अपराधमुक्त देश भूटान

अपराधमुक्त देश भूटान

ब से वर्ष में एक बार पर्यटन पर जाने का विचार बना मैं डेस्टीनेशन तय करने लगी हूँ। 2019 का डेस्टीनेशन भूटान था।

हमारे नौ सदस्यीय दल जिसमें तीन छोटे बच्चे–विधान, मितार्थ, विधि हैं ने 12 मार्च 2019 को सतना से रात नौ बजे महाकौशल एक्सप्रेस से दिल्ली के लिए प्रस्थान किया। 13 मार्च 2019 को दोपहर लगभग बारह बजे दिल्ली पहुँच गए। आज दिल्ली में विश्राम। कल सुबह ग्यारह बजे पश्चिम बंगाल के बाग डोंगरा के लिए उड़ान है।

(14 मार्च 2019) आज से हमारी आठ रात और नौ दिन वाली यात्रा शुरू हो रही है। इंदिरा गाँधी एयरपोर्ट के टर्मिनल तीन से ठीक वक्त पर उड़ान भर कर विमान ने लगभग दो घंटे में बाग डोंगरा एयरपोर्ट पहुँचा दिया। यह छोटा पर उत्तरी भाग के कई महत्त्वपूर्ण स्थानों को जोड़ता हुआ महत्त्वपूर्ण विमान तल है। यहॉं से सड़क मार्ग द्वारा भूटान जाना है। भूटान में ठहरने और वाहन की बुकिंग है, अत: चालक वाहन लेकर बाग डोंगरा आ गया। बाग डोंगरा में तेज धूप वाली गर्मी है। बंगाली भाषा और स्त्रियों द्वारा पारंपरिक पैटर्न में पहनी गई बंगाली साड़ियों से ज्ञात होता है यहाँ परंपराओं का जोर है। बड़े वाहन में हमलोग सहूलियत से बैठ गए। बैगेज कैरियर में बॉंधे गए। बाग डोंगरा से भूटान के बॉर्डर टाउन फुन्त्शोलिंग (Phuentsholing) की दूरी 170 कि.मी. है। इस मार्ग में सिलीगुड़ी, जलपाईगुड़ी जैसे जनपद हैं। दूर तक दिखते चाय बागान और लंबे वृक्षों वाली हरीतिमा से घिरा सड़क मार्ग पुख्ता है।

भूटान पश्चिम बंगाल की उत्तरी सीमा से लगा है। इंडो-भूटान सीमा की 699 कि.मी. लंबाई असम, अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, सिक्किम को छूती है। सड़क से भूटान जाने का एक मात्र मार्ग पश्चिम बंगाल का जयगॉंव जिला है। भूटानी घड़ी, भारतीय घड़ी से तीस मिनट आगे चलती है। जब मैं भूटान के विशाल लौह गेट वाले प्रवेश द्वार पर पहुँची गैरिक संध्या सुंदर दृश्य बना रही थी। लौह गेट के इस ओर भारत का बॉर्डर टाउन जयगॉंव उस ओर भूटान का बॉर्डर टाउन फुन्त्शोलिंग है। यह प्रवेश द्वार दो देशों की सीमा रेखा को जोड़ता है। सोचती हूँ किस आधार पर क्षेत्रफल बॉंटे जाते होंगे?  यहॉं दो देशों के बीच बड़े मैदानों जैसा नहीं, कदमों का फासला है। चालक ने द्वार पर तैनात प्रहरियों से भूटानी (राष्ट्रीय भाषा Dzongkha द्जोंगखा)  भाषा में बात की। प्रहरियों ने गेट खोल दिया।

भूटान : भूटान का पुराना नाम ड्रूक था। ड्रूक अर्थात ड्रैगन। अर्थात किसी समय यहॉं चीन का प्रभाव रहा होगा। भूटान द्वितीय विश्व युद्ध से अप्रभावित रहा है। ब्रिटिश अम्पायर का गुलाम कभी नहीं रहा। पारो और तोंग्सा के मध्य गृह युद्ध जरूर हुआ था। 08 अगस्त 1949 को दार्जीलिंग में भारत-भूटान संधि हुई थी जिसमें भूटान की मॉंग के अनुसार देवथान (Dewathan) की 32 कि.मी. स्क्वेयर भूमि लौटाई गई। यह असम और पश्चिम बंगाल के ऐसे जंगल वाली भूमि थी जहॉं चाय उत्पन्न नहीं होती थी। रिपब्लिक ऑफ इंडिया ने यह भी तय किया भूटान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा। भूटान का क्षेत्रफल 3839459 कि.मी. है जिसमें 76 प्रतिशत भू-भाग जंगल, 24 प्रतिशत भू-भाग रहने योग्य है। भूटान में बुद्ध धर्म का बहुत प्रभाव है। बौद्ध परंपरा में जंगलों को क्षति पहुँचाना निषिद्ध है, अत: भूटान में मानवीय हस्तक्षेप से मुक्त जंगल लहलहाता है।

फुन्त्शोलिंग : यह भूटान के 20 जिलों में एक है। मैं यहॉं होटल एशियन में रुकी हूँ। बड़े, स्वच्छ, सुविधायुक्त कमरे। होटल का कार्य व्यापार महिलाएँ सँभालती हैं। स्वस्थ त्वचा वाली लंबी, पतली लड़कियॉं ऐसी सुसज्जित और फ्रेश हैं कि समझ में नहीं आ रहा है वे एक ही परिवार की सदस्य (ओनर) हैं या नौकरी पेशा (मैनेजर, वेट्रेस)। वे संख्या में कम हैं अर्थात इनकी कार्यक्षमता उल्लेखनीय होगी। होटल की चालीस रुपया प्रति प्याली चाय का स्वाद मेरी पसंद का नहीं है। इस बीच कुछ जानकारियॉं मिलीं। पहला–यहॉं भारत का सिम एक्टीवेट नहीं रहेगा। भूटानी सिम का आउट गोइंग, इन कमिंग चार्ज लगेगा। दूसरा–एजेंट सुबह परमिट बनवा देगा। तीसरा–एशियन होटल से वॉकिंग डिस्टेंस पर फुन्त्शोलिंग और जयगॉंव के मध्य छोटा गेट है जिससे निर्बाध आवाजाही होती है।

(15 मार्च 2019) परमिट बनवाने वाला व्यक्ति सुबह होटल आ गया। दुबला-फुर्तीला युवक अच्छी हिंदी बोल रहा था। अधिकतर भूटानी बात समझने-समझाने जैसी हिंदी और अँग्रेजी बोलते हैं। पेपर्स में हम सभी के दस्तखत लेकर युवक बोला, ‘कुछ औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए आपलोग मेरे साथ दफ्तर चलें।’

भारतीयों के लिए पासपोर्ट और वीजा अनिवार्य नहीं है। आधार कार्ड या वोटर आई.डी. मान्य होता है। यूरोपियन व अन्य पर्यटकों के लिए वीजा अनिवार्य है। दो सौ डॉलर प्रतिदिन फीस भी देनी होती है। प्रति वर्ष दो-ढाई लाख पर्यटक आते हैं। निश्चित रूप से भूटान का पर्यटन उद्योग उन्नति पर है। दफ्तर में हमलोग के फिंगर प्रिंट और डिजीटल तस्वीर ली गई। प्रक्रिया सरलता और शांति से पूर्ण हो गई। पूरे भ्रमण में कहीं भी धोखाधड़ी, छीन-झपट, आपा-धापी का सामना नहीं करना पड़ा। भूटान अपराधमुक्त देश है। मेरा मानना है शिक्षा, चिकित्सा, सुरक्षा जैसी मूलभूत आवश्यकताएँ सुनिश्चित कर दी जाएँ (यहॉं शिक्षा और चिकित्सा मुफ्त है।) तो भ्रष्टाचार और अपराध कम हो सकता है। लोग बहुत सा सरंजाम तो यों जोड़ते हैं कि पता नहीं कब असाध्य बीमारी या उच्च शिक्षा जैसे कारणों में पैसे की आवश्यकता हो।

परमिट बनवा कर जिला पारो जा रही हूँ। दूसरा चालक अपना वाहन लेकर आ गया है। छीमी नाम का यह चालक युवा और स्मार्ट है। छीमी वस्तुत: चालक नहीं ओनर है। हमारा टूर तीन माह पहले निर्धारित हो गया था। निर्धारित तिथियों में इसका चालक बीमार हो गया। अत: यह कर्तव्य पर है। छीमी भूटानियों की तरह धीमे स्वर में बोलता है और वाहन नियंत्रित गति से चलाता है। भारत के अवदान से निर्मित सड़कें पुख्ता हैं। जहॉं टूट-फूट होती है तत्काल प्रभाव से सुधार कार्य होता है। पहाड़ काट कर पथ बनाना कठिन, चुनौतीपूर्ण, महँगा अभियान रहा होगा। 1968 में इंदिरा गॉंधी ने फुन्त्शोलिंग-थिम्फू हाइ-वे का उद्घाटन किया था। हाइड्रो पावर योजनाएँ भी भारत के आर्थिक सहयोग से बनी हैं। भूटान से पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, सिक्किम को बिजली मिलती है। भूटान में विद्युत का अपव्यय नहीं होता। होटलों और भवनों में लिफ्ट नहीं है। घुमावदार मार्ग निरंतर ऊँचा होता जा रहा है। एक ओर पर्वत दूसरी ओर घाटी। घाटी में ऊँचे-लंबे दरख्तों से संपूर्ण सघन-गहरे जंगल का विस्तार। जंगल और हिमालय पर्वत मानो भूटान का वजूद है। यहॉं के जंगलों में ब्लू पाइन, आडू, चेरी, सरू, बुरांश, सेब, नाशपाती, मैगनोलिया, देवदार आदि के कितने किस्म के वृक्ष हैं मालूम नहीं। राष्ट्रीय वृक्ष सिप्रस (Cypress) कौन सा है मालूम नहीं। छीमी बताने लगा–‘पेड़ों में अभी फूलों की शुरुआत है। अप्रैल में जंगल फूलों से भर जाता है। तब राष्ट्रीय फूल ब्लू पॉपी भी खिलता है।’

मैं सोचने लगी घाटी में क्या खतरनाक पशु होंगे? बंदर ही दिखे। वृक्षों पर निवास करने वाले ये शायद सार्वभौमिक जीव हैं। मार्ग में कहीं भी ढाबे या टी स्टॉल नहीं दिखे। एक-दो स्थानों में महिलाएँ संतरे, इमली, नारियल, भुट्टे बेच रही थीं। कृत्रिमता और मिलावटरहित शुद्ध, मीठे, रसीले, ताजे फल। मैंने 300 रुपये में दो किलो संतरे खरीदे।

पारो में होटल ले जाने से पहले छीमी खरबंडी गेम्पा (Kharbandi Gumpa) मठ ले गया। भूटान में बौद्ध धर्म का संपूर्ण प्रभाव है, अत: यहॉं बौद्ध मठ और विहार अच्छी संख्या में हैं। तीन-चौथाई निवासी बौद्ध शेष हिंदू व अन्य समुदाय के हैं। शताब्दियों पूर्व महान तिब्बती लामा भूटान में रहते थे। उन्होंने मठ और स्तूप बनवाए अत: यहॉं के एकाधिक मंजिला मठों की कला शैली में तिब्बती प्रभाव है। बड़ी दीवारें, सुंदर काष्ठ कला, अद्भुत चित्रकारी वाले खरबंडी मठ का शिल्प वैसा ही है जैसा आमतौर पर बौद्ध मठ का होता है। भूटान में चित्रकारी का खास महत्त्व है। मठ, मकान, संस्थानों की दीवारों में चित्रकारी की जाती है। मुझे भूटान के आयताकार घरों ने खासे प्रभावित किया। कतार में बने लोहे की छड़, सी.जी.आई., शीट्स वाले सीमेंटेड दो-तीन मंजिला शहरी मकान। ग्राउंड फ्लोर में दुकानें। बाहरी दीवारों पर चटख रंग। नक्काशीदार दरवाजे। ग्लास पैनल्ड खिड़कियॉं। एक-दो घर में वर्टिकल गार्डन दिखा। घाटी में लकड़ी के फ्रेम वर्क वाले मिट्टी, बॉंस, पत्थर, लकड़ी, बेंत जैसे प्राकृतिक संसाधनों से निर्मित ग्रामीण घर। घरों से लगी उपजाऊ भूमि में सीढ़ीदार (स्टेप फार्मिंग) खेत। चावल मुख्य फसल है। गेहूँ, आलू, मिर्च आदि लगाए जाते हैं। मिर्च की प्रचुरता है। भूटान की जनसंख्या लगभग आठ लाख है। Planned Population Policy का पालन होता है। 80 प्रतिशत आबादी गॉंवों और 20 प्रतिशत शहरों में है। बिजली सभी गॉंवों में पहुँच चुकी है। शहर में भीड़ कम है। दो पहिया वाहन और साइकिल नगण्य दिखीं पर कारें अच्छी संख्या में हैं। प्रति व्यक्ति आय का स्तर अवश्य संतोषप्रद होगा। यहॉं स्त्रियॉं पारंपरिक पोशाक कीरा (Kira), पुरुष जो (Gho) पहनते हैं। बहुत कम पुरुष कोट-पैंट और स्त्रियॉं जींस-टॉप जैसे आधुनिक लिबास में दिखीं। कह सकती हूँ भूटान में मटीरियल प्रोग्रेस हुई है पर संस्कृति और परंपरा को रिलीजियस हेरिटेज, नेशनहुड, कॉमन आइडियेन्टीटी मानते हुए कायम रखा गया है।

मठ देख कर पारो नगर को क्रॉस करते हुए एकांत क्षेत्र के खुले परिसर वाले होटल पहुँचने तक अँधेरा हो चला है। इस होटल को भी महिलाएँ संचालित करती हैं। भयमुक्त सुरक्षित माहौल है अत: महिलाएँ हर कहीं सहज रहती हैं। कमरे आरामदायक हैं। दिन का तापमान तेरह-चौदह डिग्री, रात का एक-दो डिग्री। बड़ी खिड़की से अनंत-अद्वैत को छूते दिव्यता से संपूर्ण पर्वतराज हिमालय के शिखर दिख रहे हैं। लड़कियॉं पीने का गर्म पानी लिए कमरे में आईं। चाय का आर्डर दिया। बोलीं–‘डिनर का आर्डर दे दें। आठ बजे रेस्टोरेंट बंद हो जाता है। रूम सर्विस नहीं है। भोजन के लिए नीचे डायनिंग हॉल में आएँ।’

आर्डर लिखते हुए बोली–‘कितनी रोटियॉं?’ अनुमानित संख्या बताई गई। भोजन कक्ष में परोसी गई दाल-सब्जी की अल्प मात्रा देख कर ऊँट के मुँह में जीरा कहावत याद आई। तीन प्लेट दाल और तीन प्लेट सब्जी का जो परिमाण था वह भारतीय होटलों के एक प्लेट के परिमाण के बराबर था। भूटान में मानो हरी सब्जियों का रिवाज ही नहीं है। पूरे भ्रमण में मशरूम, चीज, पनीर, आलू की सब्जी मिली। चार अतिरिक्त रोटी मॉंगने पर हेड महिला ने कहा, ‘आपने जो संख्या बताई, परोसी गई। सिर्फ एक रोटी बची है।’

क्या इतना अनुपातिक बनाया जाता है कि भोजन बासी या व्यर्थ न हो?

(16 मार्च 2019) सुबह का नौ बजा है। ट्रैकिंग के लिए टाइगर नेस्ट जा रही हूँ। छीमी नियत समय पर आ गया। पाबंद न होगा तो उतना नहीं दिखा सकेगा जिसकी सूची हमें दी गई है। होटल के रिसेप्शन में लगी बड़ी नयनाभिराम तस्वीर पर अनायास नजर गई। तस्वीर में भूटान के वर्तमान खूबसूरत, स्टाइलिश, युवा राजा जिग्मे खेसर वांगचुक सुंदर रानी और दो वर्ष के पुत्र के साथ विराजमान हैं। यहॉं राजा को शायद भगवान का दर्जा दिया जाता है। इनकी तस्वीर लगाना अनिवार्य नहीं ऐच्छिक है, तथापि अधिकांश होटलों, प्रतिष्ठानों, घरों, सार्वजनिक स्थलों पर राजा की अकेले या परिवार सहित तस्वीर लगाई गई है। 2008 में जिग्मे खेसर के राज्याभिषेक में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल जी ने भारत का प्रतिनिधित्व किया था।

भूटान में संवैधानिक राजशाही और संसदीय प्रतिनिधित्व लोकतंत्र है। चुनाव होते हैं पर समस्त पावर राजा के पास हैं। प्रधानमंत्री विदेशी मसले और विकास के काम में राजा के सहायक होते हैं। भूटान में आडंबर नहीं है। यह कदाचित आध्यात्मिक अभिरुचि और दार्शनिक दृष्टि का प्रतिफलन है। यहॉं तक कि थिम्फू का राज निवास साधारण और सादा है।

टाइगर नेस्ट ले जाते हुए छीमी ने वाहन को सड़क के किनारे रोका ‘यहॉं से एयरपोर्ट देखें। सुंदर लगता है।’

पारो वैली का विहंगम दृश्य।

भूटान में चार विमान तल हैं। पारो में अंतरराष्ट्रीय है। 1981 में भारत के सहयोग से बना पारो एयरपोर्ट दो पहाड़ियों के बीच निर्मित होने से जोखिम भरा है। पहले यहॉं छोटे विमान आते थे। रन-वे की लंबाई बढ़ाने पर बड़े विमान आने लगे। पहाड़ियों से सुरक्षित दूरी कायम रखते हुए विमान लाने, ले जाने वाले विमान चालक निश्चत रूप से दक्ष होंगे। सड़क से देखने पर आकर्षक विमान तल वास्तविक न लगते हुए बड़े कागज पर उरेही गई उन रेखाओं की तरह लगता है जिनके आधार पर निर्माण किया जाता है। सुंदर दृश्य। …मैं जल्दी ही टाइगर नेस्ट पहुँच गई। बेस में छोटा बाजार है। पॉंच सौ रुपये में घोड़े (खच्चर) उपलब्ध हैं। पहाड़ पर ले जाएँगे, वापसी अपने बूते करनी होगी। घोड़े वाले घेर रहे हैं पर ट्रैकिंग का अर्थ घुड़सवारी नहीं है। पचास रुपये में लाठी किराये पर मिल रही है। यह चढ़ने-उतरने में सहायक होगी। लाठी के जोर पर ट्रैकिंग आरंभ की। सँकरे मार्ग की थका देने वाली कठिन चढ़ाई। घोड़े इसी मार्ग पर हैं। हुरपेट दें तो गहराई में गिरने का सर्वविदित अंजाम हो सकता है। पर प्रतीक्षित घोड़े मनुष्य से दूरी बनाए रखना जानते थे। किसी को क्षति पहुँचाए बिना आवाजाही कर रहे थे। असंख्य बार लगा लौटा जाऊँ पर एक दृढ़ता थी जो सक्रिय किए रही। चट्टानों पर बैठते-रुकते व्यस्त रहने वाले रेस्टोरेंट तक पहुँच ही गई। ट्रैकिंग का अंतिम लक्ष्य बहुत ऊँचाई पर स्थित मंदिर था जहॉं बाहुबली किस्म के लोग जा रहे थे। हमारे समूह के दो पुरुष गए पर मेरे पैरों में सधाव न बचा था। रेस्टोरेंट में भीतर-बाहर खूब स्थान है। तादाद में एकत्र लोग बूफे लंच ले रहे थे। 490/-रुपया प्रति प्लेट। चावल, हरा सलाद, दाल, उबली सब्जियॉं और एक मॉंसाहारी व्यंजन। यह भारतीय स्वाद वाला भोजन नहीं था। चाय और बिस्किट ग्रहण कर थोड़ा विश्राम किया कि उतरने का साहस सँजो लूँ। उतरना उतना ही कठिन जितना चढ़ना। किसी तरह बेस पर आई। भूटान के आर्ट, क्रॉफ्ट जैसे उत्पादों से बाजार सजा है। विक्रेता ग्रामीण महिलाएँ हिंदी और अँग्रेजी नहीं समझ रही हैं लेकिन मूल्य बताना और पैसे की गणना करना जानती हैं। भूटानी मुद्रा का मूल्य भारतीय मुद्रा के बराबर है। जानकारी थी यहॉं पॉंच सौ और दो हजार के बडे़ नोट नहीं सौ, पचास जैसे छोटे नोट चलेंगे। छोटे नोट जगह घेरते हैं। उन्हें साथ लाने में दिक्कत हुई लेकिन यहॉं बड़े नोट मान्य हैं।

ट्रैकिंग ने थका डाला। कहीं और न जाकर होटल आ गए। लंच टाइम निकल गया था। मैं आटा नूडल्स, सत्तू, बिस्किट, खुरमे जैसी सामग्री ले गई थी। रेस्टोरेंट की रसोई में नूडल्स पकवाये जा सकते हैं पर ओनर मना कर देगी। लेकिन मैं नूडल्स लेकर भोजन कक्ष में गई। रसोई, भोजन कक्ष से लगी हुई थी जहॉं मात्र एक युवती उपस्थित थी। प्रयोजन सुन उसने सद्व्यवहार दिखाया ‘बना देती हूँ। क्या प्याज, टमाटर डाल दूँ।’

‘नहीं।’

युवती ने बड़े बर्तन में नूडल्स, कुछ प्लेट चम्मच दिए ‘रूम में ले जाएँ। मैं बर्तन लेने आ जाऊँगी।’

(17 मार्च 2019) चेलेला पास देखने जा रही हूँ। 3988 मीटर ऊँचा Project Dantak Chalela भूटान का हाइयेस्ट प्वाइंट है। पारो घाटी यहॉं की सबसे ऊँची रोड पास है। पथ के दोनों ओर भुरभुरी बर्फ वाली गजब की सफेदी बिछी है। मार्ग ऊँचा हो रहा है। तापमान गिर रहा है। निम्न तापमान में कुछ हृष्ट-पुष्ट याक के अतिरिक्त पशु-पक्षी नहीं दिख रहे हैं। यहॉं के राष्ट्रीय पक्षी राविन (Raven) और राष्ट्रीय पशु टाकिन (Takin) को पता नहीं कौन सा तापमान अनुकूल लगता होगा। पूरे भ्रमण में मक्खी, मच्छर जैसे कीट नहीं दिखे, न ही भिखारी मिले। पहाड़ियों और कुछ पूज्य स्थलों पर मन्नत पूरी करने के लिए लाल, नीले, पीले, सफेद, हरे रंग के प्रेयर फ्लैग लगाए गए हैं। पताकाओं में भूटानी भाषा में लिखी इबारत को पढ़ना संभव न था। ये पताकाएँ चेलेला में भी लगी हैं। चेलेला नो पॉल्यूशन जोन है। शुद्ध ऑक्सीजन है लेकिन ऋणात्मक शीत अधिकतम गरम वस्त्रों को सरलता से वेधते हुए त्वचा को हिमशीतल कर रही है। इस प्वाइंट से जामोलारी और जिचूद्राके की ऊँची चोटियॉं देखी जा सकती हैं। दर्शनीय स्थल पर कारोबार की संभावना बन जाती है। छोटे ट्रक में दो कारोबारी युवतियॉं आ पहुँची हैं। भूटान का प्रसिद्ध  पेय सूजा और पोरिश, चाय, कॉफी, नूडल्स, केक, मोमोज आदि उचित दाम पर कागज के प्यालों और तश्तरियों में दे रही हैं। जूठे कागजी पात्र ट्रक में रखे कूड़ेदान में डाल रही हैं। भूटान में स्वच्छता का ध्यान रखा जाता है। पॉलीथिन प्रतिबंधित है। मैंने अनुभव के लिए सूजा और पोरिश खरीदा। अच्छी कड़क चाय की आदी रसना का स्वाद अरुचिकर लगा। वापसी में कुछ लामा स्त्री-पुरुष अपने आवास से लगी नालियों में जमी बर्फ को हटाते हुए दिखे। बर्फ को समीप से देखने के लिए वाहन रुकवाया। भुरभुरी बर्फ में जूते डूब रहे थे। बर्फ के गोले और स्नो मैन बना कर विधान, मितार्थ, विधि ने क्रीड़ा की। चेलेला से लौट कर रिन पुंग द्जोंग मठ देखा। रिन पुंग अर्थात रत्नों का समूह। 1907 में लगी अग्नि में रत्न नष्ट हो गए। बाद के राजाओं ने इसका पुनर्निर्माण कराया।

(18 मार्च 2019) आज थिम्फू जा रही हूँ। भूटान की राजधानी थिम्फू और पारो के मध्य 65 कि.मी. की दूरी है। पारो फोर्ट में पॉंच दिवसीय पारो उत्सव चल रहा है। छीमी को लेकर हमलोग अच्छे समय में भूटान आए हैं। उत्सव देखते हुए थिम्फू के लिए गमन करें। पारो फोर्ट का परिसर असीम है। पारो नदी पर बने लकड़ी के मजबूत पुल से होकर किले का मार्ग है। किला ऊँचाई पर है। भूटान का भूगोल ऐसा है कि ऊँचाई का सामना करना ही होगा। स्थानीय लोगों का उत्साह देखते बनता है। विस्तृत भू-भाग में अच्छी संख्या में लोग एकत्र हैं। भू-भाग के दो तरफ भवन हैं जहॉं कलाकार तैयार होते हैं। एक ओर दर्शकों के बैठने के लिए स्टेडियम की भॉंति सीढ़ियॉं हैं। दूसरी ओर लोग भूमि पर बैठे हैं। नियंत्रण के लिए तीन-चार पुरुष और महिला पुलिस हैं पर लोग इतने नियम पालक हैं कि पुलिस को मशक्कत नहीं करनी पड़ रही है। कुछ स्थानीय लोगों ने सीढ़ियों से उठकर हमें बैठने की जगह दी। मुस्कान वाले मुखौटे पहने हुए दो-तीन विदूषक प्रहसन का माहौल बना रहे थे। कलाकारों का बहुरंगी पहनावा, मुख सज्जा, बड़े-बड़े वाद्य, हाव-भाव में गर्मजोशी। चहुँ ओर कतार बनाकर खड़े कलाकार वाद्य के रिदम पर नृत्य करते हुए धीरे-धीरे चौकोर कतार में सरकते हुए नृत्य मुद्राओं से अपनी प्राचीन संस्कृति, परंपरा, कला, रीति-रिवाजों का प्रदर्शन कर रहे थे। नृत्य कला वस्तुत: अपने क्षेत्र की पहचान होती है। थिम्फू जाना है, अत: दिनभर चलने वाले उत्सव को मैंने डेढ़ घंटे ही देखा। थिम्फू के मार्ग पर भी जंगल और पर्वत सहचर बने हुए हैं। थिम्फू के समीप वाले बाहरी क्षेत्र में एक-दो ओपन जिम दिखे। युवक कसरत कर रहे थे। अर्थात भूटान के निवासी स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हैं।

लगभग एक लाख जनसंख्या वाला थिम्फू सुंदर नगर है। मुझे यहॉं नहीं रुकना है। पुनाखा जाना है। पुनाखा प्रतिबंधित क्षेत्र है, अत: थिम्फू में इमीग्रेशन परमिट बनता है। भूटान में यातायात के नियमों का असाधारण रूप से पालन होता है। भ्रमण में मुझे कहीं भी सड़क दुर्घटना नहीं दिखी। नियंत्रित गति से चलते वाहन जेब्रा क्रॉसिंग में गति बहुत धीमी रखते हैं कि क्रॉसिंग पर पहला अधिकार पैदल चलने वालों का है। कार को देखकर मैं जेब्रा क्रॉसिंग पर रुक गई कि पहले कार निकल जाए। चालक ने कार रोक कर हथेली लहरा कर मुझे रोड क्रॉस करने का संकेत दिया। उस कार की नबंर प्लेट में अंकों के साथ बी.पी. लिखा था। अक्षरों का अर्थ इस प्रकार है–बी.पी.–भूटान प्राइवेट, बी.टी.–भूटान टैक्सी, बी.जी.–भूटान गवर्नमेंट, आर.बी.पी.–रॉयल भूटान पुलिस।

इमीग्रेशन दफ्तर मुख्य पथ पर है। परमिट में कुछ वक्त लगेगा। वहॉं छीमी को मुस्तैद कर पास का स्थानीय बाजार देखने लगी। हस्त-शिल्प की छोटी-छोटी दुकानें। विक्रेता स्त्रियॉं ग्राहकों को सामग्री दिखाती हैं, शिशुओं को सँभालती हैं, खाली समय में मोटी-लंबी सलाइयों से मोटे ऊन के टोपे, मफलर बुनती हैं। हस्त-शिल्प में बेंत, बॉंस, लकड़ी और धातु का प्रयोग होता है। हैंडलूम में सूत, सिल्क, याक के बालों का परमिट बन गया।

वाहन पुनाखा की ओर अग्रसर है। पुनाखा का मार्ग दोचुला दर्रे से होकर गया है। परमिट वस्तुत: दोचुला के लिए बनवाना पड़ता है। मार्ग में स्थित छोटे इमीग्रेशन दफ्तर में परमिट की जॉंच हुई। दोचुला 3080 मीटर की ऊँचाई पर है। दोचुला Rig Sume Stups के लिए ख्यात है। दूरी, ऊँचाई और सिमिट्री को ध्यान में रखते हुए, सफेद और कत्थई रंग से सज्जित बेमिसाल छोटे-बडे़ स्तूप घेरे की आकृति बनाते हुए इस तरह निर्मित हैं कि संख्या में 108 होते हुए भी अधिक स्थान नहीं घेरते हैं। इन्हें किसी रानी ने बनवाया था। अक्टूबर माह में यहॉं भूटान सेना के सम्मान में दोचुला उत्सव होता है। तेज हवा और चुभती ठंड गरम वस्त्रों को अर्थहीन बना रही है। अचानक स्नो फॉल होने लगा। हमलोग ढलान पर बने कैफेटेरिया में चले गए। कैफेटेरिया के बाहर बोर्ड में लिखा है–वॉशरूम का प्रयोग वही कर सकते हैं जो यहॉं के ग्राहक होंगे। विचित्र शर्त। कैफेटेरिया में गरमाहट के लिए फायर प्लेस जैसी अच्छी व्यवस्था थी। साठ रुपया प्रति प्याला चाय।

वाहन दोचुला से नीचे पुनाखा घाटी की ओर अग्रसर है। पुनाखा के बाजार से क्रॉस होते हुए 13 कि.मी. दूर वांगडू जा रही हूँ। वहॉं रूम बुक हैं। शायद रूम उचित दर पर हैं। शायद यह छीमी का गृह नगर है। होटल के कमरे भव्य हैं। ठीक पीछे बाजार। बाजार में एक अच्छी चाय की दुकान मिल गई। चाय से संतोष मिला।

(19 मार्च 2019) आज पुनाखा का भ्रमण करते हुए थिम्फू लौटना है।

पुनाखा, भूटान की पुरानी राजधानी है। पुनाखा द्जोंग (दुर्ग) से शासन चलाया जाता था। पुनाखा द्जोंग फो चू और मो चू नदी के संगम पर स्थित है। मान्यता है रफ, ठंडी, गेहुँआ रंग की फो चू नर नदी है। शांत, गर्म, हल्के धूसर रंग की मो चू मादा नदी है। 1955 के बाद थिम्फू को राजधानी बना दिया गया। पुनाखा का चीमी मठ भी उल्लेखनीय है। 300 रुपया प्रति व्यक्ति टिकट है। मठ के निर्माण में सीमेंट और कांक्रीट का उपयोग नहीं हुआ है। मठ के मुख्य भाग में भारतीय मूल के बौद्ध गुरु द्वितीय बुद्ध पद्म संभव की विशाल प्रतिमा है। मान्यता है बुद्ध संभव जन्म लेते ही आठ पग चले थे, अत: उनकी प्रतिमा के सम्मुख आठ दीप नित्य जलाये जाते हैं। भिन्न आकार-प्रकार के चक्राकार रंग-बिरंगे केक, फलों से भरे बड़े पात्र, पुष्पों से सज्जा की जाती है। समझना कठिन है किस सॉंचे में ढाल कर केक को इतना सुंदर आकार देकर रंगीन बनाया जाता है। इनका क्या किया जाता है? बासी होने पर विसर्जित किए जाते हैं या बासी होने से पहले आहार के लिए वितरित कर दिए जाते हैं। परिसर में फरटिलिटी टैंपल है। मान्यता है इसके दर्शन से नि:संतानों को एक वर्ष के भीतर संतान प्राप्ति होती है।

पुनाखा का folk heritage संग्रहालय भी देखने लायक है। यहॉं चक्की, सूप, चूल्हा, ओखली, खेती व आखेट में प्रयुक्त होने वाले पत्थर, लकड़ी, लोहे के औजार जैसी पुराने चलन की ग्रामीण सामग्री रखी जाती है। ये ऐसे जरूरी उपादान हैं जो प्राय: सभी देशों में जीवन-यापन को अपेक्षाकृत सरल बनाते थे। संग्रहालय से लगे बड़े ऑंगन में एक ओर निर्मित छायादार झोपड़ीनुमा स्थान पर दो स्त्रियॉं चूल्हे की ऑंच पर मक्का, ज्वार, लाल चावल के दानों को रोस्ट कर रही थीं। पचास रुपये में पचास ग्राम का पैकेट। रोस्टेड चावल खरीदा। स्वादिष्ट था। ऑंगन के बाहर फेंस से घिरी घास वाली खुली जगह में बड़ा धनुष और चार तीर रखे थे। तीरंदाजी भूटान का राष्ट्रीय खेल है। मार्ग में कुछ स्थलों पर तीरंदाजी का अभ्यास करते हुए पुरुष दिखे हैं। ये लोग 145 मीटर से निशाना साध सकते हैं। हमारे समूह ने धनुष पर तीर साधने का उपक्रम किया पर तीर चलाते नहीं बना। पुनाखा का सस्पेंशन ब्रिज भूटान का सबसे लंबा पुल है। इसे प्राकृतिक पुल भी कहते हैं। पुल को दृढ़ता और स्थायित्व देने के लिए खंभों अथवा केबिल का प्रयोग नहीं हुआ है। लकड़ी, बेंत, बॉंस, रस्सी, मोटे रस्से जैसे प्राकृतिक साधनों को आपस में गूँथ कर पुल का धरातल और रेलिंग बनाई गई है। दोनों छोर पर बड़ी चट्टानों में लगाई गई घिर्रियों से रस्सों को बॉंधा गया है। पुल हरिद्वार के लक्ष्मण झूला की याद दिलाता है। चलने में पुल हैंग करता है पर इतना मजबूत है कि दिनभर कई-कई लोग एक साथ आर-पार होते हैं। पुल के नीचे बहती नदी में पानी बहुत कम है। तलहटी के पत्थर स्पष्ट दिख रहे थे। ग्लोबल वार्मिंग धरती की नमी को लीलती जा रही है। पुल के दूसरी ओर निराला संसार था। ढीले मलिन वस्त्र पहने, श्यामल त्वचा, रूखे बाल, पीत नेत्रों वाले आदिवासी स्त्री-पुरुष एकत्र थे। कच्ची मदिरा बन रही थी। बड़ी केतली से गिलासों में गरम चाय परोसी जा रही थी। दो स्त्रियों ने मेरे सामने चाय में मदिरा मिलाई और पीने लगीं। इनका व्यवहार बताता था शेष दुनिया से प्रयोजन न रख यह नशे में लीन रहने वाला समुदाय है।

पुनाखा से दोचुला दर्रा होते हुए इमीग्रेशन दफ्तर में वापसी की रिपोर्ट दर्ज कराते हुए थिम्फू आ पहुँची हूँ। छीमी धीमी गति से वाहन चलाते हुए राजधानी के भवनों की जानकारी दे रहा था–यह सुप्रीम कोर्ट बिल्डिंग…यह सार्क बिल्डिंग…यह हैंडी-क्रॉफ्ट एम्पोरियम…पार्लियामेंट…जिला अदालत…थिम्फू फोर्ट…महाविद्यालय…पाठशाला…।

सभी शासकीय शालाओं में शिक्षा का स्तर अच्छा है। राजवंश के बच्चे भी इन्हीं स्कूलों में पढ़ते हैं। हमें थिम्फू में रुकना है। होटल के रूम अच्छे हैं। पीछे छोटा बाजार है। हमने चाय की दुकान ढूँढ़ ली है।

(20 मार्च 2019) सुबह चाय की दुकान पर गई। पतले मुँह वाली सभ्य महिला और उसकी दो किशोर पुत्रियों ने आलू पराठा और चाय परोसी। वह आलू पराठा और पूरी भाजी दो ही व्यंजन बनाती थी। छीमी वक्त पर आ गया। बुद्धा प्वाइंट, नेशनल लाइब्रेरी, नेशनल मेमोरियल चोर्टेन दिखाएगा। मार्ग में आते-जाते बुद्धा प्वाइंट में स्थापित विश्व की सबसे ऊँची बुद्ध प्रतिमा दूर से, पास से बार-बार दिखी है। समीप से देखकर जाना प्रतिमा की विशालता और भव्यता अनुमान से बहुत अधिक है। जैसे रिकार्ड बनाने के लिए निर्मित की गई हो। इस निर्माण को भूटान का गौरव माना जा सकता है। विस्तृत परिसर के ऊँचे मजबूत चबूतरे में निर्मित सुनहरे रंग से दैदीप्यमान प्रतिमा अलौकिक जान पड़ती है। तेज हवाएँ टोपे के बावजूद कानों तक पहुँच रही हैं। तेज ठंड गरम वस्त्रों के बावजूद चमड़ी को गलाए देती हैं। परिसर में दर्शनार्थियों की अच्छी संख्या है। परिसर में बहुत बड़ा कक्ष है जहॉं बुद्ध से संबंधित दुर्लभ जानकारियॉं उपलब्ध हैं। बुद्धा प्वाइंट देख कर समीप के भोजनालय में गई। यहॉं बुद्धा प्वाइंट से लौटे भूखे दर्शनार्थी बड़ी संख्या में हैं। प्रबंधक आर्डर की आपूर्ति सुचारु नहीं रख पा रहे हैं। अपर्याप्त दाल, चावल, सब्जी। नब्बे रुपये में चार छोटी रोटियॉं। और रोटी मॉंगने पर कहा गया खत्म हो गई। आधा-अधूरा खा कर नेशनल मेमोरियल चोर्टेन और नेशनल लाइब्रेरी देखी। चोर्टेन का आकर्षक रंग, शिल्प, स्वच्छता वस्तुत: मनोहारी है। पूरा परिसर चमक रहा है। भूटान में स्वच्छता का बहुत ध्यान रखा जाता है। नेशनल लाइब्रेरी का खूबसूरत भवन देखते बनता है। यहाँ भी बुद्ध से संबंधित जानकारियॉं उपलब्ध हैं। तरह-तरह की भाव-मुद्रा वाले मुखौटों का अच्छा संग्रह है।

थिम्फू में टैक्सटाईल म्यूजियम, चांग मठ, मोती थंग आदि देखने लायक हैं पर छीमी ने उतना ही दिखाया जो हमारी सूची में है।

(21 मार्च 2019) फुन्त्शोलिंग की ओर वापसी

आज होली है। भारत रंगों से सराबोर होगा। पीछे वाली दुकान पर चाय पीते हुए मैंने बताया ‘आज जा रही हूँ।’

महिला मधुर भाव में बोली ‘भूटान कैसा लगा?’

‘बहुत अच्छा।’

उसने विधान, मितार्थ, विधि को एक रुपया वाला एक-एक भूटानी नोट दिया ‘लो! हमारी याद करोगे।’

यह मनुष्यता ही मनुष्य को मनुष्य से जोड़ती है।

फुन्त्शोलिंग के होटल एशियन में पहुँचा कर छीमी ने विदा ली। कल बाग डोंगरा जाने के लिए पहले वाला चालक आएगा। फुन्त्शोलिंग में नगण्य ही सही पर लोगों के वस्त्रों पर रंग है। जयगॉंव का प्रभाव होगा। होटल के आस-पास बाजार जगमगा रहा है। हमलोग बाजार गए। दुकानों में विक्रेता स्त्रियाँ। कुछ दुकानों में पुरुष हैं जो स्त्रियों के नायब लग रहे हैं। वस्त्र, जूते, …क्रॉकरी उचित दाम पर है। मैंने थोड़ा कुछ खरीदा। विक्रेताओं के व्यवहार में ईमानदारी है–

‘यहॉं भारत, नेपाल, बांग्लादेश से सामान आता है। यह सब आपके देश का है। यहॉं से क्यों ले जाना चाहती हैं?’

कह न सकी यहॉं भारत की तरह एम.आर.पी. के ऊपर मनमानी कीमत नहीं चिपकाई गई है।

‘स्मृति के तौर पर ले जा रही हूँ।’

(22 मार्च 2019) बाग डोंगरा के लिए वापसी

हमें होटल छोड़ने में कुछ विलंब हुआ। प्रतीक्षा करता चालक बोला ‘आधे घंटे से नॉन पार्किंग जोन (होटल के नीचे) गाड़ी खड़ी किए हूँ। पुलिस आ गई तो 200 रुपया जुर्माना देना होगा।’

फुन्त्शोलिंग से जयगॉंव में प्रवेश

भारत की धरती

भारतीयों के मुख से होली का गाढ़ा गहरा रंग गया नहीं है। चालक ने लगभग साढ़े चार बजे बाग डोंगरा पहुँचा दिया। छह बजे विमान ने उड़ान भरी। आठ बजे इंदिरा गॉंधी विमान तल पर। 23 मार्च 2019 को शाम चार बजे महाकौशल से यात्रा आरंभ की। 24 मार्च 2019 को सुबह सतना पहुँच गई।

अपना शहर छोटा हो या बड़ा वहॉं का एक आकर्षण और आत्मीयता होती है। जहाज के पंछी की तरह हम बार-बार वहॉं लौटते हैं।

भूटान की संस्कृति, सभ्यता, सादगी, अध्यात्म, प्राकृतिक सौंदर्य को जानने-समझने के लिए एक बार भूटान जरूर जाएँ।


Image : In the Foothills of the Mountains
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Artist : Albert Bierstadt
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