, ‘बहन! नींद नहीं आ रही है! कोई कहानी सुनाओ, जिससे रात कटे।’ शहरजाद जवाब देती है, ‘हाँ! क्यो नहीं, यदि बादशाह इसकी इजाजत दें?’ शहरयार को भी नींद आ रही थी, इसलिए उसने इजाजत दे दी। शहरजाद ने जो पहली कहानी सुनाई उसका नाम था, ‘व्यापारी और जिन की कहानी’ और इस तरह शुरू हुआ ‘अरेबियन नाइट्स’ की कहानियों का सिलसिला जो एक हजार एक रातों तक चला। शहरजाद प्रत्येक कहानी को सबेरा होने से पहले ऐसे मोड़ पर छोड़ती है कि शहरयार आगे की कहानी सुनने के लिए शहरजाद का मरवाना स्थगित करवाता जाता है और अंततः इस खूनी खेल को पूरी तरह बंद ही कर देता है।
इन कहानियों से उस समय की शासन व्यवस्था, व्यापार, रहन-सहन, कला, साहित्य, दर्शन और धर्म की काफी जानकारी मिलती है, ये कहानियाँ इस्लाम के प्रादुर्भाव के शुरूआती दिनों की हैं, इसलिए इनमें इस्लाम के प्रचार-प्रसार की व्यवस्था की गई है। जगह-जगह कठोर शासन व्यवस्था का परिचय मिलता है। उदाहरण के तौर पर जब बगदाद के टिगरिस नदी से एक युवती की लाश बरामद होती है, तब खलीफा हारून-अल-रशीद अपने वजीर से कहते हैं, ‘कमीने! क्या इसी तरह तुम मेरी जनता की देखभाल करते हो? खून जैसा जुर्म बिना किसी सजा के भय के तुम्हारे प्रशासन में होता है और मेरी जनता को काट कर टिगरिस में फेंक दिया जाता है, जिससे कयामत के दिन वे मेरे खिलाफ खड़े हो सकें। यदि तुमने जल्द से जल्द इस युवती के खूनी को पकड़ कर फाँसी पर नहीं चढ़ाया तो खुदा कसम, मैं तुम्हें तुम्हारे चालीस रिस्तेदारों के साथ फाँसी पर लटकवा दूँगा।’ इन कहानियों से ऐसा परिलक्षित होता है कि नागरिकों की आमदनी का मुख्य स्रोत व्यापार ही था। व्यापारी सामान लेकर जहाजों पर दूर दराज देशों को जाते थे और अपना सामान मुनाफे में बेचकर अपने देश के लोगों के लिए जरूरत के सामान वहाँ से खरीद कर लाते थे। ऐसा जान पड़ता है कि सरकारी मुलाजिमों को भी व्यापार करने की छूट थी। उदाहरणार्थ ‘तीन सेबों की कहानी’ का यह प्रसंग देखिए-‘…..आगे भी नूर-दीन इसी तरह वजीर के कार्यालय को चलाते रहे और सुल्तान के चहेते बनकर उनके और करीब आ गए। चाहे दिन हो या रात सुल्तान उसके बिना रह ही नहीं सकते थे। कुछ दिनों बाद सुल्तान ने नूर-अल-दीन का वेतन और रसद भी बढ़ा दिया। थोड़े ही दिनों में नूर-अल-दीन के पास इतना धन हो गया कि वह कई जहाजों का मालिक बन बैठा जो उसके हुक्म पर व्यापार के लिए समुद्री यात्रा करते थे।…..’ महिलाएँ भी सिलाई-कढ़ाई का काम कर धनोपार्जन करती थीं। वे भी किराए पर जहाज ले व्यापार करने समुद्री यात्राओं पर जाती थीं। इन कथाओं में निहित वर्णनों से जाहिर होता है कि जन साधारण की आर्थिक स्थिति अच्छी थी और उनका रहन-सहन, पहनावा-ओढ़ावा, खान-पान आदि कम से कम आज के मध्यवर्ग के जैसा तो जरूर था। गणित, खगोलशास्त्र और साहित्य में साधारण लोगों की भी रूचि थी। लगभग सभी कहानियों में स्थिति का वर्णन करने के लिए दोहों का उपयोग किया गया है। कहानी के पात्रों को लेखकों और कवियों को उद्धत करते हुए दिखलाया गया है। एक कहानी में एक हजाम को भी एक साधारण यंत्र का इस्तेमाल कर समय का अंदाज लगाते हुए दिखलाया गया है। एक अन्य कहानी में एक साधारण मजदूर को भी साहित्य और दर्शन में रूचि लेते हुए दिखलाया गया है।
इन कहानियों में मेहनत, लगन, वफादारी, ईमानदारी, प्रेम आदि सारस्वत मानवीय मूल्यों की सार्थकता पर पर्याप्त जोर दिया गया है। इसके विपरीत लोभ, ईर्ष्या, अहंकार आदि का अंत कितना दुखदायी होता है इसका उदाहरण भी अनेक कहानियों में प्रस्तुत किया गया है। इन कहानियाँ में साहित्य की अनेक विधाएँ समाविष्ट हैं। इनमें एक ओर साहसिक कार्यों का बखान है तो दूसरी ओर प्रेम प्रसंग का भी। इनमें हास्य भी है और त्रासदी भी। इन कहानियों में आध्यात्मिकता भी और ऐतिहासिक तथ्य भी। वर्षों से चित्रकार, उपन्यासकार, कवि, संगीतकार और फिल्मकार इन कहानियों से प्रेरित होते रहे हैं। किसी-किसी प्रसंगों में तो पाठक दुःख से सराबोर हो जाता है और उसे कहानी के चरित्र के प्रति अपार सहानुभूति हो जाती है। ठीक इसके विपरीत पाठक जब कहानी के चरित्र को लोभ और लालच में पड़ कर दुःख भोगते देखता है तो उसे गुस्सा भी आता है। लेकिन जैसा कि सर्वविदित है कि इन कहानियों का अंत सुखद ही होता है और यह सारस्वत कथन चरितार्थ होता है कि जीत हमेशा सच्चाई की ही होती है।
जब 1001 रातों की आखिरी रात आती है तब तक शहरजाद और शहरयार के संयोग से तीन पुत्रों का जन्म हो चुका होता है। शहरजाद अंतिम कहानी सुना कर शहरयार से कहती है, ‘बादशाह हुजूर अब चाहें तो मुझे मौत के घाट उतार सकते हैं?’ बादशाह शहरयार की आँखों में आँसू आ जाते हैं और वह भाव विह्वल होकर शहरजाद से कहता है, ‘मैं अपने बच्चों को उनकी माँ से अलग नहीं कर सकता।’ इन कहानियों के जरिए शहरजाद, शहरयार के मन में जो स्त्री जाति के प्रति एक नफरत पैदा हो गई थी, उसे पूरी तरह दूर करने में सफल होती है। शहरजाद साबित कर देती है कि स्त्री हो या पुरुष, कोई भी बेवफा या वफादार हो सकता है। इसके अलावे शहरजाद इन कहानियों के जरिए यह साबित करने में भी सफल होती है कि कोई थी इंसान यदि सच्चाई, नेकी, साहस और ईमानदारी से काम ले तो कुछ भी हासिल कर सकता है।
Original Image: Illustration for the fairytale Sinbad the Sailor
Image Source: WikiArt
Artist: Ivan Bilibin
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